आवड़ माता | स्वांगिया माता | आवड़ माता

इस आर्टिकल में हम आवड़ माता(Awar Mata) के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे , इनसे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों को हम जानेंगे।

आवड़ माता – Awar Mata

आवड़ माता ,जैसलमेर (चारणी देवी) 

यह जोगमाया, आईनाथ के रूप में पूजनीय मानी जाती है। लोक मान्यता के अनुसार “मामड़जी” चारण के घर हिंगलाज देवी की अंशावतार सात ‘कन्याओं’ (देवियों) ने जन्म लिया जिसमें से मुख्यतः आवड़, बरबड़ी, नाम से जानी गई। इन सातों देवियों का मन्दिर तेमडेराय जैसलमेर से 25 किमी दूर भू-गोपा के पास पहाड़ी वाली गुफा में स्थित है। ‘आवड़’ माता अपनी बहिनों के साथ ‘लूणकरण’ भाटी के समय मारवाड़ में प्रवेश लिया।

तीन आचमन से समुद्र सुखाकर ‘तामड़ा’ पर्वत पर गई वहाँ नर भक्षी राक्षस को पहाड़ से नीचे गिराकर मार दिया। तभी से वह पहाड़ “तेमड़ी” कहलाने लगा। चारण देवीयाँ नौ लाख तार की ऊनी साड़ी पहनती थी। चारण देवियों का स्तुति पाठ ‘चरजा’ कहलाता है। चरजा दो प्रकार से किया जाता है

(i) सिगाऊ :शान्ति के समय देवी प्रशंसा में पढ़ी जाती थी।

(ii) घाड़ाऊ: विपत्ति के समय भक्त द्वारा, देवी सहायक होती है।

सात देवियों के सम्मिलित प्रतिमा स्वरूप को ‘ठाला’ (फूल) कहा जाता है। देवी भक्त बुरी आत्माओं, भूत-प्रेत आदि से बचाव के लिए गले में ‘ठाला’ पहनते हैं।

स्वांगिया माता

  • स्वांगिया माता/आवड़ माता – जैसलमेर
  • जैसलमेर के भाटी वंश की कुल देवी हैं।
  • इन्हें ‘उत्तर की ढ़ाल’ भी कहते हैं।
  • इनका मंदिर जैसलमेर में गजरूप सागर के पास बना है।
  • जैसलमेर के राजचिह्न में सबसे ऊपर पालम चिड़िया /शकुन चिड़िया को दर्शाया गया है, जो जैसलमेर के राजचिह्न में स्वांग (भाला) मुड़ा हुआ देवी के हाथ में दिखाया गया है।

श्रुति कथा :

एक बार यादव वंश जरासंध से युद्ध हार गया, भगवान कृष्ण ने युद्ध में हार का कारण पूछा तो यादव वीरों ने बताया कि जरासंध के पास देवी से प्राप्त एक भाला है इसलिए जरासंध को कोई पराजित नहीं कर सकता। तब यादवों ने देवी की तपस्या कर प्रसन्न कर वरदान में जरासंध का भाला मांगा, देवी ने जरासंध से भाला मांगा तो जरासंध ने देने से इंकार कर दिया, तब देवी को जरासंध से युद्ध करना पड़ा, उसी युद्ध भाला छीनने के दौरान भाला मुड़ गया। भाला को स्वांग कहते हैं। इसी कारण देवी को स्वांग ग्रहणी कहते है जो कालांतर में स्वांगिया हो गया।

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