Simon Commission – साइमन कमीशन की पूरी जानकारी पढ़ें

आज के आर्टिकल में हम साइमन कमीशन (Simon Commission) के बारे में जानने वाले है।इसमें हम साइमन कमीशन क्या है, साइमन कमीशन भारत कब आया(Simon commission bharat kab aaya), साइमन कमीशन भारत क्यों आया(Simon commission bharat kyon aaya), साइमन कमीशन का विरोध क्यों हुआ(Simon commission ka virodh kyon kiya gaya), साइमन कमीशन का गठन कब किया (Simon commission ka gathan kab kiya gaya), साइमन कमीशन में कितने सदस्य थे(Simon commission mein kitne sadasya the)के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे ,इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य भी जानेंगे।

साइमन कमीशन

साइमन कमीशन – 1927

⇒ साइमन कमीशन भारत में  क्यों लाया गया ?

साइमन कमीशन की स्थापना ब्रिटेन में क्यों की गयी, इसके पीछे क्या कारण थे और इसका विरोध राष्ट्रीय स्तर पर क्यों हुआ। ये सारे सवाल आपके दिमाग में चल रहे होंगे, तो दोस्तों चलिए अपने सवालों का जबाव हमारी इस पोस्ट में हम पढ़ेगे विशेष महत्त्वपूर्ण तथ्यों के साथ।

  • भारत शासन अधिनियम 1919 में (मांटेग्यू- चेम्सफोर्ड) यह प्रावधान किया गया था कि 10 वर्ष के बाद एक कमीशन गठित किया जायेगा। 1919 एक्ट की समीक्षा हेतु एक संवैधानिक आयोग के गठन का प्रावधान था।
  • आयोग को यह देखना था कि यह अधिनियम व्यवहार में कहां तक सफल रहा तथा उत्तरदायी शासन की दिशा में कहाँ तक प्रगति करने की स्थिति में है। उत्तरदायी सरकार की प्रगति की समीक्षा करने के लिए यह कमीशन भेजा गया था।
  • इस कमीशन को 1931 में गठित किया जाना था, क्योंकि 1919 के एक्ट में 10 वर्ष के बाद की बात कही गयी थी। लेकिन इसको 1927 में ही गठित कर दिया गया।

इस कमीशन के समय से पहले आने का निम्नलिखित कारण था –

  • ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की सरकार थी। 1928-1929 में ब्रिटेन में चुनाव होने वाले थे। इस चुनाव में लेबर पार्टी जीतने की संभावना थी। ब्रिटेन सरकार ये नहीं चाहती थी कि इस आयोग का गठन आने वाली सरकार करे और दूसरी तरफ भारतीय जनता भी कमीशन भेजने की माँग कर रही थी।

इसी कारण ब्रिटेन सरकार ने 8 नवंबर 1927 को इस कमीशन की नियुक्ति कर दी। इस कमीशन का कार्य 1919 के अधिनियम की प्रगति की समीक्षा करना था।

साइमन कमीशन का गठन – Simon Commission

इस समय ब्रिटेन में तीन पार्टियाँ थीं – लिबरल पार्टी, लेबर पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी। लिबरल पार्टी ने अपने व्यक्ति ’सर जाॅन साइमन’ को इस कमीशन का अध्यक्ष बनाया था। 8 नवंबर 1927 ’सर जाॅन साइमन’ की अध्यक्षता में ही ’साइमन कमीशन’ का गठन हुआ। इसमें कुल 7 सदस्य थे।

इस आयोग के सात सदस्यों के नाम –

Simon Commission in hindi

इन सात सदस्यों में से 1 सदस्य लिबरल पार्टी का था, 2 सदस्य लेबर पार्टी के तथा 4 सदस्य कंजरवेटिव पार्टी के थे। साइमन कमीशन में सभी सदस्य अंग्रेज थे तथा इस कमीशन में कोई भी भारतीय इसका सदस्य नहीं था। इसलिए भारतीयों ने इसे ’श्वेत कमीशन’ कहकर इसका विरोध एवं बहिष्कार किया। इस कमीशन में सभी सदस्य अंग्रेज इसलिए रखे थे क्योंकि उस समय ब्रिटेन में वायसराय इरविन (1927 में ब्रिटेन में शासन कर रहा था।) ने लिखित आदेश दिया था कि इस आयोग में किसी भी भारतीय को न रखा जाये। कांग्रेस और स्वराज पार्टी दोनों ने ही साइमन कमीशन का विरोध किया।

1927 में साइमन कमीशन पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया क्या थी ?

  • 1927 में काँग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन में ’मद्रास’ में बुलाया। इस ’मद्रास अधिवेशन’ की अध्यक्षता डाॅ. अंसारी कर रहे थे। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने निर्णय लिया कि हम इस साइमन कमीशन का हर रूप में, हर चरण में, प्रत्येक स्तर में इसका बहिष्कार करेंगे।

इस कमीशन का कुछ पार्टियाँ विरोध कर रही थीं, तो कुछ पार्टियाँ इसका समर्थन कर रही थीं।  

विरोधी पार्टीसमर्थक पार्टी
काँग्रेसपंजाब से यूनियनिस्ट पार्टी
लिबरल पार्टीमद्रास से जस्टिस पार्टी
हिन्दू महासभाभीमराव अम्बेडकर की पार्टी डिस्प्रेस्ड क्लास एसोसिएशन
मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग का एक गुटहरिजनों का संगठन
स्वराज पार्टीमुस्लिम लीग का एक गुट मुहम्मद शफी के नेतृत्व में
कम्यूनिस्ट पार्टी
किसान मजदूर पार्टी

साइमन कमीशन के प्रति भारतीयों में प्रतिरोध क्यों ?

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  • साइमन कमीशन के प्रति भारतीयों में क्षोभ की भावना थी। क्योंकि इस कमीशन में सभी अंग्रेज सदस्य थे और भारतीयों को इसका सदस्य नहीं बनाया गया था। इससे भारतीयों की आत्म-सम्मान को ठेस पहुँची थी और साथ ही भारतीयों के आत्मनिर्णय के सिद्धांत का भी उल्लंघन किया था। इसी कारण भारतीयों ने इस कमीशन का बहिष्कार और विरोध किया था।

⇒ साइमन कमीशन भारत कब आया ?

  • साइमन कमीशन 3 फरवरी 1928 में भारत में बंबई पहुँचा, जहाँ उसे काले झण्डे दिखाकर इसका विरोध किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर हङतालें की गयी और प्रदर्शन किये गये। पूरे देश में इसका बहिष्कार किया गया। पूरे देश में ’साइमन कमीशन वापस जाओ’ (साइमन गो बैक) के नारे गूँजने लगे। साइमन कमीशन जहाँ-जहाँ भी गया वहाँ-वहाँ उसका विरोध किया गया। कलकत्ता, लाहौर, लखनऊ, विजयवाङा और पूना, पटना सभी जगह उसको काले झण्डे दिखाये गये।
  • कलकत्ता में सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में इस कमीशन का विरोध किया गया। मद्रास में टी. प्रकाशम, लखनऊ में खलीकुज्जमां ने इसका विरोध किया।
  • लाहौर में भगत सिंह का संगठन ’नौजवान भारत सभा’ ने इसका विरोध किया। इस कमीशन के विरोध में पुलिस ने लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया।
  • लखनऊ में गोविंद वल्लभ पंत और पं. जवाहर नेहरू पर भी लाठियाँ बरसाईं गयी।
  • 30 अक्टूबर 1928 में यह कमीशन लाहौर पहुँचा। लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में इसका विरोध किया जा रहा था। लाहौर में साण्डर्स ने लाठीचार्ज का आदेश दिया और लाठीचार्ज से लाला लाजपत राय के सिर पर चोटी आईं जिससे लाला लाजपय राय बुरी तरह से घायल हो गये। मरते वक्त लाला लाजपत राय ने कुछ शब्द कहे थे – ’’आज मेरे ऊपर बरसी हर एक लाठी की चोट अंग्रेजों की ताबूत की कील बनेगी।’’ सिर पर चोट लगने से लाला लाजपय राय की 17 नवंबर 1928 को मृत्यु हो गयी। लाला लाजपतराय की मृत्यु से सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर क्रोधित हो गये और उन्होंने 17 दिसम्बर, 1928 में साण्डर्स की हत्या कर दी।
  • साइमन कमीशन जब दिल्ली पहुंचा तो दिल्ली की केन्द्रीय विधानसभा ने इनका स्वागत करने से भी मना कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए अनेक प्रयास किये थे।

साइमन कमीशन की रिपोर्ट

इतने विरोध के बावजूद साइमन कमीशन ने 1928 व 1929 में दो बार भारत में दौरा किया। फिर 27 मई, 1930 को साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

इस रिपोर्ट की सिफारिशें निम्नलिखित थीं –

1. 1919 के अधिनियम के अधिनियम द्वारा स्थापित प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त किया जाए तथा प्रान्तों में प्रांतीय स्वायत्तता दी जाए। सारा प्रांतीय शासन मंत्रियों को सौंप दिया जाये और उन्हें प्रांतीय विधानमंडल के प्रति उनको उत्तरदायी बनाया जाए। मंत्रियों को कुछ विशेष अधिकार दिए जाये, ताकि वे विशेष परिस्थितियों में मंत्रियों की सलाह की उपेक्षा कर सकें।

2. भारत में संघ शासन की स्थापना की जाए। जिसमें ब्रिटिश प्रांतों और देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल हों।

3. प्रांतीय क्षेत्र में उत्तरदायी सरकार गठित की जाए, किंतु केन्द्र में उत्तरदायी शासन की स्थापना न की जाए।

4. उच्च न्यायालय को भारत सरकार के नियंत्रण में कर दिया जाए।

5. भारत सचिव को परामर्श देने के लिए भारत परिषद् रखी जाए।

6. प्रांतीय विधान मंडलों का विस्तार किया जाए, जिनमें सरकारी अधिकारी बिल्कुल न रहें और सरकारी अधिकारियों की संख्या, विधानमंडल के समस्त सदस्यों के दसवें भाग से अधिक न हों।

7. कम से कम 10 या 15 प्रतिशत आबादी को वोट देने का अधिकार होना चाहिए। साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को कायम रखा जाए।

8. केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा का पुनर्गठन संघीय व्यवस्था के आधार पर किया जाए।

9. प्रांतीय विधान मण्डलों में सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए।

10. प्रान्तीय गवर्नरों को विशेष शक्तियाँ दी जाए।

11. गवर्नर व गवर्नर जनरल अल्पसंख्यक जातियों के हितों के प्रति विशेष ध्यान रखें।

12. बर्मा को भारत से अलग कर दिया जाए तथा उङीसा तथा सिंध को अलग प्रदेश का दर्जा दिया जाए।

13. हर दस वर्ष बाद भारत की संवैधानिक प्रगति की जाँच की पद्धति समाप्त कर दी जाये, और नया संविधान ऐसा लचीला तैयार किया जाये कि वह स्वयं ही विकसित हो सके।

साइमन कमीशन की रिपोर्ट भारतीयों द्वारा कटु आलोचना

  • इस रिपोर्ट ने भारतीयों की केन्द्र में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने की मांग को स्वीकार नहीं किया। जिससे भरतीय नेता इस रिपोर्ट से असंतुष्ट थे।
  • भारतीय औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग कर रहे थे लेकिन इस रिपोर्ट ने भारतीयों की औपनिवेशिक स्वराज की मांग की पूर्ण से उपेक्षा की थी, जिससे भी भारतीय नेता असंतुष्ट थे।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार प्रांतों के विधानमण्डलों का विस्तार किया गया और प्रान्तीय गवर्नरों को ही विशेष शक्तियाँ दी गयी, जिससे उत्तरदायी शासन का महत्त्व बहुत कम हो गया।

जब इस रिपोर्ट भारतीयों ने विरोध किया, तो भारत सचिव लार्ड बर्कनहेड ने चुनौती के रूप में कहा था कि – ’’सर्वसहमति से भारतीय अपना संविधान नहीं बना सकते और सिर्फ विरोध करते है।’’

साइमन कमीशन की रिपोर्ट रद्दी कागज के समान थी। लेकिन साइमन कमीशन का एक महत्त्वपूर्ण योगदान यह था कि इसने देश को एवं विभिन्न समूहों और दलों को संगठित एवं एकजुट करने का कार्य किया था। साइमन कमीशन की जो सिफारिशें थी उन पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत और भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों के साथ तीन गोलमेज सम्मेलन किये। इन सम्मेलनों में फिर एक ’संवैधानिक सुधारों का श्वेत पत्र’ तैयार किया गया। बाद में इस ’श्वेत पत्र’ में ही कुछ संशोधन करके भारत शासन अधिनियम, 1935 में इसको शामिल किया गया।

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