चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय – Chandragupta Maurya History in Hindi

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय, इतिहास (Chandragupta Maurya, Biography, History, Birth, Death, Place, Father, Family, Reign, Rise of Maurya empire and Architecture in Hindi)

चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय – Chandragupta Maurya History in hindi

Table of Contents

Chandragupta Maurya

चन्द्रगुप्त मौर्य ’मौर्य वंश’ के संस्थापक थे। चन्द्रगुप्त मौर्य एक वीर योद्धा, कुशल सेनानायक एवं महान् विजेता था। इन्होंने देश के अनेक छोटे-छोटे राज्यों को एक साथ मिलाया था तथा उत्तर और दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जो हिन्दूकुश से लेकर बंगाल तक तथा हिमालय से लेकर मैसूर तक विस्तृत था। उसने भारत को पहली बार राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधा। चन्द्रगप्त मौर्य(Chandragupta Maurya) ने नंद वंश के साम्राज्य को समाप्त करके मौर्य वंश की स्थापना की थी।

चन्द्रगुप्त मौर्य की जीवनी – Chandragupta Maurya in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य की जीवनी
जन्म340 ईसा पूर्व
जन्मस्थानपाटलीपुत्र, बिहार
मृत्यु297 ईसा पूर्व
मृत्युस्थलश्रवणबेलगोला, चंद्रागिरी की पहाङियाँ (कर्नाटक)
मातामुरा मौर्य
पितासर्वार्थसिद्धि मौर्य
पत्नीदुर्धरा व हेलेना
बेटाबिंदुसार
पौत्रअशोक, विताशोक, सुसिम
गुरुआचार्य चाणक्य
उपलब्धियांमौर्य साम्राज्य के संस्थापक, अखंड भारत के निर्माता
शासनकाल321 ई.पू. – 297 ई.पू.
शासनकाल का समय23 वर्ष
जातिमौर्य

आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) इनके गुरु थे। चन्द्रगुप्त मौर्य एक अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्ति था। वह एक साहसी, धैर्यवान, आत्मविश्वासी, दृढ़-निश्चयी, स्वाभिमानी एवं महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 23 वर्षों का सफल शासन किया था तथा बाद में उन्होंने जैन मुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की शिक्षा ली और अपना राजपाट अपने पुत्र बिंदुसार को सौंपकर जैन साधुओं के साथ चल पङे तथा स्वयं संन्यास धारण करके एक पहाङी पर तपस्या करने लगे तथा वहीं पर श्रवणबेलगेाला (वर्तमान कर्नाटक) की चन्द्रगिरी की पहाङियों पर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

डाॅ. राधा कुमुद मुकर्जी ने लिखा है कि ’’चन्द्रगुप्त मौर्य प्रथम भारतीय राजा था, जिसने बृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया, जिसका विस्तार ब्रिटिश भारत से भी बङा था। इस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक चक्रवर्ती सम्राट् के प्राचीन भारतीय आदर्श को व्यावहारिक रूप प्रदान किया।’’

चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म

इनका जन्म 340 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र (बिहार) में हुआ था।

चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के बारे में अलग-अलग मत है। कुछ लोगों की मान्यता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य मौर्य शासक के परिवार के थे, ये क्षत्रीय थे।

इनके पिता सर्वार्थसिद्धि मौर्य थे तथा माता मुरा थी।

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त के पिता मौर्य वंश के प्रधान थे। जब चन्द्रगुप्त अपनी माता के गर्भ में था, तभी एक अन्य राजा ने मोरियों पर आक्रमण करके उनके राजा को मार डाला। इस पर चन्द्रगुप्त की विधवा माता सुरक्षित स्थान की खोज में अपने भाई के पास पुष्पपुर (पाटलिपुत्र) चली गई। यहीं चन्द्रगुप्त का जन्म हुआ। बालक को शत्रुओं की दृष्टि से सुरक्षित रखने के लिए एक गोशाला में छोङ दिया गया, जहाँ एक गोपालक ने उसका पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद उस गोपालक ने चन्द्रगुप्त को एक शिकारी के हाथ बेच दिया।

ब्राह्मण साहित्य के अनुसार, ’’चन्द्रगुप्त मौर्य शूद्र थे। मुद्राराक्षस में इनको वृषल (शूद्र) बताया गया है अर्थात् नीच कुल का।
पुराण में चन्द्रगुप्त मौर्य को मुरा नामक स्त्री से उत्पन्न शूद्र बताया गया है।

बौद्ध साहित्य के अनुसार, ’’चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय थे। बौद्ध ग्रंथ ’महावंश’ में इनको क्षत्रिय बताया गया है। ’दिव्यावदान’ में भी क्षत्रिय बताया गया है।

जैन साहित्य के अनुसार, ’’चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय थे। जैन ग्रंथ ’परिशिष्टपर्वन’ में इनको ’मोरपालक का पुत्र’ बताया गया है।

आचार्य चाणक्य का अपमान

एक बार जब चाणक्य घनानंद के दरबार में गए हुए थे तब वहां पर घनानंद ने भरी सभा में उन्हें अपमान करके बाहर निकाल दिया था। जैसे ही आचार्य चाणक्य नीचे गिरे तो उनकी चोटी (शिखा) खुल गई थी और तभी चाणक्य ने यह शपथ ली थी और घनांनद को कहा था कि ’’मैं तुम्हारे इस राज्य को जङ से उखााङ फेंकूंगा और जब तक यह नहीं हो जाता तब तक मैं अपनी शिखा नहीं बांधूगा।’’

चन्द्रगुप्त मौर्य की चाणक्य से भेंट

चन्द्रगुप्त एक प्रतिभाशाली बालक था। वह गाँव के बच्चों के साथ प्रायः राजकीय खेल खेला करता था। इस खेल में राजसभा में बैठकर चन्द्रगुप्त न्याय-वितरण का कार्य करता था। भ्रमण करते हुए चाणक्य को एक गाँव में चन्द्रगुप्त मिल गया। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपने ग्वाले साथियों के साथ शाही कोर्ट का एक नकली खेल खेलते देखा, जिसमें चन्द्रगुप्त एक बङे पत्थर पर बैठकर एक राजा की भाँति दूसरे बच्चों को आदेश दे रहे थे। वह उसकी योग्यता से बङा प्रभावित हुआ और उसने 1000 कार्षापण देकर बालक चन्द्रगुप्त को उसके शिकारी संरक्षक से खरीद लिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य की चाणक्य से भेंट

इसी समय चन्द्रगुप्त की भेंट चाणक्य नामक एक विद्वान् ब्राह्मण से हुई। चाणक्य (कौटिल्य) तक्षशिला का एक प्रसिद्ध विद्वान् ब्राह्मण था। चाणक्य नन्द-राजा के अपमानजनक व्यवहार से क्षुब्ध था। कहा जाता है कि नन्द-राजा ने चाणक्य को अपनी दानशाला से निकाल दिया था। इस अपमान से नाराज होकर चाणक्य ने उसी समय नन्दों के विनाश की प्रतिज्ञा की थी। वह किसी ऐसे प्रतिभाशाली क्षत्रिय राजकुमार की तलाश में था जिसे नन्दों के बाद सम्राट् बनाया जा सके।

तभी चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को इस कार्य के लिए उपयुक्त समझा और उसे अपना शिष्य बना लिया। वह चन्द्रगुप्त को अपने नगर तक्षशिला ले गया और उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाया और उसे धर्म, अर्थ, शास्त्र, सैन्य कलाओं, वेद, काूनन आदि की शिक्षा दी।
तक्षशिला से शिक्षा प्राप्त करने के बाद चाणक्य चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र ले गये, जो उस समय मगध की राजधानी थी। वहां वह राजा घनानंद से मिले थे तो वहां आचार्य चाणक्य ने घनानंद की बेइज्जती कर दी।

चन्द्रगुप्त मौर्य की सिकन्दर से भेंट

जब सिकन्दर पंजाब आया हुआ था, तब नन्दों के विरुद्ध सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से चन्द्रगुप्त मौर्य ने पंजाब पहुँच कर सिकन्दर से भेंट की। यूनानी साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य 326-25 ई. पूर्व में सिकन्दर से मिला था और उस समय वह एक युवक था। परन्तु चन्द्रगुप्त के स्वतंत्र विचारों के कारण सिकन्दर उससे नाराज हो गया। जस्टिन का कथन है कि चन्द्रगुप्त ने अपनी उद्दण्डता से सिकन्दर को नाराज कर दिया तथा सिकन्दर ने उसे मार डालने की आज्ञा दी, परन्तु चन्द्रगुप्त अपने प्राण बचाकर वहाँ से भाग निकला। अब चन्द्रगुप्त ने नन्द राजाओं के साथ-साथ यूनानियों को भी भारत से खदेङने का निश्चय कर लिया।

अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और उसकी सहायता से नन्दों को पराजित कर दिया। नन्दों के विनाश के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और उसकी सहायता से नन्दों को पराजित कर दिया। नन्दों के विनाश के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य को सिंहासन पर बिठाया गया।

मौर्य साम्राज्य की स्थापना

मौर्य साम्राज्य की स्थापना का श्रेय चाणक्य को जाता है। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य से वादा किया था कि वे उसे गद्दी दिलवा कर रहेंगे। जब चाणक्य तक्षशिला में अध्यापक थे, तभी अलेक्जेण्डर ने भारत पर आक्रमण करने की तैयारी की थी, तब तक्षशिला व गन्धारा के राजा दोनों ने अलेक्जेण्डर के सामने घुटने टेक दिए थे। तभी चाणक्य ने देश के अलग-अलग राजाओं से सहायता मांगी थी। तब पंजाब के राजा पर्वतेश्वेर ने अलेक्जेेण्डर को युद्ध के लिए ललकारा था, परन्तु बाद में उनकी पराजय हुई थी।

उसके बाद चाणक्य ने मगध के राजा घनानंद से सहायता मांगी, लेकिन उसने सहायता देने से मना कर दिया। इसी घटना से व्यथित होकर चाणक्य ने यह निर्णय लिया था कि वह अपना साम्राज्य बनायेंगे और उनका साम्राज्य उनकी नीति के अनुसार चलेगा। यह साम्राज्य ही ’मौर्य साम्राज्य’ कहलाया और चन्द्रगुप्त मौर्य इस साम्राज्य के संस्थापक थे तथा चाणक्य मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य की जीत

चाणक्य की नीति के अनुसार चलकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने अलेक्जेण्डर को हराया था। उसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य एक शक्तिशाली शासके के रूप में सामने आये थे। इसके बाद चन्द्रगुप्त ने हिमालय के राजा पर्वतका के साथ मिलकर अपने सबसे बङे दुश्मन नंदा पर आक्रमण किया था तथा यह लङाई 321 ईसा पूर्व में कुसुमपुर में हुई थी जो कई दिनों तक चली थी, इसमें अंत में चन्द्रगुप्त मौर्य की विजय हुई थी। चन्द्रगुप्त का मौर्य साम्राज्य उत्तर भारत का सबसे मजबूत साम्राज्य बन गया था। इसके बाद उत्तर भारत से वह दक्षिण भारत की ओर चले गये और बंगाल की खाङी से लेकर उन्होंने अरब सागर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। दक्षिण का अधिकांश भाग भी मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत आ गया था।

चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के निर्माण की शुरूआत

चाणक्य के पास कोई सैनिक नहीं थे, इसलिए उन्होंने एक सेना बनाने का विचार किया। चाणक्य गांव-गांव गये और उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को चंद्रगुप्त की सेना से जुङने के लिए प्रोत्साहित किया। आचार्य चाणक्य पर सभी लोगों ने विश्वास किया था तथा उन्हें बहुत सारे लोग उनकी सेना में भर्ती हो गये। जिससे चन्द्रगुप्त की सेना की संख्या भी बढ़ गयी।

वैसे चन्द्रगुप्त मौर्य की यह सेना घनानंद की सेना से काफी छोटी थी। परन्तु आचार्य चाणक्य की तेज बुद्धि और चंद्रगुप्त का साहस घनानंद के पतन के लिए बहुत था।

घनानंद के साम्राज्य का पतन

आचार्य चाणक्य की सलाह से 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त की सेना ने घनांनद पर आक्रमण किया। चाणक्य और चन्द्रगुप्त की सेना ने बाहरी क्षेत्रों को जीतते हुए, घनानंद के राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र को विजित किया। यहां पर उन्होंने कुसुमपुर (वर्तमान पटना) को घेर लिया और उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति से घनानंद को हरा दिया।

चंद्रगुप्त मौर्य का विवाह

चन्द्रगुप्त मौर्य की दो पत्नियां थी – दुर्धरा और हेलेना।

पहली पत्नी – दुर्धरा

घनानंद की पुत्री दुर्धरा ने चंद्रगुप्त मौर्य को देखा था और पहली नजर में ही दुर्धरा को चंद्रगुप्त मौर्य से प्रेम हो गया। चंद्रगुप्त ने धनांनद से युद्ध किया तथा युद्ध जीतने के बाद, उसने दुर्धरा को अपनी धर्मपत्नी बना लिया।

दुर्धरा की गर्भ से बिंदुसार का जन्म हुआ। कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि 2 वर्ष पहले बिदुसार के जन्म लेने से पूर्व दुर्धरा के एक और पुत्र था, जिसका नाम केशनाक था। परन्तु इसकी जन्म के कुछ ही घंटों के बाद मृत्यु हो गई थी।

बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। परंतु कुछ समय बाद दुर्धरा का देहांत हो गया था। दुर्धरा की मृत्यु के कई वर्षों के बाद तक चन्द्रगुप्त ने विवाह नहीं किया, क्योंकि उनको दुर्धरा से बहुत अधिक प्यार था।

दूसरी पत्नी – हेलेना

जिस समय सेल्यूकस निकेटर ने भारत पर आक्रमण किया था उस समय चंद्रगुप्त ने उसे हरा दिया था। उसके बाद और आचार्य कौटिल्य की शर्तों के अनुसार सेल्यूकस को अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चन्द्रगुप्त से करना पङा। चन्द्रगुप्त का दूसरा विवाह हेलेना के साथ हुआ, जो एक ग्रीक थी।

इतिहासकारों का मानना है कि हेलेना की कोई संतान नहीं थी। जब बिंदुसार को राजकार्य सौंप गया था तो हेलेना अपने मायके चली गई थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने सन्यासी का रूप धारण कर चन्द्रावली की पहाङियों में चले गए।

चन्द्रगुप्त मौर्य की विजयें

चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान् विजेता था। उसने अपनी विजयों द्वारा मौर्य-साम्राज्य का विस्तार किया।

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1. पंजाब और सिन्ध की विजय

चन्द्रगुप्त मौर्य तथा चाणक्य ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और पंजाब की जनता को यूनानियों के विरुद्ध भङकाना शुरू कर दिया। चन्द्रगुप्त ने हिमालय पर्वत प्रदेश के एक राज्य के राजा पर्वतक से भी मैत्री-सन्धि की। इसके पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानियों के विरुद्ध राष्ट्रीय युद्ध आरम्भ कर दिया। उसने यूनानियों को पंजाब से मार भगाया। इस प्रकार सम्पूर्ण पंजाब पर चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार हो गया।

डाॅ. सत्यकेतु विद्यालंकार ने लिखा है कि ’’ इस प्रकार चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में भारतीय विद्रोह को सफलता प्राप्त हुई और पंजाब तथा सीमा प्रान्त चन्द्रगुप्त मौर्य के अधिकार में आ गये।’’ 321 ई. पूर्व तक या इसी वर्ष में झेलम से लेकर सिन्धु तक का प्रदेश भी यूनानियों से छीन लिया गया। इसकी पुष्टि 321 ई. पूर्व में यूनानी सेनानायकों के मध्य सम्पन्न ट्रिपैरेडिसस की सन्धि से भी होती है। इस सन्धि में सिन्धु नदी के पूरब का भारत का कोई भी भाग यूनानी साम्राज्य का अंग नहीं माना गया।

2. मगध पर विजय

पंजाब और सिन्ध पर अधिकार करने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल सेना का गठन किया और अनेक राजाओं से सन्धियों कीं। उसने हिमालय के पर्वतीय प्रदेश के राजा पर्वतक से भी मैत्री-सन्धि की। इसके बाद उसने एक विशाल सेना लेकर मगध-राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसने पाटलिपुत्र को घेर लिया। मगध के शासक घनानन्द तथा चन्द्रगुप्त मौर्य की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें घनानन्द की पराजय हुई और वह युद्ध में मारा गया।

इस प्रकार मगध-राज्य पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार हो गया। डाॅ. विमलचन्द्र पाण्डेय के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य 322 ई. पूर्व में मगध की गद्दी पर बैठा।

3. सेल्यूकस पर विजय

सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर ने एक विशाल सेना लेकर भारत पर आक्रमण किया। 305 ई. पूर्व में सिन्धु नदी के तट पर चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सेल्यूकस की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमेें सेल्यूकस की पराजय हुई और उसे विवश होकर चन्द्रगुप्त मौर्य से एक सन्धि करनी पङी।

इस सन्धि की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थीं

  • सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को काबुल, कन्धार, हिरात तथा बिलोचिस्तान के प्रदेश दे दिए।
  • सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से कर लिया।
  • सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में मेगस्थनीज नामक अपना राजदूत भेजा।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार के रूप में दिये।

यह चन्द्रगुप्त मौर्य की एक महत्त्वपूर्ण विजय एवं सैनिक उपलब्धि थी। अब चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य का विस्तार हिन्दूकुश पर्वत तक हो गया।

डाॅ. वी. ए. स्मिथ ने लिखा है कि ’’दो हजार वर्ष से अधिक हुए, चन्द्रगुप्त मौर्य ने इस प्रकार उस वैज्ञानिक सीमा को प्राप्त किया जिसको प्राप्त करने के लिए अंग्रेज इतने वर्षों तक प्रयत्न करते रहे और जिसको कि 16 वीं तथा 17 वीं शताब्दियों के मुगल-सम्राट् भी पूरी तरह प्राप्त करने में असमर्थ रहे।’’

4. पश्चिमी भारत पर विजय

चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्चिमी भारत में सौराष्ट्र तक के सभी प्रदेशों पर विजय प्राप्त की थी। रुद्रदामन के ’जूनागढ़ अभिलेख’ से ज्ञात होता है कि सौराष्ट्र का प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में सम्मिलित था। यहाँ उसने पुष्यगुप्त को अपना गवर्नर नियुक्त किया था और पुष्यगुप्त ने ही सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। जैन ग्रन्थ ’परिशिष्टपर्वन’ के अनुसार अवन्ति पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार था।

5. दक्षिण भारत पर विजय

अधिकांश विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया था। प्लूटार्क ने लिखा है कि ’’चन्द्रगुप्त मौर्य ने 6 लाख की सेना लेकर सारे भारत को रौंद डाला और उस पर अपना अधिकार कर लिया।’’ ’महावंश टीका’ में चन्द्रगुप्त मौर्य को ’सकल जम्बूद्वीप’ का शासक बताया गया है। अशोक के अभिलेख कर्नाटक तथा आन्ध्रप्रदेश के अनेक स्थानों से मिले हैं। अशोक ने केवल कलिंग प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। अतः दक्षिण भारत की विजय का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया जाता है।

6. अन्य विजयें

  • अवन्ति – अवन्ति पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार था। ’परिशिष्टपर्वन’ के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य अवन्ति का शासक था।
  • कश्मीर – अशोक ने केवल कलिंग पर ही विजय प्राप्त की थी। बिन्दुसार ने भी अपने साम्राज्य का विस्तार नहीं किया था।
  • नेपाल – कुछ विद्वानों के अनुसार नेपाल भी चन्द्रगुप्त मौर्य के अधीन था।
  • बंगाल – बंगाल भी चन्द्रगुप्त मौर्य के अधीन था। ’महास्थान अभिलेख’ से बंगाल पर चन्द्रगुप्त मौर्य के आधिपत्य की पुष्टि होती है।

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य-विस्तार

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य हिन्दूकुश से लेकर बंगाल तक और हिमालय से लेकर कर्नाटक तक विस्तृत था।

डाॅ. विमलचन्द्र पाण्डेय ने लिखा है कि ’’चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य हिन्दूकुश से लेकर बंगाल तक तथा हिमालय से लेकर मैसूर तक विस्तृत था। इसके अन्तर्गत अफगानिस्तान और बिलोचिस्तान के प्रदेश, पंजाब, सिन्धु, कश्मीर, नेपाल, गंगा-यमुना का दोआब, मगध, बंगाल, कलिंग, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिण भारत का मैसूर तक का प्रदेश सम्मिलित था।’’ वास्तव में चन्द्रगुप्त मौर्य सम्पूर्ण भारतीय-साम्राज्य का सम्राट् था।

चंद्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव

चन्द्रगुप्त मौर्य की आयु जब 50 साल की थी, तब उनका झुकाव जैन धर्म की ओर हुआ था, उन्होंने जैन धर्म के विद्वान् भद्रबाहु से जैन धर्म की शिक्षा ली और 297 ईसा पूर्व चन्द्रगुप्त ने अपना साम्राज्य अपने बेटे बिंदुसार को सौंप दिया और आप कर्नाटक चले गए। उन्होंने 5 हफ्तों तक बिना खाये-पिये उन्होंने ध्यान किया, जिसे ’संथारा’ कहते है। यहीं पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने प्राण त्याग दिए।

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 297 ईसा पूर्व को श्रवणबेलगोला की चन्द्रगिरि की पहाङियां (वर्तमान कर्नाटक, भारत) में हुई।

जैन ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना राज्य अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया और वे जैन धर्म के विद्वान् भद्रबाहु के साथ दक्षिण में श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर तपस्या करते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे। यहाँ पर उन्होंने श्रवणबेलगोला (वर्तमान कर्नाटक) में चन्द्रगिरि पहाङियों पर सन्यास धारण किया तथा यहीं पर उनकी समाधि भी बनी हुई है।

चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रशासन

चन्द्रगुप्त मौर्य केवल एक महान् विजेता ही नहीं थी, बल्कि वह एक कुशल एवं योग्य प्रशासक भी था। कौटिल्य के ’अर्थशास्त्र’ तथा मेगस्थनीज की ’इण्डिका’ के आधार पर चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की विवेचना निम्नानुसार है –

1. केन्द्रीय शासन

(क) सम्राट – चन्द्रगुप्त मौर्य अपने साम्राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था। राज्य की समस्त शक्तियाँ उसके हाथों में केन्द्रित थीं। वही सर्वोच्च सेनापति तथा सर्वोच्च न्यायाधीश था। वह राज्य के प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति करता था। परन्तु वह निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी नहीं था।

(ख) मन्त्रिपरिषद् – शासन संचालन में सम्राट् की सहायता के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती थी। मन्त्रिपरिषद् महत्त्वपूर्ण मामलों में सम्राट् को सलाह देती थी। मन्त्रिपरिषद् का अधिवेशन दैनिक राजकार्यों के लिए नहीं होता था। यह आवश्यक कार्यों के सम्बन्ध में ही बुलाई जाती थी। मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को 12000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।

(ग) मन्त्रिण – मन्त्रिपरिषद् के अतिरिक्त राज्य के दैनिक प्रशासनिक कार्यों के लिए तीन या चार मन्त्रियों की एक उपसमिति होती थी। इसे ’मन्त्रिण’ कहा जाता था। मन्त्रियों को 48000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।

(घ) प्रशासनिक विभाग – शासन की सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय शासन अनेक विभागों में बंटा हुआ था जिन्हें ’तीर्थ’ कहा जाता था। प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष ’अमात्य’ कहलाता था। इनकी संख्या 18 थी। ये अमात्य थे – (1) प्रधानमंत्री एवं पुरोहित (2) समाहर्ता (3) सन्निधाता (4) सेनापति (5) युवराज, (6) प्रदेष्टा, (7) व्यावहारिक, (8) नायक, (9) कार्मान्तिक, (10) मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष, (11) दण्डपाल, (12) अन्तपाल, (13) दुर्गपाल, (14) पौर, (15) प्रशास्ता (16) दौवारिक, (17) आन्तर्वशिक, (18) आटविक।

कौटिल्य ने ’अध्यक्षों’ का भी उल्लेख किया है, जो राज्य की दूसरी श्रेणी के पदाधिकारी थे। स्ट्रैबो ने इन्हें ’मजिस्ट्रेट’ के नाम से पुकारा है। कौटिल्य ने 26 अध्यक्षों का उल्लेख किया है।

2. प्रान्तीय शासन

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य चार प्रान्तों में विभक्त था – (1) उत्तरापथ, (2) अवन्तिपथ, (3) दक्षिणापथ, (4) मध्य देश। प्रायः राजवंश के राजकुमार ही राज्यपाल या प्रान्तीय शासक के रूप में नियुक्त किए जाते थे। प्रान्तीय शासक को 12000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।
प्रत्येक प्रान्त अनेक ’जनपदों’ में विभक्त था। ’जनपद’ का प्रमुख अधिकारी ’समाहर्ता’ कहलाता था। जनपद प्रशासन की सुविधा की दृष्टि से अनेक समूहों में विभक्त था।

3. स्थानीय शासन

(क) ग्राम शासन – ग्राम के शासन का प्रमुख ’ग्रामिक’ होता था। वह ग्राम सभा की सहायता से गाँव के शासन सम्बन्धी कार्य करता था। ग्रामिक के ऊपर ’गोप’ नामक अधिकारी होता था।

(ख) नगर शासन – नगर का प्रधान प्रबन्धक ’नगराध्यक्ष’ कहलाता था। मैगस्थनीज के विवरण के अनुसार पाटलिपुत्र तथा अन्य नगरों के प्रबन्ध के लिए पाँच-पाँच सदस्यों की 6 समितियाँ होती थीं- (1) शिल्पकला समिति (2) विदेशी यात्री समिति, (3) जनगणना समिति, (4) वाणिज्य समिति, (5) उद्योग समिति तथा (6) कर समिति। ये सभी समितियाँ सम्मिलित रूप से नगर की व्यवस्था के लिए उत्तरदायी होती थीं।

4. सेना का प्रबन्ध –

चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल सेना का गठन किया था जिसमें 6 लाख पैदल, 30 हजार अश्वारोही, 36 हजार गजारोही तथा 24 हजार रथी थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक नौ-सेना का भी गठन किया था। सैनिक विभाग का प्रबन्ध करने के लिए 30 सदस्यों की 6 समितियाँ होती थीं। ये समितियाँ नौ-सेना, रसद विभाग, पैदल सेना, अश्वारोही सेना, रथ सेना तथा हाथी सेना की देख-रेख करती थीं। सैनिकों को राजकोष से नियमित वेतन मिलता था। तलवार, भाले, धनुष-बाण, कवच, टोप आदि सैनिकों के हथियार थे।

5. गुप्तचर व्यवस्था –

सम्पूर्ण साम्राज्य में गुप्तचरों का जाल बिछा हुआ था। गुप्तचर दो प्रकार के होते थे – (1) संस्था तथा (2) संचारा। संस्था वर्ग के गुप्तचर एक ही स्थान पर रहकर अपना कार्य करते थे तथा संचारा वर्ग के गुप्तचर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। गुप्तचर साधु, विद्यार्थी, तपस्वी, दुकानदार, गृहस्थ आदि का वेश धारण कर अपना काम करते थे। स्त्री गुप्तचरों में भिक्षुणी, वेश्याएँ, दासियाँ आदि के बारे में सूचनाएँ एकत्रित करते थे तथा उन्हें सम्राट तक पहुँचाते थे। गुप्तचर लोग शत्रु-राज्यों में जाकर भी गुप्त बातों का पता लगाने का काम करते थे।

6. न्याय व्यवस्था –

सम्राट् सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। ग्राम सभा सबसे छोटी अदालत होती थी। इसके ऊपर संग्रहण, द्रोणमुख तथा जनपद में बङे न्यायालय होते थे। नगरों तथा जनपदों के लिए अलग-अलग न्यायालय थे। मौर्यकालीन न्यायालय दो प्रकार के थे – (1) धर्मस्थीय तथा (2) कण्टकशोधन। धर्मस्थीय न्यायालयों में दीवानी मुकदमों की सुनवाई होती थी तथा कण्टकशोधन न्यायालयों में फौजदारी मुकदमों की सुनवाई की जाती थी। दण्ड-विधान कठोर था। शारीरिक दण्ड देने, अंग-भंग करने, मृत्यु-दण्ड देने, जुर्माना करने आदि की सजाएँ प्रचलित थीं।

7. राजकीय आय के साधन –

राज्य की आय का प्रमुख साधन भूमि-कर थी। किसानों से भूमि की उपज का 1/6 अथवा 1/4 भाग तक भूमि कर के रूप में लिया जाता था। इसके अतिरिक्त राज्य की आय के अन्य साधन निम्नलिखित थे –

(क) सेतु – फल-फूल, मूल और तरकारियों पर लिया जाने वाला कर सेतु कहा जाता था।

(ख) वन-कर – वनों की उपज से लिया जाने वाला कर वन-कर कहा जाता था।

(ग) आयात-कर और निर्यात-कर – देश में आयात तथा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर कर वसूल किया जाता था। आयात-कर की दर प्रायः 20 प्रतिशत थी।

(घ) बिक्री कर – बिक्री कर भी राज्य की आय का एक प्रमुख स्रोत था।

(ङ) दुर्ग – नगरों से होने वाली आय को ’दुर्ग’ कहते थे।

(च) व्यवसाय-कर – शराब बनाने वालों, नमक बनाने वालों, शिल्पकारों, घी-तेल के व्यवसायियों आदि से भी कर वसूल किया जाता था।

(छ) अर्थ-दण्ड – अर्थ-दण्ड भी राज्य की आय का स्रोत था।

8. जनहित कार्य –

चन्द्रगुप्त मौर्य अपनी प्रजा की भलाई करना अपना प्रमुख कर्तव्य मानता था। उसने लोकहित सम्बन्धी कार्य का एक पृथक् विभाग स्थापित कर रखा था। इस विभाग के माध्यम से चन्द्रगुप्त मौर्य ने यात्रियों की सुविधा के लिए सङकों तथा सरायों का निर्माण करवाया। सिंचाई के लिए कुओं, तालाबों, झीलों, नदियों आदि का निर्माण करवाया गया। औषधालयों तथा शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गई। सम्राट् के भिन्न-भिन्न भागों में विशाल अन्न-गोदाम भी स्थापित किये जहाँ से अकाल पीङित लोगों को अन्न बांटा जाता था। लोक-कल्याण विभाग वृद्धों, अनाथों, असहायों, दीन-दुःखियों आदि की भी देखभाल करता था।

चन्द्रगुप्त मौर्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

1. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक कौन थे ?

उत्तर – चन्द्रगुप्त मौर्य


2. चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म कब हुआ था ?

उत्तर – 340 ईसा पूर्व में


3. चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म कहाँ हुआ था ?

उत्तर – पाटलिपुत्र (वर्तमान बिहार, भारत)


4. ब्राह्मण साहित्य के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य को किस वंश का माना गया है ?

उत्तर – शूद्र


5. बौद्ध साहित्य के अनुसार चन्द्रगुप्त मौय को किस वंश का माना गया है ?

उत्तर – क्षत्रिय


6. चंद्रगुप्त मौर्य की पिता कौन थे ?

उत्तर – सर्वार्थसिद्धि मौर्य


7. चन्द्रगुप्त मौर्य की माता कौन थी ?

उत्तर – मुरा मौर्य


8. चंद्रगुप्त मौर्य की कितनी पत्नियां थी ?

उत्तर – 2 पत्नियां – दुर्धरा और हेलेना।


9. चन्द्रगुप्त मौर्य की सबसे प्रिय पत्नी थी ?

उत्तर – दुर्धंरा


10. चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु कौन थे ?

उत्तर – आचार्य चाणक्य (कौटिल्य)


11. चंद्रगुप्त के कितने पुत्र थे ?

उत्तर – 2 पुत्र – केशनाक और बिंदुसार


12. चन्द्रगुप्त मौर्य को किससे प्रेरणा मिली थी ?

उत्तर – चाणक्य से


13. चन्द्रगुप्त मौर्य ने कौन सा धर्म अपनाया था ?

उत्तर – जैन धर्म


14. चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल क्या था ?

उत्तर – 322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व


15. चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सेल्यूकस कब युद्ध हुआ था ?

उत्तर – 305 ई. पूर्व में सिन्धु नदी के तट पर


16. बिंदुसार कौन था ?

उत्तर – चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र


17. चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी कौन था ?

उत्तर – बिन्दुसार


18. चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म की शिक्षा किससे ली थी ?

उत्तर – जैन धर्म के विद्वान् भद्रबाहु से


19. चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब हुई ?

उत्तर – 297 ईसा पूर्व


20. चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कहाँ हुई ?

उत्तर – श्रवणबेलगोला (वर्तमान कर्नाटक) में चन्द्रगिरी पहाङियों पर


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