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RTE Act 2009 in Hindi – निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:9th Dec, 2021| Comments: 0

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आज के आर्टिकल में हम निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम (Rte Act 2009 in Hindi) को विस्तार से पढेंगे ,आप इसे अच्छे से पढ़ें |

Rte Act 2009 in Hindi

निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम

Table of Contents

  • निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम
    • अध्याय-1 प्रारम्भिक
    • अध्याय- 2 निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार
    • अध्याय – 3  समुचित सरकार, स्थानीय प्राधिकारी और माता-पिता के कर्त्तव्य
    • अध्याय – 4 विद्यालयों और शिक्षकों के उत्तरदायित्व
    • अध्याय – 5 प्रारंभिक शिक्षा का पाठ्यक्रम
    • अध्याय – 6 बालकों के अधिकारों का संरक्षण
    • अध्याय – 7 प्रकीर्ण

छः वर्ष से चौदह वर्ष की आयु के सभी बालकों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करने के लिए विधेयक भारत गणराज्य के के साठवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में अधिनियमित किया गया-

अध्याय-1 प्रारम्भिक

1. इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 है।
इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर होगा।
यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।

2. इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो-

(क) ’समुचित सरकार’ से-

1. केन्द्रीय सरकार या संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक द्वारा, जिसकी कोई विधान सभा नहीं है, स्थापित, स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी विद्यालय के संबंध में, केन्द्रीय सरकार में विनिर्दिष्ट विद्यालय में भिन्न-
(क) किसी राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर स्थापित किसी विद्यालय के संबंध में राज्य सरकार।
(ख) विधान सभा वाले किसी संघ राज्य क्षेत्र के राज्यक्षेत्र के भीतर स्थापित विद्यालय के संबंध में उस संघ राज्य-क्षेत्र की सरकार, अभिप्रेत हैः
(ख) ’प्रति व्यक्ति फीस’ से, विद्यालय द्वारा अधिसूचित फीस से भिन्न किसी प्रकार का संदान या अभिदाय अथवा संदाय अभिप्रेत है।
(ग) ’बालक’ से, छह वर्ष से चौदह वर्ष की आयु का कोई बालक या बालिका अभिप्रेत है।

(घ) ’असुविधाग्रस्त समूह का बालक’ से, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सामाजिक रूप से और शैक्षिक रूप से पिछङे वर्ग या सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, भाषाई, लिंग या ऐसी अन्य बात के कारण, जो समुचित सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विर्निष्ट की जाए, असुविधाग्रस्त ऐसे अन्य समूह का कोई बालक अभिप्रेत है।
(ङ) ’दुर्बल वर्ग का बालक’ से ऐसे माता-पिता या संरक्षक का बालक अभिप्रेत है जिसकी वार्षिक आय समुचित सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विर्निष्ट न्यूनतम सीमा से कम है।
(च) ’प्रारंभिक शिक्षा’ से पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा अभिप्रेत है।
(छ) किसी बालक के संबंध में ’संरक्षक’ से, ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसकी देख-रेख और अभिरक्षा में वह बालक है और जिसमें कोई प्राकृतिक संरक्षक या किसी न्यायालय या किसी कानून द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक सम्मिलित है।

(ज) ’स्थानीय प्राधिकारी’ से कोई नगर निगम या नगर परिषद् या जिला परिषद् या नगर पंचायत या चाहे जिस नाम से ज्ञात हो, अभिप्रेत है और इसमें विद्यालय पर प्रशासनिक नियंत्रण रखने वाला किसी नगर, शहर या ग्राम में किसी स्थानीय प्राधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन सशक्त ऐसा अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय सम्मिलित है।
(झ) ’राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग’ से, बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 की धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है।
(ञ) ’अधिसूचना’ से, राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है।

(ट) ’माता-पिता’ से, किसी बालक का प्राकृतिक या सौतेला या दत्तक पिता या माता अभिप्रेत है।
(ठ) ’विहित’ से, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है।
(ड) ’अनुसूची’ से, इस नियम से उपाबद्ध अनुसूची अभिप्रेत है।
(ढ) ’विद्यालय’ से प्रारम्भिक शिक्षा देने वाला कोई मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय अभिप्रेत है और इसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं:-
(। ) समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकार द्वारा स्थापित उसके स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन कोई विद्यालय।
(।। ) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी से अपने संपूर्ण व्यय या उसके भाग की पूर्ति के लिए सहायता या अनुदान प्राप्त करने वाला कोई सहायता प्राप्त विद्यालय।
(।।। ) विनिर्दिष्ट प्रवर्ग का कोई विद्यालय।

(।v) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी से अपने संपूर्ण व्यय या उसके भाग की पूर्ति के लिए किसी प्रकार की सहायता या अनुदान प्राप्त न करने वाला कोई गैर सहायता प्राप्त विद्यालय।
(ण) ’अनुवीक्षण प्रक्रिया’ से, किसी अनिश्चित पद्धति से भिन्न दूसरों पर अधिमानता में किसी बालक के प्रवेश के लिए चयन की पद्धति अभिप्रेत है।
(त) किसी विद्यालय के संबंध में ’विनिर्दिष्ट प्रवर्ग’ से, किसी सुभिन्न लक्षण वाला, जिसे समुचित सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विर्निष्ट किया जाए, केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, सैनिक विद्यालय या किसी अन्य विद्यालय के रूप में ज्ञात कोई अन्य विद्यालय अभिप्रेत है।
(थ) ’राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग’ से, बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 की धारा 3 से अधीन गठित राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है।

अध्याय- 2 निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार

1. (1) छह वर्ष में चौदह वर्ष की आयु के प्रत्येक बालक को प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी आसपास के विद्यालय में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा।

2. उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए, कोई बालक किसी प्रकार की फीस या प्रभार या व्यय का संदाय करने का दायी नहीं होगा जो प्रारंभिक शिक्षा लेने और पूरी करने से उसे निवारित करे,

3. परन्तु निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की धारा 2 के खंड (ळ) में यथापरिभाषित निःशक्तता से ग्रस्त किसी बालक को उक्त अधिनियम के अध्याय 5 के उपबंधों के अनुसरण में निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा।

4. जहां, छह वर्ष से अधिक आयु के किसी बालक को किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया है या प्रवेश दिया गया है या उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की है, तो उसे उसकी आयु के अनुसार समुचित कक्षा में प्रवेश दिया जायेगा:

परन्तु जहां किसी बालक को, उसकी आयु के अनुसार किसी कक्षा में प्रत्यक्षतः प्रवेश दिया जाता है, वहां उसे अन्य बालकों के समान रहने के लिए ऐसी रीति में और ऐसा समय-सीमा के भीतर, जो विहित की जाए, विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने का अधिकार होगा। परन्तु यह और कि प्रारम्भिक शिक्षा के लिए इस प्रकार प्रविष्ट किया गया कोई बालक, चौदह वर्ष की आयु के पश्चात् भी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने तथा निःशुल्क शिक्षा का हकदार होगा।

5. (1) जहां किसी विद्यालय में, प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने की व्यवस्था नहीं है वहां किसी बालक की किसी अन्य विद्यालय में, धारा 2 के खंड (ढ) के उपखंड (।।।) और (।v) में विनिर्दिष्ट विद्यालय को अपवर्जित करते हुए अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए स्थानांतरण कराने का अधिकार होगा।
(2) जहाँ किसी बालक से किसी राज्य के भीतर या बाहर किसी भी कारण से एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में जाने की अपेक्षा की जाती है, वहां ऐसे बालक को किसी अन्य विद्यालय में, धारा 2 के खंड (ढ) के उपखड (।।। ) और (।v) में विर्निष्ट विद्यालय को अपवर्जित करते हुए अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए स्थानान्तरण कराने का अधिकार होगा।

(3) ऐसे अन्य विद्यालय में प्रवेश लेने के लिए प्रधानाध्यापक या विद्यालय का भारसाधक, जहाँ ऐसे बालक को अंतिम बार प्रवेश दिया गया था, तुरंत स्थानांतरण प्रमाण पत्र जारी करेगाः परन्तु स्थानान्तरण प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विलंब, ऐसे अन्य विद्यालय में प्रवेश के लिए विलंब या प्रवेश से इंकार करने के लिए आधार नहीं होगाः
परंतु यह और कि विद्यालय का प्रधानाध्यापक या भारसाधक, स्थानान्तरण प्रमाणपत्र जारी करने में विलंब के लिए उसको लागू सेवा नियमों के अधीन आधुनिक कार्यवाही के लिए दायी नहीं होगा।

Rte Act 2009

अध्याय – 3  समुचित सरकार, स्थानीय प्राधिकारी और माता-पिता के कर्त्तव्य

6. इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए समुचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारी, इस अधिनियम के प्रारंभ से तीन वर्ष की अवधि के भीतर आसपास में ऐसे क्षेत्र या सीमाओं के भीतर जो विहित की जाएं, जहां विद्यालय इस प्रकार स्थापित नहीं है, एक विद्यालय स्थापित करेंगे ।

7. (1) केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार का इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए निधियां उपलब्ध कराने के लिए समवर्ती उत्तरदायित्व होगा।
(2) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए पूंजी और आवर्ती व्यय के प्राक्कलन तैयार करेगी।
(3) केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों को राजस्वों के सहायता अनुदान के रूप में उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट व्ययों का ऐसा प्रतिशत प्रदान करेगी, जैसा वह, समय-समय पर राज्य सरकारों के परामर्श से अवधारित करे।

(4) केन्द्रीय सरकार राष्ट्रपति की अनुच्छेद 280 के खंड (3) के उपखंड (घ) के अधीन राज्य सरकार को अतिरिक्त संसाधन प्रदान किए जाने की आवश्यकता का परीक्षण करने के लिए वित्त आयोग को निर्देश देने की प्रार्थना करेगी ताकि उक्त राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए अपनी निधियों का अंश प्रदान कर सकें।
(5) उपधारा (4) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी राज्य उपधारा (3) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की गई राशियों और उसके अन्य संसाधनों को ध्यान में रखते हुए इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए विधियां प्रदान करने हेतु उत्तरदायी होगी।

(6) केन्द्रीय सरकार:
(क) धारा 29 के अधीन निविर्दिष्ट शैक्षणिक प्राधिकारी की सहायता से राष्ट्रीय कार्यक्रम के ढांचागत कार्य को विकसित और लागू करेगी।
(ख) शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए मानकों को विकसित करना और लागू करेगी।
(ग) नवीकरण, अनुसंधान, नियोजन और क्षमता निर्माण के संवर्धन के लिए राज्य सरकार की तकनीकी सहायता और संसाधन उपलब्ध कराएगी।

8. समुचित सरकार:
(क) प्रत्येक बालक को निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगी:
परन्तु जहाँ किसी बालक को, यथास्थिति, माता-पिता या संरक्षक द्वारा, समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारवान् रूप से वित्तपोषित किसी विद्यालय से भिन्न किसी विद्यालय में प्रवेश दिलाया जाता है वहाँ ऐसे बालक पर यथास्थिति, उसके माता-पिता या संरक्षक ऐसे अन्य विद्यालय में बालक की प्राथमिक शिक्षा पर उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दावा करने का हकदार नहीं होगा।

स्पष्टीकरण: ’’अनिवार्य शिक्षा’’ पद से समुचित सरकार की –

⇒ छह वर्ष से चौदह वर्ष की आयु के प्रत्येक बालक को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने और
⇔ छह वर्ष से चौदह वर्ष की आयु के प्रत्येक बालक द्वारा अनिवार्य प्रवेश, प्राथमिक शिक्षा में उपस्थिति और उसको पूरा करने को सुनिश्चित करने की बाध्यता अभिप्रेत हैं।
(ख) धारा 6 में यथाविनिर्दिष्ट आसपास में विद्यालय की उपलब्धता की सुनिश्चित करेगी।
(ग) यह सुनिश्चित करेगी कि दुर्बल वर्ग के बालक और असुविधाग्रस्त समूह के बालक के प्रति पक्षपात न हो तथा किसी आधार पर प्राथमिक शिक्षा लेने और पूरा करने का निवारण न हों।
(घ) अवसंरचना, जिसके अंतर्गत विद्यालय भवन शिक्षण कर्मचारीवृंद उपलब्ध कराएगी।
(ङ) धारा 4 में विनिर्दिष्ट विशेष प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगी।
(च) प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश, उपस्थिति और पूरा करने की सुनिश्चित और मानीटर करेगी।
(छ) अनुसूची में विनिर्दिष्ट मान और मापपान के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा की अच्छी क्वालिटी सुनिश्चित करेगी।
(ज) प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठ्याचार और पाठ्यक्रम को समय से विहित करना सुनिश्चित करेगी, और
(झ) शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगी।

9. प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी –
(क) प्रत्येक बालक को निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगा:
परन्तु जहाँ किसी बालक को, यथास्थिति, माता-पिता या संरक्षक द्वारा समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी संरक्षक द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारवान् रूप से वित्तपोषित किसी विद्यालय से भिन्न किसी विद्यालय में प्रवेश दिलाया जाता है, वहां ऐसा बालक या यथास्थिति, उसे माता-पिता या संरक्षक ऐसे अन्य विद्यालय में बालक की प्राथमिक शिक्षा पर उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दावा करने का हकदार नहीं होगा।

(ख) धारा 6 में यथाविनिर्दिष्ट आसपास में विद्यालय की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगा।
(ग) यह सुनिश्चित करेगा कि दुर्बल वर्ग के बालक और असुविधाग्रस्त समूह के बालक के प्रति पक्षपात न होने देने तथा किसी आधार पर प्राथमिक शिक्षा लेने और पूरा करने का निवारण न हो।
(घ) अपनी अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले चौदह वर्ष तक की आयु के बालकों के ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, अभिलेख रखेगा।
(ङ) अपनी अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश, उपस्थिति और उसे पूरा करने को सुनिश्चित और मानीटर करेगा।
(च) अवसंरचना जिसके अन्तर्गत विद्यालय भवन, शिक्षण कर्मचारिवृंद और शिक्षा सामग्री भी उपलब्ध कराएगा।
(छ) धारा 4 में विनिर्दिष्ट विशेष प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराना।

(ज) अनुसूची में विनिर्दिष्ट मान और अपमान के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा की अच्छी क्वालिटी सुनिश्चित करेगा।
(झ) प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठ्याचार और पाठ्यक्रम को समय से विहित करने को सुनिश्चित करेगा।
(ञ) शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगा।
(ट) प्रवासी कुटुंबों के बालकों के प्रवेश को सुनिश्चित करेगा।
(ठ) अपनी अधिकारिता के भीतर विद्यालय के कार्य को मानीटर करेगा।
(ङ) शैक्षणिक कैलेंडर का विनिश्चय करेगा।

10. प्रत्येक माता-पिता या संरक्षक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह आसपास के विद्यालय में कोई प्रारम्भिक शिक्षा में अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य का प्रवेश करे या कराए।

11. प्राथमिक शिक्षा के लिए तीन वर्ष से ऊपर के बालकों को तैयार करने तथा सभी बालकों के लिए जब तक वे छह वर्ष की आयु पूरी करते हैं, आरंभिक बाल्यकाल देखरेख और शिक्षा की व्यवस्था करने की दृष्टि से समुचित सरकार, ऐसे बालकों के लिए निःशुल्क विद्यालय पूर्व शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सकेगी।

Rte Act

अध्याय – 4 विद्यालयों और शिक्षकों के उत्तरदायित्व

12. (1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए –
(क) धारा 2 के खंड (ढ) के उपखंड (।) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय, उसमें प्रविष्ट सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करेगा।
(ख) धारा 2 में खंड (ढ) के उपखंड (।। ) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय, उसमें प्रविष्ट कराए गए बालकों को ऐसे अनुपात तक, जो इस प्रकार प्राप्त इसकी वार्षिक आवर्ती सहायता या अनुदान का, उसके वार्षिक आवर्ती व्यय में वहन किया जाता है, न्यूनतम पच्चीस प्रतिशत के अधीन रहते हैं, निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगा।

(ग) धारा 2 के खंड (ढ) के उपखंड (।।।) और उपखंड (।v) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय पहली कक्षा में, दुर्बल वर्ग और असुविधाग्रस्त समूह के उस कक्षा के बालकों की कुल संख्या के कम से कम पच्चीस प्रतिशत की सीमा तक प्रवेश देगा और निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की, उसके पूरा होने तक, व्यवस्था करेगा।
परन्तु यह और कि जहाँ धारा 2 के खंड (ढ) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय, विद्यालय पूर्व शिक्षा देता है वहाँ खंड (क) से खंड (ग) के उपबंध ऐसी विद्यालय पूर्व शिक्षा में प्रवेश को लागू होंगे।

(2) उपधारा (1) के खंड (ग) के यथाविनिर्दिष्ट निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने वाले धारा 2 के खंड (ढ) के उपखंड  (।v) में विनिर्दिष्ट विद्यालय को, उसके द्वारा उपगत व्यय की राज्य द्वारा उपगत प्रति बालक व्यय की सीमा तक या बालक से प्रभारित वास्तविक रकम तक, इनमें से जो भी कम हों, ऐसी रीति में जो विहित की जाए, प्रतिपूर्ति की जाएगी

परन्तु, यह कि ऐसी प्रतिपूर्ति धारा 2 के खंड (ढ) के उपखंड (।) के विनिर्दिष्ट किसी विद्यालय द्वारा उपगत प्रति बालक व्यय से अधिक नहीं होगी।
परन्तु यह और कि जहाँ ऐसा विद्यालय उसके द्वारा कोई भूमि, भवन, उपस्कर या अन्य सुविधाएं या तो निःशुल्क या रियायती दर पर प्राप्त करने के कारण विनिर्दिष्ट संख्या में बालकों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने की बाध्यता के अधीन है, वहां ऐसा विद्यालय ऐसी बाध्यता की सीमा तथा प्रतिपूर्ति के लिए हकदार नहीं होगा।

(3) प्रत्येक विद्यालय ऐसी जानकारी जो, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा अपेक्षित हो उपलब्ध कराएगा।

13. (1) कोई विद्यालय या व्यक्ति किसी बालक को प्रवेश देते समय कोई प्रति व्यक्ति फीस संगृहीत नहीं करेगा और बालक या उसके माता-पिता अथवा संरक्षक को किसी अनुवीक्षण प्रक्रिया के अधीन नहीं रहेगा।

(2) कोई विद्यालय या व्यक्ति, यदि उपधारा (1) के उपबंधों के उल्लंघन में –
(क) प्रति व्यक्ति फीस प्राप्त करता है तो वह जुर्माने से जो प्रभारित प्रति व्यक्ति फीस के दस गुना तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।
(ख) किसी बालक को अनुवीक्षण प्रक्रिया के अधीन रखता है तो वह जुर्माने से जो पहले उल्लंघन के लिए पच्चीस हजार रूपये तक और प्रत्येक पश्चात्वर्ती उल्लंघन के लिए जो पचास हजार रूपये तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।

14. (1) प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश के प्रयोजन के लिए किसी बालक को आयु का, जन्म मृत्यु और विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1886 के उपबंधों के अनुसार जारी किए गए जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर ऐसे दस्तावेज के आधार पर, जो विहित किया जाए, अवधारित नहीं किया जाएगा।

(2) किसी बालक की, आयु के सबूत के न होने पर किसी विद्यालय में प्रवेश से इंकार नहीं किया जायेगा।

15. किसी बालक को शैक्षणिक वर्ष के प्रारम्भ पर या ऐसी विस्तारित अवधि के भीतर जो विहित की जाए किसी विद्यालय में प्रविष्ट किया जाएगा।
परन्तु किसी बालक को प्रवेश से इंकार नहीं किया जाएगा यदि ऐसा प्रवेश विस्तारित अवधि के पश्चात् इंगित है।
परन्तु यह और कि विस्तारित अवधि के पश्चात् प्रविष्ट किया गया कोई बालक ऐसी रीति में, जो समुचित सरकार द्वारा विहित की जाए, अपना अध्ययन पूरा करेगा।

16. किसी विद्यालय में प्रविष्ट बालक को किसी कक्षा में नहीं रोका जाएगा या विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा के पूरा किए जाने तक निष्कासित नहीं किया जाएगा।

17. (1) किसी बालक को शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीङन नहीं दिया जाएगा।

(2) जो कोई उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंधन करेगा ऐसे व्यक्ति को लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कारवाई का दायी होगा।

18. (1) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित उसके स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी विद्यालय से भिन्न कोई विद्यालय, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् स्थापित नहीं किया जाएगा या ऐसे प्राधिकारी से, ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, कोई आवेदन करके मान्यता प्रमाणपत्र अभिप्राप्त किए बिना कार्य नहीं करेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन निहित प्राधिकारी ऐसे प्रारूप में, ऐसी अवधि के भीतर ऐसी रीति में और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो विहित की जाए, मान्यता प्रमाणपत्र जारी करेगा।
परन्तु यह कि किसी विद्यालय को मान्यता तब तक अनुदत नहीं की जाएगी जब तक वह धारा 1 के अधीन विनिर्दिष्ट मान और मानकों को पूरा नहीं करता है।

(3) मान्यता की शर्तों के उल्लंघन पर, विहित प्राधिकारी लिखित आदेश द्वारा मान्यता वापस ले लेगा।
परन्तु ऐसे आदेश में ऐसा निर्देश होगा कि आसपास मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय कौन-सा है जिसमें अध्ययन कर रहे बालकों को प्रवेश दिया जाएगा।
परन्तु यह और कि ऐसी मान्यता को ऐसे विद्यालय को ऐसी रीति में जो विहित की जाए सुनवाई का अवसर दिए बिना वापस नहीं लिया जाएगा।

(4) कोई ऐसा विद्यालय उपधारा (3) के अधीन मान्यता वापस लेने की तारीख से कार्य जारी नहीं रखेगा।

(5) कोई व्यक्ति जो मान्यता प्रमाणपत्र अभिप्राप्त किए बिना कोई विद्यालय स्थापित करता है या चलाता है या मान्यता वापस लेने के पश्चात् कोई विद्यालय चलाना जारी रखता है, जुर्माने से, जो एक लाख रूपये तक का हो सकेगा और निरंतर उल्लंघन की दशा में जुर्माने से जो प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान ऐसा उल्लंघन जारी रहता है, दस हजार रूपये तक हो सकेगा। दायी होगा।

19. (1) किसी विद्यालय को, धारा 18 के अधीन तब तक स्थापित नहीं किया जाएगा, या मान्यता नहीं दी जाएगी जब तक वह अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट मान और मानकों को पूरा नहीं करता है।

(2) जहाँ इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व स्थापित कोई विद्यालय मानकों को पूरा नहीं करता है वहाँ वह ऐसे प्रारंभ की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के भीतर अपने खर्चे पर ऐसे मानकों को पूरा करने के कदम उठाएगा।

(3) जहाँ कोई विद्यालय, उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर मानकों को पूरा करने में असफल रहता है, वहाँ धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन विहित प्राधिकारी, ऐसे विद्यालय को अनुदत मान्यता को उसकी उपधारा (3) के अधीन विनिर्दिष्ट रीति में वापस ले लेगा।

(4) कोई विद्यालय उपधारा (3) के अधीन मान्यता वापस लेने की तारीख से कार्य जारी नहीं रखेगा।

(5) कोई व्यक्ति, जो मान्यता वापस लेने के पश्चात् कोई विद्यालय चलाना जारी रखता है, जुर्माने से जो एक लाख रूपए तक का हो सकेगा और निरंतर उल्लंघन की दशा में, प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है, दस हजार रूपये के जुर्माने का दायी होगा।

20. केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा किसी मान या मानक की अनुसूची में परिवर्धन या उसका लोप करके उसका संशोधन कर सकेगी।

21. (1) धारा 2 के खंड (ढ) के उपखंड (।ंअ) में विनिर्दिष्ट किसी विद्यालय से भिन्न विद्यालय स्थानीय प्राधिकारी, ऐसे विद्यालय में प्रविष्ट बालकों के माता-पिता या संरक्षक और शिक्षकों के निर्वाचित प्रतिनिधियों से मिलकर बनने वाली एक विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन करेगा।
परन्तु यह कि ऐसी समिति के कम से कम तीन चैथाई सदस्य माता-पिता या संरक्षक होंगे।

परन्तु यह और कि असुविधाग्रस्त समूह और दुर्बल वर्ग के बालकों के माता-पिता या संरक्षकों को समानुपाती प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
परन्तु यह भी कि ऐसी समिति के पचास प्रतिशत सदस्य महिलाएं होगी।

(2) विद्यालय प्रबंधन समिति निम्नलिखित कृत्यों का पालन करेगी, अर्थात्-
(क) विद्यालय के कार्यकरण को मानीटर करना।
(ख) विद्यालय विकास योजना तैयार करना और उसकी सिफारिश करना।
(ग) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी अथवा किसी अन्य स्रोत से प्राप्त अनुदानों के उपयोग को मानीटर करना। और
(घ) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो विहित किए जाएं।

22. (1) धारा 21 की उपधारा (1) के अधीन गठित प्रत्येक विद्यालय प्रबंध समिति ऐसी रीति में जो विहित की जाए, एक विद्यालय विकास योजना तैयार करेगी।

(2) उपधारा (1) के अधीन इस प्रकार तैयार की गई विद्यालय विकास योजना, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं और दिए जाने वाले अनुदानों का आधार होगी।

23. (1) कोई व्यक्ति, जिसके पास केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा प्राधिकृत किसी शिक्षा प्राधिकारी द्वारा तथा अधिकथित ऐसी न्यूनतम अर्हताएं हैं, शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा।

(2) जहाँ किसी राज्य में अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम या उसमें प्रशिक्षण प्रदान करने वाली पर्याप्त संस्थाएं नहीं है या उपधारा (1) के अधीन या अधिकथित न्यूनतम अर्हताएँ रखने वाले शिक्षक पर्याप्त संख्या में नहीं है वहां केन्द्रीय सरकार, यदि वह आवश्यक समझे, अधिसूचना द्वारा शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित न्यूनतम अर्हताओं का पांच वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए शिथिल कर सकेगी, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए।

परन्तु ऐसा कोई शिक्षक, जिसके पास इस अधिनियम के प्रारंभ पर उपधारा (1) के अधीन यथा अधिकथित न्यूनतम अर्हताएँ नहीं है, पाँच वर्ष की अवधि के भीतर ऐसी न्यूनतम अर्हताएँ अर्जित करेगा।

(3) शिक्षक को संदेय वेतन ओर भत्ते तथा उसके सेवा के निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं।

24. (1) धारा 23 के अधीन नियुक्त शिक्षक निम्नलिखित कर्त्तव्यों  का पालन करेगा, अर्थात्-
(क) विद्यालय में उपस्थित होने में नियमितता और समय पालन।
(ख) धारा 29 की उपधारा (2) के उपबंधों के अनुसार पाठ्यक्रम संचालित करना और उसे पूरा करना।
(ग) विनिर्दिष्ट समय के भीतर सपूर्ण पाठ्यक्रम पूरा करना।

(घ) प्रत्येक बालक की शिक्षा ग्रहण करने के सामर्थ्य का निर्धारण करना और तदनुसार यथा अपेक्षित अतिरिक्त शिक्षण, यदि कोई हो, जोङना।
(ङ) माता-पिता और संरक्षकों के साथ नियमित बैठकें करना और बालकों के बारे में उपस्थिति में नियमितता, शिक्षा ग्रहण करने का सामर्थ्य , शिक्षण में की गई प्रगति और किसी अन्य सुसंगत जानकारी के बारे में उन्हें अवगत कराना।
(च) ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करना, जो विहित किए जाए।
(3) शिक्षक की शिकायतों का, यदि कोई हो, ऐसी रीति में दूर किया जायेगा, जो विहित की जाए।

25. (1) इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से छः मास के भीतर समुचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्येक विद्यालय में छात्र-शिक्षक अनुपात अनुसूची में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार बनाए रखा जाए।

(2) उपधारा (1) के अधीन छात्र-शिक्षक अनुपात बनाए किसी विद्यालय में पदस्थापित किए गए किसी शिक्षक को किसी अन्य विद्यालय में सेवा नहीं करने दी जाएगी या धारा 27 में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों से भिन्न किसी गैर-शिक्षण प्रयोजन के लिए तैयार नहीं किया जाएगा।

26. नियुक्ति प्राधिकारी, समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या उसके द्वारा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपलब्ध करवाई गई निधियों द्वारा भागतः वित्तपोषित किसी विद्यालय के संबंध में यह सुनिश्चित करेगा कि उसके नियंत्रणाधीन किसी विद्यालय में शिक्षक के रिक्त पद कुल स्वीकृत पद संख्या के दस प्रतिशत से अधिक नहीं होंगे।

27. किसी शिक्षक को दस वर्षीय जनसंख्या जनगणना, विभीषिका राहत कर्त्तव्यों या यथास्थिति, स्थानीय प्राधिकारी या राज्य विधान मंडलों या संसद के निवार्चनों से संबंधित कर्त्तव्यों, से भिन्न किसी गैर-शैक्षिक प्रयोजनों के लिए अभिनियोजित नहीं किया जायेगा।

28. कोई शिक्षक/शिक्षिका प्राइवेट ट्यूशन या प्राइवेट शिक्षण क्रियाकलाप में स्वयं को नहीं लगाएगा।

अध्याय – 5 प्रारंभिक शिक्षा का पाठ्यक्रम

29. (1) प्रारंभिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम और उसकी मूल्यांकन प्रक्रिया समुचित सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाने वाले शिक्षा प्राधिकारी द्वारा अधिकथिक की जाएगी।

(2) शिक्षा प्राधिकारी उपधारा (1) के अधीन पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया अधिकथित करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा –
(क) संविधान में प्रतिष्ठापित मूल्यों से अनुरूपता।
(ख) बालक का सर्वांगीण विकास।
(ग) बालक के ज्ञान, अन्तःशक्ति, योग्यता का निर्माण करना।
(घ) पूर्णतम मात्रा तक शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का विकास।
(ङ) बाल अनुकूल और बालकेन्द्रित रीति से क्रियाकलापों, प्रकटीकरण और खोज के द्वारा शिक्षण।
(च) शिक्षा का माध्यम, जहाँ तक साध्य हो बालक की मातृभाषा में होगा।
(छ) बालक को भय, मानसिक अभिघात और चिन्तामुक्त बनाना और बालक को स्वतंत्र रूप से मत व्यक्त करने में सहायता करना।
(ज) बालक के समझने की शक्ति और उसे उपयोग करने की उसकी योग्यता का व्यापक और सतत मूल्यांकन।

30. (1) किसी बालक से प्रारंभिक शिक्षा समाप्त होने तक कोई बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

(2) प्रत्येक बालक को, जिसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली है, ऐसे प्रारूप और ऐसी रीति में, एक प्रमाणपत्र दिया जाएगा, जो विहित की जाए।

शिक्षा का अधिकार

अध्याय – 6 बालकों के अधिकारों का संरक्षण

31. (1) यथास्थिति, बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 की धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग या धारा 17 के अधीन गठित राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग, उस अधिनियम के अधीन उन्हें समानुदेशित निम्नलिखित कृत्यों का भी पालन करेगा, अर्थात् –
(क) इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उपबंधित अधिकारों के रक्षोपायों की परीक्षा और पुनर्विलोकन करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अध्युपायों की सिफारिश करना।
(ख) निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बालक के अधिकार संबंधी परिवादों की जांच करना और
(ग) उक्त बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की धारा 15 और धारा 24 के अधीन यथाउपबंधित आवश्यक उपाय करना।

(2) उक्त आयोगों को उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बालक के अधिकार से संबंधित किसी विषय में जांच करते समय वहीं शक्तियां होंगी, जो उक्त बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की क्रमशः धारा 14 और धारा 24 के अधीन उन्हें समनुदेशित की गई हैं।

(3) यहाँ किसी राज्य में, राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग गठित नहीं किया गया है, वहां समुचित सरकार उपधारा (1) के खंड (क) से खंड (ग) में विनिर्दिष्ट कृत्यों का अनुपालन करने का प्रयोजन के लिए ऐसी रीति में और ऐसे शर्तों के अधीन रहते हुए जो विहित की जाएं ऐसे प्राधिकरण का गठन कर सकेगी।

32. (1) धारा 31 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के अधीन किसी बालक के अधिकार के संबंध में कोई शिकायत है, अधिकारिता रखने वाले स्थानीय प्राधिकारी को लिखित में शिकायत कर सकेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन शिकायत प्राप्त होने के पश्चात् स्थानीय प्राधिकारी, संबंधित पक्षकारों को सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के पश्चात् मामले का तीन मास की अवधि के भीतर निपटारा करेगा।

(3) स्थानीय प्राधिकारी के विनिश्चय से व्यथित कोई व्यक्ति बालक अधिकारी के संरक्षण के लिए राज्य आयोग को या यथास्थिति धारा 31 की उपधारा (3) के अधीन विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा।

(4) उपभाग 3 के अधीन की गई अपील का विनिश्चिय बालक अधिकारों के संरक्षण के लिए राज्य आयोग या यथास्थिति धारा 31 की उपधारा (3) के अधीन विहित प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा जैसे कि धारा 3 की उपधारा (1) खंड (ग) के अधीन उपबंधित है।

33. (1) केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा एक राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद् का गठन करेगी जिसमें पंद्रह से अनधिक उतने सदस्य होंगे जैसा कि केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे जिनकी नियुक्ति प्रारंभिक शिक्षा और बालक विकास के क्षेत्र में ज्ञात और व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से की जाएगी।

(2) केन्द्रीय सरकार की, अधिनियम के उपबंधों के प्रभावी रूप में कार्यान्वयन के लिए परामर्श देना राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के कृत्य होंगे।

(3) राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते नियुक्ति के निबंधन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं।

34. (1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, एक राज्य सलाहकार परिषद् का गठन करेगी, जिसमें पन्द्रह से अनधिक उतने सदस्य होंगे, जो राज्य सरकार आवश्यक समझे, जिनकी नियुक्ति प्रारंभिक शिक्षा और बालक विकास के क्षेत्र में ज्ञात और व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से की जाएगी।

(2) राज्य सरकार को, अधिनियम के उपबंधों के प्रभावी रूप में कार्यान्वयन के लिए परामर्श देना राज्य सलाहकार परिषद् के कृत्य होंगे।

(3) राज्य सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्तें वे होंगी, जो विहित की जाएं।

अध्याय – 7 प्रकीर्ण

35. (1) केन्द्रीय सरकार, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगी जो वह इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के प्रयोजनों के लिए ठीक समझे।

(2) समुचित सरकार, इस अधिनियम के उपबधों के कार्यान्वयन के संबंध, में यथास्थिति, स्थानीय प्राधिकारी या विद्यालय प्रबंध समिति के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगी और ऐसे निर्देश दे सकेगी, जो वह ठीक समझे।

(3) स्थानीय प्राधिकारी, इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के संबंध में समिति के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धान्त में विद्यालय प्रबंध समिति के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगा और ऐसे निर्देश दे सकेगा, जो वह ठीक समझे।

36. धारा 13 की उपधारा (2), धारा 18 की उपधारा (5) और धारा 19 की उपधारा (5) के अधीन दंडनीय अपराधी के लिए कोई भी अभियोजन समुचित सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जाएगा।

37. इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के संबंध में कोई भी वाद, या अन्य विधिक कार्यावाही केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग तथा बालक संरक्षण आयोग, स्थानीय प्राधिकारी, विद्यालय प्रबंध समिति या किसी व्यक्ति के विरूद्ध नहीं होगी।

38. (1) समुचित सरकार, अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए नियम, अधिसूचना बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित में सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्-
(क) धारा 4 के पहले परन्तु क के अधीन विशेष प्रशिक्षण देने की रीति और उसकी समय-सीमा।
(ख) धारा 6 के अधीन किसी पङौसी विद्यालय की स्थापना के लिए क्षेत्र या सीमाएं।
(ग) धारा 9 के खंड (ब) के अधीन चौदह वर्ष तक की आयु के अभिलेखों के अनुरक्षण की रीति।
(घ) धारा 13 की उपधारा (2) के अधीन व्यय की प्रतिपूर्ति का रीति और सीमा।

(ङ) धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन बालक को आयु की अवधारण करने हेतु अन्य दस्तावेज।
(च) धारा 15 के अधीन प्रवेश लेने के लिए विस्तारित अवधि और यदि विस्तारित अवधि के पश्चात् प्रवेश लिया जाता है तो अध्ययन पूरा करने की रीति।
(छ) प्राधिकारी, प्रारूप और रीति, जिसको और जिसमें धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन मान्यता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया जाएगा।
(ज) धारा 18 की उपधारा (2) के अधीन मान्यता प्रमाणपत्र का प्रारूप, अवधि, उसे जारी करने की रीति और शर्तें।
(झ) धारा 18 की उपधारा (3) के दूसरे परन्तु क के अधीन सुनवाई का अवसर प्रदान करने की रीति।
(ञ) धारा 21 की उपधारा (2) के खंड (घ) के अधीन विद्यालय प्रबंध समिति द्वारा किए जाने वाले अन्य कृत्य।
(ट) धारा 22 की उपधारा (1) के अधीन विद्यालय विकास योजना तैयार करने की रीति।
(ठ) धारा 23 की उपधारा (3) के अधीन शिक्षक को संदेय वेतन और भत्ते उसकी सेवा की शर्तें।

(ड) धारा 24 की उपधारा (3) के अधीन शिक्षकों की शिकायतों को दूर करने की रीति।
(ढ) धारा 24 की उपधारा (1) के खण्ड (च) के अधीन शिक्षक द्वारा पालन किए जाने वाले कर्त्तव्य ।
(ण) धारा 30 की उपधारा (2) के अधीन प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए प्रमाणपत्र देने का प्ररूप और रीति।
(त) धारा 31 की उपधारा (3) के अधीन प्राधिकरण, उसके गठन की रीति और उसके निबंधन और शर्तें।
(थ) धारा 33 की उपधारा (3) के अधीन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्तें।
(द) धारा 33क की उपधारा (3) के अधीन राज्य सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्तें।

(3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और केन्द्रीय सरकार धारा 20 और धारा 23 के अधीन जारी प्रत्येक अधिसूचना, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वे ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा।

यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम या अधिसूचना नहीं बनायी जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी। किन्तु नियम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभावी होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पङेगा।

(4) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम या अधिसूचना बनाये जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखी जाएगी।

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