Poverty Meaning in Hindi – गरीबी का अर्थ तथा कारण-Economics

आज के आर्टिकल में हम गरीबी का अर्थ (Poverty Meaning in Hindi) व इसके कारणों को अच्छे से पढेंगे ,सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के बारे में भी जानेंगे ।

Poverty Meaning in Hindi

निर्धनता क्या है – Poverty Meaning in Hindi

Table of Contents

गरीबी का तात्पर्य ’विकास’ के ठीक विपरीत है। इसका आशय विकास की कमी, अल्प विकास एवं पिछङेपन से है। देश के कुछ क्षेत्रों मे चिरस्थायी पिछङेपन और असमानता ने देश के कुछ हिस्सों में गरीबी की सघनता को जन्म दिया है। इसलिए गरीबी एक भौगोलिक आयाम है। इसके अतिरिक्त, चूँकि गरीबी कुछ समूहों के बीच विशेष रूप से कायम रही है, इसलिए सामाजिक आयाम भी है।

सामान्य तौर पर गरीबी शब्द का तात्पर्य आर्थिक अपवंचन से लिया जाता है अर्थात् धन तथा सम्पदा के अभाव को गरीबी कहा जाता है।

दो अध्येताओं, शाहीन रफी खान और डैमियन किल्लेन ने निर्धनता की स्थिति को बहुत ही संक्षेप में व्यक्त किया है: निर्धनता भूख है। निर्धनता बीमार होना है और डाॅक्टर से न दिखा पाने की विवशता है। निर्धनता स्कूल में न जा पाने और निरक्षर रह जाने का नाम है।

निर्धनता बेरोजगारी है। निर्धनता भविष्य के प्रति भय है, दिन में एक बार भोजन पाना है। निर्धनता अपने बच्चे को उस बीमारी से मरते देखने को कहते है, जो अस्वच्छ पानी पीने से होती है। निर्धनता शक्ति, प्रतिनिधित्व हीनता और स्वतंत्रता की हीनता का नाम है।

गरीबी क्या है – Garibi kya Hai

निर्धनता एक सामाजिक एवं आर्थिक समस्या है। इसकी उत्पत्ति और स्वरूप बङा जटिल है। विश्व के सम्मुख गरीबी की समस्या एक सामाजिक, नैतिक और बौद्धिक चुनौती है। गरीबी एक सर्वव्यापी समस्या है और समृद्ध देश भी इसकी चपेट से नहीं बच सके हैं। विश्व में गरीब देशों की संख्या इतनी है कि उन्हें ’तीसरी दुनिया’ के नाम से पुकारा जाता है। तीसरी दुनिया के लोगों को अच्छा भोजन, वस्त्र एवं मकान उपलब्ध नहीं है। भारत में भी ऐसे कई परिवार हैं जो औसत दर्जे का जीवन भी व्यतीत नहीं कर पाते। वे गरीबी से भयंकर रूप से पीङित हैं। वे सङकों और फुटपाथों पर अपना दम तोङते हैं, भीख मांग कर जीवन व्यतीत करते हैं तथा वे लोगों की दया पर ही जीवित रहते हैं।

ऐसी गरीबी भूख और मौत आज भीषण विषमता को जन्म देने में औद्योगिक क्रान्ति का विशेष हाथ रहा है। औद्योगिक क्रान्ति ने समाज में तीव्र आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तन लाने में योग दिया है। मशीनीकरण ने जहां एक ओर समाज में प्रचुर साधन उपलब्ध कराये हैं और समृद्धि को बढ़ावा दिया है, वहीं दूसरी ओर एक तीसरी दुनिया भी खङी कर दी है जो गरीबी और अभावों से त्रस्त है। औद्योगीकरण और मशीनीकरण का शुभारम्भ आज के तथाकथित सभ्य और पश्चिमी देशों में हुआ।

गरीबी(निर्धनता) क्या है ?

उन्होंने अपनी औद्योगिक मांगों के लिए एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमरीका आदि महाद्वीपों के देशों को अपना उपनिवेश बनाया, उन पर अपना साम्राज्य स्थापित किया तथा वहां के प्राकृतिक स्रोतों का शोषण किया। प्राकृतिक भण्डारों के खाली होने के साथ-साथ उन देशों में गरीबी बढ़ी। आज विश्व स्पष्टतः दो भागों में विभाजित दिखाई पङता है – एक तरफ वे देश हैं जो सम्पन्न हैं और दूसरी ओर वे देश हैं हो गरीबी से त्रस्त हैं।

गरीबी को दूर करने के लिए अनेक योजनाबद्ध प्रयास किये गये हैं। गरीबी के कारणों को ढुंढ कर उन्हें दूर करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। परिणामस्वरूप लोगों के जीवन-स्तर में सुधार हुआ है। स्वयं गरीब भी अपनी दशा के प्रति जागरूक हुए हैं और वे इस भयंकर समस्या से मुक्ति पाने के लिए सजग और प्रयत्नशील हैं। गरीबी के अनेक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पङते हैं। यह केवल आर्थिक समस्या ही नहीं वरन् सामाजिक समस्या भी है।

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सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में निर्धनता(Concept of Poverty)

सामान्यता निर्धनता के लिए प्रयोग किए जाने वाले सूचक वे है, जो आय और उपभोग के स्तर से संबंधित है, लेकिन अब निर्धनता को निरक्षरता स्तर, कुपोषण के कारण रोग प्रतिरोध क्षमता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता तक पहुँच की कमी आदि जैसे अन्य सामाजिक सूचकों के माध्यम से भी देखा जाता है। सामाजिक अपवर्जन और सुरक्षा पर आधारित निर्धनता का विश्लेषण अब बहुत सामान्य होता जा रहा है।

’सामाजिक अपवर्जन’ निर्धनता का कारण और परिणाम दोनों हो सकता है। मोटे तौर पर यह एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समूह उन सुविधाओं, लाभों और अवसरों पर अपवर्जित रहते है, जिनका परिसंपत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों के रूप में जीविका खोजने के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है।

निर्धन कौन है ?(Poverty Meaning in Hindi)

निर्धनतम परिवारों के जीवन का शाश्वत सत्य भूख और भूखमरी होती है। निर्धन बुनियादी साक्षरता तथा कौशल से भी वंचित रह जाते है। उनके लिए आर्थिक अवसर अत्यंत सीमित रह जाते है।

निर्धन श्रमिकों के रोजगार भी निश्चित होते नहीं होते। समाज के निर्धन वर्गों के कुपोषण बहुत ही गंभीर स्तर पर पहुँचा हुआ होता है। निर्धन महिलाओं को मातृत्व काल में भी कम देखभाल ही प्राप्त हो पाती है।
गरीबी मापन

संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि के प्रथम निदेशक लार्ड बाॅयड ओर ने सर्वप्रथम 1945 में गरीबी रेखा की अवधारणा प्रस्तुत की थी। डाॅ. ओर ने 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से कम उपभोग करने वाले व्यक्ति को गरीब माना गया।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए ऑक्सफाॅर्ड निर्धनता एवं मानव विकास पहल ने बहुआयामी निर्धनता सूचकांक बनाया। जिसे 2010 के मानव विकास प्रतिवेदन में जारी किया गया। इस निर्धनता सूचकांक के आकलन हेतु तीन आयामों तथा दस सूचकों का प्रयोग किया गया।
मानव विकास रिपोर्ट में गरीबी को बहुआयामी माना गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार गरीबी के मापन के लिए तीन अभाव महत्वपूर्ण है। इन अभावों में जीवन में लम्बी अवधि का न होना, शिक्षा का अभाव तथा उच्च जीवन स्तर का अभाव शामिल है। इसी के आधार पर मानव गरीबी सूचकांक का निर्माण किया गया है। निर्धनता का क्षमता मा के अनुसार गरीबी मापन हेतु तीन सूचकों का प्रयोग किया जाता है- इनमें पांच वर्ष से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों का अनुपात, अकुशल प्रसव अनुपात तथा महिला निरक्षता अनुपात शामिल है।

गरीबी के प्रकार (Types of Poverty)

निरपेक्ष गरीबी-

इसके अनुसार गरीबी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी न्यूनतम आधारभूत आवश्यकताओं जैसे खाना, कपङा, स्वास्थ्य सुविधा आदि की पूर्ति नहीं कर पाता है।

सापेक्ष गरीबी-

इसका अभिप्राय आय की असमानता से है। यह अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक असमानता या क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं से है। उदाहरणार्थ यदि एक देश के प्रति व्यक्ति आय दूसरे देश की प्रति व्यक्ति से आय कम है तो पहले देश को दूसरे देश की तुलना में गरीब माना जाएगा।

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भारत में गरीबी का माप (Types of Poverty in India)

⋅भारत में गरीबी मापने के दो आधार निर्धारित किए गए है-

  1. न्यूनतम कैलोरी उपभोग
  2. प्रति व्यक्ति प्रतिमाह व्यय

भारत में गरीबी के मापन हेतु प्रथम प्रयास दादा भाई नौरोजी ने 1868 ई. में किया। स्वतंत्रता पूर्व राष्ट्रीय नियोजन समिति द्वारा भी गरीबी के अनुमान प्रस्तुत किए गए थे। स्वतंत्रता के पश्चात् गरीबी रेखा के निर्धारण तथा गरीबी को परिभाषित करने हेतु 1962 ई. में योजना आयोग द्वारा एक अध्ययन-दल का गठन किया गया।

1971 में वी. एम. दांडेकर तथा नीलकंठ रथ ने गरीबी के लिए एक कसौटी को परिभाषित किया। इस संदर्भ में 1979 का वर्ष महत्वपूर्ण है, जब ’’प्रभावी उपयोग मांग एवं न्यूनत आवश्यकता पर कार्यदल’’ जिसे वाई. के. अलघ कमेटी भी कहते है के द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी।

इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार के द्वारा यह तय किया गया क ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्रों में प्रतिव्यक्ति 2100 कैलोरी प्रतिदिन अवश्य मिलनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति उपभोग में इससे कम कैलोरी प्राप्त करता, तो उसे गरीब अर्थात् माना जाता था। इसे ’’कैलारी या उपभोग आधारित गरीबी रेखा’ कहा गया।

इसके पश्चता् डी. टी. लकङावाला, सुरेश तेंदुलकर तथा सी. हेतु कार्यदलों का गठन किया गया। लकङावाला फार्मूले द्वारा 1993-94 तथा 2004-05 के लिए गरीबी के अनुमान लगाए गए थे।

⋅भारत में 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 40.37 करोङ जनसंख्या निर्धनता की रेखा के नीचे रह रही थी, 2004-05 में 32.63 करोङ लोग ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे थे।

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सुरेश तेंदुलकर तथा सी. रंगराजन के द्वारा गरीबी निर्धारण का अधार उपभोग-व्यय माना गया है। इन्होंने गरीबी रेखा के मापन हेतु खाद्यान तथा गैर-खाद्यान वस्तुओं की न्यूनतम मात्राओं का समूह तैयार किया तथा यह अनुमान लगाया की बाजार कीमतों के आधार पर वस्तुओं की इस न्यूनतम मात्राओं के समूह को क्रय करने हेतु कितने उपभोग व्यय की आवश्यकता है।

न्यूनतम उपभोग व्यय के अनुसार तेंदुलकर समिति ने ग्रामीण में 27 रू. व शहरी में 33 रू. प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खर्च करने वाला गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। तेंदुलकर समिति के अनुसार 2011 में भारत में 21.92 प्रतिशत, ग्रामीण व शहरी क्रमशः 26.9 व 5.28 प्रतिशत है। सी. रंगराजन ने वर्ष 2011-12 के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 972 रू. प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय तथा शहरी क्षेत्रो में 1407 रू. प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा माना है।

इस आधार पर वर्ष 2011-12 में भारत में गरीबी 29.5 प्रतिशत है। राजस्थान बोर्ड 12 भूगोल के अनुसार रंगरांजन समिति के अनुसार भारत में 36.30 प्रतिशत, ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में क्रमशः 26.05 व 10.25 प्रतिशत जनसंख्या बीपीएल वर्ग में है।

भारत में विश्वसनीय समंकों के संकलन का कार्य राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा किया जाता है। इसके द्वारा चलाए गये विभिन्न दौरों में एकत्रित किए गए उपभोग व्यय संबंधी समंकों के आधार पर विभिन्न विशेषज्ञ गरीबी का अनुमान लगाते है।

निर्धन परिवारों में सभी लोगों की कठिनाइयों का सामना करना पङता है, लेकिन कुछ लोग दूसरों से अधिक कठिनाइयों का सामना करते है। कुछ संदर्भों में महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चियों को भी ढ़ंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से वंचित किया जाता है। इन सामाजिक समूहों के अतिरिक्त परिवारों में आय असमानता है।

अंतर्राज्यीय असमानताएँ

भारत में निर्धनता का एक और पहलू या आयाम है। प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। वर्ष 2011-12 में भारत में निर्धनता अनुपात लगभग 22 प्रतिशत है। कुछ राज्य जैसे मध्य प्रदेश, असम, उत्तरप्रदेश, बिहार एवं उङिसा में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से ज्यादा है।

जैसा कि आरेख दर्शाता है, बिहार और उङिसा क्रमश: 33.7 और 32.6 प्रतिशत निर्धनता औसत के साथ दो सर्वाधिक निर्धन राज्य बने हुए है। ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तरप्रदेश में ग्रामीण निर्धनता के साथ नगरीय निर्धनता भी अधिक है।

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गरीबी के कारण के कारण लिखो

1. सामाजिक कारण:

भारत में जन्म, विवाह एवं मृत्यु से संबंधित अनेक परम्पराएं ऐसी है जो व्यक्ति को कर्जदार बना देती है। व्यक्ति जीवनपर्यन्त उस कर्ज के बोझ से बाहर नहीं आ पाता है। इसी प्रकार बेटे के जन्म की चाह ने जनसंख्या वृद्धि में योगदान दिया है जो गरीबी का एक बङा कारण है। संयुक्त वृहत परिवार भी निर्धनता का एक कारण है। इसमें कमाने वाले कम एवं खाने वाले ज्यादा होते है। जातियों में विभाजित ग्रामीण हिन्दू समाज ऐसा था कि जहां समाज के एक बङे पिछङे हिस्से को लगातार हीन अवस्था में बनाये रखा गया। इस वर्ग को लम्ब समय तक गरीबी से बाहर आने के लिए कोई अवसर नहीं दिया गया।

2. आर्थिक कारण(types of poverty):

आर्थिक पिछङेपन की स्थिति में लोग शिक्षा एवं स्वास्थ्य में निवेश नहीं कर पाते है जिससे उनकी गुणवत्ता निम्न बनी रहती है। निम्न गुणवत्ता के कारण इन्हें कम आय प्राप्त होती है और ये गरीबी के दुष्वक्र से बाहर नहीं आ पाते है। स्वतंत्रता के पहले अधिकांश भारतीय कृषि पर निर्भर करते थे। निवेश की कमी के कारण कृषिगत उत्पादकता निम्न बनी रही है। आर्थिक पिछङापन व्यक्ति के पास अवसरों की उपलब्धता कम कर देता है। अवसरों के अभाव में व्यक्त् गरीबी के दुष्चक्र से बाहर नहीं आ पाता है।

3. राजनैतिक कारण:

राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी भी भारत में भीषण गरीबी के लिए उत्तरदायी है। पांचवी पंचवर्षीय योजना से पूर्व सरकार द्वारा गरीबी निवारण हेतु कोई विशेष प्रयास नहीं किए गये। गरीबी निवारण हेतु विभिन्न सरकारों द्वारा अनेक योजनाएं बनायी गयी लेकिन प्रबल राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण उन योजनाओं के लाभ लक्षित व्यक्तियों तक नहीं पहुंच पाये। हमारे प्रशासनिक तंत्र में भी अनेक रिसाव है। वर्तमान सरकार द्वारा अपनायी जा रही प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण की नीति के कारण इन रिसावों में भारी कमी आयी है।
निर्धनता प्रमुख रूप से ’कमजोर संसाधन आधार’ तथा ’रोजगार के अभाव’ से जुङी हुई हैं। लघु व सीमान्त कृषक, खेतिहर मजदूर व आकस्मिक श्रमिक के पास पर्याप्त भूमि नहीं होती। इसके कारण इनकी आय कम तथा रोजगार अनियत होता है इसलिए यह वर्ग निर्धन है। भारत में निर्धनता के निम्न कारण है।

कमजोर संसाधन आधार

1. तीव्र जनसंख्या वृद्धि तथा विकास प्रारूप की कमियां: भारत के पास दुनिया का 2.4 प्रतिशत भू-भाग है तथा दुनिया की 17 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या रहती है। यह अनुपात संसाधनों पर जनसंख्या के दबाव को दर्शाता है। आज भी देश की 55 प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है। जबकि सकले घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान मात्र 13.9 प्रतिशत है।

2. भूमि का असमान वितरण: वर्ष 2010-11 में देश की कुल जोतों में सीमांत जोतों का अनुपात 67 प्रतिशत था जबकि इनके पास कुल कृषित क्षेत्र का 22.2 प्रतिशत ही था। इसके विपरीत बङी जोतों का कुल जातों में 0.7 प्रतिशत था व इनके पास कुल कृषित क्षेत्र का 10.9 प्रतिशत था। अर्थात् देश में भूमि का असमान वितरण है।

3. देश में भूमि सुधारों के सफल क्रियान्वयन का अभाव: कुल श्रमिको का लगभग 30 प्रतिशत खेतिहर मजदूर के रूप में कार्यरत है। सीलिंग कानून के तहत अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण व वितरण नहीं हुआ।

4. कृषि उत्पादन की धीमी वृद्धि व हरित क्रांति के दुष्प्रभाव: श्रम की कृषि में उत्पादकता भी नीची बनी हुई है इस कारण कृषि में कार्यरत अतिरिक्त श्रम कृषि से मुक्त नहीं हुआ। जो अतिरिक्त श्रम मुक्त होकर उद्योगों व सेवा क्षेत्र में नियोजित होना चाहिए था वह आज भी कृषि में कार्यरत है। हरित क्रांति के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों तथा धनी व निर्धन किसानों के बीच असमानता को बढ़ाया है।

5. खाद्यान कीमतों में तीव्र वृद्धि: आयोजन काल में कृषि उत्पादों की कीमतों में तीव्र वृद्धि हुई है। आयोजन काल में कृषि उत्पादों की कीमतें लगभग 46 गुणा बढ़ गई। खाद्यानों की तीव्र कीमत वृद्धि के निर्धनों के खाद्यान उपभोग को प्रभावित किया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा खाद्यानों का वितरण भी दोषपूर्ण है।

6. रोजगार हीन संवृद्धि: देश में आर्थिक सुधारों के बाद संवृद्धि दर तेज हुई है लेकिन इस संवृद्धि के अनुरूप रोजगार में विस्तार नहीं हुआ। उत्पादन वृद्धि के अनुरूप रोजगार में वृद्धि नहीं हुई है।

7. सामाजिक पिछङापन व श्रम की गतिशीलता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव, जागरूकता की कमी तथा परिवर्तन की चाहत के अभाव में सामाजिक पिछङापन है तथा श्रम की गतिशीलता कमजोर है। इस कारण श्रम की उत्पादकता कम है व आमदनी नीची है। इसके कारण वैकल्पिक रोजगार के अवसर कम है। इसलिए वैकल्पिक आय भी कम है।

8. कार्य सहभागिता दर कम होना: देश में वर्ष 2011 में कार्यशील जनसंख्या अनुपात 39.9 प्रतिशत था। यह अनुपात जापान में 49 प्रतिशत, जर्मनी में 48 प्रतिशत व इंग्लैण्ड में 46 प्रतिशत था। इसके कारण निर्धरता अनुपात ऊँचा है। भारत में महिलाओं की कार्य सहभागिता दर और भी कम है।

9. अन्य कारण: भारत में भयंकर गरीबी के लिए शिक्षा का निम्न स्तर, उद्यमी प्रवृत्तियों का अभाव, रोजगारपरक तथा व्यावसायिक शिक्षा का अभाव, कमजोर आधारभूत संरचना, पूंजी निर्माण का अभाव, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता उत्तरदायी है। इनसे देश में उत्पादकता तथा आय का स्तर निम्न बना रहता है। जो कि गरीबी का बङा कारण है। मुद्रास्फीति का मूल्य वृद्धि से भी गरीबी बढ़ती है। कीमतों में वृद्धि के कारण अनेक लोग अपने जीवन निर्वाह की मूलभूत आवश्यकताओं से संबंधित वस्तुओं को क्रय नहीं कर पाते तथा गरीबी रेखा के नीचे चले जाते है।

गरीबी उन्मूलन रोजगार के लिए विकास के आर्थिक कार्यक्रम(Efforts Taken to Reduce Poverty in India)

पांचवी पंचवर्षीय योजना में निर्धनता निवारण को देश में आयोजन में प्रमुख उद्देश्य घोषित किया गया। इसके पश्चात् निर्धनता निवारण के लिए प्रत्यक्ष रूप से कई योजनाएं आरम्भ की गई। मजदूरी रोजगार सृजन कर, स्वरोजगार के कार्य आरम्भ कर तथा सामाजिक सहायता से माध्यम से निर्धनों की आय वृद्धि के प्रयास किए गए। देश में निर्धनता निवारण की रणनीति निम्न प्रकार से वर्णित की जा सकती है-

1. आर्थिक विकास व निर्धनता वितरण:

नियोजन के आरम्भ में यह माना गया है कि यदि देश में तीव्र आर्थिक विकास होगा तो आय में वृद्धि होगी तथा आय में वृद्धि रिसकर निर्धन वर्ग तक पहुंचेगी इसे ’रिसाव प्रभाव’ कहा जाता है। विकास से रोजगार के अवसर सृजित होंगे इससे निर्धनता कम होगी। लेकिन विकास की गति पर्याप्त नहीं होने के कारण विकास रिसाव प्रभाव घटित नहीं हो पाया तथा आर्थिक विकास पर्याप्त मात्रा में रोजगार सृजित नहीं कर पाया। इसलिए केवल आर्थिक विकास के द्वारा निर्धनता निवारण असफल रहा।

2. निर्धनता निवारण हेतु मजदूरी रोजगार व स्वरोजगार के कार्यक्रम लागू किए गए:

1970 के दशक में सीमान्त किसान व खेतिहर मजदूर विकास एजेन्सी, लघु किसान विकास एजेन्सी, ग्रामीण रोजगार का पुरजोर कार्यक्रम, आरंभिक गहन ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, काम के बदले अनाज योजना आदि कार्यक्रम अपनाए गए। इस कारण इनका प्रभाव सीमित रहा।

इसके पश्चात् निर्धनता निवारण के कुद बङे कार्यक्रम जिपमें एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में ग्रामीण युवकों के लिए स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम 1979 में लागू किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम 1980 में आरम्भ किया गया। 1983 में ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गांरटी कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीनों व श्रमिकों को 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराने हेतु आरम्भ किया गया। इंदिरा आवास योजना 1985-86 में आरंभ की गई।

1986 में शहरी निर्धनों को वित्तीय व तकनीकी सहायता द्वारा शहरी निर्धनों हेतु स्वरोजगार कार्यक्रम आरम्भ किया गया। 1993 में ही शिक्षित युवकों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना आरम्भ की गई 1997-98 में गंगा कल्याण योजना आरम्भ की गई। अप्रैल, 1999 में ग्रामीण निर्धनों का जीवन स्तर सुधारने तथा उन्हें लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जवाहर ग्राम समृद्धि योजना लागू की गई। मार्च, 1999 में वृद्ध नागरिकों को निःशुल्क अनाज उपलब्ध कराने के लिए अन्नपूर्णा योजना आरम्भ की गई।

1999 में ग्रामीण क्षेत्र में IRDP, TRYSEM महिला व बाल विकास कार्यक्रम (DWCRA), SITRA, MWS (दस लाख कुओं की योजना) तथा GKY को मिलाकर ’स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना’ आरम्भ की गई। निर्धन वर्ग के सर्वाधिक निर्धनों को 2 रूपये किलो गेहूं व 3 रूपये किलो चावल उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2000 में अन्त्योदय योजना आरम्भ की गई। 2001 में शहरी स्लम आबादी को स्वच्छ आवास उपलब्ध कराने के लिए वाल्मीकि अम्बेङकर आवास योजना आरम्भ की गई।

3. क्षेत्र विकास के कार्यक्रम तथा अधःसंरचना का निर्माण:

पिछङे हुए क्षेत्रों व प्राकृतिक हानियों के कारण देश के कुछ क्षेत्रों में निर्धनता की समस्या अधिक है। इन क्षेत्रों के विकास पर विशेष कार्यक्रम चलाये गये ताकि इन क्षेत्रों में रहने वाले निर्धनों की आय में वृद्धि हो सके। 1973 में सूखा प्रवण (संभाव्य) क्षेत्र विकास कार्यक्रम लागू किया गया। जिसे राजस्थान में 1974-75 में लागू किया गया। मरूक्षेत्र विकास कार्यक्रम 1977-78 में लागू किया गया। पहाङी क्षेत्र विकास कार्यक्रम के तहत पहाङी क्षेत्रों में अद्यः संरचना सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास किए गए। रोजगार के लिए कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम 1975 में लागू किया गया।

गरीबी निवारण के लिए संचालित उपरोक्त कार्यक्रमों में से कुछ प्रमुख कार्यक्रमों का वर्णन इस प्रकार है-

1. स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवक प्रशिक्षण (ट्राइसेम):

इसे 15 अगस्त 1979 को केन्द्र समर्थित योजना से रूप में शुरू किया गया। इसमें गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से 18 से 35 वर्ष आयु के युवकों को कृषि एवं सम्बद्ध क्रिया-कलापों, उद्योग, सेवाओं व व्यापार से स्वरोजगार हेतु दक्षता प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के बाद ट्रायसेम लाभार्थियों को समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत मदद दी जाती है। इन योजना को 1 अप्रैल 1999 में स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में समयोजित कर लिया गया है।

2. एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम:

यह योजना 1978-79 में प्रारम्भ की गई। जिसे राजस्थान में 2 अक्टूबर, 1980 से प्रारंभ किया गया। यह एक केन्द्र समर्थित योजना थी। इसका उद्देश्य गरीबी परिवारों को कोई न कोई परिसम्पत्ति दी जाए ताकि उसका उपयोग करके वे अपनी आमदनी बढ़ा सके और गरीबी की रेखा से ऊपर आ सके। कार्यक्रम में दुधारू पशु (गाय, भेङ, बकरी, भैंस) बैलगाङी, सिलाई की मशीनें, हथकरघा आदि साधन प्रदान करने के लिए सरकार अनुदान देती थी। बैकों से ऋण दिलाया जाता था। यह कार्यक्रम 1 अप्रैल 1999 में स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में मिला दिया गया है।

3. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम:

यह मूलतः मजदूरी रोजगार कार्यक्रम था। इसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादक सामाजिक सम्पत्तियों का निर्माण किया गया। 1980 में यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार पर निर्भर लोगों के लिए आरंभ किया गया ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार के अवसर सृजित किए जा सके। 1989-90 में इस कार्यक्रम को जवाहर रोजगार योजना में समाहित कर दिया गया।

4. जवाहर रोजगार योजना:

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने की दृष्टि से यह योजना 1989-90 में प्रारम्भ की गई थी। इसमें केन्द्र का अंश 80 प्रतिशत व राज्यों का 20 प्रतिशत तक रखा गया था। लोगों का पोषण स्तर ऊँचा उठाने के लिए ’काम के बदले अनाज’ भी दिया जाता था। इससे पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के दो कार्यक्रम चलाए गये थे 1. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा 2. ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारन्टी कार्यक्रम। 1989-90 में यह दोनों कार्यक्रम इस योजना में मिला दिये गये। 1 अप्रैल, 1999 से जवाहर ग्राम-समृद्धि योजना लागू की गई।

5. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं एवं बच्चों का विकास:

इसमें गरीब परिवार की महिलाओं की आय में वृद्धि हेतु 5-10 महिलाओं का समूह बनाकर 15000रू. की आवृत्र्ती धनराशि प्रदान की जाती है। 1980-81 से 1997-98 के बीच इस योजना के तहत महिलाओं को सहायता प्रदान की गई। 1 अप्रैल 1999 के SGSY में शामिल कर दिया गया।

6. जिला गरीबी उन्मूलन परियोजना:

यह योजना 22 जुलाई 2000 को विश्व बैंक के सहयोग से प्रारम्भ हुई। यह ग्रामीण गरीबों को गैर-सरकारी संस्थाओं के माध्यम से जोङकर उनकी क्षमताओं का विकास करके उनका सशक्तीकरण करने के लिए बनाई गई। इसे NGOS के द्वारा काॅमन-इन्टरेस्ट ग्रुप (CIGS) बनाकर संचालित किया गया।

7. प्रधानमंत्री आवास योजना:

इसमें गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति, मुक्त बंधुआ मजदूर ग्रामीण गरीबों और युद्ध में शहीद सैनिकों की विधवाओं/निकटतम सम्बन्धियों को आवास निर्माण हेतु पर्वतीय क्षेत्रों में 75000 रूपये, मैदानी भागों में 70000 रूपये प्रति आवास प्रदान किये गये। यह योजना मई 1985-86 में शुरू हुई और 2016 में प्रधानमंत्री आवास योजना में नाम परिवर्तित किया गया है। जिसमें प्रत्येक कच्चे मकान वाले परिवार को शौचालय सहित 1,48,000 रूपये प्रदान किये जाऐंगे।

8. राजीव आवास योजना:

शहरों में मलिन बस्तियों के पुनर्विकास के लिए केन्द्र सरकार की नई प्रस्तावित ’राजीव आवास योजना’ के पहले चरण को CCEA ने मंजूरी 2 जून, 2011 को प्रदान की है। 12 वीं पचवर्षीय योजना के अंत तक लगभग 250 शहरों को इस योजना के अधीन लाने का सरकार का लक्ष्य है। सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक देश को स्लम मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। राजीव आवास योजना के तहत इसे एक लाख से ज्यादा आबादी वाले हर शहर में लागू किया जाना है। राजीव आवास योजना के सभी कार्य पूर्ण होने की संभावित तिथि 31 मार्च, 2022 है।

9. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन:

इस योजना को 30 मई 2005 में प्रारम्भ किया गया है। इसे देश में गरीब ग्रामीण जनता तक स्वास्थ्य सेवाओं को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। इस योजना के उद्देश्य निम्न रखे गये हैं-

  • ग्रामीण विशेषकर समाज के कमजोर वर्गों की महिलाओं और बच्चों को प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना।
  • शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लाना।
  • जनसंख्या स्थिरीकरण, लिंग एवं जन सांख्यिकीय सन्तुलन सुनिश्चित करना।

10. गंगा कल्याण योजना:

इस केन्द्र समर्थिक योजना को 1 फरवरी, 1997 को गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लघु एवं सीमान्त कृषकों को नलकूप/पंपिग सेट लगाने के लिए अर्थ-सहयोग और मियादी ऋण की सुविधा दी जाने के लिए किया गया है। इसमें 50 प्रतिशत लाभार्थी अनुसूचित जाति/जनजाति के होते है। खर्च का 80 प्रतिशत भाग केन्द्र 20 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इसे भी 1999 में जीएसएसवाई में मिला दिया गया।

11. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना:

केन्द्र प्रवर्तित यह योजना 1 दिसंबर, 1997 से आरंभ की गयी है। जिनमें तीन शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों-नेहरू रोजगार योजना, शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सेवायें योजना एवं प्रधानमंत्री एकीकृत शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को एक में मिला दिया गया। यह स्कीम गरीब महिलाओं को ऊपर उठाने पर विशेष बल देती है। आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय प्रवर्तित स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना को वित्तीय वर्ष 2014-15 में पुनर्गठित कर इसका नाम दीनदयाल अन्त्योदय योजना राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन कर दिया गया है।

12. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम:

इसकी शुरूआत 15 अगस्त, 1995 को की गई 1. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना में 65 वर्षीय अपेक्षित वृद्ध की प्रतिमाह 700 रूपये व 60 वर्ष तक 500 रू. प्रति माह वर्तमान में 2. राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना में घर के पालनकत्र्ता की मौत पर परिवार वालों को 30000 रूपये दिए जाते है। 3. राष्ट्रीय मातृ लाभ योजना में गरीबी रेखा से नीचे की 19 वर्ष की अधिक अयु वाली गर्भवती महिलाओं को 1400 रूपये लङकी के जन्म पर ’राजश्री योजना’ में 50,000 रूपये बालिका के सरकारी विद्यालय से पढ़ाई करने पर प्रदान कए जाते है।

13. अन्नपूर्णा योजना:

यह 1 अप्रैल 2001 से शुरू की गई जिसका उद्देश्य प्रतिमाह वरिष्ठ नागरिकों (65 वर्ष से अधिक उम्र) को 10 किलो अनाज देने की योजना शामिल है।

14. अंत्योदय अन्न योजना:

यह योजना दिसम्बर 2001 को प्रारम्भ हुई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत बीपीएल परिवारों को 2 रूपये प्रति किलो की दर से 25 किलो गेहूँ एवं 3 रूपये प्रति किलो की दर से चावल उपलब्ध करवाया जाता है।

15. स्वर्ण जयन्ति ग्राम स्वरोजगार योजना:

यह कार्यक्रम पूर्व से संचालित (IRDP, TRYSEM, DWCRA, SITRA, GKY, MWS) नामक 6 कार्यक्रमों को मिलाकर 1 अप्रैल, 1999 से भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की तरफ से चलाया गया था। इसमें भारत सरकार ने ग्रामीण विकास मंत्रालय की तरफ से चलाया गया था। इसमें भारत सरकार व राजस्थान सरकार की भागीदारी 75ः25 थी। इसके तहत् स्वरोजगारियों को निर्धनता की रेखा से ऊपर उठाने के लिए तथा उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उपक्रमों में काम पर लगाने की व्यवस्था की जाती है। इसमें ’समूह’ के आधार पर स्वरोजगार अधिकतम किया जाता था। इसके अन्तर्गत सब्सिडी की व्यवस्था की गयी थी। इससे अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को विशेष लाभ पहुँचाया जाता है।

16. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना:

इसे सितम्बर 2001 में रोजगार गारण्टी योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना को मिलाकर शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार, खाद्य सुरक्षा और स्थायी सामुदायिक परिसम्पत्तियों का निर्माण करना है। इसमें समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति एवं खतरनाक व्यवसायों से हटाये गये बच्चों के माता-पिता को प्राथमिकता दी गई है। योजना में प्रत्येक श्रमिक को 5 किग्रा खाद्यान्न एवं 25 प्रतिशत नकद धनराशि देना जरूरी है। वर्तमान में इसे मनरेगा में समाहित कर लिया है।

17. काम के बदले अनाज योजना:

इसे 14 नवम्बर 2004 में देश के 150 अत्यधिक पिछङे जिलों में शुरू किया गया है। जिसकी पहचान केन्द्र व राज्य सरकारों की सलाह पर योजना आयोग द्वारा की गयी है। प्रत्येक गरीब परिवार को वर्ष में 100 दिन का रोजगार देने का प्रावधान है। प्रतिदिन मजूदरी में 5 क्रिगा अनाज और नकद धनराशि दी जाती है। अब यह योजना मनरेगा में शामिल कर ली है।

18. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना:

ग्रामीण निर्धन युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने एवं उनको नियमित रूप से न्यूनतम मासिक मजदूरी के समान या उससे अधिक मासिक मजदूरी के साथ कार्य उपलब्ध करवाने की उद्देश्य से यह योजना 2014 में प्रारंभ की गई है। योजना में ग्रामीण क्षेत्र के 15 वर्ष से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवक/युवतियां जो बीपीएल/नरेगा में गत वित्तीय वर्ष में 15 दिवस तक काम करने वाले परिवारों के सदस्य तथा ऐसे ग्रामीण गरीब युवक जिनका चयन विशेष ग्राम सभाओं के तहत् किया हुआ हो, प्रशिक्षण हेतु पात्र होंगे।

19. श्रेयस योजना:

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने 27 फरवरी, 2019 को ’नए स्नातकों को औद्योगिक प्रशिक्षु अवसर प्रदान करने हेतु’ श्रेयस स्कीम का शुभारंभ किया। श्रेयस योजना के तहत उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को कौशलयुक्त किए जाने का लक्ष्य है। वह योजना तीन मंत्रालयों की संयुक्त पहल का परिणाम है। ये तीन मंत्रालय है- मानव संसाधन विकास मंत्रालय, कौशल एवं उद्यमिता विकास मंत्रालय और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय। राजस्थान भारत का पहला राज्य है जहां उच्च शिक्षा में कौशल विकास कार्यक्रम लागू किया गया। देश की पहली कौशल विकास यूनिवर्सिटी राजस्थान जयपुर में खोली गई है।

20. सांसद आदर्श ग्राम योजना:

11 अक्टूबर 2014 को लोक नायक श्री जयप्रकाश नारायण जी की जयंती के अवसर पर गांधीजी का अनुकरण करते हुए ग्राम स्वराज की संकल्पना को साकार करने हेतु ’’सांसद आदर्श ग्राम योजना’’ को राज्य में प्रारम्भ किया गया है। राज्य में सांसद आदर्श ग्राम योजना के लागू होने से गांव से आधारभूत संरचना, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पर्यावरण, आजीविका इत्यादि का समग्र विकास हो सकेगा। ’’एसएजीवाई का उद्देश्य मात्र अवसंरचना विकास करने के अलावा, गांव में और उसकी जनता के मन में कतिपय नैतिक भावनाएं उत्पन्न करना है ताकि वे अन्य लोगों के लिए माॅडल बन सकें।’’

21. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, रूर्बन मिशन (एसपीएमआरएम), 2015:

एसपीएमआरएम का लक्ष्य ’’मूलतः शहरी मानी जाने वाली सुविधाओं से समझौता किए बिना समता और समावेशन पर जोर देते हुए ग्रामीण सामुदायिक जनजीवन के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए रुर्बन गांवों के क्लस्टर का विकास करना है।’’ राष्ट्रीय रुर्बन मिशन (एनआरयूएम) का उद्देश्य अगले तीन वर्षों के देश भर में ऐसे 300 ग्रामीण विकास कलस्टरों का निर्माण करना है। आवश्यक पूरक वित्त पोषण (सी.जी.एफ) की राशि भारत सरकार से 60ः40 (केन्द्र एवं राज्य अनुपात) में प्राप्त होगी।

वर्तमान में गरीबी निवारण में सहायक कार्यक्रम

1. प्रधानमंत्री ग्राम सङक योजना:

यह योजना 25 दिसम्बर 2000 को शुरू की गई। इसका उद्देश्य 500 से अधिक (पहाङी, मरूस्थल एवं जनजातीय क्षेत्रों में 250) जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव को पक्की सङकों से जोङना है।

2. जलसंभरण विकास कार्यक्रम:

इससे पूर्व संचालित तीन कार्यक्रमों-सूखा प्रणव क्षेत्र विकास कार्यक्रम, मरूस्थल विकास कार्यक्रम एवं समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम को समाहित कर दिया गया है। जल संभरण कार्यक्रमों को हरियाली निर्देश के अधीन परियोजना कार्यान्वयन एजेन्सी के माध्यम से ग्राम पंचायत द्वारा लागू किया जाता है।

3. बीस सूत्री कार्यक्रम:

यह कार्यक्रम की घोषणा 1975 में की गई थी। कार्यक्रम का लक्ष्य देश की गरीब व वंचित आबादी के जीवन-स्तर को सुधारना है, जिसमें गरीबी, रोजगार, शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, कमजोर तबकों की सुरक्षा इत्यादि 119 विषय है।

4. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन:

1 अप्रैल 1999 से शुरू स्वर्ण जयन्ति ग्राम स्वरोजगार योजना को ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के रूप में पुननिर्धारित किया है तथा इसका नाम में आजीविका मिशन कर दिया गया है। इसका उद्देश्य ग्रामीण गरीबों के लिए प्रभावी एवं कुशल संस्थागत मंच का निर्माण करना है। टिकाऊ आजीविका वृद्धि और वित्तीय संस्थाओं के उपयोग में सुधार के माध्यम से घरेलू आय में वृद्धि करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी कार्यक्रम (मनरेगा)

मनेरगा अधिनियम अर्थात् 5 सितम्बर, 2005 को अधिसूचित किया गया है। 2 फरवरी 2006 आन्ध्र प्रदेश राज्य से देश के 200 सबसे पिछङे जिलों में शुरू किया गया और बाद में 1 अप्रेल 2008 को देश के शेष सभी ग्रामीण जिलों जिनकी संख्या 644 है, में लागू कर दिया गया। जिसमें राजस्थान के 6 जिले प्रथम चरण में शामिल थे।

जिसका उद्देश्य ऐसे प्रत्येक परिवार जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहते है, इन्हें एक वर्ष में कम से कम 100 दिनों की गारन्टी शुदा रोजगार उपलब्ध कराते हुए आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। विश्व में भारत प्रथम देश है जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित करके गरीबी दूर करने के लिए सरकार ने साविधिक स्वरूप एवं अधिकार आधारित दृष्टिकोण के साथ ’मनरेगा’ अधिनियम बनाया है।

इस व्यय से सङकों के निर्माण, बाढ़-नियंत्रण व संरक्षण, भूमि-विकास, परम्परागत जल स्रोतों के नवीनीकरण, लघु सिंचाई कार्यक्रमों, सूखा-प्राफिंग, जल-संरक्षण व जलग्रहण आदि कार्य किए गए है। मनरेगा में कार्य दिवस 100 से बढ़ाकर 150 दिन प्रतिवर्ष कर दिया है।

इस रोजगार में परिगणित जाति, जनजाति, महिलाओं (एक-तिहाई श्रमिक महिलाएँ) तथा गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को वरीयता दी जाती है। अधिसूचित सूखा प्रभावित ब्लाॅकों के प्रति परिवार 100 दिनों से अधिक का अतिरिक्त रोजगार अब अनुमान्रू है।

इसमें सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना तथा राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम का सन्निवेशन कर लिया गया है। अधिनियम के तहत प्रत्येक जिले मे पंचवर्षीय योजना तैयार की जायेगी। अधिनियम के तहत प्रत्येक जिले में पंचवर्षीय योजना तैयार की जायेगी। अधिनियम में कार्यक्रमों के क्रियान्वयन, मस्टर रोल, परिसम्पत्ति, रोजगार रजिस्टर आदि अभिलेखों के रख-रखाव, शिकायत निवारा तथा अनुश्रवण समितियों की व्यवस्था है।

मनरेगा का मुख्य प्रावधान

मनरेगा अधिनियम 2005 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले प्रत्येक परिवार के वयस्क सदस्य को जो अकुशल श्रम करने का इच्छुक है कि आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारन्टी दी गई है। इसके अन्तर्गत पंजीकृत परिवार का वयस्क सदस्य अकुशल मानव श्रम हेतु आवेदन करने का पात्र है।

जाॅब कार्ड प्राप्त होने पर रोजगार हेतु आवेदन ग्राम पंचायत में प्रस्तुत किया जाता है। मजदूरी श्रम आयुक्त द्वारा कृषि श्रमिकों के लिए निर्धारित दर से दी जाएगी।

रोजागार की मांग की तारीख से 15 दिनों में रोजगार उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है, अन्यथा आवेदक को बेरोजगारी भत्ते की पात्रता है। जिसके व्यय का वहन राज्य सरकार को करना होता है। योजना के क्रियान्वयन में ठेकेदारी प्रथा प्रतिबंधित है। मानव श्रम के स्थान पर कार्य करने वाली मशीनों का प्रयोग प्रतिबंधित है।

कार्यस्थल पर तात्कालिक उपचार सुविधा, पेयजल, छाँव हेतु शेङ, झूलाधार आदि उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। योजनातंर्गत कार्यरत व्यक्ति की मृत्यु या स्थायी अपंगता की स्थिति में 25000 रूपये बतौर मुआवजे के तौर पर दिए जाने का प्रावधान है। योजना में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सहभागिता अनिवार्य है। इसके अन्तर्गत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए किसी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।

भारत में महानरेगा की भूमिका

राष्ट्रीय स्तर पर मनरेगा में भुगतान की गयी औसत मजदूरी जो 2006-07 में 65 रूपये 2015 में 181 रूपये हो गयी। कृषि मजदूर की क्रय की शक्ति बढ़ी है और निजी क्षेत्र में मजदूरी बढ़ी है।

लक्ष्य

  • सम्बन्धित क्षेत्र में अक्सर रचनातमक सुविधाओं का विकास करने वाले कायों की मजदूरी, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर ग्रामीण
  • गरीबों का आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना।
  • सम्बन्धित क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों को पुनः बढ़ावा देना।
  • उपयोगी ग्रामीण परिसम्पत्तियों का निर्माण करना।
  • ग्रामीण गरीबों को सुरक्षा तंत्र उपलब्ध कराकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
  • महिलाओं का सशक्तिकरण सुनिश्चित करना।
  • जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण करना।

मनरेगा के उद्देश्य

  • ग्रामीण क्षेत्रों में मांग के हिसाब से प्रत्येक परिवार से एक वित्तीय वर्ष में गारन्टी युक्त रोजगार के रूप में कम से कम 100 दिनों का अकुशल शारीरिक श्रम कार्य उपलब्ध कराना, जिसके फलस्वरूप निर्धारित गुणवत्ता और स्थाई स्वरूप की उत्पादनकारी
  • परिसम्पत्तियों का सृजन हो सके।
  • निर्धनों के आजीविका संसाधन आधार को सुदृढ़ बनाना।
  • सक्रिय रूप से सामाजिक समावेशिता सुनिश्चित करना।
  • पंचायती राज संस्थाओं को सुदृढ़ बनाना।

भारत में मनरेगा से प्रभावकारी परिवर्तन

’मनरेगा’ योजना न केवल ग्रामीण रोजगार के लिए लाभकारी सिद्ध हुई है, बल्कि यह सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ दूरसंचार, चिकित्सा, शिक्षा, मरम्मत के कार्यों में सहयोग दे रही है। आज जरूरत है इस योजना को अधिक प्रभावी बनाने हेतु क्रियान्वयन, प्रशासन एवं निरीक्षण पद्धति को अधिक सक्षम, पारदर्शी एवं सक्रिय बनाने की।
मनरेगा जहां एक ओर मजदूर वर्ग की आय में वृद्धि के कारण खाद्यान्नों की मांग में वृद्धि लाता है। वहीं दूसरी ओर लागत में वृद्धि के द्वारा दूसरे वैकल्पिक रोजगारों में मजदूरी में वृद्धि लायेगी तथा मजदूर की मजदूरी में वृद्धि लायेगी।

निर्धनता निवारण के उपाय

निर्धनता उन्मूलन भारत की विकास रणनीति का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। सरकार की वर्तमान निर्धनता-निरोधी रणनीति मोटे तौर पर दो कारकों 1. आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन और 2. लक्षित निर्धनता-निरोधी कार्यक्रमों पर निर्भर है। निर्धनता निवारण हेतु निम्न प्रयास किये जाने चाहिए-

  • आर्थिक विकास की दर ऊँची हो
  • मजदूरी रोजगार, स्वरोजगार व सामाजिक सहायता का विस्तार हो
  • सामाजिक न्याय को बढ़ाने के प्रयास
  • जनसंख्या नियंत्रण व परिवार नियोजन

आज के आर्टिकल में हमने गरीबी का अर्थ (Poverty Meaning in Hindi)जाना व इससे जुड़ें महत्त्वपूर्ण तथ्यों को पढ़ा ,हमें आशा है कि आपने इस आर्टिकल से नई जानकारी प्राप्त की होगी

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