Rajasthan ke Prajamandal Andolan – राजस्थान के प्रजामण्डल आंदोलन

आज के आर्टिकल में हम राजस्थान के प्रजामण्डल आंदोलन(Rajasthan ke Prajamandal Andolan) को विस्तार से पढेंगे, इससे जुडी महत्त्वपूर्ण जानकारियां भी प्राप्त करेंगे। Prajamandal Movement in Rajasthan, Prajamandal Movement in Rajasthan Notes PDF, राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन नोट्स, Rajasthan me Prajamandal Aandolan

राजस्थान के प्रजामण्डल – Rajasthan ke Prajamandal Andolan

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राजस्थान के प्रजामण्डल आंदोलन

प्रजामण्डल का अर्थ है – ’’प्रजा का संगठन’’। सन् 1920 में ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे। इसी कारण किसानों द्वारा विभिन्न आंदोलन चलाये गये। भारत देश में गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आन्दोलन भी चल रहा था। इन सभी के कारण राज्य की प्रजा में जागृति आयी और उन्होंने संगठन बना कर अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन शुरू किया, वहीं प्रजामण्डल आंदोलन कहलाया।

प्रजामण्डल आन्दोलनों का उद्देश्य – ’’रियासती कुशासन को समाप्त करना व एक उत्तरदायी शासन की स्थापना करना जो प्रजा के प्रति उत्तरदायी हो।’’

Rajasthan ke Prajamandal

  • 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक चेतना जगाने का उल्लेखनीय प्रयास किया।
  • राजस्थान में राजनैतिक चेतना जगाने के क्षेत्र में प्रथम प्रयास 1919 ई. में ’राजस्थान सेवा संघ’ के रूप में हुआ। जिसकी स्थापना वर्धा में श्री विजयसिंह पथिक व रामनारायण चौधरी के प्रयासों से हरिभाई किंकर के द्वारा की गई।
  • 1920 ई. में राजस्थान सेवा संघ का कार्यालय अजमेर स्थानान्तरित कर दिया गया।
  • जब राजस्थान सेवा संघ के सदस्यों में आपसी मनमुटाव हो गया और यह संघ निष्क्रिय होने लगा तो 1919 ई. में ही सेठ जमनालाल बजाज के प्रयासों से ’राजपूताना मध्य भारत सभा’ नामक संस्था की स्थापना दिल्ली में की गई।
  • राजपूताना मध्य भारत सभा’ का प्रधान कार्यालय अजमेर में ही रखा गया और इसका प्रथम अधिवेशन 1920 ई. में कांग्रेस के अधिवेशन के साथ ही नागपुर में आयोजित किया गया।
  • 1927 ई. में राजनैतिक चेतना जगाने के क्षेत्र में एक ओर उल्लेखनीय प्रयास किया गया और देशी राज्यों के प्रतिनिधियों ने बम्बई में एक समिति का गठन किया, जिसका नाम ’अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्’ था।
  • रामनारायण चौधरी के प्रयासों से 1931 ई. में अजमेर में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का प्रथम प्रांतीय अधिवेशन आयोजित किया गया। किंतु राष्ट्रीय व प्रांतीय स्तर पर यह राजनैतिक चेतना जगाने के प्रयास ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए।
  • प्रजामण्डलों का मुख्य उद्देश्य राजाओं कें संरक्षण में राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना करते हुए जनता को न्याय दिलाना था।
  • 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन (गुजरात) में उत्तरदायी शासन का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु स्थानीय रियासतों में प्रजामण्डलों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया था।
  • कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाषचंद्र बोस ने की थी।

मेवाङ प्रजामण्डल

स्थापना24 अप्रैल 1938
संस्थापकमाणिक्यलाल वर्मा
अध्यक्षबलवंतसिंह मेहता
  • बिजौलिया सत्याग्रह और बेगूं किसान आंदोलन की आंशिक सफलता से प्रेरित होकर माणिक्य लाल वर्मा ने बलवंत सिंह मेहता, हीरालाल कोठारी, भूरेलाल बया, रमेशचंद्र व्यास, भवानीशंकर वैध व अन्य से विचार विमर्श करके 24 अप्रैल, 1938 में मेवाङ प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • इस संस्था के प्रथम सभापति बलवंतसिंह मेहता और उपाध्यक्ष भूरेलाल बया बनाये गये। माणिक्य लाल वर्मा इसके मंत्री बने।
  • उदयपुर राज्य के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री धर्म नारायण ने इस संस्था को 11 मई, 1938 को गैर-कानूनी घोषित कर दिया और माणिक्य लाल वर्मा तथा रमेश चंद्र व्यास को शहर छोङ देने की आज्ञा दे दी। भूरेलाल बया को सराङा किले में नजरबंद कर दिया गया।
  • 4 अक्टूबर 1938 को विजयादशमी के दिन प्रजामण्डल ने सत्याग्रह करने का निश्चय किया और यह मांग की कि प्रजामण्डल को कानूनी संस्था माना जाये तथा माणिक्य लाल वर्मा को पुनः उदयपुर प्रवेश दिया जाए।
  • माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाङ से बाहर अजमेर से सत्याग्रह का संचालन किया। यहीं इन्होंने मेवाङ का वर्तमान शासन नामक पुस्तक लिखकर मेवाङ प्रशासन को जनसाधारण के समक्ष रखा।
  • आंदोलन का सबसे अधिक प्रभाव नाथद्वारा में देखने को मिला। पुलिस ने नरेन्द्रपाल सिंह और प्रो. नारायण दास की गिरफ्तार कर लिया और भीङ पर लाठीचार्ज किया।
  • प्रजामंडल आन्दोलन में नाथद्वारा की गंगाबाई ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
  • गांधीजी ने ’हरिजन’ पत्र में इस अमानुषिक व्यवहार की बङी भर्त्सना की। 3 मार्च 1939 को महात्मा गाँधी ने मेवाङ प्रजामण्डल को सत्याग्रह स्थगित कर रचनात्मक कार्य करने की सलाह दी। इस पर सत्याग्रह स्थापित कर दिया।
  • इसके बाद ही टी.राघवाचारी को मेवाङ का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
  • नवम्बर, 1941 में मेवाङ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन ’माणिक्य लाल वर्मा’ के सभापतित्व में उदयपुर की शाहपुरा हवेली में हुआ।
  • इसका उद्घाटन झण्डा समिति के अध्यक्ष जे.बी. कृपलानी ने किया।
  • इस अधिवेशन के समय मेवाङ में हरिजनों की सेवा के लिए ’मेवाङ हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की गई और इसका कार्यभार फरवरी 1942 में ठक्कर बापा ने मोहनलाल सुखाङिया को सौंपा।
  • मास्टर बलवंत सिंह मेहता को भील व आदिवासियों की सेवा का कार्य सौंपा।
  • अगस्त, 1942 में महात्मा गाँधी का भारत छोङो आंदोलन सारे देश में व्याप्त था। मेवाङ प्रजामण्डल ने भी इस आंदोलन में भाग लिया।
  • श्रीमती नारायणी देवी के नेतृत्व में 24 अगस्त 1942 को 7 महिलाओं के साथ उदयपुर शहर में सत्याग्रह किया। अंत में फरवरी 1944 को सभी लोगों को रिहा किया गया।

प्रजामंडल से जुडी महिलाएं – Rajasthan ke Prajamandal

नारायणी देवीमेवाड़ प्रजामंडल
महिमा देवी किंकरमारवाड़ प्रजामंडल
शारदा भार्गवकोटा प्रजामंडल
दुर्गावती शर्माजयपुर प्रजामंडल

 

राजस्थान के प्रमुख प्रजामण्डल – Rajasthan ke Prajamandal

राजस्थान के प्रजामण्डल
राज्य के प्रजामण्डल स्थापना संस्थापक
जयपुर प्रजामण्डल1931कर्पूर चंद पाटनी
बूंदी प्रजामण्डल1931कांतिलाल
मारवाङ प्रजामण्डल1934जयनारायण व्यास
कोटा प्रजामण्डल1936नयनूराम शर्मा
धौलपुर प्रजामण्डल1936कृष्ण दत्त पालीवाल
बीकानेर प्रजामण्डल1936मघाराम वैद्य
मेवाङ प्रजामण्डल1938माणिक्य लाल वर्मा
अलवर प्रजामण्डल1938हरिमोहन शर्मा
भरतपुर प्रजामण्डल1938किशन लाल जोशी
शाहपुरा प्रजामण्डल1938रमेश दत्त ओझा
सिरोही प्रजामण्डल1939गोकुलभाई भट्ट
करौली प्रजामण्डल1939त्रिलोक चंद माथुर
किशनगढ़ प्रजामण्डल1939कांतिचंद चौथानी
कुशलगढ़ प्रजामण्डल1942भंवरलाल निगम
बांसवाङा प्रजामण्डल1943भूपेन्द्र लाल त्रिवेदी
डूंगरपुर प्रजामण्डल1944भोगी लाल पाड्या
जैसलमेर प्रजामण्डल1945मीठालाल व्यास
प्रतापगढ़ प्रजामण्डल1945चुन्नीलाल व अमृतलाल
झालावाङ प्रजामण्डल1946मांगीलाल भव्य।

मारवाङ(जोधपुर) प्रजामण्डल, Marwar Prajamandal

स्थापना1934 ई .
संस्थापकजयनारायण व्यास
अध्यक्षभंवर लाल सर्राफ
  • मारवाङ सेवा संघ की स्थापना 1920 ई. में की गई थी।
  • 1922 में जयनारायण व्यास और चांदमल सुराणा ने मारवाङ सेवा संघ संस्था में सम्मिलित होकर नई चेतना उत्पन्न की।
  • 1924 में मारवाङ हितकारिणी सभा गठित हुई। इस सभा के द्वारा ’पोपाबाई का राज’ तथा ’मारवाङ की अवस्था’ पत्र प्रकाशित किए गए।
  • 10 मई, 1931 ई. में जयनारायण व्यास ने मारवाङ ’यूथ लीग’ की स्थापना की। 1932 ई. में मारवाङ में पहली बार स्वाधीनता दिवस मनाया गया और छगनराज चौपासनी वाला ने तिरंगा फहराया।
  • 1934 में जयनारायण व्यास के प्रयासों से मानमल जैन, अभयमल मेहता और छगनराज चौपासनीवाला ने ’मारवाङ प्रजामण्डल’ की स्थापना की।
  • 1936 में मारवाङ प्रजामण्डल द्वारा बम्बई में ’कृष्णा दिवस’ मनाया गया।
  • 1936 में अखिल भारतीय देशी राज्य लेाकपरिषद् के अध्यक्ष पट्ठाभि सीताराममैया ने जोधपुर की यात्रा की।

डाबड़ा का हत्याकांड

मारवाड़ के एक गांव में बिना कारण 700 पुष्करणा ब्राह्मण परिवारों को गांव से बाहर निकाल देने के विरोध में 13 मार्च 1947 ईस्वी में नागौर जिले के डाबड़ा गांव में एक विशाल किसान सभा का आयोजन किया गया। उस सभा पर जागीरदारों ने हमला करवाया। जिसमें चुन्नी लाल शर्मा, रामाराव, रुग्धा राम एवं तीन अन्य किसान शहीद हो गए। शहीदों की याद में प्रतिवर्ष 13 मार्च को डाबड़ा गांव में मेला भरता है।

  • जयनारायण व्यास के प्रयास पर ही अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का मुख्यालय इलाहाबाद से जोधपुर में स्थानान्तरित किया गया।
  • 1936 में पं. नेहरू के जोधपुर आगमन पर विशेष सत्कार करने की प्रतिक्रिया पर रियासत द्वारा जोधपुर प्रजामण्डल को गैर कानूनी घोषित किया गया।
  • मारवाङ प्रजामण्डल के समाप्त होने के बाद 1936 में ’मारवाङ अधिकार रक्षक सभा’ की स्थापना की गई लेकिन इसे भी सरकार ने गैर कानूनी घोषित कर दिया।
  • 1938 में ’मारवाङ लोक परिषद्’ की स्थापना की गई, इसके महासचिव अभयमल मेहता नियुक्त हुये।
  • इस परिषद् का उद्देश्य महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
  • महिमादेवी किंकर ने प्रतिबंधित पुस्तक ’उत्तरदायी शासन’ पढ़कर सुनायी और 17 जुलाई 1942 को महिलाओं के सत्याग्राही जत्थे का नेतृत्व किया।
  • 1941 में जोधपुर में ’उत्तरदायी दिवस’ मनाया गया।
  • 26 जुलाई, 1942 को ’मारवाङ सत्याग्रह दिवस’ मनाया गया।
  • 1947 में मारवाङ लोक परिषद् द्वारा ’विधानसभा दिवस’ मनाया गया।

बीकानेर प्रजामंडल (Bikaner Prajamandal)

स्थापना4 अक्टूबर 1936, कलकत्ता
संस्थापकमधाराम वैद्य, चंदनमल बहड़

  • पं. नेहरू ने बीकानेर में सर्वव्यापी दमन के बारे में लिखा था – जहाँ शादी की कुमकुम पत्रिकाएँ राज्य से सेंसर करानी पङती हो उस राज्य का शासक इंसान नहीं, हैवान है।
  • 1912 ई. में बीकानेर राज्य के चूरू में स्वामी गोपाल दास द्वारा ‘सर्वहितकारिणी सभा’ की स्थापना की गई।
  • चुरू में कबीर पाठशाला तथा पुत्री पाठशाला की स्थापना की गई।
  • सन् 1920 ई. में बीकानेर के कुछ जागरूक कार्यकर्ताओं ने विद्या प्रचारिणी सभा की नींव रखी।
  • इसका मुख्य उद्देश्य रिश्वतखोरी व अन्याय के खिलाफ अभियान चलाना था।
  • 26 जनवरी 1930 को स्वामी गोपालदास तथा चंदनमल बहङ के द्वारा चूरू के धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराया तथा यह नारा दिया – ’’अखरो रिपयो चाँदी गो, राज महात्मा गाँधी रो।’’
  • सन् 1931 ई. में लंदन में द्वितीय गोलमेज परिषद् का आयोजन हुआ। जिसमें देशी राजाओं के प्रतिनिधि के रूप में बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने भाग लिया। जब महाराजा गंगासिंह लंदन गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गये तो स्वामी गोपालदास तथा चंदनमल के द्वारा बीकानेर दिग्दर्शन नामक पत्रिका में गंगासिंह की आलोचना की गई।
  • जुलाई 1932 में राज्य में सार्वजनिक सुरक्षा कानून पारित किया, जिसे बीकानेर का काला कानून कहते है।
  • 4 अक्टूबर, 1936 को मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेव आचार्य ने कलकत्ता में बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • बीकानेर में संगठन स्थापित करने का प्रथम प्रयास मघाराम वैद्य के हाथों हुआ और वे इसके प्रथम अध्यक्ष बनाए गये।

नोट : मघाराम वैद्य की पुस्तक का नाम बीकानेर की थोथी-पोथी है।

  • 22 जुलाई, 1942 ई. में रघुवर दयाल गोयल, गंगादास कौशिक और दाऊदयाल आचार्य ने बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् की स्थापना रघुवरदयाल की अध्यक्षता में की और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए महाराजा को ज्ञापन दिया।
  • 26 अक्टूबर 1944 को सारे राजस्थान में ’बीकानेर दमन विरोधी दिवस’ मनाया गया, जो राज्य में प्रथम सार्वजनिक प्रदर्शन था। इसी बीच भारत में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई और महाराजा ने उत्तरदायी शासन की घोषणा की।
  • 30 जून, 1946 ई. में रायसिंह नगर में हो रहे प्रजा परिषद् के सम्मेलन में पुलिस ने गोलीबारी की। बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए सत्ता हस्तान्तरण के लक्षण जब दिखने लगे तो प्रजा परिषद् का कार्यालय पुनः स्थापित किया गया।
  • 1946 में दो समितियाँसंवैधानिक समिति व मताधिकार समिति की स्थापना की गई। रिपोर्ट को लागू करने का आश्वासन तो दिया था पर वह कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई व उत्तरदायी शासन की मांग अधूरी ही रही।
  • 16 मार्च 1948 ई. में जसंवत सिंह दाउदसर के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल बना जिसे प्रजा परिषद् ने अस्वीकृत कर दिया और उसके मंत्रियों ने इस्तीफज्ञ दिया।
  • 30 मार्च, 1949 ई. को जब वृहत् राजस्थान का निर्माण हुआ, तभी हीरालाल शास्त्री, रघुवर दयाल मंत्रिमण्डल में शामिल हो गए।

बीरबल दिवस:

1 जुलाई, 1946 को सत्यनारायण सर्राफ की अध्यक्षता में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् के कार्यकर्ताओं के द्वारा रायसिंहनगर (श्रीगंगानगर) अधिवेशन में सैनिकों द्वारा की गई गोलीबारी में क्रांतिकारी दलित युवक बीरबलसिंह शहीद हो गये। 17 जुलाई, 1946 को बीकानेर प्रजापरिषद् द्वारा ’शहीद बीरबल दिवस’ मनाया गया।

जयपुर प्रजामण्डल (Jaipur prajamandal)

स्थापना1931 ई.
संस्थापकश्रीकर्पूरचंद पाटनी
पुर्नगठनजमनालाल बजाज(1936 ई.)
अध्यक्षजमनालाल बजाज
  • जयपुर में राजनीतिक चेतना जगाने का श्रेय अर्जुनलाल सेठी और सेठ जमनालाल बजाज को जाता है।
  • अर्जुनलाल सेठी को स्नातक उतीर्ण करते ही जयपुर सरकार की ओर से उच्च पद पर आसीन होने का अनुरोध किया गया।
  • अर्जुनलाल सेठी ने राजकीय सेवा प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा, ’यदि अर्जुनलाल राज्य सेवा करेगा तो अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल फेंकने का कार्य कौन करेगा ?’
  • अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर नगर में 1907 में ’जैन शिक्षा प्रचारक समिति’ को स्थापना की ओर इस समिति के अंतर्गत ही 1907 में वर्धमान विद्यालय का भी संचालन आरंभ किया।
  • इस जैन शिक्षण संस्था का उद्देश्य जैन धर्म का प्रचार करना नहीं वरन् यहाँ क्रांतिकारी युवक उत्पन्न करना था।
  • क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र प्रतापसिंह व शोलपुर के माणक चंद्र व मिर्जापुर विष्णुदत्त ने वर्धमान विद्यालय में क्रांति का प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
  • असहयोग आंदोलन (1921) से प्रभावित होकर जयपुर राज्य में सेवा समितियों की स्थापना हुई।
  • सन् 1931 ई. में जयपुर में श्रीकर्पूरचंद पाटनी ने जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना की, पर यह संस्था लम्बे समय तक निर्जीव बनी रही।
  • 1936-37 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज की प्रेरणा से प्रजामण्डल को जयपुर में पुनः क्रियाशील बनाने का प्रयास किया गया।
  • जमनालाल बजाज ने 1927 ई. में यहाँ चरखा संघ की स्थापना करके लोगों का ध्यान स्वदेशी व खादी की ओर आकर्षित किया।
  • 9 मई, 1938 में सेठ जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन जयपुर में किया।

जेंटलमेंट समझौता क्या था?

1942 के भारत छोङो आंदोलन के समय जयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री व जयपुर के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल के बीच जेंटलमेंट समझौता हुआ, जिसमें प्रजामण्डल आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया, क्योंकि इस समझौते में मिर्जा इस्माइल खान के द्वारा जयपुर रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना का आश्वासन दिया गया।

  • जयपुर में जेंटलमेंट समझौते के कारण जब जयपुर प्रजामण्डल ने 1942 के भारत छोङो आंदोलन से अपने आप को अलग कर लिया तब बाबा हरिश्चन्द्र ने ’जेंटलमेंट समझौते’ के विरोध में 1942 में आजाद मोर्चे का गठन किया।
  • 1945 ई. में पं. नेहरू की मध्यस्थता से आजाद मोर्चे का विलय जयपुर प्रजामण्डल में किया गया।
  • जयपुर एकमात्र प्रजामण्डल था, जिसमें गैर सरकारी सदस्य देवीशंकर तिवाङी को चुना गया।
  • 1949 में जयपुर में किसान सुरक्षा अधिनियम पारित हुआ।

कोटा प्रजामण्डल – Kota Prajamandal

  • कोटा के महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय भी राष्ट्रीय चेतना में रूचि नहीं रखते थे।
  • कोटा में राजनीतिक चेतना जगाने का श्रेय पं. नयनूराम शर्मा को जाता है।
  • कोटा प्रजामण्डल की स्थापना 1934 ई. में पं. नयनूराम शर्मा ने ’हाङौती प्रजामण्डल’ के नाम से विजयादशमी को की। लेकिन शीघ्र ही यह संगठन निर्जीव हो गया।
  • हाङौती प्रजामण्डल की स्थापना से पूर्व पं. नयनूराम शर्मा कोटा रियासत में पुलिस की नौकरी में कार्यरत थे। जिसे उन्होंने छोङ दिया।
  • 1939 में पं.नयनूराम शर्मा ने अभिन्न हरि के सहयोग से कोटा राज्य प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • कोटा प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन 14 अक्टूबर 1939 को मांगरोल में हुआ। इसके प्रथम अध्यक्ष पं. नयनूराम शर्मा बने।
  • इसी समय प्रथम बार एक महिला सम्मेलन भी आयोजित किया गया। जिसकी अध्यक्षता श्रीमती शारदा भार्गव ने की थी। जिसमें 6 वर्ष के बालकों के लिए अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था का प्रस्ताव किया गया।
  • पंडित नयनू राम शर्मा ने ’मोङक’ में हाङौती शिक्षा मण्डल की स्थापना कर दी। जिसके माध्यम से क्रांतिकारियों से सम्पर्क बनाये रखा।
  • 1939 ई. में पं. नयनूराम शर्मा की हत्या हो जाने पर कोटा प्रजामण्डल की बागडोर पं. अभिन्न हरि ने संभाली।

अलवर प्रजामण्डल – Alwar Prajamandal

  • 1921 ई. में अलवर सरकार ने किसानों को जंगली सूअर मारने से रोक दिया था।
  • ब्रिटिश सरकार ने अलवर नरेश जयसिंह को 22 मई, 1933 ई. को राज्य से निष्कासित कर उसके स्थान पर तेजसिंह को गद्दी पर बैठा दिया।
  • ब्रिटिश सरकार की इस कार्यवाही से अलवर की जनता और भी क्रुद्ध हो गई। इसका विरोध करने पर श्री कुंजबिहारी लाल मोदी व हरिनारायण शर्मा को जेल में बंद कर दिया। जेल से मुक्त होने पर दोनों ने ही अलवर में राजनीतिक चेतना जगाने का कार्य किया तथा 1938 ई. में ’अलवर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की।
  • अलवर प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन 1944 ई. में भवानी शंकर की अध्यक्षता में हुआ।
  • मास्टर भोलानाथ के प्रयासों से 1946 में प्रजामण्डल द्वारा गैर जिम्मेदार मिनीस्टरों कुर्सी छोङो आंदोलन प्रारंभ किया गया।
  • 30 अक्टूबर, 1946 ई. में महाराजा ने संवैधानिक सुधारों के लिये समिति नियुक्त की जिसका आन्दोलनकारियों ने बहिष्कार किया।
  • उत्तरदायी शासन की मांग अलवर के शासक ने दिसम्बर, 1947 ई. को स्वीकार कर ली।
  • मार्च, 1948 ई. में मत्स्य संघ में अलवर के विलय के साथ ही राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई।
  • अलवर में दलित जातियों के उत्थान के लिए पं. हरिनारायण शर्मा ने महत्त्वपूर्ण कार्य किये तथा इन्होंने ’आदिवासी संघ’, ’वाल्मीकि संघ’ व ’अस्पृश्यता निवारण संघ’ की स्थापना की।

भरतपुर प्रजामण्डल – Bharatpur prajamandal

  • भरतपुर में स्वतंत्रता आन्दोलन का श्रीगणेश जगन्नाथ दास अधिकारी व गंगा प्रसाद शास्त्री ने किया। 1912 ई. में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना हुई। सौभाग्य से भरतपुर के महाराजा किशनसिंह अधिक प्रगतिशील शासक थे। इन्होंने हिंदी को प्रोत्साहित किया व उत्तरदायी शासन की मांग को स्वीकार किया व 15 सितम्बर, 1927 ई. को ऐसी घोषणा भी की।
  • ब्रिटिश सरकार ने महाराजा की इन गतिविधियों को गम्भीरता से लेते हुए उन्हें गद्दी छोङने पर विवश किया। उनके स्थान पर अल्प वयस्क बृजेन्द्र सिंह गद्दी पर बैठे।
  • प्रशासन के लिये एक अंग्रेज अधिकारी की नियुक्ति की गई, जिसमें जगन्नाथ दास अधिकारी को निर्वासित कर दिया व सार्वजनिक सभाओं व प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • 1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना की।
  • सन् 1930 ई. में भरतपुर प्रजा परिषद् नाम की एक संस्था स्थापित की गई, जिसके तत्वाधान में भरतपुर राज्य के संस्थापक महाराजा सूरजमल की जयंती मनाई गई।
  • राव गोपीलाल यादव इसके अध्यक्ष और ठाकुर देशराज इसके सचिव थे।
  • 1930 में जगन्नाथ कक्कङ, गोकुल वर्मा व मास्टर फकीर चंद आदि ने ’भरतपुर कांग्रेस मण्डल’ की नींव डाली।
  • सितम्बर, 1937 को एक प्रतिनिधिमण्डल जवाहरलाल नेहरू से भरतपुर रेल्वे स्टेशन पर मिला और उनकी मन्त्रणा पर दिसम्बर 1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के उपरांत भरतपुर से बाहर रेवाङी में भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • गोपीलाल यादव इसके अध्यक्ष तथा मा. आदित्येन्द्र को कोषाध्यक्ष बनाया गया।
  • भरतपुर की राजनीति में गोकुल जी वर्मा भीष्म पितामह के रूप में जाने जाते हैं। भरतपुर की जनता उन्हें ’’भरतपुर का बुढ़ा शेर’’ कहकर पुकारती थी।
  • महात्मा गांधी उन्हें अपने आश्रम में ’’भरतपुरवाला’’ कहकर पुकारते थे।
  • भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना दिसम्बर, 1938 ई. में श्री किशनलाल जोशी के प्रयासों से गोपीलाल यादव की अध्यक्षता में की गई।
  • भरतपुर के महाराजा बृजेन्द्र सिंह और राज्य सरकार के मध्य समझौता हो गया तथा 25 अक्टूबर, 1939 ई. में भरतपुर प्रजामण्डल का नाम बदलकर ’भरतपुर प्रजा परिषद्’ रखा गया।
  • दिसम्बर, 1940 ई. में प्रजामंडल से समझौता किया जिसके तहत प्रजा परिषद नाम से संस्था का पंजीकरण किया गया व सभी नेता रिहा किये गये।
  • प्रजा परिषद् का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक समस्याओं को प्रस्तुत करना, प्रशासनिक सुधारों पर बल देना व शिक्षा का प्रसार करना था।
  • परिषद् ने भारत छोङो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। सरकार ने परिषद् की संतुष्टि के लिए ’ब्रज जय प्रतिनिधि सभा’ का गठन किया किन्तु राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकी। प्रतिनिधि सभा का बहिष्कार किया गया।
  • 1945 ई. में सत्याग्रह की घोषणा की गई किन्तु प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण वह सफल नहीं हो पाया।
  • दिसम्बर, 1946 ई. के कामां सम्मेलन में बेगार समाप्त करने व उत्तरदायी शासन की मांग रखी गई। दुर्भाग्यवश राज्य के उपद्रव साम्प्रदायिक झगङों में बदल गये।
  • 1947 में प्रजा परिषद् ने किसान सभा के साथ राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेङा।
  • 18 मार्च, 1947 ई. को भरतपुर मत्स्य संघ में मिला दिया गया।

करौली प्रजामण्डल – Karoli Prajamandal

  • यहाँ के नरेश भीमपाल ने भी जंगली सूअर के शिकार पर पाबंदी लगा रखी थी। किसान इस बात से नाराज थे। 1921 में कुंवर मदनसिंह के नेतृत्व में वहाँ के किसानों ने इसके विरुद्ध आंदोलन किया।
  • मदन सिंह ने सपत्नी अनशन प्रारंभ किया, कुंवर मदन सिंह ने प्रेमाश्रम तथा ब्रह्मचर्य आश्रम नामक दो संस्थाओं की स्थापना की।
  • करौली प्रजामण्डल की स्थापना अप्रैल, 1939 ई. को मुंशी त्रिलोकचंद माथुर ने की।
  • त्रिलोकचंद माथुर की मृत्यु के पश्चात् 1945 ई. में करौली प्रजामण्डल के अध्यक्ष चिरंजीलाल शर्मा बने।
  • 26 जनवरी, 1944 ई. को भोगीलाल पंड्या, हरिदेव जोशी, गौरीशंकर आचार्य, शिवलाल कोटङिया के प्रयत्नों से डूंगरपुर में प्रजामण्डल की स्थापना हुई।
  • डूंगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना 1 अगस्त, 1944 ई. को भोगीलाल पाण्ड्या ने शिवलाल कोटङिया के सहयोग से की।
  • इस प्रजामण्डल के दौरान भोगीलाल पाण्ड्या ने ’सेवा संघ’ के माध्यम से डूंगरपुर रियासत में शिक्षा का प्रसार किया।
  • भोगीलाल पाण्ड्या ने डूंगरपुर में बागङ सेवा मंदिर संस्था की स्थापना की।
  • इसी दौरान माणिक्यलाल वर्मा द्वारा डूंगरपुर में खाण्डलाई आश्रम की स्थापना की गई।

बाँसवाङा प्रजामण्डल

  • 1943 ई. में बाँसवाङा में धूलजी भाई, भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी एवं माणिशंकर जानी के द्वारा बाँसवाङा प्रजामण्डल की स्थापना की गई।

धौलपुर प्रजामण्डल – Dholpur Prajamandal

  • आर्य समाज के प्रमुख स्वामी श्रद्धानन्द ने 1918 ई. से ही धौलपुर के निरंकुश शासन व्यवस्था के विरूद्ध आवाज उठानी आरंभ की। स्वामी जी की मृत्यु के बाद आन्दोलन शिथिल हो गया।
  • धौलपुर में जनजागृति के अग्रदूत यमुना प्रसाद वर्मा थे। उन्होंने 1910 में आचार सुधारिणी सभा स्थापित की।
  • 1911 में उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।
  • धौलपुर में राजनीतिक चेतना को जागृत करने की दृष्टि से श्री ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु तथा श्री जौहरीलाल इन्दु का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है इन्होंने धौलपुर में ही 1934 में ’नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना की।
  • धौलपुर प्रजामण्डल की स्थापना 1936 ई. में कृष्णदत्त पालीवाल, मूलचंद, ज्वाला प्रसाद एवं जवाहरलाल ने ’धौलपुर प्रजामण्डल’ की स्थापना की। प्रजामण्डल ने कृष्णदत्त पालीवाल के नेतृत्व में राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापना की माँग की।

तसीमो काण्ड

धौलपुर प्रजामण्डल की गतिविधियों के दौरान 11 अप्रैल, 1947 ई. को तसीमो गाँव में अंग्रेजों की गोलियों से ’ठाकुर छत्रसिंह परमार’ व ’ठाकुर पंचमसिंह कच्छवाहा’ शहीद हो गए। इसे ही तसीमो काण्ड (धौलपुर) कहा जाता है। यहाँ पर शहीदों की स्मृति में प्रतिवर्ष 11 अप्रैल को मेला लगता है।

सिरोही प्रजामण्डल – Sirohi Prajamandal

  • सिरोही के कुछ उत्साही (युवकों) वृहद किशोर भीमशंकर, समर्थलाल सिंधी ने 1934 में बम्बई में प्रजामण्डल की स्थापना की, पर उसके कोई विशेष परिणाम नहीं निकले।
  • हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के निर्णय के उपरांत श्रीगोकुल भाई भट्ट ने 23 जनवरी, 1939 को सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • सिरोही प्रजामण्डल के तत्वाधान में हुई सार्वजनिक सभा पर लाठीचार्ज में अनेक लोग घायल हो गए, इस घटना की महात्मा गाँधी ने ’हरिजन सेवक’ नामक समाचार पत्र में आलोचना की।

किशनगढ़ प्रजामण्डल

  • किशनगढ़ में कांतिचंद चौथाणी ने 1930 ई. में उपकारक मण्डल की स्थापना की जिसका उद्देश्य अपाहिजों और असहाय लोगों तथा हङताली मजदूरों की सेवा करना था।
  • किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में कांतिलाल चौथानी ने की।
  • किशनगढ़ प्रजामण्डल के प्रथम अध्यक्ष जमालशाह बने।

बूँदी प्रजामण्डल – Bundi Prajamandal

  • बून्दी में सार्वजनिक चेतना 1922 में जागृत हुई। पथिक जी द्वारा बरङ आन्दोलन के समर्थन देने से नई राजनीतिक चेतना का संचार हुआ।
  • बूंदी में भी राजनीतिक चेतना जगाने में किसान आंदोलनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। किसानों ने पं. नयनूराम शर्मा के नेतृत्व में 1926 में बेगार, लागबाग और लगान की ऊँची दरों के विरोध में आंदोलन छेङा।
  • 1931 ई. में कांतिलाल की अध्यक्षता में बूँदी प्रजामण्डल की स्थापना की गई। प्रजामण्डल ने प्रशासनिक सुधारों की मांग तेज कर दी।
  • 1937 ई. में प्रजामंडल के अध्यक्ष ऋषि दत्त मेहता बंदी बनाकर अजमेर भेज दिये गये। उनकी अनुपस्थिति में बृजसुन्दर शर्मा ने नेतृत्व संभाला। प्रजामण्डल गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
  • 19 जुलाई, 1944 ई. को ऋषिदत्त मेहता ने हरिमोहन माथुर व बृजसुंदर शर्मा की मदद से ’बूंदी राज्य लोक परिषद्’ की स्थापना की।
  • 1946 ई. में महाराजा बहादुर सिंह ने राज्य में विधान परिषद् और लोकप्रिय मंत्रिमण्डल बनाने की घोषणा की, परंतु परिषद् ने मंत्रिमण्डल में शामिल होने से इन्कार कर दिया।

जैसलमेर प्रजामण्डल – Jaisalmer Prajamandal

  • 1932 में रघुवरदास मेहत्ता द्वारा ’माहेश्वर युवक मण्डल’ गठित किया गया।
  • सागरमल गोपा ने महारावल के निरंकुश शासन का विरोध किया।
  • 22 मई, 1941 ई. को सागरमल गोपा को बंदी बना लिया गया और उन्हें 6 वर्ष के कारावास की सजा दी गई। उनका अपराध यही था कि उन्होंने अपनी पुस्तक ’जैसलमेर में गुंडाराज’ में महारावल के अत्याचार पूर्ण कार्यों का पर्दाफाश किया।
  • इस समय जैसलमेर के शासक जवाहरसिंह थे।
  • 3 अप्रैल, 1946 को जेलर गुमानसिंह ने सागरमल गोपा को मिट्टी का तेल छिङकर जला दिया। फलस्वरूप 4 अप्रैल 1946 को गोपा की मृत्यु हो गई।
  • इस हत्याकाण्ड की जाँच हेतु पाठक आयोग गठित किया गया। जिसमें इसे आत्महत्या करार दिया।
  • पं. नेहरू ने इस काण्ड की जाँच हेतु जयनारायण व्यास को कमान सौंपी।
  • सागरमल गोपा की हत्या के पश्चात् जैसलमेर में ’खून रो बदलो खून’ का नारा दिया गया।
  • 15 दिसम्बर, 1945 को मीठालाल व्यास ने जैसलमेर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना जोधपुर में की।
  • जैसलमेर प्रजामण्डल उत्तरदायी शासन स्थापित करने में असफल रहा।
  • 1938 में माणिक्य लाल वर्मा जी की प्रेरणा से शाहपुरा प्रजामण्डल की स्थापना रमेशचंद्र व्यास व लादूराम व्यास ने की।
  • सर्वप्रथम उत्तरदायी शासन स्थापित करने वाला प्रजामण्डल शाहपुरा प्रजामण्डल ही था।

कुशलगढ़ प्रजामण्डल

  • कुशलगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना अप्रैल, 1942 में भंवरलाल निगम (अध्यक्ष) व कन्हैयालाल द्वारा की गई।

झालावाङ प्रजामण्डल

  • झालावाङ प्रजामण्डल की स्थापना 25 नवम्बर, 1946 ई. को मांगीलाल भव्य, इनके सहायक मकबूल आलम तथा कन्हैया मित्तल के द्वारा की गई।
  • झालावाङ प्रजामण्डल को राजकीय संरक्षण प्राप्त था।
  • रियासती शासक द्वारा संरक्षण देकर बनने वाला एकमात्र प्रजामण्डल झालावाङ था। झालावाङ राजघराने के शासक महाराजा हरीशचंद्र के द्वारा स्वयं प्रधानमंत्री का पद धारण कर रियासत को संरक्षण दिया गया।

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