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मानसिक स्वास्थ्य – मनोविज्ञान

Author: K.K.SIR | On:21st Jun, 2022| Comments: 0

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Table of Contents

  • मानसिक स्वास्थ्य – Mental Health
  • मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ –
  • मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा:
  • मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ
  • 1. सहनशीलता-
  • 2. आत्मविश्वास-
  • 3. जीवन दर्शन-
  • 4. संवेगात्मक परिपक्वता-
  • 5. वातावरण का ज्ञान-
  • 6. सामंजस्य की योग्यता-
  • 7. निर्णय करने की योग्यता-
  • 8. वास्तविक संसार में निवास-
  • 9. शारीरिक स्वास्थय के प्रति ध्यान-
  • 10. आत्म-सम्मान की भावना-
  • 11. व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना-
  • 12. आत्म-मूल्यांकन की क्षमता-
  • ✔️ फ्रेंडसन के अनुसार
  • बालक के मानसिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले कारक
  • परिवार का प्रभाव-
  • विद्यालय का प्रभाव-
  • कक्षा का वातावरण-
  • मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
  • समाज का प्रभाव

आज की पोस्ट में हम मनोविज्ञान में मानसिक स्वास्थ्य(Mental Health) क्या होता है ,इस पर चर्चा करेंगे |

मानसिक स्वास्थ्य – Mental Health

मानसिक स्वास्थ्य

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ –

दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं और आदर्शों में संतुलन रखने की योग्यता। इसका अर्थ है-जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने और उसको स्वीकार करने की योगयता।’’

मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा:

कुप्पूस्वामी के अनुसार

’’मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ मानसिक रोगों की अनुपस्थिति नहीं है इसके विपरीत, यह व्यक्ति के दैनिक जीवन का सक्रिय और निश्चित गुण है। यह गुण उस व्यक्ति के व्यवहार में व्यक्त होता है, जिसका शरीर और मस्तिष्क एक ही दिशा में साथ-साथ कार्य करते है। उसके विचार, भावनाये और क्रियायें एक ही उद्देश्य की ओर सम्मिलित रूप से कार्य करती है।

मानसिक स्वास्थय, कार्य की ऐसी आदतों और व्यक्तियों तथा वस्तुओं के प्रति ऐसे दृष्टिकोणों को व्यक्त करता है, जिनसे व्यक्ति को अधिकतम संतोष और आनन्द प्राप्त होता है। पर व्यक्ति को यह संतोष और आनन्द उस समूह या समाज से, जिसका कि वह सदस्य होता है, तनिक भी विरोध किये बिना प्राप्त करना पङता है। इस प्रकार, मानसिक स्वास्थ्य, समायोजन की वह प्रक्रिया है, जिसमें समझौता और सामंजस्य, विकास और निरन्तरता का समावेश रहता है।

लेडले के अनुसार-’’मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है- वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से पर्याप्त सामंजस्य करने की योग्यता।’’

हैडफील्ड- ’’सामान्य रूप से मानसिक स्वास्थ्य सम्पूर्ण व्यक्तित्व का सामंजस्य पूर्णता के साथ कार्य करना है।

जे.डी. पेज के अनुसार- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान एक शिक्षा आंदोलन है जिसका सम्बन्ध स्नायुविक तथा मानसिक विकृतियों के निरोग और निराकरण तथा व्यक्तित्व विकास से है जिससे अधिकाधिक कार्यक्षमता और सुख की प्राप्ति हो।

डब्ल्यू. जे. कोवाइल के अनुसार- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान में वे सभी साधन आते हैं जिनकी सहायता से उपयुक्त रोकथाम और प्रारम्भिक उपचार के द्वारा मानसिक रोग की घटनाओं को कम किया जाता है तथा लोगों के स्वास्थ्य को बढ़ाया जाता है।

शेफर के अनुसार- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे सुखमय, समन्वित तथा प्रभावशाली अस्तित्व की प्राप्ति में सहायता करना है।

मानसिक आरोग्य (Mental Hygiene) विज्ञान शब्द का श्रीगणेश करने का श्रेय सी. डब्लयू. बीयर्स को जाता है। इनकी पुस्तक ’ए माइन्ड दट फाउण्ड इटसेल्फ’ है।

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ

कुप्पूस्वामी के अनुसार- मानसिक रूप से स्वस्थ या सुसमायोजित व्यक्ति में अग्रांकित विशेषतायें पायी जाती हैं-

1. सहनशीलता-

ऐसे व्यक्ति में सहनशीलता होती है। अतः उसे अपने जीवन की निरोशाओं को सहन करने में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।

2. आत्मविश्वास-

ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है। उसे यह विश्वास होता है कि वह अपनी योग्यता के कारण सफलता प्राप्त कर सकता है। उसे यह भी विश्वास होता है कि वह प्रत्येक कार्य को उचित विधि से कर सकता है। वह अधिकतर अपने ही प्रयास से अपनी समस्याओं का समाधान करता है।

3. जीवन दर्शन-

ऐसे व्यक्ति का एक निश्चित जीवन दर्शन होता है, जो उसके दैनिक कार्यों को अर्थ और उद्देश्य प्रदान करता है। उसके जीवन-दर्शन का सम्बन्ध इसी संसार से होता है। अतः उसमें इस संसार से दूर रहने की प्रवृत्ति के कारण वह अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए वास्तविक कार्य करता है। वह अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों की कभी की अवहेलना नहीं करता है।

4. संवेगात्मक परिपक्वता-

ऐसा व्यक्ति अपने व्यवहार में संवेगात्मक परिपक्वता का प्रमाण देता है। इसका अभिप्राय यह है कि उसमें भय, क्रोध, ईर्ष्या ऐसे संवेगों को नियन्त्रण में रखने और उनको वांछनीय ढंग से व्यक्त करने की क्षमता होती है। वह भय, क्रोध और चिन्ताओं से अस्त-व्यस्त नहीं होता है।

5. वातावरण का ज्ञान-

ऐसे व्यक्ति को वातावरण और उसकी शक्तियों का ज्ञान होता है। इस ज्ञान पर निर्भर होकर भावी योजनायें बनाता है। उसमें जीवन की वास्तविकताओं का उचित ढंग से सामना करने की शक्ति होती है।

6. सामंजस्य की योग्यता-

ऐसे व्यक्ति में सामंजस्य करने की योग्यता होती है। इसका अभिप्राय यह है कि वह दूसरों के विचारों और समस्याओं को एवं उनमें पायी जाने वाली विभिन्नताओं को स्वाभाविक बात समझता है। वह स्थायी रूप से प्रेम कर सकता है, प्रेम प्राप्त कर सकता है और मित्र बना सकता है।

7. निर्णय करने की योग्यता-

ऐसे व्यक्ति में निर्णय करने की योग्यता होती है। वह स्पष्ट रूप से विचार करके प्रत्येक कार्य के सम्बन्ध में उचित निर्णय कर सकता है।

8. वास्तविक संसार में निवास-

ऐसा व्यक्ति वास्तविक संसार में, न कि काल्पनिक संसार में, निवास करता है। उसका व्यवहार वास्तविक बातों से, न कि इच्छाओं और काल्पनिक भयों से, निर्देशित होता है।

9. शारीरिक स्वास्थय के प्रति ध्यान-

ऐसे व्यक्ति अपने शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति पूर्ण ध्यान देता है। वह स्वस्थ रहने के लिए नियमित जीवन व्यतीत करता है। वह भोजन, नींद, आराम, शारीरिक कार्य व्यक्तिगत स्वच्छता और रोगों से सुरक्षा के सम्बन्ध में स्वास्थ्य प्रदान करने वाली आदतों का निर्माण करता है।

10. आत्म-सम्मान की भावना-

ऐसे व्यक्ति में आत्म-सम्मान की भावना होती है। वह अपनी योग्यता और महत्व को भली-भाँति समझता है एवं दूसरों से उनके सम्मान की आशा करता है।

11. व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना-

ऐसे व्यक्ति में व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना होती है। वह अपने समूह में अपने को सुरक्षित समझता है। वह जानता है कि उसका समूह उससे प्रेम करता है उसे उसे उसकी आवश्यकता है।

12. आत्म-मूल्यांकन की क्षमता-

ऐसे व्यक्ति में आत्म-मूल्यांकन की क्षमता होती है। उसे अपने गुणों, दोषों, विचारों और इच्छाओं का ज्ञान होता है। वह निष्पक्ष रूप से अपने व्यवहार के औचित्य और अनौचित्य का निर्णय कर सकता है। वह अपने दोषों को सहज ही स्वीकार कर लेता है।

✔️ फ्रेंडसन के अनुसार

’’मानसिक स्वास्थ्य और अधिगम से सफलता का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन शब्दों में यह संकेत निहित है कि बालक और शिक्षक दोनों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना अनिवार्य है। इसके अभाव में न तो बालक सफलतापूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सकता है और न शिक्षक सफलतापूर्वक शिक्षण का कार्य कर सकता है।’’

बालक के मानसिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले कारक

✔️ वंशानुक्रम का प्रभाव- कुप्पूस्वामी के अनुसार- बालक दोषपूर्ण वंशानुक्रम से मानसिक निर्बलता, एक विशेष प्रकार का मानसिक अस्वास्थ्य और कुछ मानसिक एवं स्नायु-सम्बन्धी रोग प्राप्त करता है। फलस्वरूप वह समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करता है।

✅ शारीरिक दोषों का प्रभाव- शारीरिक दोष असमायोजन के लिए उत्तरदायी होते है। कुप्पूस्वामी के अनुसार- ’’गम्भीर दोष बालक में हीनता की भावनाएँ उत्पन्न करके समायोजन की समस्याएँ उपस्थित कर सकते है।’’

✔️ समाज का प्रभाव- समाज का अभिन्न अंग होने के कारण बालक पर उसका व्यापक प्रभाव पङना स्वाभाविक है। यदि समाज का संगठन दोषपूर्ण है, तो बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर उसका विपरीत प्रभाव पङना आवश्यक है।

समाज के आन्तरिक झगङे, धार्मिक और जातीय संघर्ष, विभिन्न समूहों को राजनीतिक दाँवपेंच, धनी वर्गों के संकीर्ण स्वार्थ, निर्धन वर्गों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की माँग, ऊँच-नीच और अस्पृश्यता की भावनायें, व्यक्तिगत सुरक्षा और स्वतन्त्रता का अभाव ये सभी बातें बालकों में मानसिक तनाव उत्पन्न कर देती है।

परिणामतः उसके मानसिक स्वास्थ्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

परिवार का प्रभाव-

परिवार, बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुमुखी प्रभाव डालता है, यथा

☑️ परिवार का विघटन- आधुनिक समय में औद्योगिकरण के कारण परिवार का अति तीव्र गति से विघटन हो रहा है। बालक, परिवार के सदस्यों के अलगाव की प्रबली भावना देखता है। फलस्वरूप, उसमें भी अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह असामायोजन की ओर अग्रसर होता है।

✅ परिवार का अनुशासन- यदि परिवार में बालक पर कठोर अनुशासन रखा जाता है और उसे छोटी-छोटी बातों पर डाँटा-फटकारा जाता है, तो उसमें आत्महीनता की भावना घेर लेती है। ऐसी स्थिति में उसका मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

☑️ परिवार की निर्धनता- प्लांट ने अपनी पुस्तक ’’Personality & the Cultural Pattern’’ में लिखा है कि परिवार की निर्धनता के कारण बालक का व्यक्तित्व उग्र और कठोर हो जाता है, उसमें हीनता और असुरक्षा की भावना विकसित हो जाती है एवं उसमें आत्मविश्वास का स्थायी अभाव हो जाता है। ये सब बातें उसके मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर देती है।

✅ परिवार संघर्ष- परिवार में सदस्यों , विशेष रूप से बालक के माता-पिता के पारस्परिक दूषित प्रभाव डालते हैं कि वह समायोजन करने में असमर्थ होता है। कुप्पूस्वामी के शब्दों में- ’’जिन माता-पिता में निरन्तर संघर्ष होता रहता है, वे समायोजन की समस्याओं वाले बालकों में अत्यधिक प्रतिशत का कारण होते हैं।’’

☑️ माता-पिता का व्यवहार- कुछ माता-पिता अपने बच्चों को अत्यधिक लाङ-प्यार से पालते हैं, कुछ उनसे किसी कारणवश बहुत समय अलग रहते है, कुछ उनसे अपने आदर्शों पर ना पहुँच पाने के कारण घृणा करने लगते हैं- इस प्रकार के सब माता-पिता अपने बच्चों के मानसिक अस्वास्थ्य को दृढ़ आधार प्रदान करते है।

विद्यालय का प्रभाव-

परिवार के समान विद्यालय की बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर अनेक प्रकार के अवांछनीय प्रभाव डालता है, यथा-

☑️ विद्यालय का वातावरण- यदि विद्यालय में बालक के व्यक्तित्व का सम्मान नहीं किया जाता है, यदि उसकी इच्छाओं का दमन किया जाता है, यदि उसे अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर नहीं दिया जाता है और यदि उसकी विशिष्ट रुचियों का विकास करने के लिए पाठ्यक्रम सहयोगी क्रियाओं का आयोजन नहीं किया जाता है, तो उसके मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति का स्पष्ट रूप से विरोध किया जाता है।

इसके अतिरिक्त, यदि विद्यालय में निरन्तर भय और आतंक का वातावरण एवं जाति-भेद का बोलबाला रहता है, तो बालक का मस्तिष्क असन्तुलित हो जाता है।

✅ पाठ्यक्रम- यदि पाठ्यक्रम सब बालक के लिए समान होता है, यदि वह अत्यधिक बोझिल होता है, यदि वह बालकों की माँगों और आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करता है, यदि वह उनकी रूचियों और क्षमताओं के प्रतिकूल होता है, तो वह उनके मानसिक स्वास्थ्य का विकास करने में पूर्णतया असफल होता है।

शिक्षण विधियाँ- परम्परागत और अमनोवैज्ञानिक शिक्षण-विधियाँ बालक के ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती है। अतः वह हतोत्साहित होकर अपना मानसिक स्वास्थ्य खो बैठता है।

☑️ परीक्षा-प्रणाली- अधिकांश विद्यालयों में आत्मनिष्ठ परीक्षाओं की प्रधानता है। ये परीक्षायें बालकों की वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन नहीं कर पाती है। इन परीक्षाओं के प्रचलन के कारण कुछ योग्य बालकों को कक्षोन्नति नहीं दी जाती और कुछ अयोग्य बालकों को दे दी जाती है। पहली प्रकार के बालक निराश और निरूत्साहित होकर अपने को वास्तव में अयोग्य समझनेे लगते है।

दूसरे प्रकार के बालक अयोग्य होने के कारण अपने को अगली कक्षा में अयोग्य पाकर विद्यालय कार्य से मुख मोङ लेते है। इस तरह, दोनों प्रकार के बालक असमायोजित हो जाते है।

कक्षा का वातावरण-

यदि कक्षा में वायु, प्रकाश और बैठने के स्थान का अभाव होता है, यदि उसका वातावरण भय और आतंक पर आधारित होता है, यदि बालकों को छोटी-छोटी त्रुटियों के लिए अविवेकपूर्ण ढंग से दण्ड दिया जाता है और यदि उनके विचारांे एवं इच्छाओं का दमन किया जाता है, तो उनको उनके मानसिक स्वास्थ्य से बलपूर्वक वंचित किया जाता है।

☑️ शिक्षक का व्यवहार- यदि शिक्षक, बालकों के प्रति तनिक भी प्रेम और सहानुभूति व्यक्त नहीं करता है, यदि वह उनके प्रति सदैव कठोर और पक्षपातपूर्ण व्यवहार करता है, यदि वह उनको अकारण दण्ड देता है और यदि वह उनकी भावनाओं को कुचलने का प्रयास करता है, तो वह उनके मानसिक अस्वास्थ्य में अत्यधिक योग देता है।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक

घर का प्रभाव

  • पारिवारिक विघटन
  • माता-पिता का व्यवहार
  • निर्धनता
  • अत्यधिक सुरक्षा
  • उच्च नैतिक आदर्श
  • घर का अनुशासन
  • शारीरिक स्वास्थ्य
  • शारीरिक विसंगतियाँ
  • परिवार में तनाव

विद्यालय का प्रभाव

  • विद्यालय का वातावरण
  • शिक्षक का व्यवहार
  • अनुचित अनुशासन
  • अनुपयुक्त शिक्षण विधियाँ
  • अत्यधिक प्रतियोगिता का आयोजन
  • शिक्षकों का असंगठित व्यक्तित्व
  • अनुपयुक्त पाठ्यक्रम
  • अनुपयुक्त परीक्षा प्रणाली
  • विद्यालयों में राजनीति वातावरण
  • कक्षा में असमायोजन

समाज का प्रभाव

  • साम्प्रदायिकता
  • रीति-रिवाज
  • सामाजिक संगठन
  • जातीय संघर्ष
  • धार्मिक उन्माद
  • अमीर-गरीब की भावना
  • वर्गवाद
  • सामाजिक कुरीतियाँ/अंधविश्वास
  • असुरक्षा
  •  शिथिल सामाजिक व्यवस्था

 

उपरोक्त कारकों के कारण मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है जिनसे प्रभावित होकर व्यक्ति कुसमायोजन की ओर अग्रसर हो जाता है। जिसके फलस्वरूप अनेक मानसिक विकार जैसे- द्वन्द्व, कुण्ठा, तनाव आदि उत्पन्न हो जाते है।

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