Plasi ka Yuddh – प्लासी का युद्ध | 23 जून 1757, मीरजाफर, मीरकासिम

आज के आर्टिकल में हम प्लासी के युद्ध (Plasi ka Yuddh) के बारे में विस्तार से पढेंगे। प्लासी के युद्ध के कारण, प्लासी के युद्ध के परिणाम, प्लासी का युद्ध क्यों हुआ, प्लासी का युद्ध कब हुआ, प्लासी का युद्ध कब और किसके बीच हुआ…

प्लासी का युद्ध (1757) – Plasi ka Yuddh

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plasi ka yuddh kab hua

जैसा कि आप जानतें होंगे कि प्लासी के युद्ध की गणना भारत के निर्णायक युद्धों में की जाती है। वर्तमान में प्लासी नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है। सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक अधिकारों का दुरुपयोग किया जा रहा था जिससे सिराजुद्दौला चिंतित था। अंग्रेजों ने स्थानीय व्यापारियों को बाहर करने के लिए इन व्यापारिक अधिकारों का दुरुपयोग किया तथा उन्होंने बंगाल के नवाब से करों की चोरी की।

इसी कारण नवाब का आर्थिक नुकसान हो रहा था। कर्नाटक युद्धों में अंग्रेजों की विजय हुई जिस कारण अंग्रेजों की शक्ति बढ़ती ही जा रही थी। इससे बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला बङा चिंतित था। सिराजुद्दौला ने अंग्रेजो को किलेबंदी न करने का आदेश दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने नवाब के आदेश की कोई परवाह नहीं की और किलेबन्दी करते रहे।

प्लासी के युद्ध के कारण – Plasi kE Yuddh ke Karan

(1) आंतरिक संघर्ष

जैसे ही सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा तो उसे शौकतगंज के संघर्ष का सामना करना पङा क्योंकि शौकतगंज बंगाल का नवाब बनना चाहता था। उसको छसीटी बेगम तथा उसके दीवान राजवल्लाव का समर्थन प्राप्त था। सिराजुद्दौला ने इस आन्तरिक संघर्ष को सुलझाने का प्रयास किया था क्योंकि इससे बंगाल की राजनीति में अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने शौकतगंज की हत्या कर दी। उसके बाद नबाव ने अंग्रेजों से मुकाबला करने का निश्चय किया।

(2) अंग्रेजों द्वारा नवाब के विरुद्ध षडयंत्र किया गया

बंगाल एक उपजाऊ और धनी प्रांत था इसी कारण अंग्रेज बंगाल पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे। कम्पनी आर्थिक लाभ कमाने के लिए भी बंगाल पर अधिकार करना चाहती थी। अंग्रेजों ने हिन्दू व्यापारियों को भी अपनी ओर मिला लिया था और उनको नवाब के विरुद्ध भङकाना शुरू कर दिया था। इसी कारण बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला अंग्रेजों से घृणा करता था।

(3) व्यापारिक सुविधाओं का उपयोग

मुगल सम्राट ने अंग्रेजों को निःशुल्क सामुद्रिक व्यापार करने की छूट दी थी। परन्तु अंग्रेजों ने इसका दुरुपयोग करना शुरु कर दिया। अंग्रेज अपना व्यक्तिगत व्यापार भी निःशुल्क करते थे और देशी व्यापारियों को भी बिना चुंगी दिए व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इससे नवाब को आर्थिक क्षति पहुँचती थी। नवाब को यह बिल्कुल पसन्द नहीं था तब नवाब ने व्यापारिक सुविधाओं के दुरुपयोग को बन्द करने का निश्चय किया तो अंग्रेज संघर्ष पर उतर आये।

(4) अंग्रेजों द्वारा किले बन्दी

यूरोप में इस समय सप्तवर्षीय युद्ध छिङने की आशंका थी। इसमें इंग्लैण्ंड और फ्रांस एक-दूसरे के विरुद्ध लङने वाले थे। दूसरे देश में जो अंग्रेज और फ्रांसीसी थे। उन्हें भी युद्ध की आशंका थी। इसी कारण उन्होंने अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए किलेबन्दी करना शुरु कर दिया। बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला इसे बर्दास्त नहीं कर सकता था।

(5) अंग्रेज द्वारा सिराजुद्दौला को नवाब की मान्यता नहीं देना

बंगाल की पौराणिक परम्परा के अनुसार कोई भी नया नवाब गद्दी पर बैठता था तो उस दिन दरबार लगता था। उसके अधीन रहने वाले राजाओं, अमीरों या विदेशी जातियों के प्रतिनिधियों को दरबार में उपस्थित होकर उपहार भेंट करना होता था। लेकिन जब सिराजुद्दौला का राज्याभिषेक हुआ था तब अंग्रेजों का कोई प्रतिनिधि दरबार में उपस्थित नहीं हुआ था। क्योंकि वे सिराजुद्दौला को नवाब नहीं मानते थे इसी कारण दोनों के बीच संघर्ष की संभावना बढ़ती गई।

(6) नवाब बदलने की कोशिश

अंग्रेज सिराजुद्दौला को हटा कर एक ऐसे व्यक्ति को नवाब चाहते थे जो उनके इशारे पर चले और इसके लिए अंग्रेजों ने अनेक प्रयास भी किये।

(7) कलकत्ता पर आक्रमण

बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को किलेबंदी न करने का आदेश दिया लेकिन अंग्रेजों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया वो किले का निर्माण करते रहे। इससे नवाब को गुस्सा आ गया और उसने 4 जून 1756 को कासिमबाजार की कोठी पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेज सैनिक इस आक्रमण से घबरा गए और अंग्रेजों की पराजय हुई तथा कासिम बाजार पर नवाब का अधिकार हो गया।

उसके बाद नवाब ने कलकत्ता के फोर्ट विलियम पर आक्रमण किया यहां भी अंग्रेज हार गये और इस पर नवाब का अधिकार हो गया। इस युद्ध में बहुत से अंग्रेज सैनिक गिरफ्तार भी हुए।

(8) काली कोठरी की दुर्घटना

इस लङाई में नवाब ने 146 अंग्रेज सैनिकों को कैद कर लिया और उनका एक छोटी सी अंधेरी कोठरी में बन्द कर दिया। इस कोठरी की लम्बाई 18 फिट और चौङाई 14-10 फिट थी। यह कोठरी अंग्रेजों के द्वारा बनाई गई थी और इसमें भारतीय अपराधियों को बन्द किया जाता था।

उस समय गर्मी का दिन था और 123 सैनिकों की मृत्यु दम घुटने के कारण हो गई और 23 सैनिक बचे जिसमें हाँवेल एक अंग्रेज सैनिक था। उसी ने इस घटना की जानकारी मद्रास के अंग्रेजों को दी। इसी घटना को ’काली कोठरी की दुर्घटना’ के नाम से जाना जाता है। इसी कारण अंग्रेजों को गुस्सा आ गया और वे नवाब से युद्ध की तैयारी करने लगे।

(9) अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता पर पुनः अधिकार

अपनी पराजय का बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने शीघ्र ही कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया। नवाब ने इस समय मानिकचन्द को कलकत्ता का राजा नियुक्त किया था। लेकिन वह अंग्रेजों का मित्र और शुभचिन्तक था। इसमें अंग्रेजों की विजय हुई थी और कलकत्ता नवाब के अधिकार से मुक्त हो गया। 9 फरवरी 1757 को दोनों के बीच अलीनगर की संधि हुई और अंग्रेजों को फिर से सभी तरह के व्यावहारिक अधिकार उपलब्ध हो गये।

(10) फ्रांसीसियों पर अंग्रेजों का आक्रमण

अंग्रेजों ने फ्रांसिसीयों की बस्ती चन्द नगर पर आक्रमण कर दिया और उसे अपने अधीन कर लिया। फ्रांसीसि नवाब के मित्र थे इसलिए नवाब इस घटना से काफी क्षुब्ध थे।

(11) मीरजाफर के साथ गुप्त संधि

इसी समय अंग्रेजों ने नवाब को पदच्युत करने के लिए एक षडयंत्र रचा। रायदुर्लभ प्रधान सेनापति मीरजाफर और धनी व्यापारिक जगत सेवक आदि लोग इस षडयंत्र में शामिल थे। अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का प्रलोभन दिया और इसके साथ गुप्त संधि की इस संधि के पश्चात् नवाब यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने अली नगर की संधि का उल्लंघन किया है और उसी का बहाना बनाकर अंग्रेज ने नवाब पर 22 जून, 1757 को आक्रमण कर दिया।

प्लासी युद्ध के मैदान में घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ। मीरजाफर तो पहले ही अंगे्रजों से संधि कर चुका था फलतः नवाब की जबरदस्त पराजय हुई। अंग्रेजों की विजय हुई। नवाब की हत्या कर दी गई और मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया।

अलीनगर की संधि

⇒ अलीनगर की संधि प्लासी के युद्ध के पहले बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच फरवरी, 1757 को हुई थी। इसमें अंगेजों का प्रतिनिधित्व क्लाइव और वाटसन ने किया। जब अंग्रेजों ने कोलकाता पर पुनः अधिकार कर लिया था तब यह संधि की गई थी।

अलीनगर की संधि की शर्तें निम्नलिखित है

  • ईस्ट इंडिया कम्पनी को मुगल बादशाह के फरमान के अनुसार व्यापार की सुविधाएँ फिर से दे दी गई।
  • कोलकाता पर अधिकार करने में अंग्रेजों की जो क्षति हुई उसका हर्जाना नवाब को देना पङा।
  • दोनों पक्षों ने भविष्य में शांति बनाए रखने का वादा किया।
  • अंग्रेजों को कोलकाता में सिक्के ढालने का वादा किया।
  • अंग्रेजों को कोलकाता में सिक्के ढालने का अधिकार प्राप्त हो गया।

प्लासी के युद्ध की घटनाएँ – Plasi ka Yuddh

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के प्रधान सेनापति राॅबर्ट क्लाइव ने नवाब के विरुद्ध लङाई में अंग्रेजों का समर्थन करने के लिए नवाब की सेना के कमांडर-इन-चीफ मीर जाफर को रिश्वत दी। प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को कलकत्ता के पास भागीरथी नदी के तट पर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना और राॅबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बीच लङा गया। फ्रांसीसी सैनिकों द्वारा सहयोग प्राप्त बंगाल के नवाब की सेना के पास 5000 सैनिक थे तथा ब्रिटिश सेना के पास लगभग 3000 सैनिकों थे।

प्लासी के युद्ध में अंग्रेजी सेना ने (1100 यूरोपीय, 200 सिपाही तथा बंदूकची) क्लाइव के नेतृत्व में हिस्सा लिया। दूसरी ओर 4500 सैनिकों वाली नवाब की सेना का नेतृत्व तीन राजद्रोही मीरजाफर, यारलतीफ खां और राय दुर्लभ ने किया।

23 जून, 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील की दूरी पर स्थित प्लासी नामक गांव में दोनों सेनायें आमने-सामने हुई। नवाब की सेना के वफादार सिपाही मीरमदान और मोहनलाल मैदान में लङता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। सिराजुद्दौला की सेना के तीनों धोखेबाज सेनापति युद्ध क्षेत्र में एक भी गोला दागे बगैर वापस हो लिये।

सेना को छिन्न-भिन्न देख नवाब घबराकर अपने महल की ओर भागा। तब मीरजाफर के पुत्र मीरन ने सिराजुद्दौला की हत्या कर दी। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को अपने प्रमुख अधिकारियों – मीर जाफर, राय दुर्लभ एवं अन्य लोगों के विश्वासघात का सामना करना पङा। इसी वजह से प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब की हार हुई थी। 28 जून, 1757 को अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।

मीरजाफर (1757-1760)

30 जून, 1757 ई. को क्लाइव ने मुर्शिदाबाद में मीरजाफर को बंगाल के नवाब के पद पर आसीन कराया। इसी समय से बंगाल में कंपनी ने नृप निर्माता की भूमिका की शुरूआत की। बंगाल की नवाबी प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मीर जाफर ने कंपनी को ’24 परगना’ की जमींदारी पुरस्कार के रूप में दिया। मीरजाफर ने अंग्रेजों को उनकी सेवा के बदले ढेर सारा पुरस्कार दिया। क्लाइव को उसने 2 लाख 34 हजार पौण्ड की व्यक्तिगत भेंट, 50 लाख रुपया बस्तियों को जाफर ने अंग्रेजों को सौंप दिया।

मीर जाफर एक दुर्बल, दुविधाग्रस्त और राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षमताओं से हीन व्यक्ति था जिसके कारण शीघ्र ही उसके शक्तिशाली हिन्दू सहयोगी राजा रामनारायण (बिहार) और दीवान दुर्लभराय उसके विरोधी बन गये। मीरजाफर के बारे में कहा जाता है कि उसने अंग्रेजों को इतना अधिक धन दिया कि उसे अपने महल के सोने-चाँदी के बर्तन भी बेचने पङे।

कर्नल मेलसेन के अनुसार ’’कंपनी के अधिकारियों का यह उद्देश्य था कि जितना हो सके उतना हङप लो, मीरजाफर को एक सोने की बोरी के रूप में इस्तेमाल करो और जब भी इच्छा हो उसमें हाथ डालो।’’

कालांतर में मीरजाफर के अंग्रेजों से सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे क्योंकि नवाब के प्रशासनिक कार्यों में अंग्रेजों का हस्तक्षेप अधिक बढ़ गया, साथ ही मीरजाफर ने चिनसुरा स्थित डचों के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगा। अंग्रेजी सरकार के खर्च में दिन प्रतिदिन हो रही बेतहासा वृद्धि और उसे वहन न कर पाने के कारण मीरजाफर ने अक्टूबर, 1760 ई. में अपने दामााद मीरकासिम के पपक्ष में सिंहासन त्याग दिया।
मुर्शिदाबाद में मीरजाफर को ’कर्नल क्लाइव का गीदङ’ कहा जाता था।

मीरजाफर के शासन काल में ही अंग्रेजों ने ’बांटो और राज करो’ की नीति को जन्म देते हुए एक गुट को दूसरे गुट से लङाने की शुरूआत की। क्लाइव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु मीरजाफर ने तत्कालीन मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय से क्लाइव को उमरा की उपाधि और 24 परगना की जमींदारी प्रदान करवायी। 24 परगना की जागीर को ’क्लाइव की जागीर’ के नाम से जाना जाता था।

क्लाइव

क्लाइव जो मद्रास की काउंसिल की सेवा में था, तकनीकी रूप से वह मद्रास का गवर्नर बन गया था। 1758 में उसे बंगाल के गवर्नर का पद प्राप्त हो गया था। फरवरी, 1760 में क्लाइव ने कुछ महीने के लिए गवर्नर का दायित्व हाॅलवेल को सौंप कर इंग्लैण्ड वापस चला गया। हाॅलवेल ने मीरजाफर को पदमुक्त करने की योजना बनायी।

हाॅलवेल की योजना को प्रयोग में लाने के लिए बंगाल के अगले गवर्नर बेन्सी टार्ट ने प्रयास किया।

27 सितम्बर, 1760 को बेन्सी टार्ट और मीरकासिम के बीच एक गुप्त संधि हुई, जिसके अन्तर्गत व्यवस्था की गई थी कि बर्दवान, मिदनापुर और चटगाँव की जमींदारी कंपनी को सौंप कर मीरकासिम नायब सूबेदार के रूप में बंगाल की वास्तविक सत्ता का प्रयोग करे तथा मीरजाफर अपने पद पर बना रहे।

मीरजाफर को संधि के द्वारा दी गई व्यवस्था स्वीकार्य नहीं थी, अतः अंग्रेजी सेना ने मुर्शिदाबाद स्थित जाफर के महल पर अधिकार कर लिया परिणामस्वरूप नवाब ने पद त्याग दिया। इस घटना को ’बंगाल की दूसरी क्रांति’ (1760) के नाम से जाना जाता है।

मीरकासिम (1760-1765)

मीरकासिम अलीवर्दी के उत्तराधिकारियों में सर्वाधिक योग्य था। राज्यारोहण के तत्काल बाद उसे मुगल सम्राट शाहआलम द्वारा बिहार पर (1760-61) आक्रमण का सामना करना पङा, कंपनी की सेना ने सम्राट को पराजित कर उसकी स्थिति को दयनीय बना दिया। नवाबी पाने के बाद कासिम ने बेंसिटार्ट को 5 लाख, हाॅलवेल को 2 लाख, 70 हजार और कर्नल केलाॅड को 4 लाख रुपये उपहार स्वरूप दिया।
कंपनी तथा उसके अधिकारियों को भरपूर मात्रा में धन देकर मीरकासिम अंग्रेजों के हस्तक्षेप से बचने के लिए शीघ्र ही अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर हस्तांरित कर लिया।

मीरकासिम ने राजस्व प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने एवं आमदनी बढ़ाने हेतु कई उपाय अपनाये जिसमें प्रमुख हैं- अधिक धन वालों का धन जब्त करना, सरकारी खर्च में कटौती, कर्मचारियों की छंटनी, नये जमींदारों से बकाया धन की वसूली आदि।
मीरकासिम ने बिहार के नायब सूबेदार रामनारायण को उसके पद से बर्खास्त कर उसकी हत्या करवा दी क्योंकि वह बिहार के आय और व्यय का ब्यौरा देने के लिए तैयार नहीं था।

सैन्य व्यवस्था में सुधार करने के उद्देश्य से मीरकासिम ने अपने सैनिकों की संख्या में वृद्धि की, साथ ही उन्हें यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित किया। इसने अपनी सेना को गुर्गिन खां नामक आर्मेनियाई के नियंत्रण में रखा। मुंगेर में मीरकासिम ने तोपों तथा तोङेदार बंदूकों के निर्माण हेतु कारखाने की स्थापना की।

1717 में मुगल बादशाह द्वारा प्रदत्त व्यापारिक फरमान का इस समय बंगाल में दुरुपयोग देखकर नवाब मीरकासिम ने आंतरिक व्यापार पर सभी प्रकार के शुल्कों की वसूली बंद करवा दी।

1762 में मीरकासिम द्वारा समाप्त की गई व्यापारिक चुंगी और कर का लाभ अब भारतीयों को भी मिलने लगा, पहले यह लाभ 1717 के फरमान द्वारा केवल कंपनी को मिलता था, कंपनी ने नवाब के इस निर्णय को अपने विशेषाधिकार की अवहेलना के रूप में लिया। परिणामस्वरूप संघर्ष की शुरुआत हुई।

1763 जुलाई में मीरकासिम को कंपनी ने बर्खास्त कर मीरजाफर को पुनः बंगाल का नवाब बनाया।
19 जुलाई, 1763 को मीरकासिम और एडमस के नेतृत्व में करवा नामक स्थान पर ’करवा का युद्ध’ हुआ जिसमें नवाब (अपदस्थ) पराजित हुआ। करवा के युद्ध के बाद और बक्सर के युद्ध से पूर्व मीरकासिम को अंग्रेजों ने तीन बार पराजित किया, परिणामस्वरूप कासिम ने मुंगेर छोङकर पटना में शरण ली।

1763 में हुए पटना हत्याकाण्ड, जिसमें कई अंग्रेज मारे गये, से मीरकासिम प्रत्यक्ष रूप से जुङा था।
अंग्रेजों द्वारा बार-बार पराजित होने के कारण मीरकासिम ने एक सैनिक गठबंधन बनाने की दिशा में प्रयास किया। कालांतर में मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मीरकासिम ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध एक सैन्य संगठन का निर्माण किया।

प्लासी के युद्ध के परिणाम – Plasi ke Yuddh ke Parinaam

(1) मीरजाफर को क्लाइव ने बंगाल का नवाब घोषित कर दिया। उसने कंपनी और क्लाइव को बेशुमार धन दिया और संधि के अनुसार अंग्रेजों को भी कई सुविधाएँ मिली।

(2) मीरजाफर अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था, जो बंगाल की गद्दी पर बैठा था।

(3) प्लासी के युद्ध ने बंगाल की राजनीति पर अंग्रेजों का नियंत्रण कायम कर दिया।

(4) अंग्रेज पहले तो व्यापारी ही थे परन्तु अब वे राजशक्ति के स्रोत बन गये।

(5) इस युद्ध का भारतीयों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पङा। एक व्यापारी कंपनी ने भारत आकर यहाँ से सबसे अमीर प्रांत के सूबेदार को अपमानित करके गद्दी से हटा दिया।

(6) अंग्रेजों ने आर्थिक दृष्टि से भी बंगाल का शोषण करना शुरू कर दिया।

(7) प्लासी के युद्ध से प्रेरणा लेकर क्लाइव ने आगे बंगाल में अंग्रेजी सत्ता स्थापित कर ली।

(8) बंगाल से प्राप्त धन के आधार पर अंग्रेजों ने दक्षिण में फ्रांसीसियों पर विजय प्राप्त कर ली।

(9) प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में ल्यूक स्क्राफ्ट्रन को नवाब के दरबार में अंग्रेज रेजिडेंट नियुक्त किया गया। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में ल्यूक स्क्राफ्ट्रन को नवाब के दरबार में अंग्रेज रेजीडेंट नियुक्त किया गया।

(10) प्लासी के युद्ध के बाद आर्थिक रूप से भारत के इस सबसे समृद्ध प्रांत को जी भर कर लूटा गया। 1757 से 60 के बीच मीरजाफर ने अंग्रेजों को तीन करोङ रू. को घूस दिया, क्लाइव को युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 37,70, 833 पोण्ड प्राप्त हुआ।

(11) प्लासी के युद्ध के परिणामों की बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की विजय के साथ पुष्टि हुई। युद्ध ने अंग्रेजों को तात्कालिक सैनिक एवं वाणिज्यिक लाभ प्रदान किया, कंपनी का बंगाल, बिहार और उङीसा पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित हुआ।

(12) प्लासी के युद्ध के परिणाम में इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने कहा कि ’’23 जून, 1757 को भारत में मध्यकालीन युग का अंत हो गया और आधुनिक युग का शुभारम्भ हुआ। एक पीढ़ी से भी कम समय या प्लासी के युद्ध के 20 वर्ष बाद ही देश धर्मतंत्री शासन के अभिशाप से मुक्त हो गया।’’

डाॅ. दीनानाथ वर्मा के शब्दों में ’’प्लासी का युद्ध एक ऐसे विशाल और गहरे षड्यंत्र का प्रदर्शन था, जिसमें एक ओर कुटिल नीति निपुण बाघ था और दूसरी ओर भोला शिकार, युद्ध में अदूरदर्शिता की हार हुई और कुटिलता की जीत। यदि इसका नाम युद्ध है तो प्लासी का प्रदर्शन भी युद्ध था। लेकिन सामान्य भाषा में जिसे युद्ध कहते हैं वह प्लासी में कभी हुआ ही नहीं।’’?

इतिहासकार के.एस. पन्निकर के अनुसार, ’’प्लासी सौदा था,, जिसमें बंगाल के धनी लोगों और मीरजाफर नेे नवाब को अंग्रेजों को बेच दिया।’’

अल्फ्रेड लायल के अनुसार, ’’प्लासी में क्लाइव की सफलता ने बंगाल में युद्ध तथा राजनीति का एक अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र अंग्रेजों के लिए खोल दिया।’’

प्लासी के युद्ध का महत्त्व – Plasi ke Yuddh ka Mahatva

राजनैतिक महत्त्व

(1) अंग्रेजी कम्पनी के स्वरूप में परिवर्तन – अंग्रेज कंपनी पहले एक व्यापारिक कंपनी थी लेकिन प्लासी की विजय के पश्चात् बंगाल पर उसका प्रभुत्व स्थापित हो गया था, इस कारण कंपनी एक राजनैतिक शक्ति बन गई थी।

(2) बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना – चूँकि बंगाल का नबाव अंग्रेजों की इच्छा से बनाया गया था, अब वह अंग्रेजों का कठपूतली नबाव था, अब वह ना मात्र का नवाब रह गया था। इस प्रकार यह संभावना हो गयी थी कि भारत में बंगाल में प्रथम ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना बहुत जल्दी हो जायेगी।

(3) बंगाल के राजनैतिक परिदृश्य में बदलाव – पहले जहाँ बंगाल के नबाव स्वतंत्र शासक होती थे लेकिन युद्ध के पश्चात् उनकी स्थिति आश्रित शासक की भाँति हो गयी।

अब नबाव अंग्रेजों की इच्छा के अनुसार बदले जाने लगे, बंगाल में पहले फ्रांसीसियों की स्थिति नवाब के पक्ष में होती थी, लेकिन अंग्रेजों के द्वारा फ्रांसिसियों को भी हटा दिया गया। इस कारण नबाव के समर्थकों की शक्ति काफी कम हो गये।

आर्थिक महत्त्व

  • कंपनी इस समय भारत में वित्तीय संकट का सामना कर रही थी लेकिन जब मीर जाफर को नबाव बनाने का आश्वासन दिया, तो बदले में अंग्रेजों को बङी मात्रा में पुरस्कार, घूस, रिसव, भेंट प्राप्त हुई। इस कारण कंपनी का आर्थिक संकट दूर हो गया। बंगाल में ऐसी लूट शुरू हुई, जिससे भारत के सबसे धनी प्रदेश को सबसे निर्धन प्रदेश बना दिया।
  • बंगाल के व्यापार पर अंग्रेजों से नवाब से विभिन्न रियायतें प्राप्त करके एकाधिकार स्थापित कर लिया। पान-सुपारी, तम्बाकू इन वस्तु के व्यापार पर शीघ्र ही अंग्रेजों का एकाधिकार हो गया।
  • यहाँ से प्राप्त धन के द्वारा दक्षिण भारत के कर्नाटक और हैदराबाद राज्यों को जीतने में सफलता मिली। क्योंकि दक्षिण भारत में कंपनी इस समय वित्तीय संकट का सामना कर रही थी।
  • कंपनी को इंग्लैण्ड से बुलियन धातुओं को लाने की मजबूरी खत्म हो गयी क्योंकि बंगाल से बङी मात्रा में सोना-चाँदी एवं पैसा प्राप्त हुआ था जिस कारण ये लोग बंगाल से वस्तु खरीदते थे। यहाँ से प्राप्त सोने-चाँदी से चीन और इंग्लैण्ड में निवेश किया, जिस कारण इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति को गति मिली तथा चीन के साथ कंपनी का व्यापार बढ़ा। चूँकि इस लूट में कम्पनी के कर्मचारियों को भी बङी मात्रा में धनी राशि प्राप्त हुई थी। जिसकी सहायता से उन्होंने निजी व्यापार शुरु किया।

सैनिक महत्त्व

  • प्लासी के युद्ध में दोनों सेनाओं के मध्य झङप हुई थी जिस के आधार पर अंग्रेजों की सैनिक श्रेष्ठता का निर्धारण नहीं हुआ था, क्योंकि यह विजय सैनिक श्रेष्ठता का निर्धारण नहीं हुआ था, क्योंकि यह विजय सैनिक शक्ति के बजाय विश्वासघात और सैनिक षड्यंत्र के माध्यम से विजय प्राप्त की। अतः अभी भी सैनिक दृष्टि से कौन श्रेष्ठ है इसका निर्धारण शेष रह गया था और इसका निर्धारण बक्सर के युद्ध में हुआ।
  • इस युद्ध के माध्यम से नवाब की सेनाओं का खोखलापन उजागर हो गया। मीर जाफर जब नवाब बना तो उसने सीलहट (असम) का चूना-पत्थर वाला इलाका आधा अंग्रेजों को सौंप दिया। जिस कारण भविष्य में अंग्रेजों का तोपखाना मजबूत हो गया।

नैतिक महत्त्व

  • प्लासी के युद्ध में नैतिक दृष्टि से देखा जाये तो दोंनो तरफों द्वारा अपने साध्य को प्राप्त करने के लिए अनुचित साधन अपनाया गया। जहाँ अंग्रेजों के द्वारा अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पुरस्कार, भूस, लूट को माध्यम बनाया। वहीं बगाल के लोगों ने अपने उद्देश्य प्राप्त करने के लिए अपने स्वामी से विश्वासघात किया।

FAQ – Plasi ka Yuddh

1. प्लासी के युद्ध 1757 के समय बंगाल का नवाब कौन था ?

उत्तर – प्लासी के युद्ध 1757 के समय बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला था।


2. प्लासी का युद्ध कब हुआ  – Plasi ka Yuddh kab Hua

उत्तर – प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को कलकत्ता के पास भागीरथी नदी के तट पर हुआ था।


3. प्लासी का युद्ध किन-किन के बीच में हुआ था ?

उत्तर – प्लासी का युद्ध बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना और राॅबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बीच लङा गया।


4. प्लासी के युद्ध का कारण क्या था ?

उत्तर – (1) बंगाल की गद्दी को लेकर सिराजुद्दौला और शौकंतगज के बीच आपसी संघर्ष था।
(2) बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के आदेश का उल्लंघन करते हुए अंग्रेजों द्वारा किलेबन्दी करना।


5. प्लासी के युद्ध के परिणाम क्या थे ?

उत्तर – (1) मीरजाफर को क्लाइव ने बंगाल का नवाब घोषित कर दिया। उसने कंपनी और क्लाइव को बेशुमार धन दिया और संधि के अनुसार अंग्रेजों को भी कई सुविधाएँ मिली।
(2) मीरजाफर अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था, जो बंगाल की गद्दी पर बैठा था।


6. प्लासी के युद्ध का क्या महत्त्व है ?

उत्तर – प्लासी के युद्ध का ऐतिहासिक महत्त्व है। प्लासी के युद्ध के परिणामस्वरूप अंगे्रज भारत में अपना शासन स्थापित करने में सफल हो गये। इस युद्ध ने अंग्रेजों की शक्ति और साधनों में व्यापक वृद्धि कर दी।


7. अलीनगर की संधि कब हुई ?

उत्तर – अलीनगर की संधि प्लासी के युद्ध के पहले बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच फरवरी, 1757 को हुई थी।

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