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अधिगम का स्थानान्तरण -TRANSFER OF LEARNING

Author: K.K.SIR | On:24th Jan, 2021| Comments: 0

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Table of Contents

  • (TRANSFER OF LEARNING)
  • अधिगम स्थानान्तरण की परिभाषाएँ
  • (DEFINTIONS OF TRANSFER OF LEARNING)
  • अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार
  • (TYPES OF TRANSFER OF LEARNING)
  • स्थानान्तरण-एक शैक्षिक उद्देश्य
  • (TRANSFER AS AN EDUCATIONAL OBJECTIVE)
  • शिक्षण के स्थानान्तरण की परिस्थितियाँ
  • (CONDITIONS OF TRANSFER OF TRAINING)
  • अधिगम के स्थानान्तरण के लिए शिक्षण
  • (TEACHING FOR THE TRANSFER OF LEARNING)

आज के आर्टिकल में हम अधिगम का स्थानान्तरण (Adhigam ka Sthanantaran) को विस्तार से समझेंगे ,इससे हम यह जानेंगे कि अधिगम का स्थानान्तरण कैसे होता है ।

अधिगम का स्थानान्तरण

(TRANSFER OF LEARNING)

दोस्तो एक क्रिया का ज्ञान दूसरी क्रिया के सीखने में जब सहायक होता है तो इससे तात्पर्य है कि सीखे गये ज्ञान का स्थानान्तरण नवीन परिस्थितियों के साथ प्रतिक्रिया करने में सहायक होता है। इसी को अधिगम का स्थानान्तरण (Adhigam ka Sthanantaran) कहते हैं। मनोविज्ञान में इसको प्रशिक्षण का स्थानान्तरण (Transfer of Training) भी कहते हैं।

प्रायः देखा जाता है कि एक क्षेत्र या विषय का ज्ञान दूसरे विषय या क्रिया को सीखने में सहायता पहुँचाता है, उदाहरण के लिए, यदि साइकिल चलाने में व्यक्ति ने कुशलता प्राप्त कर ली है तो इस ज्ञान से वह व्यक्ति मोटर साइकिल चलाना शीघ्र सीख जाता है।

इसी प्रकार कक्षा में सीखा गया गणित व्यक्ति को बाजार में क्रय-विक्रय का हिसाब रखने में सहायता करता है। इसी प्रकार गणित का ज्ञान भौतिक एवं रसायन शास्त्र सीखने में सहायक होता है।

अधिगम स्थानान्तरण की परिभाषाएँ

(DEFINTIONS OF TRANSFER OF LEARNING)

अधिगम के स्थानान्तरण को समझने के लिए यहाँ कुछ विद्वानों की परिभाषाओं पर विचार करना उपयुक्त होगा-

क्रो एवं क्रो – ’’अधिगम के एक क्षेत्र में प्राप्त आदत, चिन्तन, मान या कुशलता का जब दूसरी परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है तो यह अधिगम का स्थानान्तरण कहलाता है।’’
“The carry over of habits of thinking, of working of knowledge or of skills, from one learning area to another usually is referred to as the transfer of training.” – Crow & Crow

काॅलेसनिक – ’एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, दक्षता, आदत, अभिवृत्ति या अन्य प्रतिक्रियाओं का जब दूसरी परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है तो इसे अधिगम का स्थानान्तरण कहते हैं।’’
“Transfer of learning is the application on carry over of knowledge, skills, habits, attitudes or other responses from the situation in which they are initially acquired to some other situation.” – Kolesnik

सोरेनसन – ’’स्थानान्तरण से तात्पर्य एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, प्रशिक्षण और आदतों का किसी अन्य परिस्थिति में उपयोग से है।’’
“Transfer refers to the transfer of knowledge training and habits acquired in one situation to another.” – Sorenson

अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार

(TYPES OF TRANSFER OF LEARNING)

स्थानान्तरण कई प्रकार का होता है। स्थानान्तरण के कुछ प्रमुख प्रकार अग्रलिखित हैं-

(1) सकारात्मक स्थानान्तरण (Positive Transfer) –

सकारात्मक स्थानान्तरण से तात्पर्य उस अवस्था से है जब पूर्व ज्ञान या अनुभव का प्रशिक्षण नवीन समस्या या क्रिया को करने में सहायक होता है। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हो सकते हैं, जैसे-कार चलाने वाला ड्राइवर ट्रक को चलाना शीघ्रता से सीख सकता है। इसी प्रकार कक्षा में सीखे गये गणित का उपयोग भौतिक विज्ञान के संख्यात्मक प्रश्नों को हल करने में किया जाता है।

(2) नकारात्मक स्थानान्तरण (Negative Transfer) –

यदि पहले से सीखा हुआ ज्ञान, अनुभव या दक्षता नवीन प्रकार के सीखने में किसी प्रकार की बाधा पहुँचाते हैं तो इसको नकारात्मक स्थानान्तरण कहते हैं। पूर्व अनुभव का नवीन समस्या के समाधान में प्रतिकूल प्रभाव नकारात्मक स्थानान्तरण का द्योतक होता है, उदाहरण के लिए, वालीबाॅल का खिलाङी जब हाॅकी खेलता है तो उसे कठिनाई अनुभव होती है।

स्थानान्तरण-एक शैक्षिक उद्देश्य

(TRANSFER AS AN EDUCATIONAL OBJECTIVE)

स्थानान्तरण का शिक्षा प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके लिए पाठ्यक्रम और शिक्षण-विधियों पर विचार करना उपयुक्त होगा।

स्थानान्तरण और पाठ्यक्रम- आज के युग में शिक्षाशास्त्रियों के द्वारा मानसिक अनुशासन के पक्षपातियों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम की तीव्र आलोचना की जाती है। आज शिक्षा को उपयोगी और व्यावहारिक बनाने पर अधिक बल दिया जाता है। अतएव पाठ्यक्रम की रचना इस प्रकार हो कि इसके उद्देश्य छात्रों को आवश्यकताओं और दिन-प्रतिदिन की रुचियों के अनुकूल हो। पाठ्यक्रम बालकों के अनुभवों पर आधारित होना चाहिए।

पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बालक को वर्तमान जीवन से अनुकूलन स्थापित करने में सहायक हों तथा उसको भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के योग्य बना सके।

कक्षा में अर्जित ज्ञान, दक्षता और आदतों का कक्षा से बाहर की स्थितियों में स्थानान्तरण करने का प्रावधान पाठ्यक्रम में होना चाहिए। पाठ्यक्रम सामग्री का व्यावसायिक रुचियों, स्पष्ट एवं शारीरिक सुरक्षा, नागरिकता और गृह, सामाजिक एवं मनोरंजन क्रियाओं से सीधा सम्बन्ध होना चाहिए।

इसके साथ ही पाठ्यक्रम को एक निश्चित जीवन के प्रति संकेत करना चाहिए जिसके आधारभूत तत्त्वों पर इतना अधिकार हो कि उनका उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में अध्यापकतानुसार कर सके।

स्थानान्तरण और शिक्षण विधि – अधिगम स्थानान्तरण में अध्यापक और उसकी शिक्षा-विधियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अध्यापक को स्थानान्तरण के प्रति अध्यापन के समय सजग रहना चाहिए। दो परिस्थितियों की समानताओं को देखकर उसके मध्य सम्बन्ध की ओर छात्रों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए।

छात्रों के लिए उपयोगी ज्ञान, दक्षता, अभिवृत्ति और आदर्शों पर विचार करने के बाद सामान्यीकरण करना चाहिए और जीवन परिस्थितियों में उनका जितना उपयोग हो सके, उतना प्रयोग करना चाहिए। छात्रों पर इन क्रियाओं में भाग लेने के लिए अध्यापक को दबाव नहीं डालना चाहिए। छात्रों की सूझ में वृद्धि और सामान्यीकरण का जितना ज्ञान करवा दिया जायेगा, उतने ही स्थानान्तरण की सम्भावना अधिक बढ़ जाएगी।

शिक्षण के स्थानान्तरण की परिस्थितियाँ

(CONDITIONS OF TRANSFER OF TRAINING)

शिक्षण के स्थानान्तरण के लिए कुछ अनुकूल परिस्थितियों का होना आवश्यक है। ये अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

1. सीखने वाले की इच्छा – अधिगम स्थानान्तरण के लिए सीखने वाले में स्थानान्तरण करने की इच्छा का होना आवश्यक है। इसके लिए अध्यापक को प्रयत्न करना चाहिए।

2. सीखने वाले की सामान्य बुद्धि – प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है कि मन्द-बुद्धि बालकों की अपेक्षा कुशाग्र बुद्धि बालकों में स्थानान्तरण करने की अधिक योग्यता होती है।

3. सामान्यीकरण की योग्यता – रेबर्न ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि स्थानान्तरण मुख्यतः सामान्यीकरण पर निर्भर करता है। शिक्षण के स्थानान्तरण के लिए आवश्यक परिस्थितियों में सामान्यीकरण की योग्यता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

बालक जितना अधिक अपने पूर्व अनुभव एवं कार्यों के आधार पर सामान्य सिद्धान्त निकालने के योग्य होता है, उतना ही अधिक शिक्षण का स्थानान्तरण होता है।

4. समझने की योग्यता – जिन छात्रों में परिस्थितियों को समझने की अधिक क्षमता होती है वे अधिगम का स्थानान्तरण करने में अधिक सफल होते हैं। जब बालक किसी विषय या विचारों को अच्छी प्रकार समझ लेता है तो वह समानता के सिद्धान्त के आधार पर स्थानान्तरण करने में सफल होता है। सूझ सामान्यीकरण में भी सहायक होती है।

5. समान विषय-वस्तु – यदि दो विषयों में समान तत्त्वों की अधिकता है तो उनमें स्थानान्तरण अधिक होगा, उदाहरण के लिए, गणित का ज्ञान सांख्यिकीय के अध्ययन में अधिक सहयोग देता है। यदि दो विषयों में कोई समानता नहीं है तो उनमें स्थानान्तरण की कोई सम्भावना नहीं होगी।

6. शिक्षण-विधि – स्थानान्तरण बहुत कुछ अध्यापक की शिक्षण-विधि पर निर्भर रहता है। यदि अध्यापक पढ़ाते समय दो विषयों में समानता पर प्रकाश डालता है अथवा छात्रों को संकेत देता है कि ज्ञान का दैनिक जीवन में कहाँ-कहाँ पर उपयोग हो सकता है तो स्थानान्तरण की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।

7. विषय-सामग्री पर अधिकार – यदि बालक का विषय-सामग्री पर अच्छा अधिकार होगा तो वह इस विषय के ज्ञान को अन्य क्षेत्र में स्थानान्तरण करने में अधिक सफल होगा।

अधिगम के स्थानान्तरण के लिए शिक्षण

(TEACHING FOR THE TRANSFER OF LEARNING)

अधिगम के स्थानान्तरण का मानव जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। बालक को औपचारिक शिक्षा के द्वारा जो कुछ सिखाया जाता है उसका उद्देश्य यह है कि बालक जीवन की विभिन्न समस्याओं को हल कर सके और भावी जीवन की विविध परिस्थितियों के साथ अपना सन्तोषजनक अनुकूलन स्थापित कर ले।

यदि औपचारिक शिक्षा से प्राप्त ज्ञान का उपयोग स्थानान्तरित करके बालक भावी जीवन की समस्याओं को हल करने में सफल नहीं होता है तो ऐसी शिक्षा उसके लिए व्यर्थ है। आज के युग में शिक्षा को समन्वित इकाई के रूप में स्वीकार किया जाता है।

यदि छात्र एक विषय के ज्ञान को अन्य किसी विषय में स्थानान्तरित नहीं कर सकता तो शिक्षा का समन्वित रूप उसके सामने उभर कर नहीं आएगा। इस प्रकार अधिगम के स्थानान्तरण की महत्ता को सभी स्वीकार करते हैं। अधिगम के स्थानान्तरण को प्रोत्साहन देने के लिए इसमें बालकों को प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। स्थानान्तरण की शिक्षा देने में अध्यापक की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

अध्यापक को अधिगम के स्थानान्तरण का शिक्षण देते समय अग्रलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिये जिनकी ओर बर्नार्ड महोदय ने भी ध्यान आकर्षित किया है-

1. उद्देश्यों का स्पष्टीकरण –

उद्देश्यों का स्पष्टीकरण प्रभावशाली अधिगम में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सीखने वाले को ज्ञात होना चाहिये कि उसे क्या सिखाया जा रहा है और अध्यापक को भी स्पष्ट होना चाहिये कि उसे क्या सिखाना है। ऐसा होने पर ही वह छात्रों को अध्ययन के लक्ष्यों का प्रत्यक्षीकरण कराने में सहायक हो सकता है।

छात्रों में उचित अभिवृत्ति का विकास करना आवश्यक है। व्यावहारिकता पर अधिक बल देना चाहिये ताकि छात्र तात्कालिक ज्ञान को केवल कक्षा की परिस्थितियों में ही प्रयोग में लाना न सीखें बल्कि वे कक्षा के बाहर तथा भावी जीवन में भी उसको स्थानान्तरित करना सीखें। इस कार्य में उद्देश्यों का स्पष्टीकरण अधिक सहायक होता है।

2. बोध का विकास –

छात्रों में बोध-शक्ति का विकास करना चाहिये। वास्तविक समस्याओं पर विचार करने से बोध का विकास होता है। किन्तु बिना प्रयोग के बोध अपूर्ण रहता है। यदि समस्या को छात्र ने ठीक प्रकार बोधगम्य कर लिया है तो सीखने के स्थानान्तरण में सहायता मिलती है। करके सीखने पर बल देने से छात्र समस्या को ठीक प्रकार समझ लेता है और सीखे हुए ज्ञान का उपयोग कक्षा के बाहर की परिस्थितियों में कर सकता है।

3. सम्बन्धों का विकास –

अधिगम के स्थानान्तरण के लिए आवश्यक है कि अध्यापक अपने विषय का अध्यापन करते समय अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हुए अध्ययन करे। यदि अध्यापक दो विषयों के मध्य समान तत्त्वों की ओर संकेत करता हुआ पढ़ायेगा तो छात्रों को स्थानान्तरण में सुविधा मिलेगी।

4. पूर्ण एवं गहन अधिगम –

सम्पूर्ण अधिगम स्थानान्तरण में सहायक होता है। अतएव छात्रों को किसी समस्या का ज्ञान कराते समय अध्यापक को उसके सभी पक्षों पर प्रकाश डालकर पूर्ण ज्ञान कराने का प्रयत्न करना चाहिये। गणित, सामाजिक ज्ञान, विज्ञान आदि सभी विषयों में समीक्षा, अभ्यास, वार्तालाप और उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण अधिगम की मात्रा में वृद्धि करके स्थानान्तरण की सम्भावना को बढ़ाते हैं।

ऐसा देखा गया है कि जिन समस्याओं से सम्बन्धित तथ्यों की खोज छात्र स्वयं करते हैं, उनमें स्थानान्तरण अधिक सुगम होता है। अतएव छात्रों को स्वयं तथ्यों का संग्रह करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

5. सिद्धान्तों पर बल –

सिद्धान्तों को कथन रूप में कह देना, कण्ठस्थ करना या पुस्तक से पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं है। सिद्धान्त की रचना के लिए उत्तरदायी तथ्यों एवं परिस्थितियों को समझना भी आवश्यक है। इसके साथ ही छात्र के समक्ष विभिन्न परिस्थितियाँ पैदा करनी चाहिये जहाँ छात्र उस सिद्धान्त का प्रयोग कर सके। शिक्षक को अपने अध्ययन के विषयों में सामान्य सिद्धान्त निकालने की विधियाँ बालकों को बतानी चाहिये।

6. अभिवृत्ति का विकास –

छात्रों में समस्या अथवा विषय के प्रति उचित अभिवृत्ति का विकास होने से छात्र कुछ आदर्शों का निर्माण करते हैं इन आदर्शों का विभिन्न परिस्थितियों में स्थानांतरण करने के लिए छात्रों को प्रात्सोहित करना चाहिए।

7. पाठ्य-विषयों पर ध्यान –

विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषयों के ज्ञान का स्थानान्तरण महत्त्व भी अधिक होता है। अध्यापक को इन विषयों को अध्यापन करते समय सम्भावित क्षेत्रों में स्थानान्तरण की सम्भावना पर भी प्रकाश डालना चाहिये।

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