गोगाजी महाराज का जीवन परिचय – Goga ji Maharaj ka Jivan Prichay

आज के आर्टिकल में हम गोगाजी महाराज का जीवन परिचय (Goga ji Maharaj ka Jivan Prichay) के बारे में जानेंगे। इसके अन्तर्गत हम गोगाजी का इतिहास (Goga ji Maharaj History in Hindi), गोगाजी का जीवन परिचय (Goga ji Biography in Hindi), गोगाजी की फङ (Goga ji Ki Phad) के बारे में पढ़ेंगे।

जाहरपीर गोगाजी महाराज – Goga ji Maharaj ka Jivan Prichay

Goga ji Maharaj

गोगाजी-गौरक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले और सर्पदंश से मुक्तिदाता माने जाने वाले राजस्थान के पंच पीरों में से एक पीर गोगाजी है। इन्हें गौरक्षक देवता / साँपों का देवता / हिन्दू इन्हें नागराज / मुसलमान इन्हें गोगा पीर / महमूद गजनबी ने जाहरपीर आदि नामों से पुकारा है। चौहान वीर गोगाजी का जन्म वि.सं. 1003 में चूरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ था।

लोक देवता गोगाजी की जीवनी – Gogaji Biography in hindi

नामजाहरपीर गोगाजी
बचपन का नामगूगो(नंदी दत्त पुरोहित ने नामकरण किया)
जीवनकाल946 ई. से 1024 ई.
जन्मस्थान ददरेवा (चूरू),भाद्रपद कृष्ण नवमी, वि.सं. 1003
जन्मवंश नागवंशीय चौहान
उपनामसाँपों के देवता /जाहरपीर/जीवित पीर/ गोगापीर/नागराज
पिता का नामजेवर सिंह(जीवराज चौहान)
माता का नामबाछल
पंथगोरखनाथ
गुरु का नामगोरखनाथ जी
पत्नी का नामकेलमदे
गोगाजी का मेलाभाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को
गोगा जी का थानखेजड़ी के वृक्ष के नीचे
नेजा रंग सफेद

पारिवारिक परिचय: Gogaji

गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के शासक जेवरसिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भाद्रपद कृष्ण नवमी को हुआ था। इनकी माता बाछल को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद गुरु गोरखनाथ से  प्राप्त हुआ था । इनकी पत्नी का नाम केलमदे (कोलुमंड के बुढोजी राठौड़ की पुत्री थी) था और इनके पुत्र का नाम  केसरिया कुंवर था जो लोकदेवता की तरह पूजे जाते हैं। अगर हम चौहान वंश की बात करें तो चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद यशस्वी राजा गोगाजी थे। गोगाजी के गुरु का नाम गोरखनाथ(दीक्षा गुरु) थे। हालाँकि इनके शिक्षा गुरु अचलदास थे।

लोकमान्यता के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। इन्हें मानने वाले गुग्गा, जाहरपीर,जीवित पीर, गोगापीर और नागराज के नामों से पुकारते हैं। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से सबसे पहले माना गया है। गोगाजी को गुरु गोरखनाथ व महमूद गजनवी के समकालीन माना जाता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य : Jaharveer Goga ji

  • वीर गोगाजी महमूद गजनवी के समकालीन थे।
  • गोगाजी का थान प्रायः गाँवों में खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है।
  • गोगामेड़ी स्थान इंद्रगढ़ किले में है।
  • हिन्दू इन्हें ‘नागराज’ तो मुस्लिम इन्हें ‘गोगापीर’ के रूप में पूजते हैं।
  • गोगाजी के मुस्लिम पुजारी-चायल कहलाते है।
  • गोगाजी की जन्म स्थली ददरेवा (चूरू) के तालाब की मिट्टी का लेप करने से सांप का जहर उतर जाता है।
  • गोगाजी गायों की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुये।
  • प्रतीक चिह्न- भाला लिए घुड़सवार व सर्प
  • वाहन- नीला घोड़ा
  • गोगाजी की ध्वजा – निसाण
  • छावली – गोगाजी के गीत छावली कहलाते हैं।
  •  गुरु गोरखनाथ ने ही इन्हें ‘साँपों की सिद्धि’ प्रदान की थी ।
  • सांकल नृत्य – गोगाजी की आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं।
  •  मेड़ी – गोगाजी का मंदिर मेड़ी कहलाता है।
  • गोगाजी की ओल्डी – किलोंरियों की ढाणी, सांचौर जिले में।(झोंपड़ीनुमा मंदिर)
  • गोगाजी की फड़ का वाचन डेरू वाद्ययंत्र के साथ इनके भक्तों या भोपों द्वारा किया जाता है।
  • इन्हें ‘बांगड़ का राजा’ भी कहा जाता है।
  • सर्प दंश के उपचार में गोगाजी की अर्चना की जाती है।
  • हिन्दू इन्हें विष्णु का अवतार मानते है।
  • गोगाजी की भक्ति में गाए गए गीतों को पीर के सोल कहा जाता है।
  • गोगाजी की बहादुरी के कृत्य बीठू मेहा की रचना गोगा के रसावले/रावले में उल्लिखित है।
  • उत्तरप्रदेश में गोगाजी के भक्त आंचलिक भाषा में पूर्बिये कहलाते हैं।
  • गोगाजी की सवारी ‘नीली घोड़ी’ थी।

गोगाजी का मुख्य मंदिर

इनका जन्म ददरेवा(चुरू) में हुआ था। युद्ध में लड़ते वक्त गोगाजी का सिर यहीं गिरा था इसलिए इस स्थान को शीर्षमेडी कहा जाता है । जहाँ पर लड़ते हुये गोगाजी का धड़ गिरा था। यह स्थान धुरमेड़ी(गोगामेड़ी, हनुमानगढ़) कहलाता है।  यहाँ  मेला-भाद्रपद कृष्ण नवमी को भरता है।

jaharveer goga ji
गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था तथा इसका वर्तमान स्वरूप बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी ने बनवाया था। गोगामेड़ी की बनावट मकबरेनुमा है व इसके प्रवेश द्वार पर बिस्मिलाह अंकित है। यहीं पर गोरख तालाब बना है। गोगाजी का समाधि-स्थल ‘धुरमेड़ी’ कहलाता है। यह गोगामेड़ी स्थान भादरा से लगभग 15 किमी उत्तर-पश्चिम मे हनुमानगढ़ जिले में है। यहाँ के पुजारी चायल मुसलमान हैं जो चौहान के वंशज हैं। गोगामेड़ी में गोरख-टिल्ला व गोरखाणा तालाब दर्शनीय स्थान हैं। यहाँ गोरखमठ में कालिका व हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं। गोगाजी के भक्त ददरेवा (चुरू) के साथ ही गोगामेड़ी आने पर यात्रा सफल मानते हैं। गोगामेड़ी में एक हिन्दू और एक मुस्लिम पुजारी रहता है, गोगाजी का मेला हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। गोगाजी की ओल्डी सांचौर जिले में स्थित है।

महमूद गजनवी के साथ युद्ध

गोगाजी ने महमूद गजनवी के साथ 1024 ई. में युद्ध किया था। महमूद गजनवी ने ‘जाहरपीर की उपाधि’ दी अर्थात् साक्षात् देवता के समान प्रकट होने वाला कहा था। इस युद्ध का वर्णन कायम खाँ रासो (जान कवि) में किया है। युद्ध भूमि में अपने 47 पुत्रों तथा 60 भतीजों के साथ शहीद हुए थे। दयालदास री ख्यात के अनुसार इन्होंने गायों को बचाने के लिये अपने मौसेरे भाईयों अर्जन व सुर्जन के विरुद्ध भीषण युद्ध किया था । इसलिए योद्धा के रूप में इनकी पूजा होती है।

गोगाजी का मेला

लोक देवता गोगाजी का जन्म स्थल ददरेवा(चुरू) में है। जहां पर हर साल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगामेडी (हनुमानगढ़) में बड़ा  मेला लगता है, जिसमें हिन्दू और मुस्लिम बड़ी संख्यां में इस मेले में आते है।  हिन्दू इन्हें गोगा वीर तथा मुसलमान गोगा पीर कहते है। गुजरात मे रेबारी जाति के लोग गोगाजी को गोगा महाराज केे नाम सेे बुलाते है। एक अन्य मेला गोगाजी की ओल्ड़ी-किलौरियों की ढ़ाणी (सांचौर) में भरता है।

गोगा राखड़ी

राजस्थान का किसान वर्षा के बाद खेतों में हल जोतने से पूर्व हल एवं हाली के 9 गाँठों की गोगा राखड़ी बांधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन बाँधी गई राखियाँ गोगानवमी के दिन खोले जाने की परम्परा हैं। रक्षा बंधन पर बांधी गई राखियाँ गोगा जी के घोड़े के पैरों में अर्पण की जाती है।

साँपों का देवता :

गोगाजी के विवाह के समय ही उनकी पत्नी केलम दे को एक सर्प ने डस लिया जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने आग पर कढ़ाई में तेल डालकर अपनी सिद्धि का प्रयोग करते हुए मंत्रों का उच्चारण करना शुरू किया जिससे संसार के सभी साँप गर्म तेल की कढ़ाई में आकर गिरने लगे, तब साँपो के रक्षक तक्षक नाग ने गोगाजी से माफी मांगी, केलम दे का जहर चूस कर पुनः जीवित किया और गोगाजी को साँपो के देवता के रूप में पूजे जाने का आशीर्वाद दिया। गोगाजी को नागों का देवता होने का वरदान दे गये इसलिए सर्प दंश हेतु गोगाजी का आहवान किया जाता है। इसलिए गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है।

खेजड़ी वृक्ष:

गोगा जी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है और यह गोगाजी का प्रतीक भी है। जहाँ मूर्ति स्वरूप एक पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है। मारवाड़ में तो यह कहावत है कि
गांव-गांव खेजड़ी, गांव-गांव गोगो

निष्कर्ष : Veer Goga ji

आज के आर्टिकल में हमनें गोगाजी महाराज का जीवन परिचय (Goga ji Maharaj ka Jivan Prichay) के बारे में विस्तार से पढ़ा। इसके अन्तर्गत हम गोगाजी का इतिहास (Goga ji Maharaj History in Hindi), गोगाजी का जीवन परिचय (Goga ji Biography in Hindi) से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य भी पढ़े। आशा करते है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी …धन्यवाद

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