Jallianwala Bagh Hatyakand – क्या है जलियांवाला बाग हत्‍याकांड की वास्तविकता | 13 अप्रैल 1919

आज के आर्टिकल में हम जलियांवाला बाग हत्‍याकांड(Jallianwala Bagh Hatyakand) क्या था , जलियांवाला बाग हत्‍याकांड कहाँ हुआ(Jallianwala bagh hatyakand kahan hua tha) , जलियांवाला हत्याकांड कब हुआ था(Jallianwala bagh hatyakand kab hua), जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के क्या कारण थे(Jallianwala bagh hatyakand Ke kya Karan) ,और इसके जिम्मेवार कौन थे,  इन सब के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड कब हुआ ?

आज हम भारत के इतिहास के सबसे दर्द भरी कहानी पढ़ने जा रहे थे। 13 अप्रैल 1919 का दिन शायद ही कभी भुलाया जा सकता है। उस दिन राॅलेक्ट एक्ट का विरोध कर रहे सैकङों निर्दोष लोगों को जनरल डायर ने मौत के घाट उतार दिया। जिसे सुनकर आज भी लोगों की रुह काँप जाती है। जलियाँवाला बाग में लोगों पर बेरहमी से गोलियाँ चलाई गयी। जलियाँवाला बाग की धरती पर हजारों लोगों की लाशें बिछ गयी। आज भी जलियाँवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान साफ देख सकते है।

जलियांवाला बाग हत्‍याकांड
जलियांवाला बाग हत्‍याकांड

दोस्तो अब हम जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के कारणों को पढ़ते हुए इस काली घटना की पूरी कहानी पढेंगे ।

जलियांवाला बाग हत्याकांड – Jaliya wala Bag Hatyakand

हत्याकांड का नामजालियांवाला बाग हत्याकांड
समय13 अप्रैल 1919
स्थानअमृतसर, पंजाब (भारत)

रोलेक्ट एक्ट का विरोध क्यों हुआ ?

  • ब्रिटिश सरकार द्वारा 1919 में रोलेक्ट एक्ट कानून बना गया।
  • इस कानून के अनुसार भारतीयों पर केवल संदेह के आधार पर बिना मुकदमा चलाए उसे नजरबंद किया जा सकता है।
  • यह कानून ब्रिटिश सरकार ने राजनीतिक गतिविधियों एवं क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए लागू किया था।
  • इस कानून का पूरे भारत में विरोध किया गया।

’सत्याग्रह सभा’ की स्थापना

🔸 ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ डायर थे। रोलेक्ट एक्ट के विरोध में एक ’राॅलेट सत्याग्रह’ (1919) चल रहा था। यह ’रोलेक्ट सत्याग्रह’ पंजाब में बहुत तीव्र था। इस सत्याग्रह का नेतृत्व करने वाले पंजाब के दो प्रमुख नेता – डाॅ. सैफुद्दीन किचलू एवं डाॅ. सत्यपाल थे। 4 अप्रैल 1919 को गांधी जी पर ब्रिटिश सरकार ने पंजाब में जाकर आन्दोलन करने, सभा करने पर प्रतिबन्ध लगाया।

🔹 लेकिन 6 अप्रैल 1919 ने गांधीजी ने साबरमती आश्रम (गुजरात) में कार्यवाही शुरू की, साबरमती आश्रम में एक सभा की स्थापना की गयी जिसे ’सत्याग्रह सभा’ कहा गया। यहीं से ’राॅलैक्ट सत्याग्रह’ प्रारंभ हुआ। यहीं पर लोेगों ने हङताल की अपील की, 7 अप्रैल 1919 को एक अखबार शुरू हुआ, जिसका नाम ’सत्याग्राही सप्ताहिक अखबार’ निकाला गया’।

🔸 यह आंदोलन तीव्र हो उठा और 9 अप्रैल 1919 को ’पलवल’ नामक स्थान पर गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। 9 अप्रैल 1919 में ’रामनवमी’ का त्यौहार था। पंजाब के दो नेता के नेतृत्व में डाॅ. सत्यपाल एवं डाॅ. सैफुद्दीन के नेतृत्व में ’हिन्दू-मुस्लिम एकता’ रैली निकाली जा रही थी।

इस सांप्रदायिक एकता को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 10 अप्रैल 1919 को पंजाब के नेता डाॅ. सत्यपाल एवं डाॅ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। डाॅ. सैफुद्दीन किचलू एवं डाॅ. सत्यपाल को पंजाब के अमृतसर से निकाल दिया और ’धर्मशाला’ नामक स्थान पर नजरबंद कर दिया गया।

🔹 इन नेताओं को गिरफ्तार करने के कारण लोगों की भीङ उग्र हो गई। लोगों ने गुस्से में आकर रेलवे स्टेशन, तार विभाग और सरकारी दफ्तरों में आग लगा दी। लोगों और पुलिस के बीच झङप प्रारम्भ हो गयी। ’कमिश्नर आवास’ की तरफ बढ़ती भीङ पर ’हाॅलगेट पुल’ पर गोलीबारी की गई। जिससे आन्दोलन उग्र हो गया। प्रतिक्रियास्वरूप कई अंग्रेजों पर हमला हुआ और कुछ महिलाओं भी चोटिल हुई।

’माॅर्शल लाॅ’ लागू और पंजाब का प्रशासन जनरल डायर को सौंपना –

इन क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ब्रिटिश लेंफ्टिनेंट गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर ने 11 अप्रैल 1919 को पंजाब में ’माॅर्शल लाॅ’ कर दिया। माॅर्शल लाॅ के अनुसार ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों की सभाओं पर रोक लगा दी। लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर ने पंजाब का प्रशासन ’जनरल आर डायर’ को सौंप दिया गया।

जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की घटना – Jallianwala Bagh Hatyakand kab Hua Tha

12 अप्रैल 1919 हंसराज ने ’हिन्दू सभा स्कूल’ में एक बैठक की। इस बैठक में यह निर्णय लिया किया कि ’कन्हैयालाल’ की अध्यक्षता में 13 अप्रैल को ’जलियांवाला बाग’ में जनसभा होगी। लेकिन बाद में कन्हैयालाल ने इस जनसभा के अध्यक्ष बनने से इंकार कर दिया।

13 अप्रैल को ’बैसाखी पर्व’ था। 13 अप्रैल को पंजाब समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से अमृतसर में लोग ’बैसाखी पर्व’ मनाने के लिए पहुँचे थे। बैसाखी के मेले में स्त्री, युवा, बच्चे एवं बुजुर्ग सभी आए थे। वहीं दूसरी तरफ ’जलियाँवाला बाग’ में डाॅ. सत्यपाल, डाॅ. सैफुद्दीन किचलू एवं महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में जनसभा हो रही थी। इसलिए लोग बैसाखी मेले देखने के बाद इस जनसभा में आने लगे और लोगों की संख्या 20,000 हो गयी थी।

’जलियांवाला बाग’ में जनसभा हुई थी जिसमें लगभग 20,000 लोग एकत्रित हुए थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग में जनसभा हो रही थी और ’हंसराज’ नामक एक भारतीय इस जनसभा की मुखबिरी कर रहे थे। किसी ने इस जनसभा की सूचना पुलिस को दे दी और बाद में जनरल आर डायर तक यह सूचना पहुँच गई।

जलियाँवाला बाग में अन्दर जाने और बाहर आने के लिए एक ही संकरा मार्ग ही था, यह ऊबङ-खाबङ मैदान था जो चारों ओर से ऊँची दीवारों से गिरा हुआ था तथा चारों ओर मकान थे। यहाँ से बाहर निकलने का एक रास्ते के अलावा कोई भी रास्ता नहीं था।

जलियांवाला बाग का मुख्य द्वार
जलियांवाला बाग का मुख्य द्वार

जनसभा की सूचना मिलते ही जनरल आर डायर अपने 100 सैनिकों के साथ सायं 5 बजे वहाँ पहुँचे और इस ’जलियांवाला बाग’ को सैनिकों ने घेर लिया। जनरल डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी दिये सैनिकों को गोलीबारी करने का आदेश दिया और सैनिकों ने निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी प्रारम्भ कर दी तथा 50 पुलिस वालों ने लगातार गोलियाँ चलाई। सैनिक ने 10 मिनट तक 1650 राउँड गोलियों लगातार निर्दोष लोगों पर चलाई।

जब तक गोलियाँ समाप्त नहीं हो गयी, तब तक गोलियाँ चलती रही। लगभग लोगों के सामने भागने का कोई रास्ता नहीं था क्योंकि ’जलियांवाला बाग’ में 4-5 फीट एक ही मार्ग था जहाँ पर जनरल डायर ने तोप लगा दी थी ताकि कोई बाहर न निकल सके। चारों तरफ से 10 फीट तक की दीवारों से बंद था, और बाहर जाने का एक ही रास्ता था जिस पर भी सैनिक तैनात थे।

कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए कुँए में कूद गये, कहा जाता है कुएँ में से 120 लाशें निकाली गई जिनमें बच्चे, महिलाएँ, बुजुर्ग सब शामिल थे। गोलियाँ के कारण कुछ लोग मरे गये और तमाम लोग घायल हो गये।

इस घटना में लगभग 1000 से अधिक लोग मारे गये, जब गोलियाँ समाप्त हो गयी, तो जनरल डायर अपने सैनिकों को लेकर वहाँ से निकल गया और उस क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया। ’जलियाँवाला बाग’ में लोगों तङप-तङप कर मर गये, उन्हें बचाने के लिए कोई नहीं आया।

जलियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान
जलियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान

Jaliyawala Hatyakand

जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड में मरने वाले लोग एवं घायल होने वाले लोगों की संख्या बाद में निकाली गई थी। अलग-अलग रिपोर्ट के अनुसार इनकी अलग-अलग संख्या बताई गई है।

 रिपोर्ट मरने वाले लोगों की संख्याघायल होने वाले लोगों की संख्या
 अंग्रेज सरकार की ’सरकारी रिपोर्ट’ के अनुसार379 व्यक्ति1200 व्यक्ति
 मदनमोहन मानवीय के नेतृत्व में ’तहकीकात कमेटी’ के अनुसार1300 व्यक्ति1200 व्यक्ति
 स्वामी श्रद्धानंद की रिपोर्ट के अनुसार1500 व्यक्ति2400 व्यक्ति
 डाॅ. स्मिथ की रिपोर्ट के अनुसार1800 व्यक्ति2400 व्यक्ति
  • इस हत्याकाण्ड में 120 व्यक्तियों ने अपनी जान बचाने के लिए कुएँ में कूद गये थे।
  • 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में ब्रिटिश सरकार ने ’माॅर्शल लाॅ’ लागू कर दिया।

जनरल डायर की प्रशंसा की गई –

  • ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ डायर ने ’जनरल आर डायर’ की काफी प्रशंसा की और कहा कि तुमने बिल्कुल सही कार्य किया है।
  • ब्रिटेन की संसद के सदन ’हाउस ऑफ लाॅर्डस’ में जनरल डायर की प्रशंसा की गई और उसको सम्मानित किया गया।
  • ब्रिटेन में उसे ’ब्रिटिश साम्राज्य का शेर’ कहा गया। ब्रिटेन में जनरल डायर की प्रशंसा कर उसका स्वागत किया गया।
  • उसे 20,000 पौंड की थैली भेंट की गई। उसे एक तलवार दी गयी, जिस पर लिखा था ’सम्मान की तलवार’ (Swond of honour)।
  • ’मार्निंग पोस्ट’ अखबार ने जनरल डायर के लिए 30,000 पौंड चन्दा एकट्ठा किया।
  • इससे अंग्रेज सरकारी की नियत खुलकर सामने आ गयी।

इस हत्याकाण्ड की पूरे भारत में निंदा की गयी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए बनायी गई कमेटी कौनसी थी ?

’हंटर कमेटी’ –

  • जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के विरुद्ध बढ़ते जनाक्रोश को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इसकी जाँच के लिए 1 अक्टूबर 1919 को हंटर की अध्यक्षता में ’हंटर कमेटी’ का गठन किया।
  • हंटर कमेटी के 8 सदस्य थे, जिसमें 5 अंग्रेज सदस्य तथा 3 भारतीय सदस्य थे।
  • 3 भारतीय सदस्य
  1. जगत नारायण
  2. चीमन सीतलवाङा
  3. शाहजादा सुल्तान अहमद
  • 5 अंग्रेज सदस्य –
  1. लाॅर्ड हंटर
  2. मि. जस्टिन रैकिन
  3. मि. राइस
  4. मेजर जनरल सर जार्ज बैरो
  5. सर टाम्स स्मिथ।
  • 8 मार्च, 1920 इस कमेटी ने अपनी रिपार्ट दी, जिसको भारत सचिव ने जुलाई 1920 में जारी किया।

इनकी रिपोर्ट के अनुसार  –

  • मरने वालों की संख्या 379 थी, घायलों होने वालों की संख्या 1200 थी।
  • ब्रिटिश लेंफ्टिनेंट गवर्नर जनरल माइकल ओ डायर को निर्दोष बताया और ’माॅर्शल लाॅ’ सही है।
  • इस कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार कहा गया कि – जनरल डायर अपने कर्त्तव्य का गलत प्रयोग किया, यहाँ जितना बल प्रयोग वह थोङा ज्यादा किया है लेकिन इसने निष्ठा और ईमानदारी के साथ प्रयोग किया है।
  • जनरल डायर को केवल सेवामुक्त किया गया।

’तहकीकात कमेटी’ –

  • कांग्रेस ने जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की जाँच के लिए 2 अक्टूबर 1919 में मदनमोहन मानवीय की अध्यक्षता में ’तहकीकात कमेटी’ का गठन किया।
  • इस कमेटी के 9 सदस्य थे और ये सभी भारतीय सदस्य थे।
  1. मदन मोहन मानवीय
  2. मोती लाल नेहरू
  3. महात्मा गाँधी
  4. सी. आर. दास
  5. पुपुल जयकर
  6. अब्बास तैय्यवजी
  7. देशबंधु चितरंजन दास ।

इनकी रिपोर्ट के अनुसार –

  • 1300 व्यक्ति मारे गये और 1200 व्यक्ति घायल हुए।
  • इस कमेटी में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड, रोलेक्ट एक्ट और हंटर कमेटी की निंदा की गयी।
  • कमेटी ने इस हत्याकाण्ड के लिए जनरल डायर को जिम्मेदार ठहराया और उसे सजा मिलनी चाहिए कि माँग की।
  • इस कमेटी ने मृतकों के लिए आर्थिक सहायता की माँग की।

जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का विरोध करने वाले नेता

इस हत्याकाण्ड का कई भारतीय नेताओं ने विरोध किया था तथा अंग्रेजों द्वारा प्राप्त उपाधियों को त्याग दिया था।

🔸 दीनबन्धु सी. एफ. एन्ड्रयूज ने कहा – ’’यह जानबूझकर की गई हत्या थी।’’

🔹 इस हत्याकाण्ड के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ’नाइट हुड’ की उपाधि को त्याग दिया।

🔸 जिन्ना, मदनमोहन मानवीय, मजरुल हक ने केन्द्रीय विधानसभा से छुट्टी ले ली।

🔹 सर शंकरन नायर ने वायसराय कार्यकारिणी परिषद् से इस्तीफा दे दिया।

🔸 महात्मा गाँधी ने ’केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि त्याग दी। महात्मा गांधी ने कहा- ’यह ब्रिटिश साम्राज्य के अंत की शुरूआत है।’’

🔹 जमनालाल बजाज ने ’रायबहादुर’ की उपाधि त्याग दी।

🔸 लाला लाजपय राय ने कहा – यह वर्ष सुधारों के लिए नहीं, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के लिए याद किया जायेगा।

🔹 वेलेन्टाइन चिरोल ने इसे ’काला दिन’ कहा।

🔸 मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे ’कत्लेआम’ कहकर जनसभाएँ की।

उधमसिंह द्वारा लिया गया बदला और डायर की हत्या

  • जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के दौरान क्रांतिकारी युवा उधमसिंह भी घायल हुए थे। इन्होंने कसम खाई थी कि मैं जलियाँवाला बाग के इस नरसंहार का बदल जरुर लूँगा। उधमसिंह काफी समय तक माइकल ओ डायर का पीछा करते रहे थे।
  • आखिरकार उधमसिंह ने इसका बदला लेने के लिए 13 मार्च 1940 को लंदन में स्थित ’कैक्सटन हाॅल’ में ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। उधमसिंह पकङे गए और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गयी।

निष्कर्ष : Jallianwala Hatyakand

इस आर्टिकल में हमने जलियांवाला बाग हत्‍याकांड(Jallianwala Bag Hatyakand) क्या था ,जलियांवाला बाग हत्‍याकांड कहाँ हुआ ,जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के क्या कारण थे , इनके बारे में पढ़ा ,हम आशा करतें है कि आप जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर चुके होंगे ।

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