आज के आर्टिकल में हम शिक्षण में शिक्षण के सूत्रों (Maxims of teaching) के बारे में विस्तार से पढेंगे .आप इन्हें अच्छे से समझें ।
शिक्षणशास्त्र में हमको अनेक सूत्र प्राप्त होते है। इनका आविष्कार नहीं किया गया वरन् इनको खोजा गया है। इस कार्य में काॅमेनियस, रूसो पेस्टालाॅजी, हर्बर्ट-स्पेंसर आदि का बहुत योगदान रहा है। वे सूत्र उस मार्ग की सुगम उक्तियाँ बनाते है, जिनसे शिक्षण और सीखना आगे बढ़ते है।
शिक्षक को कक्षा में शिक्षण के समय निम्नलिखित सूत्रों का प्रयोग करना चाहिए –
Maxims of Teaching – शिक्षण सूत्र
Table of Contents
- ज्ञात से अज्ञात की ओर
यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मस्तिष्क को जानी हुई बात पसन्द होती है और इस पसन्द का उन सब बातों तक, जिनका उससे संबंध स्थापित किया जा सकता है, स्वयं ही विस्तार हो जाता है। बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान को ग्रहण करता है।
- सरल से जटिल की ओर
बालकों को पहले विषय की सरल बातें बताई जाये, उसके बाद ही जटिल बातों का ज्ञान कराया जाना चाहिए।
सुगम से कठिन की ओर
छात्रों को प्रारंभ में सुगम बातों का ज्ञान कराया जाये और बाद में उन्हें कठिन ज्ञान कराया जाना चाहिए। यदि प्रारंभ में कठिन पाठों को पढ़ाया गया तो छात्रों में यह बात घर कर जायेगी कि विषय कठिन है और धीरे धीरे उस विषय के प्रति उनकी रूचि समाप्त हो जायेगी।
विशिष्ट से सामान्य की ओर
विभिन्न विशिष्ट उदाहरणों या तथ्यों के आधार पर कोई सामान्य नियम निकलवाना। इस सूत्र का प्रयोग करते समय शिक्षक को छात्रों के समक्ष कुछ विशिष्ट उदाहरण या तथ्य प्रस्तुत करने पङते है और छात्र उनका परीक्षण करके उनसे संबंधित नियम निकालते है।
स्थूल से सूक्ष्म की ओर
प्रारंभ में बालकों को स्थूल वस्तुओं या क्रियाओं का ज्ञान देना चाहिए और बाद में उन्हें सूक्ष्म विचारों का ज्ञान प्रदान किया जाये। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जिन वस्तुओं, क्रियाओं, घटनाओं आदि को छात्र देखकर या उनकी अनुभूति कर सकते है, उनमें उनकी रूचि जाग्रत हो जाती है और उनसे प्राप्त अनुभव उनके मस्तिष्क में स्थायी हो जाते है।
अनिश्चित से निश्चित की ओर
शिक्षक को इस अस्पष्ट एवं अनिश्चित ज्ञान को प्रारंभिक बिन्दु बनाकर धीरे धीरे स्पष्ट एवं निश्चित बनाना चाहिए।
पूर्ण से अंश की ओर
गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जिन बालक को पहले पूर्ण का ज्ञान कराया जाये और उसके बाद ही उसके अंशों को बताया जाये। इसी सिद्धांत के आधार पर इकाई योजना का जन्म हुआ।
विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
छात्रों को किसी विषय का पूर्ण एवं निश्चित ज्ञान देने के लिए शिक्षक द्वारा विषय वस्तु का विश्लेषण एवं संश्लेषण करना अनिवार्य है, क्योंकि विश्लेषण बालक को किसी बात को समझने में सहायता देता है और संश्लेषण उस ज्ञान को निश्चित रूप प्रदान करता है।
मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर
बालक की शिक्षा को उनकी रूचियों, रूझानों आदि के अनुसार प्रारंभ करना चाहिए और जैसे-जैसे उनका ज्ञान बढ़ता जाये, वैसे-वैसे उसे तार्किक बनाये।
समीप से दूर की ओर
पहले बालक को समीपस्थ वातावरण का ज्ञान देना चाहिए और उसके बाद उसको दूर के वातावरण से अवगत कराया जाये।
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