India Rashtrapati in Hindi – भारत का राष्ट्रपति

आज के आर्टिकल में हम भारत के राष्ट्रपति के बारे में(India Rashtrapati in Hindi) ,इनके चुनाव ,योग्यता , कार्यकाल व शक्तियों के बारें में विस्तार से पढेंगे ।

भारत का राष्ट्रपति (Bharat ke Rashtrapati)

Table of Contents

India Rashtrapati in Hindi

चुनाव की प्रक्रिया

🔸 भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता तथा राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के सदस्य के मत का मूल्य निम्नलिखित विधि से निकाला जाता है-

🔹 एक निर्वाचित एम. एल. ए. के मत का मूल्य –

राज्य की जनसंख्या 1यदि शेष 500 से अधिक हो तो मतों की संख्या में एक जोङ दिया जाता है।

🔸 एक संसद सदस्य के मत का मूल्य –

राज्य की जनसंख्या 2

  •  यदि आधे से अधिक भिन्न आए तो उसे एक गिना जाता है।
  • राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा गुप्त मतदान रीति से होता है।
  • सभी मतदाताओं को मत-पत्र पर अपनी प्राथमिकताएं 1, 2, 3………… देनी होती है, चुनाव में विजयी होने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार को कम से कम एक निश्चित संख्या मेें मत प्राप्त करना अनिवार्य होता है। इस निश्चित संख्या को निर्धारित कोटा कहा जाता है। यह कोटा वैध मतों का स्पष्ट बहुमत होता है अर्थात् आधे से अधिक मत होने चाहिए।
  •  मतगणना के प्रथम चक्र में प्रथम प्राथमिकताओं की गिनती की जाती है और यदि इसमेें ही किसी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा प्राप्त हो जाता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है यदि प्रथम चक्र में निर्धारित कोटा किसी को भी प्राप्त नहीं होता तो द्वितीय चक्र, तृतीय चक्र अर्थात् जब तक निर्धारित कोटे के मत नहीं मिल जाते मतगणना जारी रहती है, द्वितीय चक्र में द्वितीय प्राथमिकताओं को गिना जाता है तथा जिस उम्मीदवार के सबसे कम मत होते हैं, तथा जिसके जीतने के अवसर नगण्य होते है उसके मत दूसरे उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं किसी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा मिल जाने पर मतगणना समाप्त कर दी जाती है।

कार्यकाल-

  •  राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है। राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है, जब तक नया राष्ट्रपति चुना जाता है, पुराना राष्ट्रपति तब तक कार्य करता रहता है।
  • कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित हो चुका है वह पुनः राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए योग्य होगा।

राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए योग्यताएँ-

1. कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए तभी योग्य होगा जब वह-

  • भारत का नागरिक हो
  • 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित हो।

2. कोई व्यक्ति यदि सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता है तो वह राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।

राष्ट्रपति के लिए शर्तें-

  • – राष्ट्रपति किसी भी विधान मण्डल या संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होगा यदि कोई इस प्रकार का सदस्य राष्ट्रपति हो जाता है तो उसे सदस्यता त्यागनी होगी।
  •  राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
  • -राष्ट्रपति संसद की विधि द्वारा निर्धारित उपलब्धियों एवं वेतन भत्तों का हकदार होगा तथा बिना किराया दिए शासकीय आवास का उपयोग करेगा।
  •  राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते उसकी पदावधि के समय कम नहीं किए जाएंगे।
  • -राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित व्यक्ति पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समय निम्नलिखित प्रारूप में शपथ लेगा तथा उस पर हस्ताक्षर करेगा।
  • मैं अमुक ’’ईश्वर की शपथ लेता हूँ सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ’’ कि मैं भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूँगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा’’

महाभियोग(India Rashtrapati in Hindi)-

  • संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है।
  • संसद के किसी भी सदन राज्य सभा या लोक सभा मेें उस सदन के एक चैथाई (1/4) सदस्य चैदह दिन की पूर्व सूचना के साथ संकल्प प्रस्तावित करने का आशय प्रकट करें।
  • यह संकल्प उस सदन की कुल संख्या से कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए।
  • संसद का दूसरा सदन इस आरोप का अन्वेषण करेगा इस जाँच में राष्ट्रपति को उपस्थित होने तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा।
  • यदि राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं तथा जाँच करने वाले सदन के द्वारा कुल संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति को संकल्प पारित किए जाने की तिथि से उसके पद से हटाना होगा।

राष्ट्रपति के पद में रिक्त भरने के लिए निर्वाचन का समय तथा आकस्मिक रिक्त को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि-

  •  -राष्ट्रपति पद पर पदासीन राष्ट्रपति की पदावधि पूर्ण होने से पूर्व ही निर्वाचन कर लिया जाता है।
  • यदि राष्ट्रपति का पद आकस्मिक रूप से पदावधि पूर्ण होने से पूर्व स्थित हो जाता है तो छः मास के अन्दर नव राष्ट्रपति का निर्वाचन कर लिया जाएगा तथा उसका कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से पूरे पाँच वर्ष के लिए होगा।

राष्ट्रपति निर्वाचन से सम्बन्धित विवाद-

  • -राष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी शंकाओं तथा विवादों की जांच तथा निर्णय का अन्तिम अधिकार सर्वोच्च-न्यायालय को होगा।
  • यदि किसी कारण से सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति के निर्वाचन को अमान्य घोषित कर देता है तो उसके द्वारा उस अवधि मेें किए गए कार्यों को अमान्य घोषित किया जाएगा।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकती है।
  • -राष्ट्रपति के निर्वाचन को निर्वाचक मण्डल में किसी रिक्ति के होने पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।

राष्ट्रपति के क्षमा सम्बन्धी अधिकार-

  • सेना न्यायालय द्वारा दिए गए दंड या दंडावेश के सभी मामले में।
  • किसी विधि के विरूद्ध किए गए अपराध के लिए दिया दण्ड तथा जिस विषय तक संघ कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।
  • मृत्यु दंडावेश के मामलों में।

संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार-

  • उन विषयों तक जिन पर संसद की विधि बनाने की शक्ति है।
  • किसी संधि या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा इस प्रकार के अधिकारी प्राधिकार और अधिकारिता के प्रयोग तक होगा।

राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद्-

  • -राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।
  • राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा लेकिन चवालीसवें संविधान संशोधन के अनुसार मंत्रिपरिषद् से ऐसी सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकेगा तथा वह पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
  • इस प्रश्न की कोई भी न्यायालय जाँच नहीं कर सकता कि मन्त्रियों ने राष्ट्रपति को क्या सलाह दी, यदि दी तो क्या दी।
  • प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है।
  • मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करते है।
  • मंत्रिपरिषद् लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।
  • राष्ट्रपति मंत्रियों को पद धारण करने से पूर्व उनको पद की गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
  •  किसी भी गैर संसद सदस्य को मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन कोई मंत्री, जो निरंतर छः मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
  • मंत्रियों के वेतन, भत्ते संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए जाएंगे।

राष्ट्रपति और भारत का महान्यायवादी-

  • उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए योग्यताएं रखने वाले किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रपति भारत का महान्यायवादी नियुक्त कर सकता है।
  • महान्यायवादी का कार्य राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर सौंपे एवं निर्देशित कार्यों को करना तथा भारत सरकार को विधि सम्बन्धी सलाह देना है।
  • -महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।
  • महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है तथा राष्ट्रपति द्वारा अवधारित पारिश्रमिक प्राप्त करता है।

राष्ट्रपति और सरकारी कार्य का संचालन-

  • भारत सरकार की समस्त कार्य पालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की हुई मानी जाएगी।
  • राष्ट्रपति सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए मंत्रियों के कार्यों के आवंटन के लिए नियम बनाएगा।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री-

  • -राष्ट्रपति को संघ सरकार के विधान विधेयक तथा प्रशासन सम्बन्धी कार्यकलापों सम्बन्धी निर्णयों की जानकारी देगा।
  • उपर्युक्त विषय से सम्बन्धित जानकारी यदि राष्ट्रपति मांगे तो राष्ट्रपति को देगा।
  • ऐसे विषय को जिस पर किसी मंत्री ने निर्णय दे दिया है, किन्तु मंत्रिपरिषद ने अभी विचार नहीं किया है उसे राष्ट्रपति के कहने पर वह परिषद् के समक्ष रखेगा।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ (India Rashtrapati in Hindi)

कार्यपालिका शक्तियाँ-

  • अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
  • अनु. 77 के अनुसार भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं।
  • राष्ट्रपति देश के सभी उच्चाधिकारियों की नियुक्ति करता है। प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्री, उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, भारत के महान्यायवादी, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त, संघ लोक आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्य आदि की नियुक्ति व विमुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को ही है।

सैनिक शक्तियाँ –

  • राष्ट्रपति देश के प्रतिरक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है।
  • मंत्रिपरिषद् की सलाह से युद्ध घोषित करने व शान्ति स्थापित करने की शक्ति प्राप्त है।

विधायी शक्तियाँ –

  • राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत करता है और सत्रावसान करता है। वह लोकसभा का विघटन कर सकता है।
  •  -राष्ट्रपति लोकसभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आरम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करता है जिसमें वह सरकार की सामान्य नीतियों और भावी कार्यक्रमों का विवरण देता है।
  • संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही अधिनियम बनता है। धन विधेयक को छोङकर अन्य विधेयकों को राष्ट्रपति स्वीकृत कर सकता है, अपनी स्वीकृत सुरक्षित रख सकता है या अपने सुझाव के साथ पुनर्विचारार्थ लौटा सकता है। संसद द्वारा पुनः पारित विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य है।
  • यदि किसी विधेयक पर (धन विधेयक के अलावा) दोनों सदनों में कोई असहमति हो तो उसे सुलझाने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति राज्यसभा में साहित्य, कला, विज्ञान व सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों तथा लोकसभा में दो एंग्लो-इंडियन समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत करता है।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति (अनु. 123) –

  • संसद के एक या दोनों सदनों के सत्र में न होने पर आवश्यक होने पर राष्ट्रपति जारी कर विधि निर्माण कर सकता है।

वित्तीय शक्तियाँ –

  • धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किए जा सकते है।
  • वह वार्षिक वित्तीय विवरण (केन्द्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखवाता है।
  • अनुदान की कोई भी माँग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
  • वह आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।
  • वह राज्य व केन्द्र के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।

न्यायिक शक्तियाँ –

  • वह उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
  • क्षमादान की शक्ति (अनु. 72) – राष्ट्रपति किसी दोषी व्यक्ति के दंड को क्षमा कर सकता है, निलम्बित कर सकता है तथा कम कर सकता है। राष्ट्रपति मृत्युदंड को भी क्षमा कर सकता है। राष्ट्रपति को सेना न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड के मामले में भी क्षमादान की शक्ति प्राप्त है। जबकि राज्यपाल सेना न्यायालय द्वारा दिए गए दंड व मृत्युदंड को क्षमा अथवा कम नहीं कर सकता।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ

  • भारतीय संविधान के अठारहवें भाग में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गयी है, किन्तु संविधान में कहीं पर भी ’आपातकालीन’ स्थिति को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के रूप मेें है, किन्तु भारत में संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाने के कारण राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका प्रधान है तथा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल वास्तविक प्रधान है। अतः आपातकालीन शक्तियाँ कहने के लिए ही राष्ट्रपति की शक्तियाँ हैं, वस्तुतः ये शक्तियाँ तो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल की शक्तियाँ हैं।
  • संविधान के आपातकालीन प्रावधान या राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ सन् 1975 के बाद बहुत अधिक संशोधन व परिवर्तन के विषय रहे हैं। 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा आपातकालीन प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया परन्तु 44 वें संविधान संशोधन, 1979 द्वारा इनमें ऐसे संशोधन किए गए ताकि शासक वर्ग द्वारा इन प्रावधानों का दुरुपयोग न किया जा सके।

44 वें संविधान संशोधन के बाद संकटकालीन प्रावधानों की स्थिति

1. युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल की घोषणा-

  • संविधान के अनुच्छेद 352 में व्यवस्था है कि यदि राष्ट्रपति को अनुभव हो कि युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके किसी भाग की शक्ति या व्यवस्था नष्ट होने का भय है तो यथार्थ रूप में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने या होने की आशंका होने पर राष्ट्रपति सम्पूर्ण भारत या उसके किसी भाग में संकट काल की घोषणा कर सकता है, परन्तु राष्ट्रपति ऐसे संकट की घोषणा तभी कर सकता है जबकि मंत्रिमण्डल ने उसे लिखित में ऐसा परामर्श दिया हो। संसद की स्वीकृति के बिना भी यह एक माह तक लागू रह सकती हैं अर्थात् संकट की घोषणा कियये जाने के एक माह के अन्दर संसद के दोनों सदनों के पृथक्-पृथक् कुल सदस्यों के बहुमत एवं उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से इसका अनुमोदन जरूरी है। अनुमोदन के बाद ऐसा आपातकाल 6 माह तक लागू रहेगा, इसे अधिक समय तक लागू रखने के लिए प्रति 6 माह बाद संसद की स्वीकृति जरूरी हैं इसके अलावा व्यवस्था की गई है कि लोकसभा में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से आपातकाल पर विचार करने के लिए लोकसभा की बैठक लोकसभा के 1/10 सदस्यों की मांग पर अनिवार्य रूप से बुलायी जायेगी। आपातकाल की घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
  • घोषणा के संवैधानिक प्रभाव – इस घोषणा के लागू रहने के समय अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 नागरिक स्वतंत्रताएँ स्थगित हो जायेगी लेकिन नागरिक स्वतंत्रताएँ सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लागू आपातकाल में स्थगित नहीं की जा सकती।
  • आपातकाल में जीवन और शारीरिक स्वाधीनता के अधिकार को समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकता, किन्तु इसके अलावा अन्य अधिकारों की रक्षा हेतु नागरिक न्यायालय की शरण नहीं ले सकेंगे।
  • आपातकाल में राज्य सूची पर कानून बनाने की शक्ति संसद को प्राप्त हो जायेगी तथा राज्य का कोई भी कानून उस सीमा तक अमान्य होगा, जिस सीमा तक वह संघीय कानून का विरोधी है। राज्य सूची पर बनाये गये कानून उद्घोषणा की समाप्ति के छः माह बाद तक प्रभावी रहेंगे। इस दौरान संघीय कार्यपालिका राज्य कार्यपालिका को निर्देश दे सकेगी कि वह कार्यपालिका शक्त का प्रयोग कैसे करे।
  • व्यवहार में अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की घोषणा अब तक तीन बार की गई – भारत-चीन युद्ध 1962, भार-पाक युद्ध 1971 और 26 जून, 1975, जून 1975 में आपात काल आन्तरिक अशान्ति के आधार पर लागू हुआ था।

2. राज्य में संवैधानिक तन्त्र के विफल होने पर आपातकाल या राष्ट्रपति शासन की घोषणा (अनु. 356) –

  • भारतीय संविधान संघी सरकार को यह दायित्व सौंपता है कि वह प्रत्येक राज्य की बाहरी आक्रमण व आन्तरिक अशान्ति से रक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार संचालित है।
  • अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि यदि उसे राज्यपाल के प्रतिवेदन या अन्य किसी प्रकार से समाधान हो जाये कि ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गयी है कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह उस राज्य में संकटकाल (राष्ट्रपति शासन) की घोषणा कर सकता है।
  • इस संकट की घोषणा के लिए भी वहीं विधि है जो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के लिए है परन्तु ऐसी उद्घोषणा के 2 माह के अन्दर संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन आवश्यक है। संसद द्वारा प्रस्ताव पारित कर राज्य में एक बार में 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन एक वर्ष के बाद जारी रखने का प्रस्ताव संसद तभी पारित कर सकेगी, जब इस प्रकार का प्रस्ताव पारित करते समय अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल लागू हो और चुनाव आयोग यह प्रमाणित करे कि राज्य में चुनाव कराना सम्भव नहीं है। किसी भी परिस्थिति में राज्य में राष्ट्रपत शासन तीन वर्ष से अधिक अवधि के लिए लागू नहीं रखा जा सकेगा।
  • घोषणा के संवैधानिक प्रभाव – राष्ट्रपति घोषणा कर सकता है कि अमुक राज्य की विधायिका शक्ति का प्रयोग संसद करेगी। संसद ऐसी विधायी शक्तियाँ राष्ट्रपति को दे सकती है या राष्ट्रपति को यह अधिकार दे सकती है कि वह यह शक्ति किसी अन्य अधिकारी को प्रदान कर दे। किसी भी राज्याधिकारी की कार्यपालिका शक्ति को राष्ट्रपति हस्तगत कर सकता है। राष्ट्रपति अनु. 19 द्वारा प्रदत्त 6 नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लगा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा जीवन एवं शारीरिक स्वाधीनता के अलावा अन्य सभी अधिकारों के बारे में संवैधानिक उपचारों के अधिकार को समाप्त किया जा सकता है।
  • नोट – अनु. 356 के प्रावधानों का लगभग 115 से अधिक बार प्रयोग किया जा चुका है। सर्वप्रथम इसका प्रयोग 1951 में पंजाब में भार्गव मंत्रिमण्डल के पतन के कारण किया गया था। अनु. 356 के उपबन्धों का प्रयोग संघीय क्षेत्रों के लिए भी किया जा सकता है।

3. वित्तीय संकट (अनु. 360)-

  • यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग का वित्तीय स्थायित्व एवं साख संकट में है तो वह संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत् वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। वित्तीय संकट के लिए राष्ट्रीय संकट के समान ही अवधि व प्रक्रिया निर्धारित है। संसद द्वारा ऐसी आपातकाल की उद्घोषणा का दो माह में अनुमोदन करना आवश्यक है।

वित्तीय संकट की घोषणा के प्रभाव

(1) वित्तीय संकट के दौरान राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह वित्तीय दृष्टिकोण से किसी भी राज्य सरकार को आदेश दे सकता है।

(2) संघ और राज्य सरकारों के अधिकारियों के वेतनों में, जिनमें सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों से न्यायाधीश भी सम्मिलित होगें, आवश्यक कमी की जा सकती है।

(3) राष्ट्रपति राज्य सरकारों को बाध्य कर सकता है कि राज्य के सभी वित्त विधेयक उसकी स्वीकृति के लिए भेजें जाएं।

(4) संघीय कार्यपालिका राज्य की कार्यपालिका को शासन सम्बन्धी जरूरी निर्देश दे सकती है।

(5) राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों में धन सम्बन्धी बँटवारे की व्यवस्थाओं में जरूरी संशोधन कर सकता है।

(6) वित्तीय संकट की अवधि में, राष्ट्रपति अनु. 19 द्वारा प्रदत्त नागरिक स्वतंत्रताओं पर रोक लगा सकता है और संवैधानिक उपचारों के अधिकार को भी निलम्बित कर सकता है।

नोट – देश में वित्तीय संकट अभी तक लागू नहीं किया गया है।

राष्ट्रपति के विशेषाधिकार (अनु. 361)

(1) राष्ट्रपति अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कत्र्तव्य के पालन के लिए अपने द्वारा किए गए किसी कार्य के लिए
किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा।

(2) राष्ट्रपति के विरुद्ध उसकी पदावधि में किसी प्रकार की दाण्डिक कार्यवाही किसी न्यायालय में न तो संस्थित की
जाएगी और न ही चालू रखी जाएगी।

(3) राष्ट्रपति की पदावधि में कोई न्यायालय उसे बंदी बनाने के आदेश जारी नहीं कर सकता।

(4) राष्ट्रपति द्वारा वैयक्तिक रूप से किए गए किसी कार्य के लिए उसके विरुद्ध कोई दीवानी कार्यवाही उसके
कार्यकाल में तब तक नहीं चलायी जा सकती जब तक कि –

(क) इसकी लिखित सूचना राष्ट्रपति को न दे दी गई हो।
(ख) ऐसी सूचना के बाद 2 माह न बीत गए हों।
(ग) ऐसी सूचना में उस कार्यवाही की प्रकृति, वादकारण, पक्षकार का नाम, विवरण, निवास स्थान तथा माँग किए
जाने वाले अनुतोष का विवरण न दिया गया हों।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

1. राष्ट्रपति की किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है। राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने जेबी वीटो का प्रयोग 1988 में भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक के संबंध में किया। उस पर उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया और अंततः लोकसभा भंग होने पर वह समाप्त हो गया।

2. राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अधीन की गई आपात की उद्घोषणा संसद द्वारा अनुमोदित होने के बाद 6 माह तक तथा अनुमोदित न होने पर एक मास तक प्रवर्तन में रहती है। संसद इसे पुनः एक बार में 6-6 मास तक बढ़ा सकती है।

3. राष्ट्रपति का चुनाव भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा करवाया जाता है।

राष्ट्रपति चुनाव के कुछ तथ्य(India Rashtrapati in Hindi)

  • प्रथम राष्ट्रपति चुनाव 1952 में हुए। डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने प्रथम निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में 13 मई, 1952 को शपथ ग्रहण की। 1957 के द्वितीय चुनाव में वे पुनः राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इस प्रकार वे तीन बार राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने वाले एवं सर्वाधिक अवधि (26.1.1950 से 12.5.1962 तक) तक इस पद को सुशोभित करने वाले एक मात्र व्यक्ति थे।
  • डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् (मूलतः एक दर्शनशास्त्री) 1962 में राष्ट्रपति बनने से पूर्व दो बार उपराष्ट्रपति (1952-62) रहे।
  • -डाॅ. जाकिर हुसैन 1967 में तीसरे राष्ट्रपति बने जो देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति (अल्पसंख्यक समुदाय) थे। इनका कार्यकाल के दौरान ही निधन (3 मई, 1969 को) हो गया था।
  • डाॅ. जाकिर हुसैन के असामयिक निधन के बाद उपराष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी पहले कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।
  • 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनावों में वी.वी. गिरी एक निर्दलीय प्रत्याशी (प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा समर्थित) के रूप में चुनाव जीते। उन्होंने कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी श्री नीलम संजीव रेड्डी को हराया। चुनावों में अन्तरात्मा की आवाज पर मत का प्रयोग किया गया। श्री वी.वी. गिरी दूसरे चक्र की मतगणना के बाद विजयी घोषित हुए। राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे चक्र की मतगणना की आवश्यकता केवल इसी चुनाव में पङी।
  • 1974 में डाॅ. फखरुद्दीन अली अहमद (पाँचवे राष्ट्रपति) इस पद पर आसीन हुए। 26 जून, 1975 को श्री अहमद के हस्ताक्षरों से देश में पहली बार आंतरिक अशान्ति के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया। कार्यकाल के दौरान ही इनका देहान्त हो गया।
  • नीलम संजीव रेड्डी: 25 जुलाई, 1977 को जनता सरकार (पहली गैर कांगे्रसी सरकार) के समय निर्विरोध निर्वाचित होने वाले प्रथम राष्ट्रपति थे। वे 1969 में राष्ट्रपति पद का चुनाव हार चुके थे।
  • ज्ञानी जैलसिंह 25.7.1982 को देश के पहले सिख राष्ट्रपति बने थे।
  • के.आर. नारायणन 25.7.1999 को देश के राष्ट्रपति बनने वाले प्रथम दलित व्यक्ति थे।
  • मो. हिदायतुल्ला एक मात्र मुख्य न्यायाधीश थे जिन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
  • डाॅ. राधाकृष्णन, डाॅ. जाकिर हुसैन, श्री वी.वी. गिरी, श्री आर. वेंकटरमन, डाॅ. शंकर दयाल, श्री के.आर. नारायणन ने राष्ट्रपति बनने से पूर्व उपराष्ट्रपति पद पर कार्य किया था। जबकि श्री जी.एस.पाठक, एम.हिदायतुल्ला, बी.डी.जत्ती, कृष्णकांत एवं श्री भैरासिंह शेखावत ऐसे पाँच उपराष्ट्रपति हैं जो राष्ट्रपति नहीं बने हैं।
  • श्रीमती प्रतिभा पाटिल (12वें राष्ट्रपति) प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं। इनसे पूर्व तीन महिलाएँ (1) मनोहर हाल्कर (1967), (2) फुरचरण कौर 1969 एवं (3) लक्ष्मी सहगल (2002) राष्ट्रपति पद का चुनाव लङ चुकी हैं परन्तु वे निर्वाचित नहीं हो पाई। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जन्म स्थान जल गाँव (महाराष्ट्र) तथा ससुराल छोटी लोसल (सीकर-राजस्थान) है। इनके पति डाॅ. देवीसिंह शेखावत हैं। ये 8 नवम्बर, 2004 से 21 जून, 2007 तक राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल रह चुकी हैं।
  • भारत रत्न से सम्मानित राष्ट्रपति – डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1954 में उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए), डाॅ. जाकिर हुसैन (उपराष्ट्रपति पद के दौरान), श्री वी.वी. गिरी (1975), ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (1997) हैं।
     नाम     कार्यकाल
1. डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962
2. डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन13 मई, 1962 से 13 मई, 1967
3. डाॅ. जाकिर हुसैन13 मई 1967 से 13 मई, 1969
4. वी.वी. गिरि3 मई 1969 से 20 जुलाई, 1969
5. न्यायमूर्ति एम हिदायतुल्ला20 जुलाई, 1969 से 24 अगस्त, 1969
6. वी.वी. गिरि24 अगस्त, 1969 से 14 अगस्त, 1974
7. फखरुद्दीन अली अहमद24 अगस्त, 1974 से 11 फरवरी, 1977
8. बी.डी. जत्ती11 फरवरी, 1977 से 25 जुलाई, 1977
9. नीलम संजीव रेड्डी25 जुलाई, 1977 से 25 जुलाई, 1987
10. ज्ञानी जैल सिंह25 जुलाई, 1982 से 25 जुलाई, 1987
11. आर. वेंकटरमण25 जुलाई, 1987 से 25 जुलाई, 1992
12. डाॅ. शंकरदयाल शर्मा25 जुलाई, 1992 से 25 जुलाई, 1997
13. डाॅ. के. आर. नारायणन25 जुलाई, 1997 से 25 जुलाई, 2002
14. डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम25 जुलाई, 2002 से 25 जुलाई, 2007
15. प्रतिभा देवी सिंह पाटिल25 जुलाई, 2007 से 25 जुलाई, 2012
16. प्रणव मुखर्जी25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017
17. रामनाथ कोविन्द25 जुलाई, 2017 से अब तक

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