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Emotional intelligence-संवेगात्मक बुद्धि || Physiology

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:23rd Mar, 2020| Comments: 0

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आज की पोस्ट में हम मनोविज्ञान में संवेगात्मक बुद्धि(Emotional intelligence)को अच्छे से समझेंगे ,इसकी महत्त्वपूर्ण परिभाषाएं और तथ्यों को जानेंगे |

संवेगात्मक बुद्धि (Emotional intelligence)

Table of Contents

  • संवेगात्मक बुद्धि (Emotional intelligence)
    • Emotional Intelligence Meaning
    • गोलमैन(Daniel Goleman) के विचार 
    • गोलमैन(Daniel Goleman) के विचार 
    • संवेगात्मक बुद्धि के उचित विकास हेतु क्या किया जाये ?
    • सुझाव :
    • ध्यान रखें !
    • ध्यान रखें !
    • संवेगात्मक बुद्धि का मापन(Emotional Intelligence Test)
    • संवेगात्मक शिक्षा और अध्यापक का दायित्व
    • अन्य अध्यापक का दायित्व
      • विशेष :

 

Emotional intelligence

संवेगात्मक बुद्धि क्या है ?(What is Emotional Intelligence?)

Emotional Intelligence Meaning

संवेगात्मक बुद्धि (Emotional intelligence)से तात्पर्य व्यक्ति विशेष की उस समग्र क्षमता (सामान्य बुद्धि से सम्बन्धित होते हुये भी अपने आप में स्वतन्त्र) से है जो उसे उसकी विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपने तथा दूसरों के संवेगों को जानने, समझने तथा उनकी ऐसी उचित अनुभूति एवं अभिव्यक्ति करने कराने में इस प्रकार मदद करें कि वह ऐसी वांछित व्यवहार अनुक्रियाएँ कर सके जिनसे उसे दूसरों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए अपना समुचित हित करने हेतु अधिक से अधिक अच्छे अवसर प्राप्त हो सकें।

 संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता एवं महत्व- अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डाॅ. डेनियल गोलमैन की बहुचर्चित पुस्तकों ने संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता एवं महत्व को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से जनमानस से समक्ष रखने का प्रयत्न किया है। संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता एवं महत्व के बारे में व्यक्त गोलमैन(Daniel Goleman) के इन विचारों को संक्षेप में निम्न प्रकार लिपिबद्ध किया जा सकता हैः-

गोलमैन(Daniel Goleman) के विचार 

1. कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल होगा इसकी भविष्यवाणी करने हेतु संवेगात्मक लब्धि (E.Q.) बुद्धि लब्धि (I.Q) की तरह ही और बहुत सी परिस्थितियों में उससे अधिक सामथ्र्यवान सिद्ध हो सकती है। बुद्धिलब्धि (I.Q) का तो जीवन में मिलने वाली सफलताओं में केवल 20 प्रतिशत ही योगदान रहता है शेष 80 प्रतिशत योगदान का श्रेय इसकी संवेगात्मक बुद्धि तथा उसके सामाजिक स्तर आदि को जाता है।

2. देखा जाये तो व्यक्ति की बुद्धि लब्धि (I.Q) नहीं बल्कि उसकी संवेगात्मक लब्धि (E.Q) को ही पूरी तरह से उसके भविष्य के बारे में उद्घोषणा करने वाला सही प्रमाप माना जा सकता है। जिस व्यक्ति में यथेष्ट संवेगात्मक बुद्धि होती है वह जीवन में किसी भी क्षेत्र में इच्छित सफलता अर्जित कर सकता है।

3. संवेगात्मक बुद्धि के लिये सामान्य बुद्धि की तुलना में एक बात यह भी अधिक महत्वपूर्ण है कि इसे संवेगात्मक क्षमताओं में वृद्धि कर वांछित रूप से विकसित करने के प्रयास किये जा सकते हैं और फिर इस विकास के माध्यम से व्यक्तियों को अपना जीवन सुखमय और शांतिप्रद बनाने में सहायता की जा सकती है।

4. बुद्धि परीक्षणों तथा अच्छी तरह से निर्मित मानक उपलब्धि परीक्षणों के द्वारा भी जीवन क्षेत्रों में सफलता के संदर्भ में उचित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। परन्तु संवेगात्मक बुद्धि परीक्षण परिणाम यह करने का सामथ्र्य रखते है। यहाँ तक कि विद्यार्थी जीवन में मिलने वाली सफलताओं के पीछे बहुत कुछ सीमा तक विद्यार्थी विशेष की संवेगात्मक बुद्धिका ही हाथ रहता है।

गोलमैन(Daniel Goleman) के विचार 

5. किसी की संवेगात्मक बुद्धि उसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में वांछित सफलता प्राप्त करने के कार्य में अपने विभिन्न अवयवों एवं कारकों के माध्यम से पर्याप्त मदद कर सकती है। अपने तथा दूसरों के संवेगों के प्रति सही जानकारी एवं सजगता, संवेगों का उचित प्रबन्ध और सम्बन्धों को ठीक प्रकार बनाये रखने जैसे कार्यों के संवेगात्मक बुद्धि विशेष रूप् से सहायक सिद्ध होती है।

जीवन में अगर कोई बात कहीं भी किसी की सफलता में अधिक से अधिक सहायक हो सकती है वह उसमें दूसरों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रख सकने की योग्यता ही है और इस बात में उसकी संवेगात्मक बुद्धि ही उसकी सबसे अधिक सहयोगी सिद्ध होती है।

6. संवेगात्मक बुद्धि के बारे में डेनियल गोलमैन द्वारा प्रतिपादित उपरोक्त विचारों ने एक तरह से हमारे जीवन के विविध क्षेत्रों से संवेगात्मक बुद्धि की आवश्यकता एवं उपयोग को लेकर एक क्रांति सी मचा दी है। आज घर, विद्यालय, चिकित्सालय, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मंच, परामर्श एवं निर्देशन सेवायें, औद्योगिक एवं व्यापारिक प्रतिष्ठान, प्रबन्धन क्षेत्र आदि कोई भी ऐसा स्थान नहीं जहाँ काम काज की दुनिया में संवेगात्मक बुद्धि के महत्व एवं उपयोगिता को अंगीकृत नहीं किया गया हो।

संवेगात्मक बुद्धि के उचित विकास हेतु क्या किया जाये ?

1. अपने स्वयं में और दूसरों में संवेगों के भली-भाँति प्रत्यक्षीकरण हेतु उचित योग्यताओं और क्षमताओं के विकास का प्रयास किया जाए।

2. दूसरों के बारे में जो भी गलत भावनाएँ उमङे और संवेगों के गलत प्रत्यक्षीकरण करने सम्बन्धी गलत परिणाम सामने आएं, उन पर रोक लगाने के उपाय किए जाएं। दूसरे की भावनाओं और संवेगों को गलत ढंग से लेना, सम्बन्धों को बिगाङने की दिशा में काफी घातक सिद्ध हो सकता है क्योंकि जब हम अपने ढंग से उनकी भावनाओं और संवेगों को देखते है तो इसमें पक्षपात और द्वेषपूर्ण दृष्टिकोण ही हावी रहता है। हमेशा यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रेम और आपसी विश्वास ही सम्बन्धों में नजदीकी लाता है जबकि घृणा और बैर रखने से सम्बन्धों में सदैव कटुता ही आती है।

3. सभी परिस्थितियों में यह समझा जाना चाहिए कि जिस प्रकार के संवेगों की अनुभूति हमें हो रही हो दूसरों को भी हो रही है उनके बारे में सही ज्ञान और चेतना हमारे अन्दर विकसित हो। सभी तरह से यह प्रयत्न होना चाहिए कि बालकों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाए कि वे जो कुछ भी, जिस परिस्थिति में अपने और दूसरों के संवेगों के सन्दर्भ में अनुभव करें, उस समय उन्हें उनका पूर्ण और सही आभास होना चाहिए।

सुझाव :

4. दूसरों के संवेगों और उनकी भावनाओं को समझने के लिए यह आवश्यक होता है कि उनकी बात को धैर्यपूर्वक सुना और समझा जाए। अनुसंधानों के द्वारा यह पाया गया है कि जिन व्यक्तियों में संवेगात्मक बुद्धि की अधिकता होती है वे सामान्य रूप से दूसरों की बात अधिक अच्छी तरह से सुनते हुए पाए जाते है।

5. हम भावनाओं में बहकर ठीक तरह नहीं सोच पाते हैं, इस गलत धारणा को मन से निकाल देना चाहिए। संवेगों को अपनी विचार प्रक्रिया से समन्वित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। मस्तिष्क और हृदय दोनों का ही ताल मेल उचित व्यवहार प्रक्रिया में सदैव ही सहयोगी सिद्ध होता है संवेगों का अनुचित दमन करना कभी भी लाभदायक सिद्ध नहीं होता बल्कि मानसिक शक्तियों के उचित उपयोग से उन पर वांछित लगाम लगाने में ही व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण निहित होता है।

ध्यान रखें !

6. संवेग चाहे नकारात्मक हो या सकारात्मक, वे व्यक्ति विशेष के लिए परिस्थिति विशेष अनुसार लाभकारी सिद्ध होते हैं। क्योंकि उनका प्रादुर्भाव व्यक्ति के मस्तिष्क, हृदय और इन्द्रियों को उसकी व्यवहार क्रियाओं के माध्यम से जोङता है। क्रोध, मद, घृणा और अवसाद जिन्हें हम गलत संवेग समझते हैं वे भी समय और परिस्थिति अनुसार उतने ही आवश्यक और हितकारी होते हैं जितने कि साहस, प्रेम, शांति और हमें अपने संवेगों को उचित समय पर उचित मात्रा में उचित रूप से अभिव्यक्त करने का ढंग आता हो।

महान् ग्रीक दार्शनिक अरस्तु के शब्दों में ’’कोई भी व्यक्ति क्रोध कर सकता है यह बहुत आसान है परन्तु सही व्यक्ति के साथ सही मात्रा में सही समय पर सही प्रयोजन हेतु सही ढंग से क्रोध करना आसान नहीं है।

7. बालकों को प्रारम्भ से ही अपनी भावनाओं तथा संवेगों के ऊपर उचित नियन्त्रण रखने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। नकारात्मक संवेग जैसे भय, पीङा, क्रोध, घृणा आदि के बारे में तो इस ओर और भी अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

8. कभी भी अपनी भावनाओं तथा संवेगों को अपनी प्रगति की राह का ऐसा रोङा नहीं बनने देना चाहिए। सभी तरह से उन्हें अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक अच्छे अभिप्रेरक के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

ध्यान रखें !

9. सभी प्रकार से ऐसा प्रशिक्षण देने का प्रयत्न करना चाहिए कि बालक केवल अपनी भावनाओं तथा संवेगों के बारे में ही नही सोचते रहे बल्कि वह यह जानने का प्रयास करें कि दूसरों की किसी विचार या वस्तु विशेष के प्रति किसी समय विशेष पर क्या भावनायें तथा प्रतिक्रियाएँ हैं। दूसरों की भावनाओं की सही अनुभूति ही उन्हें दूसरों के नजदीक ला सकती है।

10. बालकों में दूसरों के साथ वैचारिक आदान-प्रदान करने और आपसी सम्बन्ध बनाने हेतु उचित सामाजिक कोशलों का विकास किया जाना चाहिए। सम्बन्धों को बनाये रखने के लिए इस बात का सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी परिस्थति में बोलचात समाप्त न हो, दूसरों को अपनी बात कहने या अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाये तथा जहाँ तक हो सके सम्बन्धों में आई रिक्तता तथा कटुता को बहुत अधिक बढ़ने का अवसर न दिया जाये।

11. संवेगात्मक बुद्धि के विकास हेतु इस बात का ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि जितना ध्यान संज्ञानात्मक कौशलों तथा मानसिक विकास पर दिया जाता है उतना ही ध्यान भावात्मक क्षेत्र की योग्यताओं तथा कौशलों के विकास पर भी दिया जाए।

संवेगात्मक बुद्धि का मापन(Emotional Intelligence Test)

✔️ सामान्य बुद्धि के मापन हेतु हम किसी न किसी प्रकार के बुद्धि परीक्षण (शाब्दिक या अशाब्दिक) बुद्धि परीक्षणों या स्केलों का प्रयोग कर सकते है। उसी प्रकार संवेगात्मक बुद्धि का भी मापन हो सकता है।
1. मेयर इमोशनल इन्टैलीजैन्स स्केल (MEIS) इसे अमेरिका की न्यू हैम्पशायर यूनिवर्सिटी में कार्यरत डाॅ. जाॅन मेयर द्वारा बनाया गया है।
2. मेयर सेलोव एण्ड कारूसो इमोशनल इन्टैलीजैन्स टैस्ट (MSCEIT) अमेरिका के जाॅन मेयर, डाॅ. पीटर सेलोव तथा डाॅ. डेविड कारूसो द्वारा निर्मित।
3. बार ऑन इमोशनल कोशेन्ट इनवेन्टरी (E.Q.i) अमेरिका के डाॅ. रॅयूबेन बार ऑन द्वारा निर्मित एवं मल्टी हैल्थ सिस्टम यू.एस.ए. द्वारा प्रकाशित।
4. मंगल संवेगात्मक बुद्धि मापनी (Mangal Emotional Intelligence In-ventory) हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में डाॅ. एस. के मंगल एवं डाॅ. शुभ्रा मंगल द्वारा निर्मित एवं नेशनल साइकोलोजीकल काॅरपोरेशन द्वारा प्रकाशित।

संवेगात्मक शिक्षा और अध्यापक का दायित्व

☑️ बालक को यदि उपयुक्त उद्दीपक मिले तो वह संवेगात्मक अनुभव प्राप्त कर रचनात्मक क्रियाओं को सफलता से पूर्ण करता है। परन्तु अध्यापक और अभिभावक दोनों को इस बात की सावधानी रखनी चाहिए कि तीव्र व अधिकतम संवेग जीवन में हानिप्रद भी हो सकते है।
अति भय के कारण बालक में ऐसे शारीरिक परिवर्तन हो सकते हैं कि वह अपनी जीवन-लीला समाप्त करने की बात सोचने लगे। परीक्षा में असफल होने का भय एवं किसी अशोभनीय अपराध-चोरी, व्याभिचार, जुआ और किसी की हत्या आदि कुकृत्यों को भय से विकसित संवेगों की स्थिति अत्यन्त हानिकारक परिणामों तक किशोरों को पहुँचा सकती है।

☑️ अध्यापकों और परिवार के सदस्यों को बालकों के सामने ऐसे उदाहरण और अनुभवों का बखान नहीं करना चाहिए जो उन्हें जोखिम में डालने में प्रेरक अथवा उद्दीपक बनें।

विद्यालय की क्रियाएँ बालक के सीखने-सिखाने के साथ उनमें संवेदात्मक परिवर्तन लाती है। यदि विद्यालय में कार्यक्रम बालक की रूचियों से मेल खाते हैं तो वे उसमें उल्लास, आनन्द का संचार कर सकते है। परन्तु यदि विद्यालय के कार्यक्रम बालकों में तनाव का संचार करते है, उनमें खीज व कष्ट की प्रेरणा को जन्म देते हैं तो बालक विद्यालय के दूर भागने की सोचेगा।

अन्य अध्यापक का दायित्व

✔️ विद्यालय बालक के लिए ’भयालय’ न बने, इसकी चेष्टा अध्यापक और अभिभावक दोनों को सदैव करते रहना आवश्यक है। बालकों में संवेग प्रेम-स्नेह, प्रशंसा से आगे बढ़ते हुए कहीं घुणा, ईष्र्या, क्रोध, दुव्र्यवहार पूर्ण प्रतिस्पर्धा में नहीं उतर जाए इसका ध्यान कक्षा-कक्ष और बाहर के वातावरण की स्थितियों में अध्यापक व अभिभावक ही रखेगा।

विशेष :

संवेगों को संतुलित रखना और उन पर सावधानी रखने का एक ही मार्ग है कि बल्कि को उत्तेजन की परिस्थितियों से दूर रखा जाए। अध्यापक संवेगों की शक्ति को पहचान कर उसको दिशा प्रदान कर सकता है। संवगों से बालकों का भावी जीवन मृदुल अथवा कङवा बनता है, अध्यापक अपने छात्रों में प्रेरणाओं द्वारा उल्लास एवं हर्ष को विकसित करने की चेष्टा करें। दैनिक शिक्षण में भी अध्यापक संवेगों द्वारा कौशल विकसित कराने का अभ्यास करें। संवेगों का बालकों में अवदमन (Reperssion) नहीं करके उनका उदात्तीकरण करने की प्रेरणाएँ अध्यापक कक्षा-कक्ष में देना चाहिए।

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⏩ सिन्धु सभ्यता      ⏩ वायुमंडल की परतें 

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