Top 7 बुद्धि के सिद्धान्त – Buddhi ke Siddhant | THEORIES OF INTELLIGENCE

दोस्तो हमने पिछले आर्टिकल में बुद्धि का अर्थ और परिभाषाएं पढ़ी और आज के आर्टिकल में हम बुद्धि के सिद्धांतो (Buddhi ke Siddhant) के बारे में विस्तार से जानेंगे । अलग -अलग मनोविज्ञानिको  के अनुसार अलग – अलग बुद्धि के सिद्धांत दिए गए है । आज हम बुद्धि के निम्न सिद्धांतों को समझेंगे।

  • बिने का एक तत्त्व सिद्धान्त
  • स्पीयरमैन का द्वितत्त्व सिद्धान्त
  • थार्नडाइक का बहुतत्त्व सिद्धान्त
  • थर्स्टन का समूह तत्त्व सिद्धान्त
  • थामसन का प्रतिदर्श सिद्धान्त
  • वर्नन का पदानुक्रमित सिद्धान्त
  • गिल्फोर्ड का संक्रिया-उत्पादन सिद्धान्त

बुद्धि का सिद्धान्त Buddhi ke Siddhant

बुद्धि के सिद्धान्त

THEORIES OF INTELLIGENCE

बुद्धि के सिद्धान्त हमें बुद्धि की संरचना का ज्ञान कराते हैं। बुद्धि की संरचना (Structure) के द्वारा ही हमें यह ज्ञात होता है कि बुद्धि किन-किन तत्त्वों या घटकों (Factors) से मिलकर बनी है। इन घटकों की संख्या, क्रम तथा शक्ति विभिन्न विद्वानों ने पृथक्-पृथक् बतलाई है।

घटकों या खण्डों के आधार पर समय बुद्धि के निम्नलिखित सिद्धान्त उपलब्ध हैं-

  1. बिने का एक तत्त्व सिद्धान्त
  2. स्पीयरमैन का द्वितत्त्व सिद्धान्त
  3. थार्नडाइक का बहुतत्त्व सिद्धान्त
  4. थर्स्टन का समूह तत्त्व सिद्धान्त
  5. थामसन का प्रतिदर्श सिद्धान्त
  6. वर्नन का पदानुक्रमित सिद्धान्त
  7. गिल्फोर्ड का संक्रिया-उत्पादन सिद्धान्त

नीचे इन सिद्धान्तों का सामान्य परिचय प्रस्तुत है-

बुद्धि के सिद्धान्त – Buddhi ke Siddhant

1. बिने एक तत्त्व सिद्धान्त (Unifactor Theory)

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक तथा समर्थकों में बिने, टरमैन, स्टर्न तथा जाॅनसन का नाम उल्लेखनीय रूप से लिया जा सकता है, जाॅनसन जो इस सिद्धान्त के प्रथम प्रवर्तक माने जाते हैं, का कहना है कि बुद्धि एक सर्वशक्तिशाली मानसिक प्रक्रिया है जो सम्पूर्ण मानव-क्रियाओं पर एकछत्र शासन करती है। यह किसी के अधीन नहीं है वरन् अन्य सभी मानसिक योग्यताएँ इसके अधीन हैं।

इस प्रवृत्ति के कारण इसे निरंकुशवादी (Monarecic) सिद्धान्त भी कहते हैं। बुद्धि केवल एक ही तत्त्व से निर्मित है। बिने, टरमैन आदि ने केवल एक मानसिक योग्यता को ही सम्पूर्ण बुद्धि माना है, जैसे-बिने निर्णय देने की शक्ति को बुद्धि कहता है तो टरमैन विचार-शक्ति को तथा स्टर्न नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की शक्ति को बुद्धि कहता है।

2. स्पीयरमैन का द्वि-तत्त्व सिद्धान्त (Two Factor Theory)

स्पीयरमैन द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त बुद्धि में दो तत्त्वों का मिश्रण बताता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि में सामान्य तत्त्व (General Factors  या ‘G’ Factor) तथा विशिष्ट तत्त्व (Specific factors या ‘S’ factor) होते हैं और सभी विशिष्ट तत्त्व सामान्य तत्त्व से सम्बन्धित तथा प्रभावित होते हैं। सामान्य तत्त्व तथा किसी एक विशिष्ट तत्त्व में जितना उच्च सहसम्बन्ध होगा, व्यक्ति उस विशिष्ट तत्त्व के क्षेत्र में उतनी ही प्रगति कर सकेगा।

प्रत्येक तत्त्व एक-एक मानसिक कार्यों के लिये उत्तरदायी होता है, जैसे – स्मृति, कल्पना, तर्क, हस्तकार्य, संगीत आदि प्रत्येक के लिये पृथक्-पृथक् विशिष्ट तत्त्व होते हैं। इस सिद्धान्त को निम्नांकित चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

स्पीयरमैन का द्वि-तत्त्व सिद्धान्त
स्पीयरमैन का द्वि-तत्त्व सिद्धान्त

उपर्युक्त चित्र में ‘G’ तत्त्व बाहर विशिष्ट तत्त्वों को प्रभावित कर रहा है। प्रत्येक विशिष्ट तत्त्व का वह भाग जो सामान्य तत्त्व के अन्दर चला गया है तथा सफेद भाग द्वारा प्रदर्शित है, विशिष्ट तत्त्व तथा सामान्य तत्त्व के मध्य सह-सम्बन्ध बताता है।

दूसरा तथा दसवाँ विशिष्ट तत्त्व सामान्य तत्त्व को केवल छूता है अर्थात् इनका सामान्य तत्त्व से विशिष्ट सह-सम्बन्ध नहीं है अतः व्यक्ति इन क्षेत्रों में विशेष उन्नति नहीं कर सकता है जबकि नवें विशिष्ट तत्त्व का सामान्य तत्त्व से उच्च सह-सम्बन्ध है। अतः व्यक्ति इस क्षेत्र में अधिक प्रगति कर सकता है।

स्पीयरमैन ने सात वर्ष बाद सन् 1911 में अपने उक्त सिद्धान्त को सुधारा और कहा कि बुद्धि में दो तत्त्वों के स्थान पर तीन तत्त्व होते हैं। स्पीयरमैन ने कहा कि सामान्य तत्त्व तथा विशिष्ट तत्त्व के साथ ही साथ एक समूह तत्त्व (Group factor) भी होता है। यह स्पीयरमैन का त्रि-तत्त्व सिद्धान्त (Three factor Theory) है।

3. बहु-तत्त्व सिद्धान्त (Multi-Factor Theory)

इस सिद्धान्त के प्रवर्तक थार्नडाइक ने कहा कि बुद्धि में अनेक तत्त्व होते हैं। इनकी संख्या बताते हुए वे कहते हैं कि बुद्धि के तत्त्व उतने होते हैं जितनी कोई मनुष्य विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ करता है और ये सभी तत्त्व मिलकर प्रत्येक कार्य करते हैं। इन समस्त तत्त्वों से मिलकर एक सामान्य तत्त्व बनता है। थार्नडाइक ने इस सामान्य तत्त्व के अलावा कुछ मूल तत्त्व (Primary Factors) बताये। थार्नडाइक ने प्रमुख रूप से छः मूल तत्त्वों का उल्लेख किया। ये मूल तत्त्व हैं-

  1. अंक-योग्यता
  2. शाब्दिक योग्यता
  3. दिशा योग्यता
  4. तर्क-योग्यता
  5. स्मरण-शक्ति
  6. भाषण-योग्यता

इनके अलावा अन्य मूल तत्त्व भी होते हैं। इसे भी थार्नडाइक ने स्वीकार किया है।

Multi-Factor Theory
बहु-तत्त्व सिद्धान्त

उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि सामान्य तत्त्व वह है जो समस्त मूल तत्त्वों से केन्द्र में रहकर उन्हें उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करता है और सामान्य तत्त्व के माध्यम से ही एक मूल तत्त्व दूसरे मूल तत्त्व को प्रभावित करता है।

4. समूह-तत्त्व सिद्धान्त (Group-Factor Theory)

इस सिद्धान्त के प्रवर्तक थर्स्टन न तो स्पीयरमैन के दो तत्त्वों को मानते हैं और न थार्नडाइक के बहुतत्त्वों की बात ही स्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि बुद्धि निश्चित रूप से आठ तत्त्वों से निर्मित है। थर्स्टन इन्हें प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ (Primary Mental abilities) कहते हैं,

इनके नाम इस प्रकार हैं-

  1. प्रेक्षण-योग्यता (Spatial Ability) = S
  2. अंक-योग्यता (Number Ability) = N
  3. शाब्दिक-योग्यता (Verbal Ability) = V
  4. वाक्-शक्ति (Word Fluency) = W
  5. स्मरण-शक्ति (Memory) = M
  6. आगमन तर्क (Inductive Reasoning) = I
  7. निगमन तर्क (Deductive Reasoning) = D
  8. पर्यवेक्षण शक्ति (Perceptual Ability) = P

थर्स्टन ने इन आठ तत्त्वों में समस्या-समाधान करते हुए कहा कि बुद्धि निम्नलिखित नौ तत्त्वों से मिलकर बनी है-

(1) गामक योग्यता (Motor Ability)
(2) सामाजिक योग्यता (Social Ability)
(3) रुचि (Interest)
(4) संख्या योग्यता (Number Ability)
(5) शाब्दिक क्षमता (Verbal Ability)
(6) शारीरिक क्षमता (Physical Capacity)
(7) यांत्रिक योग्यता (Mechanical Ability)
(8) संगीत योग्यता (Musical Ability)
(9) प्रक्षेपण योग्यता (Spatial Ability)

थर्स्टन तथा कीले द्वारा प्रस्तुत मूल तत्त्वों में विशेष अन्तर नहीं है। थर्स्टन कहते हैं कि समस्त मूल तत्त्वों में पृथक्-पृथक् मात्रा में परस्पर सह-सम्बन्ध होता है। दो मूल तत्त्वों में जितना अधिक सह-सम्बन्ध होगा, उनके बीच अधिगम का हस्तान्तरण उतना ही सुगम व अधिक होगा।

5. प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sampling Theory)

इस सिद्धान्त के प्रवर्तक थामसन (Thompson) हैं। उनका कहना है कि मनुष्य में अनेक योग्यताएँ होती हैं, किन्तु जब मनुष्य किसी कार्य को सम्पादित करता है तो उस कार्य के सम्पादन के लिये सभी योग्यताओं में से थोङा-थोङा प्रतिदर्श (Sampling) लेकर उस कार्य-विशेष के लिये एक नवीन योग्यता बना लेता है। कार्य सम्पादित होने के बाद नवीन संगठन विच्छेदित हो जाता है।

इसे हम इस प्रकार भी स्पष्ट कर सकते हैं कि मानसिक योग्यताओं के विशाल समूह में से आवश्यकतानुसार प्रतिदर्श लेकर प्रस्तुत कार्य को सम्पादित करने के लिए उन प्रतिदर्शों के आधार पर मानसिक योग्यताओं का एक संगठन तैयार कर उस कार्य को सम्पादित करता है। इस नवीन संगठन में केवल उन्हीं मानसिक योग्यताओं से प्रतिदर्श लिये जाते हैं जिनके मध्य पर्याप्त सह-सम्बन्ध होते हैं।

6. पदानुक्रमिक सिद्धान्त (Hierarchical Theory)

इस सिद्धान्त का प्रवर्तन बर्ट (Burt) तथा वर्नन (Vernon) ने किया। यह सिद्धान्त प्रत्येक मानसिक योग्यता को क्रमिक महत्त्व (Hierarchical Order) प्रदान करता है। इस महत्त्वक्रम में सर्वप्रथम सामान्य मानसिक योग्यता (General Mental Ability) आती है जो दो प्रमुख खण्डों में विभक्त है। फिर ये प्रमुख खण्ड अनेक गौण खण्डों में विभक्त है और गौण खण्ड अनेक विशिष्ट खण्डों में विभक्त हैं।

यह विभाजन अग्रांकित चित्र से स्पष्ट है-

पदानुक्रमिक सिद्धान्त
पदानुक्रमिक सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के अनुसार सामान्य मानसिक योग्यता दो खण्डों में विभक्त है-

(1) K. M.

(2) V. D.

प्रथम खण्ड (K.M.)- प्रथम खण्ड का निर्माण क्रियात्मकता (Practical), यांत्रिक (Mechanical), प्रक्षेपण (Spatial), तथा शारीरिक (Physical), योग्यता के मिलन से हुआ है।

द्वितीय खण्ड (V.D.)- द्वितीय खण्ड का निर्माण शाब्दिक (Verbal), अंक (Number) तथा शिक्षा (Education) योग्यताओं के द्वारा हुआ है।

7. संक्रिया-उत्पादन सिद्धान्त (Operation-Product Theory)

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक प्रो. गिलफोर्ड हैं। गिलफोर्ड के अनुसार, मानसिक योग्यता प्रमुख रूप से तीन तत्त्वों से निर्मित है- संक्रिया (Operation), विषय-वस्तु (Content) तथा उत्पादन (Product)। गिलफोर्ड ने इन तीन मूल तत्त्वों को कई उप-तत्त्वों में विभक्त किया।

गिलफोर्ड ने बुद्धि के समस्त तत्त्वों का विभाजन निम्न प्रकार से किया-

संक्रिया-उत्पादन सिद्धान्त
संक्रिया-उत्पादन सिद्धान्त

उपर्युक्त प्रमुख सिद्धान्तों के अलावा और भी कई सिद्धान्त हैं। सिद्धान्तों के पृथक्-पृथक् दृष्टिकोणों के कारण बुद्धि की संरचना सम्बन्धी ज्ञान और भी अधिक जटिल हो गया है और इन सिद्धान्तों के जाल में फँसकर यह समझना बङा कठिन है कि बुद्धि का वास्तविक रूप क्या है। इस समस्या के कारण आधुनिक मनोवैज्ञानिक ’बुद्धि’ के स्थान पर ’बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार’ शब्द का प्रयोग करने लगे हैं।

तो दोस्तो आज की पोस्ट में हमने बिल्कुल ही आसान भाषा में बुद्धि के सिद्धांतो(Buddhi ke Siddhant) को समझा ,हम आशा करतें है कि आपको ये टॉपिक अच्छे से समझ में आ गया होगा ।

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