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Rajasthan Ke Lok Nritya || राजस्थान के लोकनृत्य -GK

Author: K.K.SIR | On:14th Nov, 2022| Comments: 0

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Table of Contents

  • राजस्थान के लोकनृत्य – Rajasthan Ke Lok Nritya
  • राजस्थान के प्रमुख लोक-नृत्य :
  • (अ) क्षेत्रीय लोक नृत्य
  • (1) गींदङ नृत्य –
  • (2) डांडिया नृत्य –
  • (3) ढोल नृत्य –
  • (4) अग्नि नृत्य –
  • (5) बम नृत्य –
  • (6) घूमर नृत्य –
  • (7) गैर नृत्य –
  • (8) बिंदौरी नृत्य –
  • (ब) जातीय लोक नृत्य
  • (1) गवरी नृत्य –
  • (2) वालर नृत्य –
  • (3) चरी नृत्य –
  • (स) व्यावसायिक लोक नृत्य
  • (1) भवाई नृत्य –
  • (2) तेरहताली नृत्य –
  • (द) अन्य नृत्य
  • (1) नेजा नृत्य-
  • (2) कच्छी घोङी नृत्य –
  • (3) चंग नृत्य –
  • (4) गर्वा नृत्य –
  • (5) कालबेलियों के नृत्य –
  • (6) घुङला नृत्य –
  • (7) कंजर जाति के नृत्य –
  • (8) पेजण नृत्य –
  • क्षेत्र के अनुसार लोक नृत्य

आज के आर्टिकल में हम ’राजस्थान के लोकनृत्य’(Rajasthan Ke Lok Nritya) के बारे में पढ़ेगें। जो परीक्षा की दृष्टि महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

राजस्थान के लोकनृत्य – Rajasthan Ke Lok Nritya

राजस्थान के लोकनृत्य

मानव का यह मूल स्वभाव है कि वह आनन्द के क्षणों में प्रसन्नता से झूम कर अपनी अंग-भंगिमाओं का अनियोजित प्रदर्शन करता है। उमंग में भरकर सामूहिक रूप में किये जाने वाले नृत्य जो किसी नियम से बँधे हुए नहीं होते, न ही इनमें मुद्रायें निर्धारित होती है, लोक नृत्य कहलाते हैं।

वीर भूमि राजस्थान विविध कलाओं के साथ-साथ विभिन्न नृत्यों की भी रंगस्थली रही है। जयपुर घराना कथक नृत्य शैली का आदिम घराना माना जाता है, इसके प्रवर्तक भानूजी थे। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि समस्त भारत में जयपुर एकमात्र ऐसा केन्द्र है जहाँ के गायन, वादन और नृत्य घराने प्रसिद्ध हैं।

राजस्थान के प्रमुख लोक-नृत्य :

  • गींदङ नृत्य
  • डांडिया नृत्य
  • ढोल नृत्य
  • अग्नि नृत्य
  • बम नृत्य
  • घूमर नृत्य
  • गैर नृत्य
  • गवरी नृत्य
  • वालर नृत्य
  • चरी नृत्य
  • भवाई नृत्य
  • तेरहताली नृत्य

राजस्थानी लोक नृत्य को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

(अ) क्षेत्रीय लोक नृत्य

(1) गींदङ नृत्य –

  •  राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र (सुजानगढ़, चूरू, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, सीकर आदि) में होली के दिनों में गींदङ नृत्य का सामूहिक कार्यक्रम लगभग एक सप्ताह तक चलता है।
  • होली के त्यौहार पर प्रहलाद की स्थापना (डांडा रोपना) के बाद यह नृत्य प्रारम्भ हो जाता है।
  • नृत्य में डण्डों का टकराव, पैरों की गति तथा नगाङे की ताल, इन तीनों का साम्य रखते हुए, नर्तक पहले अपने पासा वाले नर्तक के नीचे झुक कर दाहिने हाथ के डंडे से आघात करता है तथा दूसरा आघात ऊपर चेहरे के सामने होता है।
  • विशुद्ध रूप से पुरुषों के इस नृत्य में कुछ पुरुष जो महिलाओं के वस्त्र धारण कर नृत्य में भाग लेते हैं, उन्हें गणगौर कहा जाता है।
  • वाद्य यंत्र – नगाड़ा, ढोल, डफ, चंग
  • स्वांग –  शिकारी, साधु, सेठ – सेठानी, सरदार, दूल्हा – दुल्हन, पठान, पादरी, बाजीगर, ….आदि

(2) डांडिया नृत्य –

  • मारवाड़ का प्रसिद्ध नृत्य
  • मारवाङ में होली के बाद किया जाने वाला यह नृत्य विशुद्ध रूप से पुरुषों का नृत्य है।
  • इस नृत्य के अन्तर्गत लगभग बीस, पच्चीस पुरुषों की टोली दोनों हाथों में लम्बी छङियाँ धारण करके वृत्ताकार नृत्य करती है।
  • वेशभूषा – शिवजी, राजा – रानी, साथु, राम – सीता

(3) ढोल नृत्य –

  • जालौर क्षेत्र में यह नृत्य विवाह के समय माली, ढोली, सरगङा और भील जाति द्वारा किया जाता है।
  • विशुद्ध रूप से पुरुषों द्वारा किये जाने वाले इस नृत्य में एक साथ चार या पाँच ढोल बजाये जाते हैं। ढोल का मुखिया इसे थाकना शैली में बजाना शुरू करता है।
  • थाकना समाप्त होते ही अन्य नृत्यकारों में कोई अपने मुँह में तलवार लेकर, कोई अपने हाथों में डण्डे लेकर, कोई भुजाओं में रूमाल लटकाता हुआ तथा अन्य लयबद्ध अंग संचालन में नृत्य करते हैं।
  • जालौर क्षेत्र में सरगङा और ढोली इस नृत्य के पेशेवर लोकगायक व ढोल वदक हैं।
  • इस नृत्य को कला के क्षेत्र में उतारने में जयनारायण व्यास का योगदान है।

(4) अग्नि नृत्य –

  • आग के धधकते अंगारों पर किये जाने वाले इस नृत्य का उद्गम बीकानेर जिले के कतरियासर गाँव में हुआ।
  • इस नृत्य का प्रदर्शन करने वाले नर्तक जसनाथी सम्प्रदाय के मतानुयायी जाट जाति के लोग हैं।
  • जसनाथी सिद्धों द्वारा रात्रि जागरणों में धूणे का आयोजन कर, नर्तक सर्वप्रथम गुरु को नमस्कार कर, गुरु के आदेश पर, अंगारों के ढेर पर फतै – फते कहते हुए प्रवेश करते हैं।
  • नृत्यकार अंगारों से मतीरा फोङना, हल जोतना आदि क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं।
  • यह नृत्य प्रमुखतया चूरू, नागौर व बीकानेर जिले में किया जाता है।

(5) बम नृत्य –

  • यह नृत्य अलवर-भरतपुर क्षेत्र में, पुरुषों द्वारा फागुन की मस्ती में, नई फसल आने की खुशी में किया जाता है।
  • यह मुख्यतया भरतपुर का नृत्य है।
  • इस नृत्य में ढाई-तीन फुट ऊँचे तथा लगभग दो फुट चौड़े नगाङे का प्रयोग किया जाता है जिसे बम कहते हैं।
  • इस नृत्य मेें ढोलक, मंजीरा, करताल, थाली, चिमटा आदि वाद्य यंत्र बजाये जाते हैं।
  • बम की धुन के साथ रसिया गाया जाने के कारण इस नृत्य को बमरसिया नृत्य भी कहते हैं।

(6) घूमर नृत्य –

  • राजस्थान में मांगलिक अवसरों व पर्वों पर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह नृत्य राजस्थानी नृत्यों का सिरमौर/ राजस्थान का राज्य नृत्य / राजस्थान के नृत्यों की आत्मा  माना जाता है।
  • मूल रूप से सामन्ती नृत्य घूमर राजस्थान का प्रतीक बन कर उभरा है।
  • लहँगे का घेर जो वृत्ताकार रूप में फैलता है वही घूमर का प्रमुख प्रेरणास्रोत है।
  • घूमर के साथ आठ मात्रा के कहरवे की विशेष चाल होती है जिसे सवाई कहते हैं।
  • इस नृत्य में जब चक्कर खाते हैं तो झुकते हुए हाथ को नीचे ले जाकर चक्कर पूरा होने के साथ-साथ बदन ऊपर की ओर आता है।
  • इस नृत्य में ढोल, नगाङा तथा शहनाई आदि वाद्यों का प्रयोग होता है।
  • राजस्थान में घुमर के तीन प्रकार प्रचलित है – घुमरिया , लूर , घूमर।

(7) गैर नृत्य –

  • गोल घेरे में किया जाने वाला यह सामूहिक नृत्य होली के दूसरे दिन से प्रारम्भ होकर करीब पन्द्रह दिन तक चलता हैं।
  • यह नृत्य केवल पुरुषों का नृत्य है।
  • मेवाङ-बाङमेर क्षेत्र में पुरुष गैर नृत्य के अंतर्गत लकङी की छङियां लेकर गोल घेरे में नृत्य करते हैं।
  • गैर नृत्य करने वाले गेरिये कहलाते हैं।
  • कनाना(बाड़मेर), बीलाङा व समदङी आदि स्थानों पर गैर नृत्य प्रमुखतया होता है।
  • तलवार की गैर – मेनार (भीलवाड़ा)

(8) बिंदौरी नृत्य –

  • यह होली एवं विवाहोत्सव पर किया जाने वाले झालावाङ क्षेत्र का प्रमुख नृत्य है, जो कि गैर के समान ही है।
  • वीर रस प्रधान नृत्य।
  • विवाह के अवसर पर।

(ब) जातीय लोक नृत्य

(1) गवरी नृत्य –

  • सावन-भादों में यह नृत्य प्रदेश में नृत्य-नाटक के रूप में प्रस्तुत होता है।
  • इस नाटक के मुख्य पात्र भगवान् शिव होते हैं। उन्हीं के त्रिशूल के चारों ओर गवरी के पात्र जमा हो जाते हैं तथा मांदल व थाली की ताल पर नृत्य करते हैं।
  • इस नृत्य को राई नृत्य भी कहते हैं।
  • इस नृत्य में शिव को पुरिया कहा जाता है।

(2) वालर नृत्य –

  • वालर नृत्य सिरोही जिले में गरासिया जाति का प्रमुख नृत्य है।
  • विवाह के अवसर पर स्त्री व पुरुषों द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य धीमी गति का है तथा इसमें किसी वाद्य का प्रयोग नहीं होता।
  • इस नृत्य में दो अर्द्ध-वृत्त बनते हैं। बाहर के अर्द्ध-वृत्त में पुरुष व अन्दर के अर्द्ध-वृत्त में महिलाएँ रहती हैं। प्रत्येक नर्तक-नर्तकी का दायाँ हाथ अपने आगे वाले के कन्धे पर रहता है।
  • इस नृत्य का प्रारम्भ एक पुरुष हाथ में छाता या तलवार लेकर करता है।

(3) चरी नृत्य –

  • सिर पर चरी (कलश) व दीपक रखकर किया जाने वाला यह नृत्य प्रमुखतया किशनगढ़ के पास गुर्जर जाति में प्रचलित है।
  • इस नृत्य में बाँकिया, ढोल एवं थाली का प्रयोग किया जाता है।
  • किशनगढ़ की फलकू बाई इस नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं।
राजस्थान के लोक कलाकार
बाघाजीभँवाई नृत्य के जन्मदाता
श्रीलाल जोशीफङ
सांगीलालभँवाई नृत्य
जानकीलाल भांडबहरुपिया कला
रूपसिंह शेखावतभँवाई नृत्य
लच्छीरामकुचामनी ख्याल
तारा शर्माभँवाई नृत्य
नानूरामशेखावाटी ख्याल
फलकु बाईचरी नृत्य

(स) व्यावसायिक लोक नृत्य

(1) भवाई नृत्य –

  • राजस्थान के पेशेवर लोक नृत्यों में भवाई नृत्य अपनी चमत्कारिता के लिए लोकप्रिय है।
  • नृत्य और वाद्य वादन में शास्त्रीय कला के समन्वय के अतिरिक्त शारीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार तथा लयकारी की विविधता नृत्य की विशेषता है।
  • इस नृत्य में तेज लय में विविध रंगों की पगङियों को हवा में फैलाकर अपनी उंगलियों से कमल का फूल बना लेना, सिर पर सात-आठ मटके रखकर नृत्य करना, जमीन पर मुँह से रूमाल उठाना, गिलासों पर नाचना, थाली के किनारों पर नृत्य करना इस नृत्य की प्रमुख विधाएँ हैं।
  • इस नृत्य में शंकरिया, सुरदास, बोरी, लोङी, बङी, ढोकरी, बीकाजी व ढोलामारू प्रसिद्ध हैं।
  • वर्तमान में यह नृत्य उदयपुर क्षेत्र में स्त्री एवं पुरुष दोनों द्वारा किया जाता है।

(2) तेरहताली नृत्य –

  • राजस्थान में बाबा रामदेव जी की आराधना में कामङ जाति की औरतें तेरहताली नृत्य का प्रदर्शन करती हैं तथा पुरुष इस नृत्य को मंजीरा, तानपुरा तथा चैतारा बजाकर लय देते हैं।
  • यह नृत्य तेरह मंजीरों की सहायता से किया जाता है जिसमें नौ मंजीरे दायें पाँव पर, दो हाथों के दोनों ओर ऊपर कोहनी की जगह तथा एक-एक दोनों हाथों में रहते हैं। ये हाथ वाले मंजीरे अन्य मंजीरों से टकराकर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। इसी लय पर नर्तकियाँ विविध हाव-भाव प्रस्तुत करती हैं।

(द) अन्य नृत्य

(1) नेजा नृत्य-

  • यह भील जाति द्वारा किया जाने वाला खेल नृत्य है जो होली के तीसरे दिन खेला जाता है।
  • इस नृत्य के अन्तर्गत एक खम्भा जमीन में रोप दिया जाता हैं तथा इसके सिर पर नारियल बाँध दिया जाता है। खम्भे को स्त्रियाँ छङियों द्वारा घेरे रहती हैं, पुरुष खम्भे पर बंधे नारियल को लेने का प्रयास करते हैं, इस दौरान स्त्रियाँ उन्हें छङियों से पीटती हैं।

(2) कच्छी घोङी नृत्य –

  • इस नृत्य में, नृत्य संयोजन की कला अद्भुत है। इसमें चार-चार व्यक्ति की पंक्ति पीछे हटने और आगे बढ़ने की क्रिया को तीव्र गति से इस प्रकार सम्पादित करती है कि आठों व्यक्ति एक समय में एक ही पंक्ति में होते हैं।
  • इसमें पंक्ति के तीव्र गति से बनने व बिखरने का दृश्य फूल की पंखुङियों के खुलने का आभास दिलाते हैं।

(3) चंग नृत्य –

  • यह होली के अवसर पर ढूँढाङी और शेखावाटी क्षेत्र मेें किया जाने वाला नृत्य है।
  • इस नृत्य में प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में चंग होता है जिसे वे बजाते हुए वृत्ताकार रूप में नाचते हैं।

(4) गर्वा नृत्य –

  • यह नृत्य सिरोही व उदयपुर जिले में गरासिया जनजाति द्वारा किया जाता है।
  • इस नृत्य में केवल स्त्रियाँ भाग लेती हैं।

(5) कालबेलियों के नृत्य –

(अ) शंकरिया – यह कालबेलियों का युगल नृत्य है।
(ब) पणियारी – यह राजस्थानी गायन की विधा पणियारी पर आधारित युगल गीत है।
(स) इण्डोनी – यह इण्डोणी (घङे व सिर के बीच रखे जाने वाला कपङे का गोलाकार गड्ढा) की भाँति वृत्ताकार रूप में किया जाने वाला मिश्रित नृत्य है। पूंगी और खंजरी इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले वाद्य यंत्र हैं।
(द) बागङिया – कालबेलियाँ स्त्रियाँ भीग माँगते समय चंग के साथ यह नृत्य करती हैं।

(6) घुङला नृत्य –

  • मारवाङ की स्त्रियों में यह नृत्य लोकप्रिय है।
  • इस नृत्य में स्त्रियाँ शृंगार करके, अपने सिर पर घुङला (छिद्रित मटका) रख कर घर-घर जाकर घुङले के लिए घी या तेल माँगती हैं।

(7) कंजर जाति के नृत्य –

(अ) चकरी – ढप, मंजीरे, नगाङे की लय पर कंजर बालिकाओं द्वारा किया जाने वाला हाङौती अंचल का प्रसिद्ध नृत्य है।
(ब) धाकङ नृत्य – हथियार लेकर किये जाने वाले शौर्य से परिपूर्ण इस नृत्य में युद्ध की सभी कलायें प्रदर्शित की जाती है।

(8) पेजण नृत्य –

  • यह दीवाली के अवसर पर बांगङ क्षेत्र में की जाने वाली सांस्कृतिक प्रस्तुति है जिसे केवल पुरुष पात्र नारी स्वांग में प्रस्तुत करते हैं।
  • इसमें पुरुष पात्रों के द्वारा नारी मनोभावों की अभिव्यक्ति का संदेश दिया जाता है।
  • इस नृत्य में आंचलिक वाद्य यंत्रों ढोल, कुंडी, थाली की जुगलबंदी तथा गायन, वादन व नर्तन तीनों का समावेश होता है।

क्षेत्र के अनुसार लोक नृत्य

मेवाड़ के नृत्यगेर मृत्य , रण नृत्य, भवाई नृत्य
शेखावटी के नृत्यगीदड़ नृत्य, चंग नृत्य, कच्छी घोड़ी नृत्य, जिंदाद नृत्य
जालौर के नृत्यढोल नृत्य, लुम्बर  नृत्य
मारवाड़ के नृत्यघुड़ला नृत्य, डांडिया नृत्य, झांझी नृत्य
 भरतपुर के नृत्यबम नृत्य, चरकूला नृत्य, हुरंगा नृत्य
धार्मिक नृत्यडांग नृत्य, थाली नृत्य, सांकल नृत्य, लांगुरिया नृत्य, तेरहताली नृत्य , अग्नि नृत्य
भीलों के नृत्यगैर नृत्य, गवरी नृत्य, नेजा नृत्य, द्विचक्री नृत्य, हाथीमना नृत्य, घूमरा नृत्य, युद्ध नृत्य, शिकार नृत्य, सुकर नृत्य
गरासिया के नृत्यमोरिया नृत्य, मांदल नृत्य, वालर नृत्य, लूर नृत्यकूद नृत्य, गरवा नृत्य, जवारा नृत्य

राजस्थान को नक़्शे से पढ़ें 

⇔राजस्थान के लोकगीत 

राजस्थान के रीति-रिवाज

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