Pollution in Hindi – पर्यावरण प्रदूषण क्या है – पूरी जानकारी पढ़ें

आज के आर्टिकल में हम पर्यावरण प्रदूषण(Paryavaran Pradushan) के बारे में जानने वाले है इसके अंतर्गत हम पर्यावरण प्रदूषण क्या है(Pradushan Kya Hai), पर्यायवरण प्रदूषण किसे कहते है (Paryavaran Pradushan kise kahate Hain), प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं(Pradushan Kitne Prakar ke Hote Hain), वायु प्रदूषण क्या है(Vayu pradushan kya hai), जल प्रदूषण क्या है(Jal pradushan kya hai), मृदा प्रदूषण क्या है(Mrida pradushan kya hai), ध्वनि प्रदूषण क्या है(Dhvani pradushan kya hai), रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है (Radioactive pradushan kya hai), जैव प्रदूषण क्या है (Jaivik pradushan kya hai)  (Pollution in Hindi) , इसके प्रकारों व प्रभाव और इसके निवारण के तरीकों से भी परिचित होंगे। पर्यावरण प्रदूषण मानव जाति के लिए बहुत बङा खतरा बन गया है। अगर हम समय रहते इसे कंट्रोल नहीं कर पाये तो इसके भयानक परिणाम हमें भुगतने होंगे।

Paryavaran Pradushan

पर्यावरण प्रदूषण क्या है – Pollution in Hindi

Table of Contents

दोस्तो जो चीजें हमारे चारों ओर फैले आवरण अर्थात पर्यावरण को प्रदूषित करती है या उसे दूषित करती है। उसको हम प्रदूषक कहते हैं। इन प्रदूषकों के कारण हमारा पर्यावरण दूषित होता है इसे पर्यावरण प्रदूषण कहते है। वर्तमान में जैसे जैसे विश्व की जनसंख्या बढती जा रही है ,वैसे -वैसे मनुष्य अपनी जरूरतों के अनुसार ज्यादा मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है। इसी कारण पर्यावरण प्रदूषण (Pollution in Hindi) बढ़ता ही जा रहा है

आज के आर्टिकल में हम क्या-क्या सीख पाएंगे ?

  • पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव क्या है ?
  • ⋅पर्यावरण प्रदूषण कैसे -कैसे फैलता है ?
  • पर्यावरण प्रदूषण मॉडल
  • ⋅पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और समाधान
  • पर्यावरण प्रदूषण क्या है ?
  • ⋅पर्यावरण प्रदूषण का मानव जीवन पर क्या – क्या प्रभाव पड़ता है?
  • पर्यावरण प्रदूषण विषय पर निबंध कैसे लिखें?
  • ⋅पर्यावरण प्रदूषण एवं संरक्षण का विस्तार
  • पर्यावरण प्रदूषण के कारण क्या है ?
  • ⋅पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख प्रकार बताइए?

पृथ्वी एक वृहत पारिस्थितिक तंत्र है और कई छोटे-छोटे पारिस्थितिक तंत्रों का समूह भी है। सभी पारिस्थितिक तंत्रों में जैविक एवं अजैविक घटक पाए जाते है। ये दोनों घटक आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते है। पृथ्वी की पारिस्थितिक तंत्र में प्रायः सभी घटक सन्तुलित अवस्था में पाए जाते है।

इससे सन्तुलन भंग हो जाता है और पारिस्थितिक तंत्र के मुख्य घटकों में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है। इसका अन्तिम प्रभाव जीवधारियों पर पङता है, जो प्रायः हानिकारक ही होता है। इसी अवांछनीय परिवर्तन को प्रदूषण कहते है।

प्रदूषण की उत्पत्ति(About Pollution in Hindi)

स्वच्छ वातावरण किसी भी समुदाय के समुचित विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। स्वच्छ वातावरण ही हम सब की सेहत के लिए आवश्यक है परन्तु आर्थिक विकास व तकनीकी तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ गई तथा सम्पन्नता की होङ में लोगों ने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया गया।

इसकी पूर्ति के लिए मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का निर्दयतापूर्वक दोहन प्रारम्भ कर दिया, जिससे मानव व प्रकृति का सामंजस्य बिगङने लगा और वातावरण प्रदूषण प्रारम्भ हुआ।

पश्चिमी दुनिया में औद्योगिकरण के बाद आई तीव्र समृद्धि के बाद से पर्यावरणीय समस्याओं का श्रीगणेश अर्थात् शुरुआत हुई। इस प्रक्रिया में औद्योगिक क्रान्ति के बाद तीव्रगति से वृद्धि हुई। वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के पर्यावरण के प्रति अविवेकपूर्ण दोहन की प्रकृति अपनाने के कारण पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई है, जिनका पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में कमोबेश प्रभाव परिलक्षित हो रहा है।

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प्रदूषक क्या होते है – Prdushk kya hote hai

ऐसे पदार्थ जो पर्यायवरण में प्रदूषण फैलाते है, प्रदूषक कहलाते है, जैसे-घरेलू अपशिष्ट, कूङा कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट वाहनों का धुआँ आदि।

प्रमुख पर्यावरणीय समस्याएँ

  1. जलवायु में परिवर्तन (Climatic Change)
  2. विश्व तापमान में वृद्धि (Global Warming)
  3. अम्लीय वर्षा (Acid Rain)
  4. ओजोन परत का क्षयीकरणी (Ozone Layer Depletion)
  5. हरित-ग्रह प्रभाव (Greenhouse  Effect)
  6. हिम का पिघलना (Ice melting)

अपघटन की दृष्टि से प्रदूषक दो प्रकार के होते हैः

1. जीवधारियों द्वारा अपघटनीय प्रदूषक- ये वैसे कार्बनिक पदार्थ है जो सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित होकर अपने हानिकारक प्रभाव को खो देते है ; जैसे- घरेलू वाहित मल, पौधों एवं जन्तुओं के मृत अवशेष तथा कूङा-करकट आदि। इन पदार्थों की सीमित मात्रा ही सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित हो पाती है।

2. जीवधारियों द्वारा अन्तः अपघटनीय प्रदूषक- ये वैसे पदार्थ है जो सूक्ष्म जीवधारियों द्वारा अपघटित नहीं हो पाते हैं और आरम्भ से ही हानिकारक होते है; जैसे- जहरीली भारी धातुएँ, सीसा, पारा, अर्सेनिक, कैडमियम, निकेल, मैंगनीज, जस्ता व फीनाॅल आदि रसायनों के यौगिक।

प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं – Pradushan Kitne Prakar ke Hote Hain

प्रदूषण मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार के होते है:

  1. वायु प्रदूषण
  2. जल प्रदूषण
  3. मृदा प्रदूषण
  4. ध्वनि प्रदूषण
  5. रेडियोधर्मी प्रदूषण
  6. जैव प्रदूषण
  7. समुद्री प्रदूषण

Essay about Pollution

वायु प्रदूषण क्या है -Vayu pradushan kya hai

Vayu Pradushan
Vayu Pradushan

वायु प्रदूषण, वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में से ऐसे अवांछित परिवर्तन का द्योतक है, जिसके द्वारा मनुष्य व अन्य जीवों की जीवन दशाओं का प्रतिकूल प्रभाव पङे। यह प्रभाव औद्योगीकरण व विकास की चहुमुंखी दौङ में वायुमण्डल की परत, जिनमें जीव-जन्तु श्वसन लेते है तथा जिनसे अन्य क्रियाकलाप करते है, पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है।

वायु प्रदूषण के कारण – Vayu Pradushan ke Karan

वायु प्रदूषण के स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया गया है। वायु प्रदूषण के मुख्यतः दो स्रोत हैः
1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Resource)
2. मानव जनित स्रोत या मानवीय स्रोत (Unnatural Resourse)

1. प्राकृतिक स्रोत

प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले प्रदूषकों को निम्न उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता हैः

  • ज्वालामुखी उद्गार से उत्पन्न प्रदूषक– धूलि, धूम्र, राख, कार्बन डाइ ऑक्साइड और अन्य गैसें।
  • आकाशीय प्रदूषक- क्षुद्रग्रहों, उल्काओं आदि के पृथ्वी से टकराव से उत्पन्न धूल।
  • हरे पौधों से उत्पन्न प्रदूषक – श्वसन के उत्पन्न कार्बन डाइ ऑक्साइड, जलवाष्प, फूलों के पराग, दावाग्नि।
  • कवक से उत्पन्न प्रदूषक- कवक के बीजाणु तथा कवक द्वारा सङाए गए पदार्थ।
  • धरती से उत्पन्न प्रदूषक- धरती की सतह के विषाणु, धूल एवं मिट्टी के कण।
2. मानव जनित स्रोत

वायु प्रदूषण मुख्य रूप से मानवीय स्रोतों से ही होता है। इन स्रोतों में है-

(क) दहन

वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है दहन की प्रक्रिया। मानव के हर क्रियाकलाप में ऊर्जा की आवश्यकता होती है और ऊर्जा की आवश्यकता होती है और ऊर्जा के लिए किसी-न-किसी ईधन की आवश्यकता होती है। दहन से अनेक गैसें तथा पदार्थ उत्पन्न होकर वायु प्रदूषित करते है। मानव की निम्न क्रियाओं से दहन प्रक्रम में प्रदूषण फैलता हैः

  • घरेलू कार्यों में ईधन- जीवाश्मीय ईधन के दहन से कार्बन-मानोऑक्साइड, कार्बन-डाइऑक्साइड, सल्फर-डाईऑक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होती है, जो वायु को प्रदूषित करती है।
  • ताप विद्युत गृहों में दहन- ताप विद्युत गृहों में ताप प्राप्ति के लिए कई टन कोयला जलाया जाता है। इससे बङी मात्रा में अर्थात् एक साथ टनों सज्फर-डाईऑक्साइड, कालिख, कोलाइडी राख आदि अपशिष्ट पदार्थ हवा में छोङे जाते है।
  • वाहनों में दहन- परिवहन के सभी साधनों-स्कूटर, कार, ट्रक, बस, रेल, वायुयान आदि सभी को चलाने में डीजल या पेट्रोल काम आता है। इंजन में काम आने के बाद इनके निर्वात पाइप से निकलने वाले धुएँ में सूक्ष्म कार्बन कण, नाइट्रोजन ऑक्साइड व पेराॅक्साइड गैसें, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि होती है। यदि पेट्रोल में लैड है तो वह भी एक बङा प्रदूषक है।
  • कूङे-कचरे के निस्तारण के लिए दहन।
  • अन्य छोटे-बङे उद्योगों में दहन।
(ख) उद्योगों की चिमनी से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ

मानव जनित प्रदूषण का दूसरा प्रमुख कारण औद्योगीकरण है। समग्र विकास की दृष्टि से नवीन उद्योगों को लगाना आवश्यक है, किन्तु उनसे निकलने वाले धुएँ से सभी प्रकार की हानिकारक गैसें, हाइड्रोकार्बन अपशिष्ट व अन्य हानिकारक पदार्थ, नियमित रूप से वायु में मिलकर प्रदूषण फैलाते है।

भोपाल के कारखाने से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट गैसे से 2 व 3 दिसम्बर, 1984 में भीषण घटना हुई जो दिल दहला देने वाली है।

(ग) आण्विक विस्फोट– आधुनिककाल में परमाणु विस्फोटों से वायु में हानिकारक रसायन व धूल कण आदि मिलकर उसे प्रदूषित करते है।

(घ) मनोरंजन के लिए चलाए जाने वाले पटाखों आदि से भी भारी प्रदूषण होता है।

(ङ) भौतिक साधन- फ्रीज, एयर कंडीशनरों आदि में प्रशीतकों के रूप में क्लोरोफ्लोरो कार्बन प्रयुक्त होते है, जो वायु में मिलकर धीरे-धीरे ओजोन परत का नाश करते है।

(च) कृषि कार्य-

उत्पादकता वृद्धि के लिए आजकल कीटनाशक बहुत बारीक फुहारों से छिङकी जाती है। डी. डी. टी, बी. एच. सी आदि पाउडर भी छिङके जाते है। ये सभी हानिकारक पदार्थ वायु में मिलकर वायु को जहरीला बना देते है।

(छ) विलायकों का प्रयोग- फर्नीचरों की पाॅलिश, स्प्रे पेन्ट, आदि में कार्बनिक विलायकों का उपयोग होता है। ये कम ताप पर वाष्पित होने वाले द्रव हाइड्रोकार्बन होते है। उपयोग के समय भी ये वाष्पिति होकर, वायु में मिलकर, उसे प्रदूषित करते है।

(ज) प्रसाधनों द्वारा भी वायु प्रदूषण होता है।

(झ) धूम्रपान करते समय निकलने वाला धुआँ भी वायु प्रदूषण का कारण है।

(ञ) अन्य स्रोत- मरे हुए पशु, सङी-गली वस्तुएँ, गंदे नाले, चर्मशोधक कारखाने, डिस्टलरीज आदि से जो दुर्गन्ध युक्त गैसें निकलती है, वे भी वायु प्रदूषण के दैनिक जीवन में महसूस किये गये उदाहरण है।

प्रदूषकों की प्रकृति के आधार पर इन्हें दो भागों में विभाजित किया गया है-

1. गैसीय वायु प्रदूषक
2. कणिकीय वायु प्रदूषण

1. गैसीय वायु प्रदूषक(Air Pollution in Hindi)

गैसीय वायु प्रदूषक निम्नलिखित हैः

🔶 बेंजीन- पेट्रोल से सीसे का प्रयोग दूर करने के लिए सीसा मुक्त पेट्रोल का प्रयोग प्रारम्भ किया गया। पेट्रोल में ऑक्टेन मान प्राप्त करने के लिए पेट्रोल में बेंजीन, टाॅल्युईन और जाइलीन मिलाए जाते है। इन यौगिकों के दहन से हाइड्रो और निलम्बित कण पदार्थ उत्सर्जित होते है। बेंजीन से रक्त कैंसर हो जाता है।

🔷 सल्फर डाइ-ऑक्साइड- वायु प्रदूषकों में सबसे ज्यादा हानिकारक सल्फर डाई ऑक्साइड से आँख में जलन, दमा, खाँसी, फेफङों के रोग तथा सिर में चक्कर और साँस में कठिनाई की समस्या उत्पन्न होती है। सल्फर डाइ ऑक्साइड को कुकिंग गैस भी कहते है क्योंकि यह पत्थर को भी क्षत-विक्षत कर सकती है। मथुरा तेलशोधक कारखाने से निकलने वाली सल्फर डाइ ऑक्साइड ताजमहल को प्रभावित करती है।

वायुमण्डल में उत्सर्जित सल्फर डाइ ऑक्साइड वातावरण की नमी को अवशोषित कर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाती है। यह जब जलवर्षा के साथ धरातल पर गिरती है तो उसे अम्लीय वर्षा कहते है। इसमें पादप कोशिकाओं में प्रकाश संश्लेषण एवं उपापचयी क्रियाओं की दर कम हो जाती है। हरित लवक नष्ट हो जाते है। यह जलीय जीवों को भी प्रभावित करता है। वह जीव-जन्तुओं, पादपों व फसलों तथा भवनों सबके लिए काफी हानिकारक होता है।

🔶कार्बन मोनो ऑक्साइड- इस गैस की उत्पत्ति जीवाश्म ईधनों के अपूर्ण दहन से होती है। यह सामान्यतः वनस्पतियों के लिए विषाक्त नहीं होती पर मनुष्य के लिए विषाक्त है। इसे दमघोंटू गैस भी कहते है। साँस के माध्यम से शरीर में पहुँचकर रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन वहन क्षमता को यह बिल्कुल कम कर देती है।

🔷 मीथेन

इसकी उत्पत्ति गोबर व वनस्पयिों के सङने से, दलदली व तर जमीनों से होती है। समताप मण्डल में मीथेन का सान्द्रण होने से जलवाष्प में वृद्धि होती है, जो हरित गृह प्रभाव को बढ़ाती है। जिससे निचले वायुमण्डल और धरातल पर ताप में वृद्धि होती है।

🔶 क्लोरो फ्लोरा कार्बन- इससे ओजोन गैस का विनाश होता है। जिस कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें अधिक मात्रा में धरातल पर पहुँचती है। इससे त्वचा कैंसर का खतरा उत्पन्न होता है।

🔷 कार्बन डाइ ऑक्साइड- यह सभी जीवधारियों की जीवनदायिनी है। इसके बिना प्राथमिक उत्पादक अपना भोजन नहीं बना सकते। किन्तु वायुमण्डल में इसका अधिक सान्द्रण हरित गृह प्रभाव में वृद्धि करता है। फलस्वरूप वैश्विक तापवृद्धि होती है।

🔶 नाइट्रोजन के ऑक्साइड- वैसे तो नाइट्रोजन पादपों के लिए मुख्य पोषक पदार्थ है, पर नाइट्रोजन के ऑक्साइड हानिकारक प्रभाव छोङते है। नाइट्रोजन के ऑक्साइड वायुमण्डलीय नमी से प्रतिक्रिया कर नाइट्रिक अम्ल बनाते है, जो वर्षा जल के साथ धरातल पर आता है। यह अम्ल वर्षा समस्त जीवधारियों के लिए अन्यन्त हानिकारक होती है।

इसकी उत्पत्ति खनिज तेलों व कोयले को जलाने से होती है। मानवीय शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड के अधिक सान्द्रण से कई रोग-मसूङों से रक्तस्राव, निमोनिया, फेफङे का कैंसर आदि होते है। सुपर सोनिक जहाजों से निकली नाइट्रोजन ओजोन परत को पतला करती है।

🔷 कणिकीय पदार्थ- इसके अन्तर्गत ऐरोसोल धूम्र, कालिक धूलि, कुहासा आदि आते है। एरोसोल से बङे ठोस कणों को धूलि तथा तरल करण को कुहासा कहा जाता है।

2. कणिकीय वायु प्रदूषण

कणिकीय पदार्थों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है-
(अ) धात्विक कणिकीय पदार्थ
(ब) अधात्विक कणिकीय पदार्थ
(स) जैविक कणिकीय पदार्थ

(अ) धात्विक कणिकीय पदार्थ- इनकी उत्पत्ति औद्योगिक खनन, निर्माण एवं धातु शोधन के दौरान होती है। इसके अन्तर्गत सीसा, एल्युमीनियम, ताबाँ, लोहा, जस्ता तथा कैडमियम आदि के बारीक कणों को शामिल किया जाता है। सीसा मस्तिष्क, नाङी और गुर्दा आदि को नुकसान पहुँचाता है। कैडमियम के कण श्वसन में विष की तरह कार्य करते है।

(ब) अधात्विक कणिकीय पदार्थ- इसके अन्तर्गत ऐस्बेस्टम, सिरामिक्स, सिलिका आदि के धूल कणों को रखा जाता है। ये मौसमी दशाओं में परिवर्तन लाते है। ये श्वसन के माध्यम से मनुष्य के फेफङों में जाकर अनेक बीमारियों का कारण बनते है। पत्थर की कटाई और घिसाई करने वाले मजदूरों के फेफङों में सिलिका के कण जाकर जमा होते रहते है जिससे उन्हें क्षय रोग हो जाता है।

सिलिका कणों से होने वाली बीमारी को सिलीकोसिस कहते है। इसी प्रकार ऐम्बेस्टस के धूल कणों से एस्बेस्टोसिस नामक बीमारी होती है।

(स) जैविक कणिकीय पदार्थ- इसके अन्तर्गत पादपों तथा जन्तुओं से निकलने वाले वायु प्रदूषकों तथा विषाणुओं एवं बैक्टीरियल बीजाणुओं आदि को रखते है। कपास व उसकी धूल भी फेफङों में जाकर दमा और क्षय रोग जैसी बीमारियाँ उत्पन्न करती है।

भोपाल गैस त्रासदी भारत की वायु प्रदूषण की सबसे भयंकर दुर्घटना है, जो 2-3 दिसम्बर, 1984 की रात में घटी। यूनियन कार्बाइड कम्पनी से मिथाइल आइसो साइनेट गैस के रिसाव से 500 लोग तत्काल ही काल का ग्रास बन गए और लाखों लोग विकलांग हो गए।

वायु प्रदूषण के प्रभाव – Vayu pradushan ke prabhav

वायु प्रदूषण, वायु के साथ, दूर-दूर तक आसानी से फैलता है, अतः इसका प्रभाव जल प्रदूषण से भी व्यापक होता है। इसमें मानव स्वास्थ्य, वनस्पति, अन्य जीव-जन्तु पर्यावरण सभी पर विपरीत प्रभाव पङता है। ये प्रभाव निम्न है:

1. मानव स्वास्थ्य

सांस द्वारा वायु फेफङो में जाती है। यदि वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड उपस्थित है तो वह रक्त के हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर कार्बेक्सी हीमोग्लोबिन बनाती है। कार्बन- मोनोऑक्साइड, ऑक्सीजन की तुलना में 200 गुना अधिकता से हीमोग्लोबिन की थोङी-सी मात्रा भी रक्त को खराब करने के लिए काफी है व इसकी प्रचुरता होने से व्यक्ति की दम घुटने से मृत्यु हो जाती है।

कार्बन-मोनोऑक्साइड की अधिक मात्रा में वायु में उपस्थिति से रक्त की ऑक्सीजन को वहन करने की क्षमता में कमी आती है। इससे दम घुटता है व फेफङों व मस्तिष्क की क्रियाशीलता कम होती है।

अन्य गैसें जो वाहन प्रदूषण द्वारा सांस में जाती है, जैसे-सल्फर, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, ये भी धुएं के साथ मिलकर श्वास के द्वारा शरीर में जाती है, जहाँ श्वसन तंत्र की बीमारियां-ब्रान्काइटिस, दमा, गले में खराबी, आँखों में जलन, बच्चों में सांस की तकलीफ व संक्रमण को बढ़ाती है।

पेट्रोल के धुएँ के साथ निकलने वाली लैड शरीर में यकृत, वृक्क के ऊतकों को हानि पहुंचाते है तथा हड्डियों को कमजोर करते है।
दूसरे रसायनिक पदार्थ, जैसे-हाइड्रोकार्बन, बेन्जोपाइरिन आदि स्वतंत्र अवस्था में बारीक कणों के रूप में हवा में रहते है व शरीर में जाकर फेफङों के कैंसर का कारण बनते है।

2. कीटों व वन्य जीवों पर प्रभाव

मनुष्य की भांति जीव-जन्तुओं पर भी वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव होते है। कुछ मधुमक्खियां, तितलियां वायु प्रदूषण से समाप्त होती जा रही है, जो फलों की फसलों के लिए लाभदायक होती है, कश्मीरी सेबों के उत्पादन में कमी का कारण मधुमक्खियों की संख्या का कम होना भी माना जाता है, क्योंकि ये फूलों का निषेचन कर फल पकाने में मदद करती है।

अन्य वन्य जीवों में श्वसन द्वारा दूषित वायु जाने से श्वसन तंत्र व तंत्रिका संबंधी रोग हो जाते है। छोटी वनस्पतियों पर, घास आदि पर यदि फ्लोराइड यौगिक जमे हो तो जीवों में हड्डियों का कमजोर होना जैसे रोग हो जाते है।

3. वनस्पतियों पर प्रभाव

पौधों पर भी प्रदूषण का प्रभाव देखा गया है कि गंदे धुएँ वाले कालिख भरे वातावरण से इनकी पत्तियाँ रोगग्रस्त होकर गिर जाती है। इनके रोम छिद्र हाइड्रोकार्बन, तेल से अवरुद्ध हो जाते है, जिससे प्रकाश संश्लेषण व वाष्पोत्सर्जन, दोनों क्रियाओं पर प्रभाव पङता है।

अधिक वाहनों वाले स्थानों में सङक की विभाजक पट्टी पर लगे बोगनेलिया आदि के पौधे काले व सूखे नजर आते है।
अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में वर्षा के समय सभी गैसें घुलकर वर्षा जल के साथ मिलकर वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाती है। अम्लीय वर्षा से फूलों के रंग फीके हो जाते है तथा पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय – Vayu pradushan ke nivaran ke upay

वायु प्रदूषण औद्योगिकरण और नगरीकरण की देन है। आर्थिक प्रगति की दिशा को उल्टा नहीं किया जा सकता है पर यदि ऊर्जा उपयोग और प्रगति की दौङ में थोङा विवेकपूर्ण तरीके से ऊर्जा का उपयोग किया जाए तो वायु प्रदूषण को सन्तोषजनक स्थिति तक सुधारा जा सकता है। इसके तरीके निम्न है:

1. प्रदूषण के घातक परिणामों व उनके प्रभावों के बारे में जानकारी देनी चाहिए।

2. ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

3. पेट्रोल व डीजल की जगह सम्पीङित प्राकृतिक गैस (सी. एन. जी.) का प्रयोग किया जाना चाहिए।

4. डीजल गाङियों में अति अल्प सल्फर युक्त डीजल या हरित डीजल का प्रयोग किया जाना चाहिए। वैकल्पिक ईधनों-कोल बेड मीथेन, बायोडीजल का प्रयोग किया जाना चाहिए।

5. ओजोन विनाशक रसायनों के विकल्प का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

6. गाङियों में कैटजलायटिक कनवर्टर/स्क्रबर लगाया जाना चाहिए।

7. उद्योगों की चिमनियों में बैग फिल्टर लगाए जाने चाहिए।

8. बङे आकार के कणिकीय पदार्थ को उत्सर्जित करने वाले उद्योगों में साइक्लोन सेपरेटर एवं वेट स्क्रबर का प्रयोग किया जाना चाहिए।

9. अति सूक्ष्म कणिकीय पदार्थों (माइक्राॅन से कम आकार) को छानकर अलग करने के लिए विद्युत स्थैतिक अवशेषक का प्रयोग करना चाहिए।

10. बिना लैड का पेट्रोल काम में लेना चाहिए।

11. वाहनों का विवेकपूर्ण उपयोग व उनके ईजन की नियमित रूप से जाँच करवाकर यह नियत करना चाहिए कि ईधन पूरा जल रहा है अथवा नहीं।

12. वनों को सुरक्षित व वृक्षारोपण करना चाहिए।

जल प्रदूषण क्या है – Jal pradushan kya hai

Jal pradushan
Jal pradushan

पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन पाया जाता है क्योंकि पृथ्वी पर जल है। यदि जल न हो तो जैवमण्डल में पोषक तत्त्वों का संचरण सम्भव नहीं होगा। इसलिए कहा जाता है कि ’’जल ही जीवन का आधार है।’’ किन्तु आज अनेक कारणों से जल प्रदूषण आज एक बङी समस्या बन चुका है।

’’मानवीय क्रियाकलापों या प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते है।’’
अर्थात् ’’जल में किसी भी प्रकार के अवांछनीय, गैसीय, द्रवीय, व ठोस पदार्थों का मिलना ही जल प्रदूषण कहलाता है।

जल प्रदूषण के कारण – Jal pradushan ke karan

⇒ जल प्रदूषण भी प्राकृतिक व मानव जनित, दोनों ही कारणों से होता है।

जल प्रदूषण के प्राकृतिक कारण

1. जंगलों में पङा जैविक कचरा, जैसे-सूखी पत्तियां, लकङियां , मरे हुए जीव-जुन्तुओं के अवशेष आदि वर्षा द्वारा बहकर जलाशयों में मिल जाते है।

2. बहते हुए जल में, खनिज व बाहर पङे पदार्थ मिल जाते है व जलाशयों में पहुंच जाते है।

3. इस तरह कुछ विषैले तत्व, जैसे-पारा, आर्सेनिक, सीसा, कैडनियम आदि जल में घुल-मिलकर उसे हानिकारक बनाते है।

जल के मानव जनित स्रोत

1. अज्ञानतावश नदियों, तालाबों में नहाना तथा मल-मूल का त्याग करना।

2. कपङे धोना आदि से अपमार्जक व साबुन जल में मिलकर जल को स्थाई रूप से नुकसान पहुंचाते है।

3. घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों का बहिस्राव, जल-मल आदि का जल में मिलना।

4. मृत पशुओं आदि को जल में निस्तारित करना।

5. उद्योगों से निकलने वाले बहिस्रावों को सीधे ही जलाशयों आदि में छोङने से।

6. कृषि कार्यों में उपयोग के लिए खाद व कीटनाशकों के बचे हुए भागों का बह कर जल में मिलाना।

7. तैलीय प्रदूषण, उद्योगों से, जहाजों से या समुद्री दुर्घटनाओं से, तेल के परिवहन द्वारा व समुद्र के किनारे तेल कुआँ से रिस कर।

8. जल का तापीय प्रदूषण, उद्योगों द्वारा या बङे सयंत्रों के उपकरणों को शीतल करने के लिए प्रयुक्त पानी गर्म अवस्था में फिर से जलाशय में छोङा जाता है, जिससे नदियों, तालाबों आदि का पानी गर्म हो जाता है।

9. रेडियो एक्टिव अपशिष्ट किसी नाभिकीय विस्फोट आदि द्वारा वायु में फैले बारीक कण धीरे-धीरे जलाशयों में गिरते है। ये सभी जल को प्रदूषित करते है।

जल प्रदूषण के मुख्यतः दो स्रोत हैः

1. प्राकृतिक स्रोत- इसके अन्तर्गत ज्वालामुखी के उद्गार, मृदा अपरदन, भू-स्खलन तथा वनस्पतियों व जन्तुओं का जल में सङना, जल में फ्लोराइड तथा आर्सेनिक की अधिकता इत्यादि शामिल है।

2. मानवीय स्रोत- इसके अन्तर्गत औद्योगिक कचरा, जो सामान्यताः जल में विसर्जित किया जाता है, नगरीय कचरा और गन्दा नाला, आता है।

जल प्रदूषण के प्रकार – Jal pradushan ke prakar

स्वास्थ्य पर प्रभाव पारा के जल में घुलने तथा उत्पन्न प्रदूषण से जापान में मिनिमाता रोग वहाँ के संक्रमित मछलियों के खाने से हुआ था। कैडमियम प्रदूषण से इटाई-इटाई बीमारी तथा लीवर एवं फेफङे का कैंसर होता है। भूमिगत जल प्रदूषण से नाइट्रेट की अधिक मात्रा के कारण नवजात शिशुओं में मिथेग्लोबीन या बेबी सिण्ड्रोम बीमारी हो जाती है।

जल प्रदूषकों को उनकी प्रकृति के आधार पर इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता हैः

औद्योगिक जल प्रदूषक

औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे में क्लोराइड, सल्फाइड, नाइट्राइट्स, नाइट्रेट्स आदि रासायनिक प्रदूषक तथा सीसा, पारा, जस्ता, ताँबा आदि धात्विक पदार्थ होते है।

औद्योगिक कचरे को जल में गिराने से उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जाती है। सल्फेट, नाइट्रेट और फ्लोराइड आदि लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है। प्रदूषित जल जीवधारियों के लिए विषाक्त हो जाता है। गन्दे पानी केो पीने से विभिन्न प्रकार के रोग; जैसे- हैजा, पेचिस, टाइफाइड, पीलिया आदि उत्पन्न हो जाते है। प्रदूषित जल में पाए जाने वाले शैवाल भी जहरीले होते है।

प्राकृतिक जल प्रदूषक

भू-स्खलन और मृदा अपरदन से उत्पन्न गाद नदियों व झीलों के पानी को गन्दा करते है। मृत जैविक पदार्थ पानी में सङक दुर्गन्ध तथा प्रदूषण फैलाते है। इसके अतिरिक्त प्रकृति में भूस्तर के नीचे कुछ हानिकारक पदार्थ पाए जाते है जो जल में घुलकर जल को प्रदूषित करते है ; जैसे- 1. आर्सेनिक 2. फ्लोराइड आदि।

🔶 आर्सेनिक- यह सफेद पाउडर की तरह दिखता है। यह जहरीला पदार्थ है। इसका जल में घुला हुआ रूप हानिकारक होता है। बंगाल में यह अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके ब्लैक फुट बीमारी होती है।

🔷 फ्लोराइड- उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के कई गाँवों का जल प्राकृतिक रूप से फ्लोराइड की अधिकता हो जाने से प्रदूषित है। प्रति लीटर जल में 1 प्रतिशत फ्लोराइड से अधिक मात्रा स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होती है। फ्लोराइड प्रदूषित जल पीने से मांसपेशियाँ और हड्डियाँ प्रभावित होती है। फ्लोराइड के दृष्प्रभाव से होने वाली फ्लोरोसिस कहते है।

🔶 घरेलू अपशिष्ट और वाहित मल- शहरों में घरेलू कूङे-कचरे में सङे हुए अन्न व सब्जियाँ तथा पाॅलिथीन की थैलियाँ होती है। ये पदार्थ नालियों में सङकर दुर्गन्ध फैलाते है और रोगकारक जीवाणुओं के प्रजनन स्थल बन जाते है।

पाॅलिथीन की थैलियाँ नाली अवरुद्ध कर देती है। इन्हें नालों से होकर नदियों में गिरा दिया जाता है। काफी ठोस पदार्थ को विभिन्न केन्द्रों पर डाल देते है जिससे भूमि तथा जल प्रदूषित होता है।

🔷 अपमार्जक-

कपङे धोने में जो साबुन व पाउडर प्रयुक्त किए जाते है उनको अपमार्जक कहते है। इनमें फास्फोरस की अधिकता पाई जाती है। अपमार्जकों में सोडियम ट्राईपोली फाॅस्फेट का प्रयोग किया जाता है, जो कठोर जल को मृदु कर देता है और कपङोें की धुलाई के समय मैल निकालने में सहायक होता है।

🔶 कृषि कार्यों में प्रयुक्त रसायन- कृषि कार्यों में फसलों को सुरक्षित बचाने के लिए पीङकनाशी के अन्तर्गत कई विषाक्त रसायनों; जैसे-कीटनाशी, पीङकनाशी, खरपतवारनाशी और कवकनाशी का प्रयोग किया जाता है। इनका कुछ भाग जल में घुलकर तालाब, नदियों व झील के जल को प्रदूषित करता है।

अपशिष्ट जलों के बहाव के साथ कार्बनिक अपशिष्टों का जमाव जलाशयों की पोषक मात्रा को बढ़ा देता है जिससे शैवालों का विकास तेजी से होता है। इस प्रक्रिया को सुपोषण कहते है।

🔷 इसी प्रकार रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी व जल में सल्फेट आयन की मात्रा बढ़ जाती है। इनके भूमिगत जल भी प्रदूषित होता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव – Jal pradushan ke prabhav

जल प्रदूषण से, जल में होने वाले परिवर्तनों के अक्सर हानिकारक प्रभाव ही होते है। जल-जीव, वनस्पति, मानव, सभी के लिए आवश्यक है अतः जल प्रदूषण का प्रभाव सभी पर पङता है-

1. मानव पर प्रत्यक्ष प्रभाव

दूषित पेय जल पीने से मानव को निम्न बीमारियों का खतरा रहता है। ऐसी बीमारियां, जल वाहित (Water borne) बीमारियाँ कहलाती है। उदाहरणार्थ-

🔶 हैजा, टाइफाइड, दस्त, पेचिश आदि बैक्टीरिया जनित रोग।
🔷 हिपेटाइटिस, पीलिया आदि वाइरस जनित रोग।
🔶 अमीब्तयोसिस, पेट दर्द, आंतो व आमाशय से संक्रमण आदि प्रोटोजोआ जनित रोग।
🔷 नारू आदि कृमि जनित रोग।

🔶 दूषित जल के संपर्क द्वारा चर्म रोग, द्वितीयक संक्रमण, आंखों के रोग आदि।
🔷 जल में अधिक मात्रा में उपस्थित रसायन, फ्लोराइड द्वारा दंतक्षय, हड्डी की विकृतियाँ राजस्थान में जल जनित बीमारियाँ है।
🔶 नाइट्राइट, पारा, संखिया लैड आदि की उपस्थिति जल को विषैला बनाती है।
🔷 प्रदूषित जल के शोधन पर अत्यधिक धन खर्च होता है।

🔶 जल जनति बीमारियों द्वारा भारत में लोगों के कई कार्य दिवस नष्ट होते है।
🔷 बीमारियों पर होने वाले खर्च में वृद्धि।
🔶 जन-धन की हानि।

2. जल जीवों पर प्रभाव

🔶 जल प्रदूषण यदि बहुत अधिक हो तो उसमें जीवित मछलियाँ नष्ट हो जाती है।
🔷 मछली पाल उद्योगों व उससे जनित अन्य उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पङता है।
🔶 भारी मात्रा में मछलियों, सील आदि का मरना।

🔷 जल में ऑक्सीजन की कमी से मछलियों के मरने की घटनाएँ।
🔶 समुद्री जीवों पर तेल प्रदूषण का विपरीत प्रभाव।
🔷 तापीय प्रदूषण से एक साथ कई जीवों की समाप्ति।

अन्य जीवों पर प्रभाव

🔶 जल जीवों के अलावा अन्य जीव, जैसे- गाय आदि प्रदूषित जल पीने से आंत्र रोगों से ग्रसित हो जाती है।
🔷 फ्लोराइड युक्त जल पीने से पालतू व वन्य जीवों में भी हड्डियों व दांतों का क्षय होता है।

3. वनस्पतियों पर प्रभाव

🔷 घरेलू अपशिष्ट, अपमार्जक आदि द्वारा प्रदूषण से जल क्षारीय व अनुपयुक्त हो जाता है, कई जल वनस्पतियाँ नष्ट हो जाती है।
🔶 कृषि अपशिष्टों में नाइट्रेट, फाॅस्फेट आदि अधिक होने से इनमें कुछ ही जलीय शैवाल, जैसे- नील हरित शैवाल आदि की अधिकता हो जाती है व बाकी सभी वनस्पतियाँ समाप्त हो जाती है।

🔷 प्रदूषित जल में काई की अधिकता से सूर्य की रोशनी पूरी तरह नहीं पहुंच पाती, जिससे जलीय जीवों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कमी आती है व पौधों की वृद्धि रूक जाती है।

जल प्रदूषक नियंत्रण के उपाय – Jal pradushan ke niyantran ke upay

निम्न कुछ ऐसे उपाय है, जिनसे जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है अथवा जल प्रदूषण कम हो सकता है।

🔶 घरेलू प्रयुक्त जल को सीधे जलाशयों में न मिलने दिया जाए।
🔷 सीवरेज व गटर के जल को अलग नालियों द्वारा एक ही जगह एकत्रित कर, सीवरेज उपचार संयत्रों द्वारा इसे उपचार के बाद ही कृषि आदि कार्यों में लिया जाए।
🔶 अपशिष्ट पदार्थों का जलाशयों से निस्तारण नहीं किया जाए।
🔷 मरे हुए पशु-पक्षियों को किसी जलाशय में विसर्जित न किया जाए।
🔶 जलाशयों में नहाना, कपङे धोना, मल-मूत्र त्याग आदि न किया जाए।
🔷 पशुओं को जलाशयों में नहीं नहलाया जाए।

🔶 ट्रकों, ट्रैक्टरों आदि की धुलाई जलाशयों में न की जाए।
🔷 पेयजल के स्रोत के चारो तरफ कोई सीमा या दीवार बनाकर उसमें ठोस अपशिष्ट पदार्थों का मिलना रोका जाए।
🔶 कृषि कार्यों में कम से कम कीटनाशक व कृमिनाशक दवाइयाँ मिलाई जाए।
🔷 खनन क्षेत्र व औद्योगिक क्षेत्र, आवासीय बस्तियों से दूरी पर हों।
🔶 प्रदूषण के कारणों व रोकने के उपायों से जन-साधारण को अवगत करवाया जाए।
🔷 औद्योगिक अपशिष्टों को बिना उपचार पानी में न बहाया जाए।

🔶 कैंपों में जलाशयों के रख-रखाव तथा उनमें दवाई डालना इत्यादि कार्य करवाए जाए।
🔷 प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए।
🔶 स्कूल, काॅलेज आदि में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल प्रदूषण के बारे में जानकारी दी जाए।
🔷 शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए।

मृदा प्रदूषण क्या है – Mrida pradushan kya hai

Mrida pradushan in Hindi
Mrida pradushan in Hindi

भूमि की सबसे ऊपरी मृदा (Soil) है, इसकी गुणवत्ता पर हमारे देश की कृषि उत्पादकता निर्भर करती है। मिट्टी में जैविक व धात्विक, दोनों पदार्थ होते है। वनस्पति की वृद्धि के लिए 16 खनिज तत्वों की आवश्यकता होती है, एक अच्छी मिट्टी में लगभग 13 तत्व मिल जाते है। इन 13 तत्वों में से किसी की भी सान्द्रता में कमी या वृद्धि हो तो वह मृदा प्रदूषित कहलाती है।

’’मानवीय अथवा प्राकृतिक अथवा दोनों कारणों से मृदा की गुणवत्ता में आए ह्रास को मृदा प्रदूषण कहते है।’’
⋅मृदा का प्रधान गुण जीवधारियों केा पोषण प्रदान करना है, जब किन्हीं कारणों से मृदा में इस गुण का पालन करने की समर्थता कम हो जाती है, तो मृदा को प्रदूषित माना जाता है।

मृदा प्रदूषण के कारण – Mrida pradushan ke karan

⇒ मृदा प्रदूषण के निम्न कारण है:

🔶 उद्योगों से निकले धुएँ, अपशिष्ट जिन्हें भूमि का बहा दिया जाता है, जैसे- धातुएँ, धातु-ऑक्साइड, क्षार अम्ल, रंजक पदार्थ, कीटनाशक आदि।
🔷 बङे-बङे बांधों के बनने से।
🔶 खनन उद्योगों द्वारा।
🔷 सङकें बनने की प्रक्रिया में।
🔶 शहरीकरण व बङी-बङी इमारतों के बनने में
🔷 कृषि में अधिक मात्रा में रासायनिक खाद में कीटनाशक डालने से।

🔶 पश्चिमी राजस्थान व देश के कई अन्य भागों में भूमिगत जल लवणयुक्त या खारा होता है, जिससे सिंचाई करने में ऊपरी मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है।
🔷 शहरी कचरा ट्रकों से दूर किसी भू-भाग में या कम गहरी जमीन पर डाल दिया जाता है, जिसमें प्लास्टिक बोतलें, काँच, कपङा, ऊन, लोहे के टुकङे, बगीचे का कचरा, बचा हुआ खाना सभी कुछ होता है। यह मृदा प्रदूषण का बङा कारण है।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव – Mrida pradushan ke prabhav

🔶 उद्योगों द्वारा भूमि का छोङे गए अपशिष्ट, कार्बनिक पदार्थ आदि मृदा की उर्वरा शक्ति को कम करते है।
🔷 सुपर फाॅस्फट खाद में लैड, कैडमियम, संखिया जैसे धातु कम मात्रा में पाये जाते है, जो मृदा की उपज शक्ति को कम करते है।
🔶 सल्फर डाई ऑक्साइड या सल्फर के यौगिक जल से क्रिया करके अम्ल बनाते है व मृदा को अति अम्लीय बना देते है। यह अम्लीयता पेङ-पौधों को खराब करती है।

🔷 पेस्टीसाइड, फंगी-साइट्स, फ्यूमिगेन्ट्स जैसे- ऐल्ड्रिन आदि मिट्टी में धीरे-धीरे एकत्रित होकर मनुष्य की खाद्य शृंखलाओं में, फसलों, सब्जियों, अण्डे, दूध आदि द्वारा खाने में आ जाते है व कई घातक बीमारियों को जन्म देते है।
🔶 कुछ रसायन मिट्टी में से कभी विघटित नहीं होते व उसमें स्थाई खराबी पैदा करते है।
🔷 शहरी कचरे में अत्यधिक प्लास्टिक व अजैविक कचरा होता है, जो कभी समाप्त नहीं होता व मृदा की गुणवत्ता नष्ट करता है।

मृदा प्रदूषण नियंत्रण के उपाय – Mrida pradushan ke niyantran ke upay

मृदा को स्वच्छ, उपजाऊ और सभी पोषक तत्वों से युक्त रखना व उपद्रव्यों से दूर रखना आवश्यक है। इसके लिए निम्न उपाय कारगर हो सकते है-
🔶 औद्योगिक अपशिष्टों को बिना उचित उपचार के व घातक रसायनों को छाने बिना भूमि पर बहाने पर पाबंदी हो।
🔷 औद्योगिक अपशिष्ट को खेतों में बहाने पर पाबंदी हो।
🔶 कृषि उत्पादन के लिए कम-से-कम कीटनाशक काम में लिया जाए।
🔷 खाद के रूप में अधिक मात्रा में गोबर, पत्ती की खाद व कम मात्रा में रासायनिक खाद का उपयोग में ली जाए।

🔶 मृदा संरक्षण के सभी उपाय, जैसे-खेतों के आस-पास आम, नीम, बरगद आदि बङे वृक्ष लगाये जाऐं, जिससे पत्तियों की उर्वराशक्ति भी बढ़े व मृदा अपरदन भी रूक जाए।
🔷 शहरी कचरे को निस्तारण भूमि पर न करके उसे निस्तारक यंत्रों द्वारा व उचित तकनीक द्वारा विद्युत उत्पादन, खाद उत्पादन आदि में काम लिया जाए।
🔶 अधिक-से-अधिक वृक्ष व वन लगाकर मृदा की ऊपरी सतह को अपरदन से बचाया जाए।

🔷 अजैव क्षरणीय पदार्थों को भी खेती योग्य भूमि में नही फेंकना।
🔶 अपमार्जक व अपशिष्ट पदार्थों को, प्रदूषण संशोधन हेतु बने टैंकों में भेजना।
🔷 कीटनाशक रसायनों के छिङकाव वाली फसलों को पशुओं को नहीं खिलाना।

ध्वनि प्रदूषण क्या है – Dhvani pradushan kya hai

Dhvani pradushan
Dhvani pradushan

ध्वनि यदि धीमी हो तो सहनीय होती है, किन्तु प्रबल ध्वनि असहनीय होती है, जिसे शोर की संज्ञा दी जाती है। ध्वनि, तरंगों के रूप में वायु के माध्यम से बहती है, जो सुनने वालों द्वारा सुनी जाती है। बिना उचित माध्यम के ध्वनि तरंगे आगे नहीं बढ़ पाती, इसलिए निर्वात में की हुई कोई आवाज या काँच से बने परदे के आर-पार कोई ध्वनि नहीं जाती है।

⇒ ध्वनि की तीव्रता को डेसीबल में व्यक्त किया जाता है। इस सामान्य व्यक्ति के लिए 50-60 डेसिबल तीव्रता की ध्वनि सुनना, उपयुक्त व सामान्य होता है तथा इससे अधिक तीव्रता की ध्वनि को शोर कहा जा सकता है।

शहरीकरण, धार्मिक, सामाजिक सभी क्रियाकलापों में दिखावा आदि के कारण शोर में वृद्धि हुई है। इस प्रकार वह ध्वनि जो सुनने वाले के लिए अरूचिकर या तीव्र हो, शोर कहलाती है। वह प्रक्रिया जिससे अतितीव्र ध्वनियाँ बार-बार व लगातार सुनाई दें, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।
अर्थात् जब अवांछित शोर से हमारे अन्दर अशान्ति उत्पन्न होती है तो हम उसे ध्वनि प्रदूषण कहते है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण – Dhwani pradushan ke karan

ये स्रोत सभी प्राकृतिक व मानव जनित अथवा कृत्रिम, दोनों प्रकार के है:

1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Source)- प्राकृतिक स्रोत में बिजली कङकना, बादलों का गरजना, भूकम्प की ध्वनि, तेजी से गिरते पानी की ध्वनि, तूफानी हवाएं आदि आती है, किन्तु ये हवाएँ क्षणिक होती है व इनका प्रभाव भी सीमित व क्षणिक होता है।
2. मानव जनित या कृत्रिम स्रोत (Unnatural Source)- इस प्रकार का शोर कई कारणों से होता है। इनमें से प्रमुख कारण निम्न हैः

🔶 आवागमन के साधनों द्वारा- शहरी क्षेत्रों में मोटर वाहनों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अतः मनुष्य मार्गों में से गुजरने वाले, मुख्य बाजारों, मार्गों आदि के पास के भवनों में रहने वाली जनसंख्या हर क्षण बसों, मोटर साइकिलों, कारों और जीप आदि के इंजन व हार्न से उत्पादित शोर का अनुभव करती है।

रेल पटरियों के किनारे दूर-दूर तक की काॅलोनियांे में हर थोङे-थोङे अंतराल के बाद रेल के ईजन व उसके हाॅर्न का शोर गूंजता है व रात्रि की नींद तक में खलल डालता है। इसी प्रकार वायुयानों के उङने से तीव्र ध्वनि होती है।

🔷 औद्योगिक इकाईयों व मशीनों द्वारा

कई बङे कारखानों में मशीनों की तीव्र आवाज होती है, जिससे बिल्कुल पास खङे व्यक्ति भी बाते नहीं कर सकते है।
छौटे कारखानों, जैसे-कङाई, नक्काशी, धातुओं की पन्नियां बनाना आदि में लगातार एक ही प्रकार की आवाज होती है, जो ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है।
🔶 बङी इमारतों, सङकों, फ्लाई ओवर आदि के निर्माण के दौरान- आज हर शहर के भीतर तथा बाहरी इलाकों में जगह-जगह विशाल इमारतें, रिहायशी संकुलोंआदि का कई-कई महीनों तक निर्माण कार्य चलता रहता है, जिसकी मशीनों से निकलने वाली ध्वनियाँ तथा मजदूरों के एक साथ कार्य करने से होने वाली तेज ध्वनियाँ, उस क्षेत्र में शोर प्रदूषण करती है।

सङकें बनने व डामरीकरण आदि में भारी वाहन चलने की तेज आवाज होती है। पुन, फ्लाई ओवर आदि का शहरों के बसने के बाद निर्माण कार्य कई-कई दिनों तक चलता रहता है, जिससे भारी मशीनें ध्वनि प्रदूषण करती है।

🔷 मनोरंजन के साधनों व सामाजिक क्रिया-कलापों में- खुले मैदानों में बङे-बङे कार्यक्रम आयोजित करने में, धार्मिक जागरण, पूजा आदि में, शादी-ब्याह, जन्म दिवस जैसे सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमों में ध्वनि प्रदूषण होता है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव – Dhwani pradushan ke prabhav

शोर मानव जीव के कई तरह से हानि पहुंचाता है:
🔶 अधिक शोर से चिङचिङापन, थकान, सिरदर्द आदि के लक्षण उत्पन्न होते है।
🔷 अत्यधिक शोर सामान्य वार्तालाप में बाधक होता है।
🔶 शोर, व्यक्ति की कार्य क्षमता व एकाग्रता को प्रभावित करता है।

🔷 अस्पताल के बाहर, शैक्षिक संस्थाओं के बाहर होने वाला शोर, मरीजों व पठन-पाठन के वातावरण को बिगाङता है।
🔶 उद्योगों में जहाँ मशीनों का अत्यधिक शोर होता है, वहीं कार्य करने वाले मजदूरों व कर्मचारियों के स्वास्थ्य व श्रवण शक्ति को वह प्रभावित भी करता है, जिसके कारण ऊँचा सुनने तथा बहरेपन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
🔷 भजन-कीर्तन, मनोरंजन आदि ध्वनि विस्तारक यंत्र लगाकर करने से आस-पास रहने वाले लोगों, परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों को असुविधा होती है।

🔶 आवाज वाले बम-पटाखों को मनोरंजन के लिए जलाने व देर रात तक जलाने से असुविधा होती है।
🔷 तीव्र ध्वनि से न केवल कानों पर बल्कि हृदय गति बढ़ना, रक्त वाहिनियों का संकुचन, रक्त चाप में परिवर्तन मांस पेशियों में तनाव आदि दुष्प्रभाव पङते है।

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण – Dhwani pradushan ke niyantran ke upay

शोर प्रदूषण को कम करने का सबसे अच्छा उपाय है, उसे उसके स्रोत पर ही रोकना। कुछ सावधानियाँ व संयम द्वारा इनके हानिकारक प्रभावों से बचा जा सकता है। ये निम्न है:
🔶 लाउडस्पीकर का प्रयोग बन्द करना तथा तीव्र ध्वनि वाले हाॅर्न लगाने वालों पर कङी कानूनी कार्यवाही करना।
🔷 उद्योगों में मशीनों के सही रख-रखाव द्वारा शोर कम करना।
🔶 वाहनों के ईजनों को सही रखकर इंजन का शोर कुछ कम किया जा सकता है।
🔷 उद्योगों व छोटे कारखानों को भी आवासीय बस्तियों से अधिक दूरी पर रखना।

🔶 अधिक शोर वाले उद्योगों में कर्मचारियों व मजदूरों की कर्ण प्लगकर्णमफ का उपयोग आवश्यक करके स्वास्थ्य पर होने वाले प्रदूषण के प्रभाव को रोका जा सकता है।
🔷 मुख्य मार्गों पर बने घरों में कांच की खिङकियाँ-दरवाजे लगवाकर।
🔶 नई तकनीक के उपकरणों के उपयोग द्वारा, जैसे-आज टाइपराइटर की खट-खट की जगह कम्प्यूटर से टाइपिंग, अन्य ऑफिस कार्य आदि कम या मध्यम ध्वनि उत्पन्न करते है।
🔷 हवाई अड्डों, बस स्टेंडों आदि पर अधिकतम शोर की सीमा निर्धारित की जानी चाहिए, जिससे ध्वनि प्रदूषण कम हो।
🔶 कारखानों में ध्वनि करने वाली मशीनों को ध्वनिरोधी भवन में चलाया जाना चाहिए।

🔷 यातायात के नियमों का पालन करने में आम-जन को होने वाली परेशानियाँ कम हो सकेंगी।
🔶 अपने घर में पार्टी, जागरण, कथा, पाठ आदि करवाते समय आउडस्पीकर का प्रयोग न करे। आप ऐसा अपने व्यक्तिगत आस्था के कारण करते है, अतः दूसरों को इसके लिए कष्ट देना उचित नहीं है। धर्म के नाम पर होेने के कारण कष्ट पाते हुए भी अन्य लोग आपत्ति करने से झिझकते है।

🔷 वर्तमान समय में विवाह के दौरान बजने वाला संगीत भी भीषण ध्वनि प्रदूषण फैलाता है, जिसके रोकथाम हेतु राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा नियम भी बनाये गये है, जिससे आम जन को इस प्रदूषण से होने वाले हानि से बचाया जा सके। विवाह एक पारिवारिक समारोह होता है, जिसमें व्यक्तियों का एक समूह तो आनंदित होता है, किन्तु यह अन्य समूहों के लिए क्षति का स्रोत भी बनता है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है – Radioactive pradushan kya hai

Radioactive Pollution
Radioactive Pollution

🔶 ’रेडियोधर्मी’ पदार्थों के विकिरण से होने वाला प्रदूषण रेडियोधर्मी प्रदूषण कहलाता है।’
🔷 रेडियोधर्मी पदार्थ- वे पदार्थ जिनसे स्वतः रेडियोधर्मी विकिरण निकलता है ’रेडियोधर्मी’ पदार्थ कहे जाते है; जैसे- यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम आदि।
🔶 रेडियोधर्मी प्रदूषण मापने की इकाई रौंटजन है। इसके अतिरिक्त इसे रैड में भी मापा जाता है।

🔷 250 रैड तक का विकिरण जीवधारियों को विशेष क्षति नहीं पहुँचाता। एक्स-रे लगभग 5 रैड विकिरण उत्पन्न करता है।
वर्ष 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु बिजली संयन्त्र में रिसाव होने से अधिकांश पूर्वी यूरोपीय देश प्रभावित हुए थे।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव  – Radioactive pradushan ke prabhav

रेडियोधर्मी पदार्थों से अल्फा, बीटा, गामा आदि कण करणों के रूप में निकलते है। ये जीवित ऊतकों के जटिल अणुओं को विघटित कर कोशिकाओं को नष्ट कर देते है, जिस कारण चर्मरोग एवं कैंसर जैसी अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है। रेडियोधर्मी प्रदूषण से जीन्स और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है। मनुष्य अत्यन्त खतरनाक रोगों, जैसे रक्त कैंसर, अस्थि कैंसर और अस्थि टी. बी. से पीङित हो सकता है।

विकिरण से बचाव के उपाय – Radioactive pradushan ke niyantran ke upay

1. विखण्डनीय पदार्थों के उत्पादन व उपभोग पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाए। ऊर्जा के उत्पादन के लिए परमाणु ऊर्जा के बजाय वैकल्पिक व नवीकरणीय स्रोतों को उपयोग किया जाए।
2. परमाणु पनडुब्बियों व परमाणु अस्त्रों का उत्पादन न किया जाए।
3. रेडियोधर्मी पदार्थों के साथ प्रयोग होने वाली मशीनों को सुरक्षित तरीके से नष्ट किया जाए। नाभिकीय विकिरण अवघात से बचने के लिए पोटैशियम आयोडाइड की गोलियों का प्रयोग करना चाहिए।

’’विद्युत चुम्बकीय तंरगें आवेशित मूल कणों इलेक्ट्राॅन, प्रोटाॅन आदि के मुक्त अवस्था में दोलन से या परमाणु में इलेक्ट्राॅनों की ऊर्जा में परिवर्तन से उत्पन्न होती है। ये बिना किसी माध्यम के भी संचरण करती है। ये प्रकाश की गति से चलने वाली अनुप्रस्थ तरंगें है। प्रकाश, द्रवमीय, विकिरण, खतरनाक किरणें, रेडियों तरंगें इसी के रूप है। इन तरंगों का तरंगदैर्ध्य, परिसर और आवृत्ति परिसर बहुत विशाल तथा विस्तृत होता है।

रेडियों तरंग

निम्नतम आवृत्ति और अधिकतम तरंगदैर्ध्य वाली विद्युत-चुम्बकीय तरंग को रेडियो तरंग कहते है। इनकी आवृत्ति 105 हर्ट्ज से कम होती है।

सूक्ष्म तरंग- रेडियों तरंगों से अधिक आवृत्ति वाली तंरग सूक्ष्म तरंग होती है। इनका तरंगदैर्ध्य अपेक्षाकृत कम होता है।

🔶 उच्च वोल्टेज क्षमता के विद्युत सम्प्रेषण तारों के इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों से निकलने वाले विकिरण द्वारा जीवों के स्वास्थ्य पर पङने वाले विपरीत प्रभाव को विद्युत विकिरण कहते है।

🔷 विद्युत चुम्बकीय विकिरण प्रदूषण एक छिपा हुआ प्रदूषण है। यह स्वास्थ्य पर धीरे-धीरे प्रभाव डालता है।

🔶 उच्च वोल्टेज तारों के आस-पास निकले विकिरण से कैंसर हो सकता है।

जैव प्रदूषण क्या है – Jaivik pradushan kya hai

Biological Pollution in Hindi
Biological Pollution in Hindi

रोगाणु या बैक्टीरिया, विषाणु या वाइरस तथा अन्य सूक्ष्म जीवों द्वारा वायु, जल, खाद्य पदार्थों या अन्य वस्तुओं को प्रदूषित कर मनुष्य की मृत्यु का कारण बनना जैव प्रदूषण कहलाता है।
🔶 रोगकारक सूक्ष्म जीवों से संक्रमित कर मनुष्यों, फसलों व फलदाई वृक्षों का विनाश करना जैव प्रदूषण है।
🔷 साल्मोनेला बैक्टीरिया से भोजन विषाक्तता होती है।

जैव प्रदूषण के प्रभाव  – Javik pradushan ke prbhav

1. एन्थ्रेक्स- बैसिलस एन्थ्रासिस बैक्टीरिया द्वारा यह रोग फैलता है। यह मूलतः पशुओं का रोग है।
एन्थ्रेक्स बैक्टीरिया के तीन रूप है – 1. क्यूटेनियस, 2. पल्मोनेट्री, 3. इन्टेस्टाइनल बोटूलिज्म। यह क्लाट्रीकुलम बोटूलिनम नामक बैक्टीरिया से फैलता है। इसका संक्रमण भोजन या पानी द्वारा होता है।

2. प्लेग- बैक्टीरिया जनित यह रोग दो प्रकार का होता है- 1. ब्यूवोनिक, 2. न्यूमेरिक।
3. चेचक- यह विषाणु जनित रोग है।
4. ट्यूलरेमिया- बैक्टीरिया जनित इस रोग के बैक्टीरिया पशुओं और कुत्तों पर पलने वाली परजीवी में पाए जाते है।
5. विषाणुवीय रक्तस्रावी ज्वर- यह इबोला वायरस से होता है।

समुद्री प्रदूषण क्या है – Samudri pradushan kya hai

Marine Pollution in Hindi
Marine Pollution in Hindi

पृथ्वी का 71 प्रतिशत भू-भाग समुद्र से ढका हुआ है। अतः उसकी स्वच्छता के प्रति सजग रहना आवश्यक है। एक अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष 6000 टन क्रोमियम, 8000 टन संखिया, 900 टन बेरियम, 17000 टन लोहा, 12000 टन सीसा, 70000 टन जिंक आदि बिना किसी उपचार व अनुकरण के समुद्र में फेंक दिया जाता है। इससे होने वाली हानि का अनुमान स्वतः ही लगाया जा सकता है।

समुद्री प्रदूषण के कारण – Samudri pradushan ke karan

समुद्री प्रदूषण के निम्न कारण है-
🔶 जोहान्सबर्ग पृथ्वी सम्मेलन 2002 के अंत में यही निष्कर्ष निकाला गया कि सागर में सर्वाधिक मात्रा में औद्योगिक अपशिष्ट विकसित देशों द्वारा फेंका जाता है, यह समुद्री प्रदूषण का बङा कारण है।
🔷 तैलीय प्रदूषण सागरीय प्रदूषण का मुख्य कारण है। प्रति वर्ष लगभग 3.5 लाख मीट्रिक टन तेल समुद्रों में मिल जाता है।
🔶 पैट्रोलियम पदार्थों के परिवहन के समय साधारण रूप से बिना किसी दुर्घटना के भी लगभग 0.45 लाख मीट्रिक टन तेल समुद्र में फैल जाता है।
🔷 सागरीय दुर्घटनाओं के कारण प्रतिवर्ष लगभग 1.3 लाख मिट्रिक टन तेल समुद्र में फैल जाता है।

🔶 समुद्र के किनारे, पेट्रोलियम खनन व पेट्रोलियम पदार्थ, उत्पादन सयंत्रों के अपशिष्टों के रूप में तैलीय प्रदूषण फैलाते है।
🔷 नगरीय उपशिष्टों का समुद्र में निस्तारण।
🔶 रेडियोधर्मी पदार्थों का समुद्र में निस्तारण।
🔷 परमाण्वीय संयंत्रों में नाभिकीय प्रदूषण।

समुद्री प्रदूषण का प्रभाव – Samudri pradushan ke Prbhav

समुद्री प्रदूषण के कुछ दूरगामी परिणाम है, जिनके हानिकारक परिणाम आपदाओं के रूप में कालान्तर के सामने आयेंगे, किन्तु तात्कालिक प्रभावों के रूप में कई प्रभाव सामने आते हैं, जो निम्न है-
🔶 मछलियों, समुद्री जीवों पर विपरीत प्रभाव, अकाल व एक साथ मृत्यु।
🔷 समुद्रीय पारिस्थितिक तंत्र के प्राकृतिक स्वरूप का बिगङना।
🔶 तैरते हुए तैलीय व ठोस अपशिष्टों के कारण जल में ऑक्सीजन की कमी होना।

मानव पर प्रभाव – Effects on human

🔷 प्रदूषित समुद्री जल से स्नान करने से चर्म रोग होता है।
🔶 प्रदषित जल के किसी भी प्रकार के सेवन से लकवा, श्वास की बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
🔷 पारा, संखिया, कैडमियम, लैड जैसी धातुएँ मछलियों, समुद्री-जीवों में चली जाती है। इस प्रकार वे मानव की खाद्य शृंखला में प्रवेश कर हानि पहुंचाती है।
🔶 मछुआरों की आजीविक का स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पङता है।

समुद्री प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (Marine Pollution Control Measures)

🔷 विषैले पदार्थों के जल निस्तारण पर कानून बनाकर रोक लगाना।
🔶 जहाजों से तेल परिवहन के समय विशेष सावधानियाँ बरतना।
🔷 तैलीय प्रदूषण को जल्द से जल्द एकत्रित करके, जलाकर, अवशेषित करके तथा मंथन करके रसायनों व लकङी के बुरादे को समुद्री पानी पर से हटाना।
🔶 प्राकृतिक रूप से निस्पंदन, विसरण, वाष्पन आदि द्वारा समुद्री प्रदूषण पर नियंत्रण कर सकते है।

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