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ज्वालामुखी का निर्माण कैसे होता है? || ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:28th Jun, 2022| Comments: 0

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दोस्तों आज हम भूगोल के अंतर्गत ज्वालामुखी के अर्थ और प्रकार, ज्वालामुखी का निर्माण कैसे होता है(Jwalamukhi Ka Nirmaan Kaise Hota Hai) इस संदर्भ में विस्तार से जानेंगे।

ज्वालामुखी

Table of Contents

  • ज्वालामुखी
    • ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं – Jwalamukhi ke Prakar
    • 1. ज्वालामुखी के उद्गार के स्वरूप के आधार पर –
      • अ. केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी –
        • (क) हवाइयन तुल्य ज्वालामुखी –
        • (ख) स्ट्राॅम्बोलियन तुल्य ज्वालामुखी –
        • (ग) वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी –
        • (घ) विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी –
        • (ङ) पीलियन तुल्य ज्वालामुखी –
      • ब. दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी –
    • 2. उद्गार की अवधि के अनुसार वर्गीकरण –
      • (क) सक्रीय या जाग्रत ज्वालामुखी-
      • (ख) . प्रसुप्त/ सुषुप्त ज्वालामुखी-
      • (ग). मृत/शांत ज्वालामुखी-

ज्वालामुखी का निर्माण कैसे होता है

ज्वालामुखी का अर्थ – ज्वालामुखी से तात्पर्य उस छिद्र या दरार से होता है, जिससे होकर भूगर्भ की उष्ण गैसें, तरल लावा, पत्थर के टुकङे, धूल आदि पदार्थ बाहर निकलते हैं। यह छिद्र या विवर ज्वालामुख कहलाता है, जो कीपाकार होता है। आधुनिक समय में वैज्ञानिकों ने ज्वालामुखियों को ’प्रकृति का सुरक्षा कपाट’ माना है।

ऑर्थर होम्स के अनुसार, ’’वह सारी घटना जिसके द्वारा पृथ्वी की गहराइयों से मैग्मा सम्बन्धी सम्पूर्ण पदार्थ भू-तल की ओर अथवा धरातल पर लाकर बिछा दिया जाता है, ज्वालामुखी कहलाती है।’’

वारसेस्टर के अनुसार, ’’ज्वालामुखी प्रायः एक गोल या गोलाकार आकृति का छिद्र या खुला भाग होता है, जिससे होकर अत्यन्त तप्त भूगर्भ से गैसें, जल, तरल लावा एवं चट्टानी टुकङे आदि गरम पदार्थ पृथ्वी के धरातल पर प्रकट होते हैं।’’

ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं – Jwalamukhi ke Prakar

विश्व में अनेक प्रकार के ज्वालामुखी पाए जाते हैं। ज्वालामुखी उद्गार, विस्फोटक स्थिति एवं उसकी अवधि में अन्तर रहने के आधार पर इनको निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है –

1. ज्वालामुखी के उद्गार के स्वरूप के आधार पर –

इस आधार पर इन्हें निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-

अ. केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी –

इनमें ज्वालामुखी का उद्गार किसी नलिका या केन्द्रीय मुख से भयंकर विस्फोटों सहित होता है। भूकम्प व गङगङाहट भी होती है। धुएँ के काले बादल आकाश में छा जाते हैं। शिलाखण्डों की बौछार सहित लावा का उद्भेदन होता है।

इस प्रकार के ज्वालामुखी निम्न प्रकार से हैं-

(क) हवाइयन तुल्य ज्वालामुखी –

ऐसे ज्वालामुखियों का उद्गार शांत ढंग से होता है क्योंकि इसमें लावा पतला एवं गैसें कम होती हैं। विखण्डित पदार्थ भी कम होते हैं। इनमें छोटे शिलाखण्डों के ढेर शंकु के पास पाये जाते हैं। यथा-हवाई द्वीप में मोनालोआ एवं मोआकी ज्वालामुखी।

(ख) स्ट्राॅम्बोलियन तुल्य ज्वालामुखी –

ये भूमध्य सागर में ही लिपारी द्वीप पर स्थित स्ट्राॅम्बोली ज्वालामुखी प्रकार के हैं। इनमें हवाइयन की अपेक्षा कम तरल बेसाल्ट लावा प्रवाहित होता है। लावा के साथ ज्वालामुखी धूल, झामक, अवस्कर, बम आदि विखण्डित पदार्थ भी निकलते हैं, जो पुनः क्रेटर में गिर जाते है।

(ग) वल्केनियन तुल्य ज्वालामुखी –

इनसे गाढ़ा, चिपचिपा क्षारीय लावा निकलता है और प्रत्येक उद्गार के बाद ज्वालामुख बंद हो जाता है, जिससे दूसरी बार भीषण विस्फोट के साथ उद्गार होता है। इसमें धूल व गैस की विशाल राशि के कारण गोभी के फूल सदृश्य मेघ आकाश में छा जाते हैं। भूमध्यसागर में स्थित वल्कैनो ज्वालामुखी इसी प्रकार का है।

(घ) विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी –

यह प्रायः वल्केनियन सदृश्य ही होते हैं। अन्तर केवल इतना होता है कि इनमें गैसों की तीव्रता के कारण लावा पदार्थ आकाश में अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाते हैं। ऐसा उद्गार इटली के विसुवियस ज्वालामुखी में सर्वप्रथम 79 A.D. में हुआ था, जिसका प्रथम पर्यवेक्षण प्लिनी महोदय ने किया था, इसलिए इन्हें ’प्लीनियन तुल्य ज्वालामुखी’ भी कहते हैं।

(ङ) पीलियन तुल्य ज्वालामुखी –

यह सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं। इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। इनसे निकलने वाला लावा भी सबसे अधिक चिपचिपा या गाढ़ा होता है। उद्गार के समय ज्वालामुखी नली में ही लावा का जमाव हो जाता है, जिससे अगले उद्गार के समय गैसें व पदार्थ इसे तोङते हुए भीषण आवाज के साथ बाहर निकलते हैं, जिससे दूर-दूर तक इन पदार्थों का फैलाव हो जाता है। इनके उद्गार से पहले शंकु या गुम्बद पूर्णतया या अधिकांश रूप में नष्ट हो जाता है। पश्चिमी द्वीप समूह के मार्टिनिक द्वीप पर स्थित पीली ज्वालामुखी के आधार पर ही अत्यधिक विस्फोटक उद्गार वाले ज्वालामुखियों को ’पीलियन तुल्य ज्वालामुखी’ कहते हैं।

ब. दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी –

जब लावा में गैसों की मात्रा कम होती है तब लावा का उद्गार एक केन्द्रीय नली या मुख से न होकर अनेक दरारों द्वारा होता है। इससे उच्च पर्वतीय शंकुओं की अपेक्षा विस्तृत पठारों की रचना होती है। भारत में दक्कन पठार, उत्तरी अमेरिका में कोलम्बिया पठार या दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील के पठार इसी प्रकार निर्मित हुए हैं। ऐसे उद्गार बहुत कम होते हैं। वर्ष 1783 में आइसलैण्ड में ऐसा उद्गार हुआ था।

2. उद्गार की अवधि के अनुसार वर्गीकरण –

ज्वालामुखी सदैव क्रियाशील नहीं होते। उद्गार या क्रियाशीलता की अवधि के अनुसार ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-

(क) सक्रीय या जाग्रत ज्वालामुखी-

जाग्रत ज्वालामुखी

जिन ज्वालामुखियों से समय-समय पर लावा एवं गैसें, जलवाष्प, धूलकणों व विखण्डित पदार्थों का उद्गार होता रहता है। इन्हें सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी कहते हैं। वर्तमान में लगभग 500 ज्वालामुखी सक्रिय हैं।

मुख्य ज्वालामुखी निम्न हैं-

  • स्ट्राम्बोली (लेपारीद्वीप, इटली)- भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ।
  • मोनालोवा (हवाईद्वीप)-
  • ओजसडलसलाडो- अर्जेन्टिना व चिली देश की सीमा पर स्थित यह ज्वालामुखी संसार का सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित ज्वालामुखी है।
  • कोटोपैक्सी (इक्वेडोर)- विश्व का सबसे ऊँचा (एण्डिज पर्वत पर) सक्रिय ज्वालामुखी।
  • माउंट इरेबस– अंटार्कटिका महाद्वीप का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी।
  • बैरनद्वीप- भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अंडमान निकोबार में है।

(ख) . प्रसुप्त/ सुषुप्त ज्वालामुखी-

वे ज्वालामुखी जिनमें काफी समय से उद्गार नहीं हुआ हो परन्तु भविष्य में उद्गार होने की सम्भावना हो। ऐसे ज्वालामुखी जो उद्गार के पश्चात् कुछ समय तक शांत रहते हैं तथा अचानक पुनः सक्रिय हो जाते हैं, प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं।

प्रसुप्त ज्वालामुखी

ये ज्वालामुखी अधिक विनाशकारी होते हैं। विसुवियस इसी प्रकार का ज्वालामुखी है, जो 1631, 1803, 1872, 1906, 1927 व 1943 में सक्रिय हुआ था।

उदाहरण- विसुवियस (इटली), क्राकाटोओ (इन्डोनेशिया), नारकोंडम (भारत), फ्यूजीयामा (जापान)

(ग). मृत/शांत ज्वालामुखी-

वे ज्वालामुखी जिनमें काफी समय से उद्गार नहीं हुआ है और ना ही भविष्य में होने की सम्भावना है। जिस ज्वालामुखी के उद्गार हजारों वर्षों से कोई विस्फोट नहीं हुआ न ही भविष्य में विस्फोट होने की सम्भावना है। जिस ज्वालामुखी के उद्गार के हजारों वर्षों में कोई भी प्रमाण नहीं मिलते एवं उसके क्रेटर में पानी भर जाता है तथा वहाँ पर जलवायु के अनुसार जैव जगत मिलता है, ऐसे ज्वालामुखी को शांत या मृत ज्वालामुखी कहते हैं।

मृत ज्वालामुखी

उदाहरण- किलिमंजारो (किनीपा)- अफ्रीका की सबसे ऊँची चोटी। अफ्रीका में कीलीमंजारों, कीनिया एवं केमरून ऐसे ही ज्वालामुखी हैं, जो उद्गार के बाद सदा के लिए शांत हो गए हैं। चिम्बाराजो (इक्वेडोर)- विश्व का सबसे ऊँची मृत ज्वालामुखी। कोहेसुल्तान देवमंद (ईरान), माउण्ट पोपा (म्यांमार), नारकोन्डम (अण्डमान निकोबार द्वीप समूह)।

सबसे ऊँचा ज्वालामुखी ’एकान्कागुहा’ (चीली) 6960 मीटर है।

दक्षिण अमेरिका/एंडीज

पर्वतमाला की सबसे लम्बी चोटी है।

भारत का भौतिक विभाग 

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