राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ – Rajasthan ki Boliyan

आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ (Rajasthan ki Boliyan) विस्तार से पढेंगे, इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य पढेंगे।

राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ

राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ

दोस्तो राजस्थान के निवासियों की मातृभाषा राजस्थानी है। अगर हम भाषा विज्ञान की बात करें तो राजस्थानी भारोपीय भाषा परिवार के अन्तर्गत आती है। राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी के गुर्जर अपभ्रंश से मानी जाती है। विद्वानों  में इसके बारे में कुछ मतभेद भी मिलते है।

आर्य भाषा – वैदिक संस्कृत – पाली – शोरशैनी प्राकृत-गुर्जरी अपभ्रंश व नागर अपभ्रंश-राजस्थानी इस प्रकार हुई है

राजस्थानी भाषा का विकास

देश की की राजभाषा हिन्दी है, परंतु यहाँ की मातृभाषा राजस्थानी है जिसकी लिपि महाजनी/बनियाणवी है। राजस्थानी भाषा दिवस प्रतिवर्ष 21 फरवरी को मनाया जाता है।

राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति के संदर्भ में विभिन्न मत:

विद्वानउत्पत्ति
डॉ. एल. पी. टैसीटोरीशौरसेनी अपभ्रंश
डॉ. जे. अब्राहम ग्रियर्सननागर अपभ्रंश
सुनीति कुमार चटर्जीसौराष्ट्री अपभ्रंश
डाॅ. मेनारियानागर अपभ्रंश
डॉ. के. एम. मुंशीगुर्जरी अपभ्रंश

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने Linguistic Survey of India में राजस्थानी का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।

  • इटली निवासी डॉ. एल. पी. टैसीटोरी की कार्यस्थली बीकानेर रही।
  • ढटकी, थली, बागड़ी, खैराड़ी एवं देवड़ावटी पश्चिमी राजस्थान की बोलियाँ हैं।
  • दक्षिणी राजस्थान की प्रमुख बोली – नीमाड़ी।
  • उदयपुर की धावड़ी बोली है।
  • डॉ. ग्रियर्सन ने बांगड़ी बोली को ‘भीली बोली’ की संज्ञा दी है।
  • करौली की प्रमुख बोली जगरौती है।
  • चन्द्रसखी एवं नटनागर की रचनाएँ मालवी भाषा में मिलती है।
  • जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन की पुस्तक- Modern Vernacluar Literature of Northern India

दोस्तो आपको डिंगल और पिंगल शैली के बारे में भी जान लेना चाहिए।  प्राकृत भाषा से डिंगल भाषा का विकास हुआ तथा डिंगल भाषा से गुजराती एवं मारवाड़ी भाषाओं का विकास हुआ। संस्कृत भाषा से पिंगल भाषा प्रकट हुई तथा पिंगल भाषा से ब्रज भाषा एवं खड़ी हिन्दी का विकास हुआ।

डिंगल शैली क्या है?

  • पश्चिमी राजस्थानी अर्थात मारवाड़ी का साहित्यक रूप।
  • वीर रसात्मक।
  • गुर्जरी अपभ्रंश से उत्पत्ति।
  • चारण कवियों द्वारा लिखित साहित्य।

पिंगल शैली क्या है?

  • ब्रजभाषा एवं पुर्वी राजस्थानी का मिश्रित साहित्यक रूप।
  • शौरसेनी अपभ्रंश से विकास।
  • भाट जाति के कवियों द्वारा लिखित।

राजस्थानी भाषा का वर्गीकरण

राजस्थानी भाषा व बोलियाँ

मोतीलाल मेनारिया के अनुसार राजस्थान की निम्नलिखित बोलियाँ हैं :-

मेवाड़ीउदयपुर, भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़
मारवाड़ीजोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर व शेखावटी
ढूँढाड़ीजयपुर
हाड़ौतीकोटा, बूँदी, शाहपुर तथा उदयपुर
बाँगड़ीडूंगरपूर, बाँसवाड़ा, दक्षिण-पश्चिम उदयपुर
मेवातीअलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली
मालवीझालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़
रांगड़ीमारवाड़ी व मालवी का सम्मिश्रण
ब्रजभरतपुर, दिल्ली व उत्तरप्रदेश की सीमा प्रदेश

डॉ. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन वर्गीकरण 

वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक Linguistic Survey of India की नौंवी जिल्द के दूसरे भाग में राजस्थानी का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने राजस्थानी भाषा की पाँच उपशाखाएँ बताई हैं।

पश्चिमी राजस्थानीमारवाड़ी, मेवाड़ी, बागड़ी एवं शेखावाटी
उत्तरी-पूर्वी राजस्थानीमेवाती, अहीरवाटी
दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानीमालवी तथा रांगड़ी
मध्य पूर्वी राजस्थानीढुढाड़ी तथा इसकी उप – बोलियां
दक्षिणी राजस्थानीनिमाड़ी बोली

नरोतम स्वामी का वर्गीकरण

पश्चिमी राजस्थानीमारवाड़ी
उत्तरी राजस्थानीमेवाती
पूर्वी राजस्थानीढूढाड़ी
दक्षिणी राजस्थानीमालवी

एल.पी.टेस्सीटोरी का वर्गीकरण

इटली के इस विद्वान ने सन् 1914 ई. से सन् 1919 ई. के मध्य बीकानेर के दरबार में रहकर चारण तथा भाट साहित्य का अध्ययन किया।

एल.पी. टेस्सीटोरी ने राजस्थानी बोलियों को दो वर्गो में बांटा।

  • पश्चिमी राजस्थानी
  • पूर्वी राजस्थानी

मारवाड़ी की उपबोलियां-

  • शेखावाटी – यह बोली सीकर, झुंझुंनू व चुरू में बोली जाती हैं।
  • देवड़ावाटी – यह बोली सिरोही के आसपास क्षेत्र में बोली जाती हैं।
  • गोड़वाड़ी – यह बोली आहोर(जालौर) से बाली(पाली) के बीच बोली जाती हैं।

नोट : मारवाड़ी की अन्य उपबोलियां थली, माहेश्वरी, ओसवाली, ढ़टकी आदि हैं।

मेवाड़ी-

यह बोली राजस्थान में उदयपुर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़, प्रतापगढ़ आदि जिलों में बोली जाती हैं।

मेवाड़ी की उपबोली-

बागड़ी / भीली- यह बोली डूंगरपुर, बांसवाड़ा व उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में बोली जाती हैं। भीलों द्वारा बोली जाने के कारण इसे भीली भी कहा जाता हैं। बागड़ी पर सर्वाधिक प्रभाव गुजराती का पड़ा हैं। इस बोली में ए और औ की ध्वनि के शब्द अधिक प्रयुक्त होते हैं।

ढ़ूंढाड़ी-

इसको  झाड़शाही व जयपुरी के नाम से भी जाना जाता हैं, यह बोली राजस्थान में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली हैं। संत दादू का अधिकांश साहित्य ढूंढ़ाड़ी भाषा में हैं। यह बोली राजस्थान के जयपुर, दौसा, टोंक व अजमेर क्षेत्र में बोली जाती हैं। इस बोली में ‘छी’, ‘द्वौ’, ‘है’ आदि शब्दों का प्रयोग अधिक होता है।

ढूंढ़ाड़ी की उपबोलियां-

नागरचालसवाईमाधोपुर के आसपास का क्षेत्र
तोरावाटीनीम का थाना (सीकर) व खेतड़ी (झुंझुंनू) के आस पास
चौरासीटोंक व जयपुर के पश्चिम के आस पास
राजावाटीजयपुर के पूर्वी भागों में
काठेड़ाजयपुर के पश्चिम तथा टोंक के क्षेत्र में

मेवाती-

मेवाती राजस्थान में अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली में बोली जाती हैं। मेवाती में चरणदासजी, लालदासजी की रचनाएं हैं।

मेवाती की उपबोली-

अहीरवाटी/राठी/हीरवाटी यह बोली यादवों द्वारा बोली जाती हैं तथा यह बोली कोटपूतली (जयपुर) व अलवर में बोली जाती हैं।

हाड़ौती-

यह ढूँढ़ाड़ी की उपबोली मानी जाती हैं। बूंदी के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण का प्रसिद्ध ग्रन्थ वंश भास्कर भी इसी बोली में हैं। यह बोली राजस्थान में कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ में बोली जाती हैं।

मालवी-

यह बोली मूलतः मध्यप्रदेश की बोली हैं। यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी व ढ़ूढ़ाड़ी का मिश्रण हैं। राजस्थान में यह बोली झालावाड़, कोटा व प्रतापगढ में बोली जाती हैं। इसकी उपबोलियां नीमाड़ी व रागड़ी हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • नीमाड़ी- यह बोली दक्षिणी- पूर्वी राजस्थान में बोली जाती हैं।
  • रागड़ी – यह बोली मेवाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में राजपूतों द्वारा बोली जाती हैं। रागड़ी मालवी व मारवाड़ी बोली का मिश्रित रूप हैं।
  • पंजाबी- यह बोली राजस्थान के गंगानगरहनुमानगढ़ में बोली जाती हैं।
  • खेराड़ी- यह बोली ढ़ूढ़ाड़ी, मेवाड़ी व हाड़ौती का मिश्रित रूप हैं। यह बोली भीलवाड़ा के शाहपुरा व बूंदी के मालखेड़ में बोली जाती हैं।
  • हरियाणवी- हरियाणवी राजस्थान में सर्वाधिक झुंझुनू तथा उसके बाद अलवर, चुरू, सीकर, हनुमानगढ़, जयपुर, भरतपुर आदि जिलों में बोली जाती हैं।
  • गुजराती – राजस्थान में सर्वाधिक बाँसवाड़ा में बोली जाती हैं।
  • ब्रज – ब्रज राजस्थान में भरतपुर, धौलपुर, करौली व अलवर में बोली जाती हैं।

निष्कर्ष : आज के आर्टिकल में हमनें राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ (Rajasthan ki Boliyan) पढ़ी , हम आशा करतें है कि आपने जरुर कुछ नया सीखा होगा …धन्यवाद

1 thought on “राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ – Rajasthan ki Boliyan”

  1. Khetaram choudhary

    बहुत ही प्रभावी ढंग से लिखा गया है, सर !
    आपका बहुत बहुत आभार

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