आज के आर्टिकल में हम भूगोल के अंतर्गत ज्वार -भाटा (Jwar Bhata) के बारे में विस्तार से पढेंगे ।
ज्वार-भाटा – Jwar Bhata
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परिभाषा –
ज्वार-भाटा – सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण जब समुद्र का जल ऊपर की ओर उठता है तो उसे ज्वार तथा जब जल नीचे गिरता है तो उसे भाटा कहते हैं।
🔸 चंद्रमा तथा सूर्य की ज्वारोत्पादक शक्ति 11: 5 के अनुपात में है अर्थात् चंद्रमा की ज्वारोत्पादक शक्ति सूर्य की तुलना में 2.17 गुणा अधिक है।
ज्वार का समय –
पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है। अतः प्रत्येक स्थान पर ठीक 24 घंटे बाद ज्वार भाटा आना चाहिए परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि पृथ्वी रोजाना थोङी सी आगे खिसक जाती हैै। अतः किसी स्थान पर उच्च ज्वार 24 घंटे 52 मिनट देरी से आता है। (दैनिक उच्च ज्वार)
🔸 दैनिक उच्च ज्वार 24 घंटे 52 मिनट देरी से आता है।
🔹 अर्द्ध दैनिक ज्वार 12 घंटे 26 मिनट देरी से आता है।
🔸 दैनिक उच्च ज्वार व दैनिक लघु ज्वार के मध्य 12 घंटे 26 मिनट समय का अंतर होता है।
🔹 दो भाटों के मध्य 12 घंटे 26 मिनट समय का अंतर होता है।
🔸 एक ज्वार और एक भाटे के मध्य 6 घंटे 13 मिनट समय का अंतर होता है।
🔹 पृथ्वी के किसी भी स्थान पर 24 घंटे 52 मिनट समय में दो ज्वार और दो भाटे आते हैं। परंतु इंग्लैण्ड के न्यूसाउथम्पटन में दिन में 4 ज्वार भाटे आते हैं।
🔸 संसार में सबसे ऊंचा ज्वार कनाडा के पास फण्डी की खाङी में आता है।
🔹 भारत में सबसे ऊंचा ज्वार ओखा (गुजरात) में आता है।
🔸 भारत में ज्वारीय ऊर्जा की संभावना – संभात की खाङी व कच्छ की खाङी में है।
🔹 ज्वारीय बंदरगाह लंदन, कोलकाता व कांडला है।
🔸 भारत में सर्वाधिक ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न करने वाला राज्य महाराष्ट्र है।

ज्वार के प्रकार (Jwar ke Parkar)-
🔹 दीर्घ ज्वार – अमावस्या व पूर्णिमा के दिन दीर्घ ज्वार आता है। इस समय पृथ्वी, चन्द्रमा व सूर्य एक सीधी रेखा में होते हैं।
🔸 लघु ज्वार – प्रत्येक माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की सप्तमी अष्टमी तिथि को लघु ज्वार भाटा आता है क्योंकि इस समय पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य समकोणिक स्थिति में होते हैं।
🔹 मिश्रित ज्वार – असमान अर्द्ध दैनिक ज्वार को मिश्रित ज्वार कहते है।
🔸 भूमध्य रेखीय ज्वार – जब चंद्रमा की स्थिति भूमध्य रेखा पर लंबवत् होती है, तो आने वाले ज्वार भूमध्य रेखीय ज्वार कहलाती है। ये समान ऊंचाई वाले होते हैं।
🔹 अयनवृतीय ज्वार – जब चंद्रमा अपने परिक्रमा काल में अधिकतम उत्तरी व दक्षिणी झुकाव की स्थिति में होता है अर्थात् कर्क या मकर रेखाओं पर लंबवत् होता है, तो कर्क एवं मकर रेखाओं के समीप आने वाले क्रमिक ज्वार व भाटा अयनवृतीय ज्वार कहलाते हैं। ये असमान ऊंचाई वाले होते है।
🔸 मासिक ज्वार – चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अण्डाकार पथ में परिक्रमा करता हुआ माह में एक बार निकटतम (पृथ्वी व चंद्रमा के बीच की दूरी 3,56,000 किमी.) दूरी पर होता है। इसे चंद्रमा की उपभू स्थिति कहते है। इस स्थिति में अधिक ज्वारोत्पादक बल के कारण 15-20 प्रतिशत सामान्य से ऊंचे (उच्च ज्वार) आते हैं, जिन्हें उपभू या भूमि नीच ज्वार कहते है तथा जब चंद्रमा अधिकतम दूरी पर अर्थात् अपभू स्थिति में होता है तो कम ज्वारोत्पादक बल के कारण सामान्य से 20 प्रतिशत छोटे ज्वार आते है। इन्हें अपभू या भूमि उच्च ज्वार कहते है। ये स्थितियाँ माह में एक बार आती है। इसलिए इसे मासिक ज्वार कहते है।
🔹 वार्षिक ज्वार – 4 जुलाई को अपनी अण्डाकार कक्षा में परिक्रमा करती हुई। पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है। इसे अपसौर स्थिति कहते है एवं इस समय ज्वार तुलनात्मक रूप से नीचे आते है जो अपसौर ज्वार कहलाते है। जब पृथ्वी सूर्य के निकटतम अवस्था में 3 जनवरी को स्थित होती है। इस स्थिति को उपसौर कहते है तथा इस समय आने वाले ज्वारों को उपसौर ज्वार कहते है। ये सामान्य से तुलनात्मक रूप से ऊंचे होते है। ये स्थितियां वर्ष में एकबार आती है। अतः इन्हें वार्षिक ज्वार कहते है और ये 3 जनवरी व 4 जुलाई को आते है।
🔸 समरात्रि ज्वार – 21 मार्च व 23 सितम्बर को सूर्य भूमध्य रेखा पर लंबवत् चमकता है। अतः सभी स्थानों पर दिन-रात की अवधि समान पाई जाती है। इन दिनों आने वाले ज्वार समरात्री ज्वार कहलाते है। इनकी पुनरावृति छः माह बाद होती है। अतः इन्हें अर्द्धवार्षिक ज्वार भी कहते है और ये 21 मार्च व 23 सितम्बर को आते है।
🔹 चतुर्थ दैनिक ज्वार – ऐसे ज्वार जो दिन में चार बार आते है, चतुर्थ दैनिक ज्वार कहलाते है और ये न्यू साउथम्पटन (ब्रिटेन) में आते है।
ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धान्त –
ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धान्त – | |
1. संतुलन सिद्धान्त – | सर आइजक न्यूटन (1687)। |
2. प्रगामी तरंग सिद्धान्त – | विलियम व्हेल (1833)। |
3. स्थैतिक तरंग सिद्धान्त – | आर. ए. हैरिस। |
4. नहर सिद्धान्त – | सर जाॅर्ज ऐयरी (1842)। |
5. गतिक सिद्धान्त – | लाप्लास (1955)। |
🔸 युति – जब सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों पृथ्वी के एक तरफ स्थित होते हैं तो यह स्थिति युति कहलाती हैं। युति अमावस्या को होती है।
🔹 वियुति – जब पृथ्वी के एक तरफ चन्द्रमा व दूसरी तरफ चन्द्रमा व दूसरी तरफ सूर्य होता है तो यह स्थिति वियुति कहलाती है। वियुति पूर्णिमा को होती है।
🔸 सिजिगी – जब पृथ्वी चन्द्रमा व सूर्य तीनों एक सीधी रेखा में स्थिति होते हैं तो यह अवस्था सिजगी कहलाती है। सिजिगी अमावस्या व पूर्णिमा दोनों को होती है।
🔹 युति व वियुति को सामूहिक रूप से सिजिगी कहते हैं।
🔸 उप भू – जब चन्द्रमा और पृथ्वी बीच की दूरी न्यूनतम होती है तो यह अवस्था उपभू कहलाती है। उपभू की अवस्था में चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी 3 लाख 56 हजार किमी. या 2 लाख 21 हजार 500 मील होती है।
🔹 अप भू – जब चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच अधिकतम दूरी होती है तो यह अवस्था अपभू कहलाती है। इस समय पृथ्वी व चन्द्रमा के बीच की दूरी 4 लाख 7 हजार किमी या 2 लाख 53 हजार मील होती है।
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