बुद्धि परीक्षण – Buddhi Parikshan – INTELLIGENCE TESTING – बुद्धि परीक्षणों के प्रकार

आज के आर्टिकल में हम बुद्धि मापन और बुद्धि परीक्षणों के प्रकार (Buddhi Parikshan or Buddhi Mapan) के  बारे में विस्तार से पढेंगे और नयी -नयी जानकारी को साँझा करेंगे ।

Buddhi Parikshan

बुद्धि परीक्षण

बुद्धि परीक्षण – Buddhi Parikshan

दोस्तो जैसा कि आप जानते हो कि बुद्धि-मापन का कार्य विभिन्न रूपों में हर काल में होता आया है। प्राचीन भारत में बालक के ज्ञान की विचित्र दृष्टिकोणों से परीक्षा लेकर उसकी बुद्धि को मापा जाता था। कुछ लोगों ने शारीरिक संरचना के आधार पर भी बुद्धि का माप करने की चेष्टा की थी, जैसे ’’क्वचित दन्तिर्भवेत् मूर्खः।’’ अर्थात् छितरे दाँतों वाला व्यक्ति शायद ही मूर्ख होता है। शारीरिक संरचना के आधार पर ही लैवेटर (Lavator) तथा गाल (Gall) आदि पश्चिमी विद्वानों ने भी बुद्धि का माप करने की चेष्टा की।

किन्तु आधुनिक विधि से बुद्धि-मापन का इतिहास 1875 से प्रारम्भ होता है जब कैटल (Cattell) तथा गाल्टन (Galton) जैसे प्रमुख विद्वानों ने व्यक्तिगत विभिन्नताओं को मान्यता दी।

1879 में वुण्ट (Wundt) ने सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की जिसकी प्रेरणा से एबिंगहास तथा पीयरसन आदि बुद्धि-परीक्षण का कार्य प्रारम्भ किया, किन्तु इनकी बुद्धि-परीक्षाएँ अत्यन्त ही साधारण मानसिक योग्यताओं का माप करती थीं।

फ्रांस में सन् 1905 में एल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) यह पता लगाना चाहते थे कि फ्रांस में छात्रों के परीक्षा-परिणाम क्यों गिरते जा रहे हैं। वे जानना चाहते थे कि वह कौन-सी मानसिक योग्यता है जिसके कारण सफलता या असफलता प्राप्त होती है।

अतः 30 प्रश्नों वाला उन्होंने प्रथम बुद्धि-परीक्षण बनाया। सन् 1908 तथा 1911 में इसका संशोधन किया गया और ’मानसिक आयु’ (Mental age) शब्द का प्रथम बार प्रयोग किया गया। सन् 1911 में प्रश्नों की संख्या बढ़ाकर 54 कर दी गई।

सन् 1916 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के टरमैन (Terman) ने इस परीक्षण में उल्लेखनीय संशोधन किए और इनका नाम ’स्टेनफोर्ड-बिने टेस्ट’ रखा। 1937 में मैरिल (Merril) की सहायता से टरमैन ने इसे पुनः संशोधित किया और इसका नाम ’टरमैन-मेरिल स्केल’ रखा। इसमें कुल मिलाकर 90 प्रश्न थे।

धीरे-धीरे इस परीक्षण का विश्व के अनेक देशों में अनुवाद किया गया तथा अन्य विद्वानों ने इसे आधार मानते हुए अन्य बुद्धि-परीक्षण भी तैयार किये, उदाहरण के लिए बर्ट ने इसी आधार पर एक परीक्षण बनाया। 1913 में जर्मनी में तथा इलाहाबाद मनोविज्ञानशाला ने भी इसी आधार पर बुद्धि-परीक्षण बनाये।

बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient & IQ) –

सन् 1908 में बिने (Binet) ने ’मानसिक आयु’ का सर्वप्रथम विचार दिया। बिने का मानसिक आयु से तात्पर्य उस आयु से था जो बुद्धि या मानसिक परीक्षणों के परिणामों के औसत से प्राप्त होती है। टरमैन ने बिने के ’मानसिक आयु’ के विचार को स्वीकार किया और बुद्धि-परीक्षण ज्ञात करने हेतु निम्न सूत्र का आरम्भ में प्रयोग किया गया-

टरमैन का बुध्दि लब्धि सूत्र
टरमैन का बुध्दि लब्धि सूत्र

इस सूत्र में सबसे बङा दोष यह था कि बुद्धि-लब्धि प्रायः अपूर्ण संख्याओं अर्थात् दशमलव में आती थी। स्टर्न ने इस दोष को दूर करने हेतु निम्नलिखित सूत्र के द्वारा बुद्धि-लब्धि ज्ञात की-

बुद्धि-लब्धि का सूत्र – Buddhi Labdhi ka Sutra

स्टर्न का बुद्धि लब्धि सूत्र
स्टर्न का बुद्धि लब्धि सूत्र

इस सूत्र के अनुसार सर्वप्रथम बालक की मानसिक आयु ज्ञात कर लेते हैं। फिर बालक की वास्तविक आयु (Chronological Age) से भाग दे देते हैं और भागफल में 100 का गुणा कर देते हैं। इसमें हमें जो गुणनफल प्राप्त होता है वही वास्तविक बुद्धि-लब्धि (I.Q.) होता है ।

उदाहरण के लिए, यदि किसी बालक की वास्तविक जीवन आयु 10 वर्ष है और किसी बुद्धि-परीक्षण के आधार पर उसकी मानसिक आयु 12 वर्ष निकलती है तो उसकी बुद्धि-लब्धि निम्नलिखित होगी-

बुध्दि लब्धि (I.Q.)
बुध्दि लब्धि (I.Q.)

बुद्धि-लब्धि का चार्ट – Buddhi Labdhi Chart

टरमैन महोदय ने बुद्धि-लब्धि के आधार पर व्यक्तियों को निम्न प्रकार से श्रेणी विभाजित किया-

बुद्धि-लब्धिव्यक्ति की श्रेणी
25 से कमजङ (Idiots)
25 से 50मूढ़ (Imbeciles)
50 से 70मूर्ख (Morons)
70 से 80क्षीण बुद्धि (Feeble minded)
80 से 90मन्द बुद्धि (Dull)
90 से 110सामान्य (Average)
110 से 125उच्च-बुद्धि (Superior)
125 से 140अति उच्च-बुद्धि (Very Superior)
140 से अधिकप्रतिभाशाली या मेधावी (Genious)

अन्य विद्वानों ने भी अपने-अपने अन्य इसी प्रकार के वर्गीकरण प्रस्तुत किए किन्तु इन सभी वर्गीकरणों से एक सामान्य बात स्पष्ट है कि जिसकी बुद्धि-लब्धि अधिक होगी, वह उतना ही अधिक योग्य होगा।

बुद्धि परीक्षणों का वर्गीकरण

(CLASSIFICATION OF INTELLIGENCE TESTS)

वर्तमान समय में उपलब्ध बुद्धि-परीक्षणों का श्रेणी-विभाजन निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं-

(1) (अ) व्यक्तिगत परीक्षण (Individual Tests)
(ब) सामूहिक परीक्षण (Group Tests)

(2) (अ) शक्ति परीक्षण (Power Tests)
(ब) गति परीक्षण (Speed Tests)

(3) (अ) शाब्दिक परीक्षण (Verbal Tests)
(ब) निष्पादन परीक्षण (Performance Tests)

1. (अ) व्यक्तिगत परीक्षण (Individual Tests)

व्यक्तिगत परीक्षण बुद्धि की मापनियाँ हैं जो एक समय में एक ही छात्र की परीक्षा लेती हैं। बिने का परीक्षण तथा उसके समस्त संशोधन बुद्धि के व्यक्तिगत परीक्षण हैं। इसी प्रकार सभी निष्पादन परीक्षाएँ व्यक्तिगत परीक्षण होती हैं। वैश्लर-वैलेव्यू परीक्षण भी व्यक्तिगत है। इस प्रकार के परीक्षणों में एक-एक बालक को बुलाकर उसकी परीक्षा ली जाती है।

कुछ प्रमुख व्यक्तिगत परीक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. बिने-स्टेनफोर्ड परीक्षण
  2. वैश्लेर-वेलेव्यू परीक्षण
  3. बटेके तर्क-शक्ति परीक्षण
  4. मिनेसोटा-पूर्व-विद्यालय परीक्षण
  5. मेरिल-पामर मानसिक परीक्षण
  6. जैसिल विकास सूची
  7. कोज ब्लाक डिजायन टेस्ट

इसी प्रकार अन्य सभी निष्पादन परीक्षण व्यक्तिगत होते हैं।

(ब) सामूहिक परीक्षण (Group Tests)

बुद्धि के सामूहिक परीक्षण वे परीक्षण हैं जो एक ही समय में पूरे समय पर प्रशासित कर लिये जाते हैं। जहाँ एक साथ कम समय में बहुत सारे छात्रों की परीक्षा ली जानी होती है वहाँ ये परीक्षण बङे उपयोगी होते हैं। सेना, अनुसन्धान, विद्यालय तथा उद्योगों में सामूहिक परीक्षा लेने के लिए ये बङे उपयोगी होते हैं। ये परीक्षण मुख्य रूप से शाब्दिक होते हैं। अतः इनका उत्तर देने के लिए भाषा-ज्ञान होना आवश्यक है।

कुछ प्रमुख सामूहिक बुद्धि परीक्षणों के निम्नलिखित हैं-

  1. आर्मी-अल्फा परीक्षण।
  2. आर्मी-बीटा परीक्षण।
  3. आर्मी-जनरल क्लासीफिकेशन परीक्षण।
  4. टरमैन ग्रुप टेस्ट आफ मेन्टल मैच्यूरिटी।
  5. जलोटा का सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण।
  6. डा. प्रयाग मेहता का बुद्धि परीक्षण।

व्यक्तिगत व सामूहिक परीक्षाओं में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN INDIVIDUAL AND GROUP TESTS)

व्यक्तिगत व सामूहिक परीक्षणों में निम्नलिखित अन्तर हैं-

व्यक्तिगत परीक्षणसामूहिक परीक्षण 
1. यह छोटे बालक, मानसिक रूप से विक्षिप्त तथा अनपढ़ व्यक्तियों के लिए ठीक रहती है।1. यह परीक्षा बङे बालकों तथा सामान्य व्यक्तियों के लिए उपयुक्त रहती है।
2. पशुओं के बौद्धिक स्तर की जाँच इनसे सम्भव है।2. पशुओं के व्यक्तिगत बुद्धिस्तर का ज्ञान इनसे सम्भव नहीं है।
3. इनका प्रशासन कोई योग्य व कुशल व्यक्ति कर सकता है।3. इनका प्रशासन सामान्य बुद्धि योग्यता वाला कोई भी व्यक्ति ही कर सकता है।
4. इनमें परीक्षा लेने के लिए बहुत अधिक समय तथा साधन चाहिये। इसलिये ये परीक्षाएँ अधिक खर्चीली होती हैं।4. इनके द्वारा थोङे समय में ही एक बङे समूह की सरलता से परीक्षा ली जा सकती है अतः ये परीक्षण मितव्ययी होते हैं।
5. इनका निर्माण अपेक्षाकृत कठिन होता है।5. इनका निर्माण (विशेष रूप से प्रश्नों का) अपेक्षाकृत सरल होता है।
6. इनमें परीक्षक व परीक्षार्थी के बीच निकट का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।6. इनमें परीक्षक व परीक्षार्थी के मध्य कोई सम्बन्ध ऐसा स्थापित नहीं हो पाता है।
7. परीक्षक परीक्षार्थी के भाषा-स्तर, उच्चारण तथा ऐसे ही अन्य गुणों का भी पता साथ ही साथ लाभ लेता है।7. इसमें बालक के भाषा-स्तर तथा अन्य योग्यताओं का पता नहीं लगता है।
8. इनमें परीक्षक परीक्षार्थी के व्यवहार गुणों का पता लगा लेता है।8. इसमें बालक के व्यवहारों का पता लगाना कठिन होता है।
9. व्यक्तिगत परीक्षणों में परीक्षार्थी के पास ही परीक्षण की उपस्थिति उसे सजगता प्रदान करती रहती है।9. सामूहिक परीक्षणों में उत्तर देने के लिए कोई इस प्रकार के प्रेरक नहीं होते हैं।

2. (अ) शक्ति परीक्षण (Power Tests)

शक्ति परीक्षण द्वारा किसी व्यक्ति की एक विशेष क्षेत्र से सम्बन्धित ज्ञान-शक्ति की परीक्षा ली जाती है। इस प्रकार के परीक्षणों में जो प्रश्न दिये जाते हैं, उनका कठिनाई स्तर क्रमशः धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। इस प्रकार प्रथम प्रश्न सर्वाधिक सरल तथा अन्तिम प्रश्न सर्वाधिक कठिन होता है। इस प्रकार के परीक्षणों में निश्चित समय को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है।

(ब) गति परीक्षण (Speed Tests)

इस प्रकार के परीक्षणों में प्रश्नों का कठिनाई-स्तर एक जैसा होता है। कठिनाई-स्तर की दृष्टि से सभी प्रश्न एक जैसे होते हैं, किन्तु इसमें समय-तत्त्व को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। परीक्षार्थी को एक निश्चित समय में ही प्रश्नों का उत्तर देने दिया जाता है। निश्चित समय में वह जितने प्रश्नों का उत्तर दे पाता है, उन्हीं के द्वारा उसकी बुद्धि का माप होता है। इस प्रकार ये परीक्षण मानसिक गति का मापन करते हैं।

3. (अ) शाब्दिक परीक्षण (Verbal Tests)

ये वे परीक्षण हैं जिनको हल करने के लिए शाब्दिक या भाषा-ज्ञान आवश्यक है। यहाँ शाब्दिक या भाषा-ज्ञान से हमारा तात्पर्य केवल अक्षरों व शब्दों के ज्ञान से ही नहीं है, वरन् संख्या-ज्ञान भी आवश्यक है। शाब्दिक परीक्षण व्यक्तिगत हो सकते हैं अथवा सामूहिक, इसी प्रकार शाब्दिक परीक्षण शक्ति-परीक्षण हो सकते हैं अथवा गति-परीक्षण हो सकते हैं।

कुछ प्रमुख शाब्दिक परीक्षण निम्नलिखित हैं-
(i) आर्मी-अल्फा परीक्षण
(ii) आर्मी-बीटा परीक्षण
(iii) डा. जलोटा का बुद्धि-परीक्षण
(iv) डा. सोहनलाल का बुद्धि-परीक्षण
(v) डा. प्रयोग मेहता का बुद्धि-परीक्षण

(ब) निष्पादन परीक्षण (Performance Tests)

निष्पादन परीक्षणों में परीक्षार्थी को कुछ कार्य करके समस्या का समाधान करना पङता है, जैसे- दिये चित्रों को एक क्रम में सजाना, या चित्रों की पूर्ति करना, कोई वर्ग निर्माण करना या दिये टुकङों से कोई आकृति बनाना। नीचे पोर्टियस-मेज परीक्षण (Porteus Mage Tests) का एक नमूना दिया गया है जिसमें परीक्षार्थियों को ‘S’ से प्रारम्भ कर ‘E’ तक पहुँचाना होता है।

भारत में बुद्धि-परीक्षण

(INTELLIGENCE TESTS IN INDIA)

1. शाब्दिक परीक्षण –

भारत में बुद्धि-परीक्षण के निर्माण का इतिहास सन् 1922 से प्रारम्भ होता है, जब एफ.जी. काॅलेज के प्राचार्य डा.सी.एच. राइस ने सर्वप्रथम बिने टेस्ट के आधार पर हिन्दुस्तानी बिने टेस्ट बनाया।

यह प्रयास पर्याप्त सराहनीय था परन्तु इस परीक्षण में कुछ दोष थे जिन्हें सन् 1935 में बम्बई के श्री वी. वी. कामथ ने दूर करने के प्रयास किये। श्री कामथ ने मराठी व कन्नङ भाषा में ’बम्बई कर्नाटक रिवीजन आफ बिने टेस्ट’ बनाया। इसी समय सन् 1932 में पं. लज्जाशंकर झा ने ’सिम्पल मेण्टल टेस्ट’ का प्रमापीकरण किया।

इसका प्रमापीकरण एक हजार बालकों पर किया गया। यह परीक्षण 10 से 18 वर्ष के बालकों के लिए था। 1936 में डा. एस. जलोटा ने बर्ट तथा टरमैन के परीक्षण के आधार पर अंग्रेजी भाषा में एक सामूहिक बुद्धि-परीक्षण निर्मित किया।

सेन्ट्रल ट्रेनिंग कालेज के श्री आर. आर. कुमारिया ने सन् 1937 में उर्दू भाषा में एक सामूहिक बुद्धि-परीक्षण बनाया। सन् 1937 में ही श्री एल. के. शाह ने हिन्दी भाषा में ’सामूहिक मानसिक योग्यता परीक्षण’ का निर्माण किया। श्री सी.टी. फिलिप ने सन् 1938 ई. में तमिल भाषा में ’सामूहिक शाब्दिक मानसिक योग्यता’ बनाया।

द्वितीय विश्व-युद्ध के समय शाब्दिक तथा सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का भारी मात्रा में निर्माण हुआ। युद्ध-काल के दौरान ही डा. सोहनलाल ने 45 मिनट का एक बुद्धि परीक्षण हिन्दी में बनाया। सन् 1943 ई. में पटना विश्वविद्यालय के श्री एस. एम. मोहसिन ने बुद्धि-परीक्षण की एक शृंखला का निर्माण किया तथा अलीगढ़ के डी. एस. काॅलेज के श्री झींगरन ने भी एक बुद्धि-परीक्षण बनाया।

सन् 1950-60 के मध्य केन्द्रीय-शिक्षा-संस्थान (C. I. E.) दिल्ली तथा मनोविज्ञानशाला, इलाहाबाद ने विभिन्न आयु-वर्ग के बालकों के लिए पृथक्-पृथक् ’सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण’ तैयार किये।

सन् 1960 ई. में डा. एम. सी. जोशी ने 100 पदों वाला ’सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण’ तैयार किया, जिसका प्रमापीकरण 7,830 छात्रों पर किया। सन् 1964 ई. में डा. प्रयाग मेहता ने 1800 बालकों पर प्रमापीकृत कर ’सामूहिक बुद्धि परीक्षण’ बनाया। इसी समय डा. जालोटा ने अपने ’साधारण मानसिक योग्यता परीक्षण’ का संशोधन किया।

उपर्युक्त प्रयास केवल किशोरावस्था तक के बालकों की बुद्धि का माप करने की दिशा में हुए, किन्तु 1964 ई. में कलकत्ता के श्री मजूमदार ने वैश्लर-वेलेव्यू बुद्धि परीक्षण का बंगाली भाषा में अनुकूलन किया। 1970 में आगरा की श्रीमती जी.पी. शैरी ने ’वयस्क बुद्धि-परीक्षण’ की रचना की। वैश्लर के बुद्धि-परीक्षण के ही अनुरूप सन् 1971 में मुरादाबाद के श्री पी. एन. मेहरोत्रा ने एक मिश्रित बुद्धि-परीक्षण बनाया।

2. अशाब्दिक परीक्षण 

अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण निर्माण की दिशा में सर्वप्रथम अहमदाबाद के प्रो. पटेल ने गुडएनफ ’ड्रा ए मैन टेस्ट’ का गुजराती भाषा में अनुकूलन किया। इसी प्रकार बरोदरा की प्रमिला पाठन ने ’ड्रा ए मैन टेस्ट’ का भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलन किया।

दिल्ली की सी. आई ई. (C. I. E.) ने जेनकिन्स के ’अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण’ का भारतीयकरण किया। इसी प्रकार मनोविज्ञानशाला, इलाहाबाद के रेविन के ’प्रोगे्रसिव मेट्रिक्स’ तथा पिजन के अशाब्दिक परीक्षण का भारतीयकरण किया।

उक्त परीक्षणों के भारतीयकरण के अलावा कुछ विद्वानों ने अपने मौलिक चित्र भी बनाये। सन् 1938 में मेंजिल ने एक मौलिक अशाब्दिक परीक्षण बनाया। इसी प्रकार सन् 1942 में विकरी तथा ड्रेयर ने ऐसा ही परीक्षण बनाया। कलकत्ता विश्वविद्यालय के श्री रामनाथ कुण्डू ने वयस्कों के लिये एक अशाब्दिक परीक्षण बनाया। सन् 1966 ई. में श्री अयोध्यानाथ मिश्र ने ’ह्यूमन फिगर ड्राइंग टेस्ट’ का प्रमापीकरण किया।

सन् 1967 ई. में कलकत्ता के श्री एस. चटर्जी तथा श्री एम. मुखर्जी ने भी एक अशाब्दिक परीक्षण बनाया। सन् 1968 ई. में जौनपुर के श्री रघुवंश त्रिपाठी ने ’नाॅन-वरबल गु्रप टेस्ट आफ इन्टेलीजेन्स’ का निर्माण किया।

3. निष्पादन परीक्षण

भारत में निम्नांकित निष्पादन बुद्धि-परीक्षणों का भारतीयकरण तथा प्रमापीकरण हो चुका है-
(i) गोडार्ड फार्म बोर्ड – पटेल व पानवाला ने गुजराती में किया।
(ii) ड्राइंग ए मैन टेस्ट – उदयपुर के डा. श्रीमाली ने किया।
(iii) कोह ब्लाक डिजायन टेस्ट – मनोविज्ञानशाला, इलाहाबाद ने भारतीयकरण किया।

इसके अलावा श्री चन्द्रमोहन भाटिया तथा मनोविज्ञानशाला, इलाहाबाद ने भी इस दिशा में अनेक मौलिक कार्य किये हैं।

दोस्तो आज के आर्टिकल में हमने बुद्धि मापन और बुद्धि परीक्षणों के बारे में पढ़ा ,हम आशा करतें है कि आपको इस टॉपिक में दक्षता हासिल कर ली होगी…धन्यवाद

बुद्धि का सिद्धान्त

बुद्धि क्या है ?

संवेगात्मक बुद्धि क्या है ?

अधिगम क्या है ?

व्यक्तित्व क्या है ?

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.