Italy ka Ekikaran – इटली का एकीकरण की पूरी कहानी पढ़ें

दोस्तो आज के आर्टिकल में हम विश्व इतिहास के अंतर्गत इटली का एकीकरण (Italy ka Ekikaran) विस्तार से पढेंगे l

Italy ka Ekikaran – इटली का एकीकरण

Table of Contents

Italy ka Ekikaran

 

इटली की पृष्ठभूमि

सबसे पहले हम इटली की भौगोलिक स्थिति और वहाँ की परिस्थिति एवं व्यवस्था के बारे में जानेंगे।

1815 में वियना कांग्रेस ने इटली को अनेक-अनेक छोटे राज्यों में बांटा दिया था। इन राज्यों पर विदेशी सत्ता का प्रभुत्व स्थापित था।

इटली को तीन भागों में बांटा गया था –

  • उत्तरी इटली
  • मध्य इटली
  • दक्षिण इटली।

उत्तरी इटली के राज्य – सार्डिनिया-पीडमांट, लोम्बार्डी, वेनेशिया।
मध्य इटली के राज्य – परमा, मोडेना, टस्कनी, रोम।
दक्षिण इटली के राज्य – नेपल्स, सिसली।

🔸 उत्तरी इटली के राज्य सार्डिनिया-पीडमांट के राज्य में सिवाय वंश के विक्टर इमैन्युल का शासन था। लोम्बार्डी और वेनेशिया में आस्ट्रिया का शासन था।

🔹 मध्य इटली के राज्य परमा, मोडेना, टस्कनी आस्ट्रिया के हैप्सबर्गीय वंश के शासकों का प्रभुत्व स्थापित था। रोम में पोप का शासन था।

🔸 दक्षिण इटली के राज्य नेपल्स और सिसली में आस्ट्रिया के बूर्बो वंश के फर्डीनेण्ड प्रथम का शासन था। इस प्रकार सम्पूर्ण इटली अनेक राज्यों में बांटा हुआ था।

🔹 इटली के राज्यों में आस्ट्रिया का ही प्रभुत्त्व स्थापित था तथा इसका ही प्रभाव इटली के समस्त राज्यों पर था। आस्ट्रिया इटली में होने वाले प्रत्येक विद्रोह का दमन करता था। आस्ट्रिया ने ही इटली के राज्यों में निरंकुश शासकों को सत्ता प्रदान की थी। आस्ट्रिया किसी भी हालत में इटली का एकीकरण नहीं करना चाहता था। आस्ट्रिया इटली के एकीकरण का सबसे बङा विरोधी था। क्योंकि इटली के एकीकरण होने से आस्ट्रिया की सत्ता हमेशा के लिए इटली से समाप्त हो जाती।

🔸 इटली के राज्यों में मतभेद था और सभी राज्य अपने-अपने स्वार्थों में लिप्त थे। इटली के लोगों में विदेशी सत्ता के प्रति आक्रोश तथा यहाँ के निरंकुश शासकों द्वारा अत्याचार किए जा रहे थे। सम्पूर्ण इटली पर आस्ट्रिया तथा पोप का शासन ही स्थापित था। इटली के लोगों स्वतंत्रता जाते थे और इटली में से आस्ट्रिया का शासन समाप्त करना चाहते थे। अनेक क्रान्तिकारी लोगों भी इटली को विदेशी प्रभुत्त्व से समाप्त करना चाहते थे और इटली के राज्यों को संगठित करना चाहते थे।

इसी कारण इटली का एकीकरण करना आवश्यक था। इटली के एकीकरण में अनेक बाधाएँ थे लेकिन इटली के कुछ प्रगतिवाद लोगों ने एकता की दिशा में कदम उठाये।

इटली के राज्यों को संगठित करने के लिए (इटली का एकीकरण के लिए) अनेक लोगों के द्वारा प्रयास किये गये थे, लेकिन इटली का एकीकरण में उन्हें अनेक बाधाओं का सामना करना पङा था।

इटली के एकीकरण में प्रमुख बाधाएँ

(1) राष्ट्रीयता की भावना –

इटली के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। केवल बुद्धिजीवी वर्ग ही यह चाहता था कि इटली का एकीकरण होना चाहिए। जबकि जन-साधारण इटली के एकीकरण के प्रति उदासीन बना हुआ था। यहाँ के लोगों में अपने राष्ट्रों के प्रति प्रेम नहीं था।

(2) विदेशी प्रभुत्व –

इटली के अधिकांश भाग पर विदेशी शक्तियाँ शासन कर रही थीं। लोम्बार्डी तथा वेनेशिया पर आस्ट्रिया का आधिपत्य था। परमा, मोडेना तथा टस्कनी में आस्ट्रिया के हैप्सबर्गीय वंश के शासकों का प्रभुत्व था। नेपल्स तथा सिसली में बूर्बो वंश का शासन था।

इस प्रकार इटली एक भौगोलिक चिह्न मात्र रह गया था। ये विदेशी शक्तियाँ इटली के एकीकरण की विरोधी थीं क्योंकि यदि इटली का एकीकरण होता है तो इन राज्यों का प्रभुत्त्व समाप्त हो जाने की सम्भावना थी।

(3) पोप का राज्य –

रोम में पोप का राज्य स्थापित था। पोप इटली के एकीकरण का विरोधी था क्योंकि इससे पोप के राज्य के समाप्त होने की सम्भावना थी। पोप के राज्य पर आधिपत्य करना कठिन था क्योंकि वह ईसाई धर्म का मुख्य था, अगर इटली पोप को नुकसान पहुँचाता तो उसे रोमन कैथोलिक का विरोध मोल लेना पङता। उत्तरी इटली और दक्षिणी इटली को तब नहीं मिलाया जा सकता था तब कि मध्य इटली के पोप का राज्य खत्म न हो।

(4) प्रान्तीयता की भावना –

इटली के राज्यों में प्रान्तीयता की भावना व्याप्त थी। लेकिन उनमें व्यापक फूट फैली हुई थी तथा उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना नहीं थी। इटली का राज्य अनेक प्रान्तों में बांटा हुआ था और उनकी अलग-अलग परम्पराएं थी। मेटरनिख कहा करता था कि, ’’इटली का एक प्रान्त दूसरे प्रान्त के विरुद्ध है, एक नगर दूसरे नगर के विरुद्ध है, एक गाँव दूसरे गाँव के विरुद्ध है, एक पङोसी दूसरे पङोसी के विरुद्ध है।’’

(5) सृदृढ़ राजनीतिक दल का अभाव –

इटली में कोई भी ऐसी सुदृढ़ राजनीतिक दल नहीं था, जो अपने झण्डे के नीचे समस्त इटलीवासियों को संगठित कर सके और इटली में लोगों को स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित कर सके। इटली में स्वतन्त्रता-आन्दोलन का संचालन कर सके। कार्बोनरी संस्था की गतिविधियों, युवा इटली नामक संस्था, 1830 ई. की क्रान्ति, 1848 ई. की क्रान्ति इन विद्रोहों से भी अधिक लाभ की आशा न थी। मेजिनी के ’युवा इटली’ नामक दल के पीछे भी लोकमत न था। यह गणतन्त्रवादियों का संगठन समझा जाता था।

(6) इटली के राज्यों की ईर्ष्या –

इटली के विभिन्न राज्य एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे। विभिन्न राज्यों के शासकों में इटली की एकता के लिए त्याग करने की भावना नहीं थी। सभी शासकों अपनी निरंकुश सत्ता बनाये रखना चाहते थे। उनमें इटली के एकीकरण के लिए उत्साह नहीं था। निरंकुश शासक इटली के एकीकरण को अपनी सत्ता के लिए खतरा मानते थे।

(7) गरीबी और अशिक्षित –

इटली की अधिकांश जनता अशिक्षित एवं गरीब थी। उनमें राष्ट्रीय एकता के प्रति कोई रुचि नहीं थी। इटली के केवल बुद्धिजीवी वर्ग एवं व्यापारी वर्ग अपने हितों के संरक्षण के लिए तथा अधिक लाभ पाने की आशा से राष्ट्रीय एकता को आवश्यक मानते थे। लेकिन आम जनता राष्ट्रीय एकता के प्रति बिल्कुल भी जागरूक नहीं थी।

(8) निश्चित योजना का अभाव –

इटली के एकीकरण की कोई निश्चित योजना नहीं बन पाई थी। इटलीवासियों के सामने इटली के एकीकरण के लिए कोई निश्चित योजना नहीं थी। एक ओर तो मेजिनी इटली में गणतन्त्र की स्थापना करना चाहता था तो दूसरी ओर अनेक राजनीतिज्ञ इटली में राजतन्त्रीय शासन की स्थापना करने के पक्ष में थे। सार्डिनिया-पीडमांट के राजनीतिज्ञ राजतन्त्र के समर्थक थे।

(9) आर्थिक दृष्टिकोण –

इटली में आर्थिक विषमता व्याप्त थी। उत्तरी इटली तो अर्द्ध-औद्योगिक क्षेत्र था और दक्षिणी इटली अत्यंत ही पिछङा एवं ग्रामीण क्षेत्र था।

(10) अनुदारवादी शासक –

अनुदारवादी शासक इटली के अन्दर राष्ट्रीयता की भावना के विकास के खिलाफ थे। अनुदारवादी शासकों ने इटली के राष्ट्रीय आन्दोलनों से ओत-प्रोत अखबारों, किताबों, नाटकों एवं गीतों पर उन्होंने प्रतिबन्ध लगा दिया था। क्योंकि इन अखबारों, किताबों के माध्यम से अनुदारवादी शासकों की नीतियों की आलोचना की थी और उनकी भर्त्सना की जाती थी। अनुदारवादी शासक इटली के एकीकरण के विरोधी थे।

(11) आस्ट्रिया सबसे बङा बाधक –

इटली के एकीकरण में आस्ट्रिया सबसे बङी बाधा था। इटली के अधिकांश राज्यों पर आस्ट्रिया का प्रभुत्व स्थापित था। आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री घोर प्रतिक्रियावादी था। वह राष्ट्रीयता तथा उदारवाद का प्रबल शत्रु था। आस्ट्रिया की दमनकारी और प्रतिक्रियावादी नीति के कारण इटली के क्रान्तिकारी आन्दोलनों को असफलता का मुँह देखना पङा। इटली में किसी भी राज्य में अगर कोई विद्रोह करता तो आस्ट्रिया वहाँ अपनी सेना भेजकर उस विद्रोह का दमन कर देता।

इटली के एकीकरण में सहायक तत्त्व

अनेक बाधाओं के बावजूद भी इटली के देशभक्तों एवं जनता ने इटली के एकीकरण के लिए प्रयास किये थे, जो निम्नलिखित है –

(1) 1789 की फ्रांस की क्रान्ति तथा इटली –

1789 की फ्रांस की क्रान्ति ने इटली के एकीकरण को प्रभावित किया था। क्योंकि फ्रांस की क्रान्ति ने एकता, बन्धुत्व एवं राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया था।

(2) कार्बोनरी संस्था की स्थापना –

इटली के देशभक्तों ने इटली में अनेक गुप्त क्रान्तिकारी संस्थाओं की स्थापना की जिनमें कार्बोनरी संस्था प्रमुख थी। कार्बोनरी संस्था 1810 में स्थापित हुई थी। इस संस्था का प्रमुख केन्द्र नेपल्स में था तथा इसकी शाखाएँ समस्त इटली में फैली हुई थी।

कार्बोनरी संस्था के प्रमुख राजनीतिक उद्देश्य थे

  1. इटली का एकीकरण करना
  2. विदेशियों को इटली से बाहर निकालना।
  3. इटली में वैधानिक स्वतन्त्रता की स्थापना करना।

कार्बोनरी के नेतृत्व में 1831 ई. तक इटली का स्वाधीनता संग्राम चलता रहा था। कार्बोनरी संस्था ने इटली की जनता को जागरूक करने का काम किया। इन्होंने इटली से विदेशियों के बाहर निकलने की बात की जैसे – आस्ट्रिया शासन कर रहा है तथा रोम में पोप शासन कर रहा इनको बाहर निकलाने का प्रयास इस संस्था ने किया था। उन्होंने कहा इटली शासन इटली की लोगों द्वारा होना चाहिए। लेकिन कार्बोनरी ने इटली के एकीकरण की बात नहीं की।

(3) 1820-1821 कर विद्रोह –

1820 ई. में नेपल्स में क्रान्तिकारियों ने वहाँ के निरंकुश शासक फर्डीनेण्ड प्रथम के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। फिर 1821 ई. मे पीडमांट के देशभक्तों ने भी विद्रोह कर दिया। उन्होंने वहाँ के शासकों को वहाँ भाग दिया। परन्तु आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री मेटरनिख कहा चुप बैठना वाला था उसने आस्ट्रिया की सेनाओं को नेपल्स और पीडमांट में भेज दिया और वहाँ होने वाले विद्रोहों को कुचल दिया। वहाँ के निरंकुश शासक को पुनः सत्ता सौंप दी।

(4) 1830 का विद्रोह –

नेपल्स एवं पीडमाण्ट में पुनः निरंकुश शासन आरंभ हो गया था। इन्हीं प्रेरणा से फिर 1830 में फ्रांस में क्रांति हो गयी। बाद में इस क्रांति की लहर पूरे यूरोप में फैल गई। इस क्रांति के प्रभाव से मध्य इटली के परमा, मोडेना तथा पोप के राज्य में विद्रोह उठ खङे हुए। परन्तु आस्ट्रिया की सेना ने फिर विद्रोहियों को कुचल दिया तथा वहाँ भी निरंकुश शासकों को पुनः सत्तारूढ़ कर दिया। इस बार फिर क्रांतिकारियों का प्रयास असफल रहा।
1820-21 की क्रान्ति और 1830 क्रान्ति असफल हो गयी थी। इटली के देशभक्त ये जान गये थे बिना आस्ट्रिया की सत्ता का अन्त किये बिना इटली का एकीकरण नहीं हो सकता। वे अपने उद्देश्यों को तभी प्राप्त कर सकते थे जब वे विदेशी सत्ता का शीघ्रताशीघ्र अंत कर देते।

(5) मेजिनी का उदय –

मेजिनी इटली के राष्ट्रीय आन्दोलन का मसीहा था। मेजिनी ने 1831 में उसने फ्रांस के मार्सेल्स नामक नगर में ’युवा इटली’ नामक एक संस्था की स्थापना की1833 ई. के आरम्भ में ’युवा इटली’ के सदस्यों की संख्या 60 हजार हो गई। मेजिनी ने ’युवा इटली’ के माध्यम से इटलीवासियों में राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, त्याग और बलिदान की भावनाएँ जागृत कीं। उसने अपने लेखनी से जनता में राष्ट्रीय-चेतना की भावना जागृत की।

मेजिनी ने 1848 ई. की क्रान्ति में भी भाग लिया था। मेजिनी तथा गैरीबाल्डी ने मिलकर रोम पर अधिकार कर लिया था तथा पोप को वहाँ से भाग दिया था। मेजिनी ने फरवरी, 1849 में रोम में गणतन्त्र की स्थापना कर दी। परन्तु कुछ समय बाद ही पोप फ्रांस की सेना की सहायता से पुनः गद्दी पर बैठ गया था। फिर मेजिनी स्विट्जरलैण्ड भाग गया।

(6) 1848 ई. की क्रान्ति –

1848 में नेपल्स और सिसली में क्रान्तिकारी में विद्रोह कर दिया तथा सुधारवादियों ने अपने संविधान की माँग की। विवश होकर नेपल्स के राजा फर्डीनेण्ड द्वितीय ने संविधान की माँग स्वीकार कर ली। इसके बाद में पोप के राज्यों में व पीडमांट, टस्कनी ने भी संवैधानिक शासन की माँग की। मार्च 1848 ई. नेपल्स, पीण्डमाण्ट, टस्कनी और पोप के राज्यों को संविधान प्रदान कर दिया गया। अब इटली के कुछ राज्यों में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हो गई।

फिर 1848 ई. मे मिलान, वेनिस, परमा, मोडेना, टस्कनी आदि राज्यों में क्रान्तिकारियों ने विद्रोह कर दिया। वहाँ के शासकों को गद्दी छोङकर भागना पङा। इस समय इटली की जनता सार्डीनिया-पीडमाण्ट के शासन के नेतृत्व में आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध करने की माँग करने लगी। तब 23 मार्च, 1848 को सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एल्बर्ट ने इटलीवासियों की ओर से आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। परमा, मोडेना, टस्कनी, नेपल्स के शासकों तथा पोप ने भी सार्डिनिया की ओर से युद्ध में भाग लिया। अब आस्ट्रिया की अनेक स्थानों पर पराजय हुई।

केटलबी ने लिखा है कि ’’इटली के स्वाधीनता संग्राम का एक नया दौर आरंभ हुआ है।’’ अब इटली के संघर्ष ने राष्ट्रीय युद्ध का रूप धारण कर लिया। किन्तु इटली की यह एकता अधिक समय तक नहीं चली। पोप सर्वप्रथम पीछे हट गया और नेपल्स के शासक फर्डीनेण्ड द्वितीय ने भी सहायता नहीं दी और टस्कनी से भी कोई सहायता सार्डिनिया को नहीं मिली।

इसी प्रकार पोप, नेपल्स तथा टस्कनी के शासकों के विश्वासघात के कारण आस्ट्रिया की सेना ने सार्डिनिया की सेना को पराजित कर दिया। बाद में फिर लोम्बार्डी और वेनेशिया पर पुनः आस्ट्रिया का अधिकार हो गया। मेजिनी और गैरीबाल्डी ने रोम पर अधिकार कर लिया, परन्तु दस महीने के बाद ही पोप ने फ्रांसीसी सेना की सहायता से रोम पर पुनः अधिकार कर लिया। इटली पर भी आस्ट्रिया का पुनः आधिपत्य हो गया।

(7) नोवारा का युद्ध –

सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एल्बर्ट ने आस्ट्रिया के विरुद्ध पुनः युद्ध आरम्भ कर दिया। परन्तु 23 मार्च, 1849 को नोवारा नामक स्थान पर आस्ट्रिया की सेना ने सार्डीनिया की सेना को बुरी तरह से पराजित कर दिया। सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एल्बर्ट ने सिंहासन त्याग दिया और अपने पुत्र विक्टर इमैन्युल द्वितीय को सिंहासन पर बैठा दिया। अब सार्डिनिया का नया शासक विक्टर इमैन्युल द्वितीय (1820-1878 ई.) बन गया। विक्टर इमैन्युल द्वितीय ने 1848 ई. के संविधान को आस्ट्रिया द्वारा इसको रद्द करने की मांग करने पर भी लागू रहने दिया। इसने इटली के राजनेता काबूर को 1852 ई. में अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।

(8) इटली के राज्यों में निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासन की स्थापना –

नोवारा की पराजय के बाद इटली में प्रतिक्रियावादियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। नेपल्स, सिसली तथा टस्कनी में पुनः निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासन स्थापित हो गया। नेपल्स और सिसली में फर्डीनेण्ड ने पुनः अपनी सत्ता प्राप्त कर ली। वेनिस पर आस्ट्रिया का पुनः अधिकार हो गया। टस्कनी में लियोपोल्ड ने भी अपनी सत्ता प्राप्त कर ली। रोम में फ्रांसीसी सेना की सहायता से पोप पुनः गद्दी पर बैठ गया।

आस्ट्रिया ने परमा, मोडेना, टस्कनी आदि के शासकों को पुनः इनके सिंहासन पर बिठा दिया और उन्होंने जो संविधान स्वीकार किये थे, वे रद्द कर दिये गये। सार्डीनिया तथा रोम को छोङकर सम्पूर्ण इटली पर आस्ट्रिया का आधिपत्य पुनः स्थापित हो गया। इटली के स्वाधीनता संग्राम का प्रथम चरण समाप्त हो गया, जिसमें इटली के देशभक्तों को निराशा और असफलता ही हाथ लगी। अब सार्डिनिया-पीडमांट का राज्य इटली के एकीकरण से सम्बन्धित सभी गतिविधियों का केन्द्र बन गया।

इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान

(1) मेजिनी का प्रारम्भिक जीवन –

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मेजिनी इटली के राष्ट्रीय आन्दोलन का मसीहा था। उसका जन्म 1805 ई. में जिनेवा में हुआ था। उसका पिता एक प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री था। बचपन से ही मेजिनी में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी तथा उसके हृदय में इटली को स्वतन्त्र कराने की प्रबल इच्छा थी। वियना कांग्रेस द्वारा इटली में जो व्यवस्था की गई उससे मेजिनी बङा निराश हुआ था। मेजिनी कार्बोनरी संस्था का सदस्य बन गया तथा क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगा।

(2) 1830 की क्रान्ति में भाग लेना –

1830 की क्रान्ति में मेजिनी ने भी भाग लिया था और उसने इटली की स्वतन्त्रता के लिए विद्रोह कर दिया। उसने इटली की जनता में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत कर दी। लेकिन इस विद्रोह का आस्ट्रिया की सेना ने दमन कर दिया। उसने 1830 क्रान्ति की असफलता पर दो निष्कर्ष निकाले थे – इटली के एकीकरण के लिए कार्बोनरी अपर्याप्त है, इटली का सबसे प्रबल शत्रु आस्ट्रिया है।

विद्रोह के दमन के बाद 1830 में मेजिनी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे सेवोना के दुर्ग में भेज दिया गया। एक वर्ष के बाद मेजिनी को कारावास से मुक्त कर दिया गया और उसे देश से निर्वासित कर दिया गया।

(3) ’युवा इटली’ की स्थापना –

मेजिनी ने 1831 ई. में फ्रांस के मार्सेल्स नामक नगर में ’युवा इटली’ नामक एक संस्था की स्थापना की। 40 वर्ष से कम आयु वाले नवयुवक ही इस संस्था के सदस्य बन सकते थे।

इस संस्था के प्रमुख उद्देश्य निम्न थे –

  1. आस्ट्रिया को इटली से बाहर निकाल दिया जाए।
  2. इटली को स्वतंत्र कर उसका एकीकरण किया जाए।
  3. इटली में गणतंत्र की स्थापना की जाए।
  4. इटली का स्वतंत्रता संग्राम केवल इटलीवासियों द्वारा ही चलाया जाए।

इस संस्था ने शीघ्र ही कार्बोनरी का स्थान ले लिया और इटली के क्रांतिकारी आन्दोलन का केन्द्र-बिन्दु (युवा इटली’ नामक एक संस्था) बन गई।
मेजिनी का विश्वास था कि इटली के नवयुवकों में देश-गौरव और देश-प्रेम की भावना भरकर, उन्हें स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए संगठित किया जाना चाहिए। ’युवा इटली’ की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और 1833 तक इस संस्था के सदस्यों की संख्या 60 हजार तक पहुँच गई। इस संस्था ने इटलीवासियों में देशभक्ति और राष्ट्रीयता का प्रसार किया।

मेजिनी ने अपने लेखों से इटली के नवयुवकों में देश-प्रेम, साहस, त्याग और बलिदान की भावनाएँ कूट-कूट कर भर दी थीं। मेजिनी को नवयुवकों की शक्ति पर पूरा भरोसा था। मेजिनी ने कहा था ’’यदि समाज में क्रान्ति लानी है तो क्रान्ति का नेतृत्व नवयुवकों के हाथों में सौंप दो।’’ नवयुवकों में एक असीम शक्ति छुपी हुई है तथा जन-साधारण पर उनकी आवाज का असर जादू के समान होता है।

’’ मेजिनी ने घोषित किया किया कि, ’’इटली एक राष्ट्र बनकर रहेगा।’’
मेजिनी ने स्वतन्त्र इटली के निर्माण के लिए नवयुवकों को अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने की प्रेरणा दी। उसने नवयुवकोें को प्रेरणा देते हुए कहा था कि, ’’स्वन्तत्रता के वृक्ष तभी फलते -फूलते हैं, जब उन्हें खून से सींचा जाता है।’’ उसने युवा इटली के माध्यम से इटली की जनता को तीन नारे दिये – (1) परमात्मा में विश्वास रखो, (2) सब देशवासियों को संगठित करो तथा (3) इटली को मुक्त करो।

मेजिनी ने इटलीवासियों में नया जीवन तथा राष्ट्रीय भावना का संचार किया था। युवा इटली ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शिक्षा, साहित्यिक प्रचार तथा यदि आवश्यक हो तो सशस्त्र क्रान्ति का सहारा लिया। उसने राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना, बलिदान करने का साहस, राष्ट्रीयता की चेतना तथा दृढ़ आत्म-विश्वास उत्पन्न किया, जिससे वे इटली की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने के लिए तैयार हो गए। उसने नवयुवकों से कहा कि तुम देश-देश और गाँव-गाँव में स्वतन्त्रता की मशाल ले जाओ, जनता स्वतन्त्रता के लाभ समझाओ और एक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित करो, जिससे लोग उसकी पूजा करने लगे।

हेजन ने लिखा है कि, ’’इटली के इतिहास में मेजिनी का सबसे बङा महत्त्व यह है कि उसने बहुसंख्यक इटलीवासियों के हृदय में भी वही ज्वलन्त विश्वास बिठला दिया जो कि स्वयं उसके हृदय में रहा था।’’

(4) रोम में गणतन्त्र की स्थापना –

सार्डिनिया के शाासक चार्ल्स एल्बर्ट की असफलता से मेजिनी निराश नहीं हुआ। उसने घोषणा की कि, ’’इटली में राजाओं का युद्ध समाप्त हो गया है, अब जनता का युद्ध आरम्भ होना चाहिए।’’ मेजिनी ने इटली पहुँच कर क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किया। मेजिनी के नेतृत्व में रोम में विद्रोह हो गया और पोप को सिंहासन छोङकर भागना पङा। इस प्रकार फरवरी, 1849 में रोम में मेजिनी के नेतृत्व में गणतन्त्र की स्थापना हो गई। परन्तु मेजिनी की यह सफलता अस्थायी सिद्ध हुई। कुछ समय पश्चात् लुई नेपोलियन ने पोप की सहायता के लिए फ्रांसीसी सेना भेज दी। मेजिनी और गैरीबाल्डी पराजित होकर भाग गए तथा पोप ने पुनः रोम की गद्दी पर अधिकार कर लिया।

(5) मेजिनी का मूल्यांकन –

मेजिनी इटली के स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख नेता था। वह इटली का एक महान देशभक्त था। यद्यपि वह अपने उद्देश्य में असफल रहा, परन्तु फिर भी वह इटली का ’राष्ट्र निर्माता’ कहलाता है। उसने अपना समस्त जीवन इटली की स्वतन्त्रता के लिए समर्पित कर दिया था। उसकी सबसे बङी देन यह थी कि जिस युग में इटली की स्वतन्त्रता के विषय में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, उस युग में इटली की स्वतन्त्रता के विषय में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, उस युग में उसने इटलीवासियों में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया। उसने इटली के एकीकरण की आधारशिला रखी और इटलीवासियों में देश-प्रेम राष्ट्रीयता, त्याग और बलिदान की भावनाएँ उत्पन्न कीं।

इतिहासकार हेजन ने लिखा है कि, ’’मेजिनी की क्षमता का अन्य कोई निर्भीक नैतिक आचरण वाला, विचारशील, मृदुभाषी और उत्साही नहीं देखा गया।’’

साउथगेट के अनुसार, ’’यह मेजिनी ही था जिसने अपने देशवासियों में स्वतन्त्रता के लिए उत्कट भावनाएँ उत्पन्न कीं। यद्यपि वह काबूर की भाँति कूटनीतिज्ञ नहीं था, गेरीबाल्डी की भाँति वह सेनानायक नहीं था, परन्तु वह एक कवि, आदर्शवादी विचारक और क्रान्ति का अग्रदूत था।’’

इटली के एकीकरण के चरण

इटली के एकीकरण का प्रथम चरण एवं काबूर का योगदान

इटली के देशभक्तों ने इटली के एकीकरण के लिए भरसक प्रयास किये। परन्तु 1815 से 1850 तक की अवधि में एकीकरण के लिए किए गए प्रयासों को सफलता नहीं मिली। बाद में इटली में एक कूटनीतिज्ञ नेता काबूर आता था। उसके प्रयासों से इटली के एकीकरण का प्रथम चरण पूरा होता है।

इस टाॅपिक में हम काबूर के जीवन के साथ ही इटली के एकीकरण के प्रथम चरण के बारे में पढ़ेंगे।

(1) काबूर का प्रारम्भिक जीवन –

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काबूर का जन्म 1810 ई. में सार्डीनिया के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उसने ट्यूरिन की सैनिक अकादमी में शिक्षा प्राप्त की। 1848 ई. में वह सार्डिनिया-पीडमांट की संसद का सदस्य चुना गया। 1850 ई. में वह वित्त एवं उद्योग मंत्री नियुक्त किया गया। 1852 ई. में काबूर को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया और 1861 ई. तक इस पद पर कार्य करता रहा।

(2) काबूर के आन्तरिक सुधार –

काबूर ने कृषि, उद्योग, व्यापार आदि के विकास के लिए अथक प्रयास किये। उसने 90 हजार सैनिकों की एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और सेना को आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित किया।

(3) काबूर के राजनीतिक विचार एवं उद्देश्य –

काबूर आस्ट्रिया को पराजित करने के लिए यूरोप की की किसी महान् शक्ति को इटली का मित्र बना लेना चाहता था। उसका विश्वास था कि आस्ट्रिया के विरुद्ध केवल फ्रांस ही इटली को सहायता दे सकता था। काबूर के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
(अ) सार्डीनिया-पीडमांट की शक्तिशाली बनाकर उसके नेतृत्व में इटली का एकीकरण किया जाए।
(ब) इटली को आस्ट्रिया के प्रभुत्व से मुक्ति दिलाई जाए तथा आस्ट्रिया को पराजित करने के लिए यूरोप के शक्तिशाली देशों का सहयोग प्राप्त किया जाए।

(4) क्रीमिया का युद्ध (1853-56 ई.) और काबूर –

सार्डिनिया का प्रधानमंत्री काबूर इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की सहायता प्राप्त करके इटली का एकीकरण करना चाहता था। जब 1853 में रूस एवं टर्की के बीच क्रीमिया का युद्ध शुरू हुआ। 1854 में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस ने भी रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस समय काबूर ने भी अपने कूटनीति से इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की मित्रता प्राप्त करने के लिए अपने 18 हजार सैनिक टर्की की सहायता के लिए क्रीमिया भेज दिये।

इस युद्ध में रूस की पराजय हुई। काबूर जानता था कि इंग्लैण्ड और फ्रांस की सहायता से ही आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध करके इटली का एकीकरण किया जा सकता है इसलिए उसने क्रीमिया के युद्ध में टर्की का समर्थन किया था, क्योंकि इंग्लैण्ड तथा फ्रांस भी टर्की के समर्थक थे।

युद्ध की समाप्ति के बाद 1856 में पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस पेरिस सम्मेलन में आस्ट्रिया के विरोध के बावजूद भी काबूर को आमंत्रित किया गया। काबूर इस सम्मेलन में गया और उसने इटली की दयनीय दशा के लिए आस्ट्रिया को उत्तरदायी ठहराया। इस अवसर पर काबूर ने इटली की समस्या को अंतर्राष्ट्रीय बना दिया को इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की सहानुभूति तथा नैतिक समर्थन प्राप्त कर लिया। इस प्रकार कूटनीतिक चाल से काबूर ने अपने लक्ष्य की ओर एक निर्णायक कदम रखा। अतः यह उचित ही कहलाता है कि ’’क्रीमिया के कीचङ से नवीन इटली का निर्माण हुआ।’’

(5) प्लोम्बियर्स का समझौता –

अब काबूर फ्रांस का समर्थन प्राप्त कर चुका था। 21 जुलाई, 1858 को फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय तथा काबूर के बीच प्लोम्बियर्स नामक स्थान पर एक गुप्त समझौता हुआ, जिसे ’प्लोम्बियर्स का समझौता’ कहते हैं।

इस समझौते की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थीं –

  1. नेपोलियन तृतीय ने वचन दिया कि यदि आस्ट्रिया और सार्डीनिया के बीच युद्ध हुआ तो वह आस्ट्रिया के विरुद्ध सार्डीनिया के दो लाख सैनिकों की सहायता देगा।
  2.  इस सैनिक सहायता के बदले में सार्डीनिया फ्रांस को सेवाय तथा नीस के प्रदेश देगा।
  3. आस्ट्रिया की पराजय के बाद लोम्बार्डी तथा वेनेशिया के प्रान्त सार्डीनिया को दे दिये जायेंगे।
  4. सार्डीनिया का शासक विक्टर इमैन्युल द्वितीय अपनी पुत्री का विवाह नेपोलियन तृतीय के चचेरे भाई जेरोम बोनापार्ट से कर देगा।

(6) आस्ट्रिया-सार्डीनिया का युद्ध –

प्लोम्बियर्स समझौते में काबूर ने फ्रांस का समर्थन प्राप्त कर लिया। फ्रांस की मदद का आश्वासन पाकर काबूर आस्ट्रिया को युद्ध करने के लिए भङकाने लगता है। काबूर ने सैनिक तैयारियाँ शुरू कर दी। 23 अप्रैल 1859 ई. को आस्ट्रिया ने सार्डीनिया को चेतावनी दी कि वह तीन दिन में अपना निःशस्त्रीकरण कर दें, अन्यथा उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी जायेगी। परन्तु काबूर ने आस्ट्रिया की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया।

काबूर ने आस्ट्रिया की चेतावनी कि अवहेलना करके आस्ट्रिया को युद्ध के लिए भङका दिया। अतः 29 अप्रैल, 1859 को आस्ट्रिया ने सार्डीनिया पर आक्रमण कर दिया। इस अवसर पर फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय ने आस्ट्रिया के विरुद्ध दो लाख सैनिक सार्डीनिया की सहायता के लिए भेज दिये। फ्रांस और सार्डीनिया की संयुक्त सेनाओं ने 4 जून 1859 ई. में मेजेण्टा की लङाई में आस्ट्रिया को पराजित कर दिया। फिर 24 जून, 1859 ई. में भी सार्डीनिया ने साल्फेरिनो के युद्ध में आस्ट्रिया को पराजित कर दिया। इस प्रकार लोम्बार्डी के प्रदेश पर सार्डीनिया का अधिकार हो गया।

अब काबूर को एक बार तो ऐसा लगा कि हम इटली के एकीकरण के बिल्कुल नजदीक है। लेकिन कुछ समय फ्रांस का सम्राट नेपोलियन तृतीय युद्ध से अलग हो गया। फ्रांस इस युद्ध से इसलिए अलग हुआ क्योंकि नेपोलियन तृतीय को इटली के एकीकरण में फ्रांस कोई लाभ होता दिखाई नहीं दिया तथा नेपोलियन तृतीय आस्ट्रिया को भी नाराज नहीं करना चाहता था।

(7) विलाफ्रेंका की सन्धि –

फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय आस्ट्रिया से मित्रता करना चाहता था। इसी कारण फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय ने आस्ट्रिया के सम्राट के साथ 11 जुलाई, 1859 को एक सन्धि कर ली, जिसे ’विलाफ्रेंका की सन्धि’ कहते हैं।

इस सन्धि की प्रमुख शतें निम्नलिखित थीं –

  1. आस्ट्रिया ने लोम्बार्डी का प्रदेश सार्डीनिया को देना स्वीकार कर लिया।
  2. वेनेशिया पर आस्ट्रिया का अधिकार बना रहेगा।
  3.  परमा, मोडेना तथा टस्कनी में वहाँ के शासकों को पुनः सत्तारूढ़ कर दिया जायेगा।

(8) ज्यूरिक की सन्धि –

काबूर नेपोलियन तृतीय के विश्वासघात से बङा नाराज हुआ और उसने सार्डीनिया के सम्राट विक्टर इमैन्युल द्वितीय से युद्ध जारी रखने का अनुरोध किया, परन्तु विक्टर इमैन्युल ने (विक्टर इमैन्युल ने 1852 ई. में काबूर को अपना प्रधानमंत्री बनाया था।) काबूर के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इस पर काबूर ने प्रधानमंत्री के पद से त्याग-पत्र दे दिया। परन्तु कुछ समय बाद ही काबूर ने अपना त्याग-पत्र वापस ले लिया।

अंत में 10 नवम्बर 1859 को विक्टर इमैन्युल ने आस्ट्रिया के साथ ज्यूरिक की सन्धि कर ली, इस सन्धि के द्वारा विलाफ्रेंका की सन्धि की पुष्टि की गई। इस सन्धि के द्वारा ही विलाफ्रेंका की सन्धि को सार्डीनिया के शासक ने मान्यता दे दी। ज्यूरिक की सन्धि के अनुसार लोम्बार्डी का प्रदेश सार्डीनिया को प्राप्त हो गया।
इस प्रकार इटली के एकीकरण का प्रथम चरण पूरा हुआ।

इटली के एकीकरण का दूसरा चरण व काबूर का योगदान

इटली के एकीकरण के दूसरे चरण में भी काबूर का योगदान था। काबूर ने ही मध्य इटली के राज्यों में एकीकरण की लहर जगाई थीं।

मध्य इटली में एकीकरण की लहर –

आस्ट्रिया की पराजय से उत्साहित होकर मध्य इटली के परमा, मोडेना तथा टस्कनी के राज्यों की जनता ने भी विद्रोह कर दिया और वहाँ के सामंती शासकों को वहाँ बाहर भगा दिया। ये मध्य इटली के राज्य सार्डीनिया के साथ मिलना चाहते थे। इसी बीच जून 1859 में इंग्लैण्ड में पार्मस्टन की सरकार बनी, जो इटली के एकीकरण के पक्ष में थी। इंग्लैण्ड ने प्रस्ताव किया कि इन राज्यों को स्वयं अपने भाग्य का निर्णय करने दो।

जनवरी 1860 ई. में काबूर पुनः प्रधानमंत्री बनता है। अब काबूर ने नेपोलियन से सौदा किया कि यदि मध्य इटली के राज्य सार्डीनिया-पीडमांट में मिला दिये जाते है तो फ्रांस को नीस एवं सेवाय के प्रदेश दे दिये जायेंगे। मार्च, 1860 में मध्य इटली में एकीकरण के सम्बन्ध में जनमत संग्रह कराया गया। परमा, मोडेना, टस्कनी तथा रोमाग्ना की जनता ने भारी बहुमत से सार्डीनिया में मिलने का निर्णय किया। परिणामस्वरूप ये राज्य सार्डीनिया में मिला लिए गए। सेवाय तथा नीस के प्रदेश फ्रांस को सौंप दिये गए।
इस प्रकार इटली के एकीकरण का दूसरा चरण पूरा हुआ।

काबूर का मूल्यांकन –

काबूर इटली का एक महान् कूटनीतिज्ञ था। उसने आस्ट्रिया के विरुद्ध अनेक युद्ध किये थे। उसने आस्ट्रिया के विरुद्ध फ्रांस, इंग्लैण्ड आदि राज्यों का सहयोग प्राप्त कर अपनी कूटनीतिक योग्यता का परिचय दिया। उसने मेजिनी की प्रेरणा को कूटनीति का बल प्रदान किया और गेरीबाल्डी का साहस व्यर्थ जाता।

एलीसन फिलिप्स का कथन है कि, ’’एक राष्ट्र के रूप में इटली काबूर की देन है।’’

इतिहासकार केटलबी ने लिखा है कि, ’’मेजिनी एक अव्यावहारिक आदर्शवादी था तथा गेरीबाल्डी महान् योद्धा था, परन्तु काबूर के बिना मेजिनी का आदर्शवाद तथा गेरीबाल्डी की वीरता निष्फल थी।’’

इटली के एकीकरण का तृतीय चरण व गेरीबाल्डी का योगदान

इटली के एकीकरण में तृतीय चरण में गेरीबाल्डी का योगदान था।

इस टाॅपिक में हम गेरीबाल्डी के जीवन के साथ ही इटली के एकीकरण का तृतीय चरण पढ़ेंगे।

(1) गेरीबाल्डी की संक्षिप्त जीवनी –

italy ka ekikaran kab hua tha

गेरीबाल्डी इटली के स्वाधीनता संग्राम का एक महान् स्वतन्त्रता-सेनानी था। गेरीबाल्डी का जन्म 1807 में नीस में हुआ था। वह सार्डीनिया की जल-सेना में भर्ती हो गया। कुछ समय बाद वह ’युवा इटली’ का सदस्य बन गया। उसने क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण उसे 1834 ई. में गिरफ्तार कर लिया गया और उसे मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाई गई। परन्तु वह जेले से भाग निकला और दक्षिणी अमेरिका चला गया।

गेरीबाल्डी दक्षिणी अमेरिका पहुँचकर अमेरिकी लोगों के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेता रहा था। बाद में जब उसने 1848 की क्रान्ति का समाचार सुना तो गेरीबाल्डी पुनः इटली लौट आया। उसने 1848 ई. क्रान्ति में आस्ट्रिया के विरुद्ध बङी बहादुरी से लङा था।

(2) मैजिनी के गणतन्त्र की सहायता करना –

गेरीबाल्डी ने एक सैनिक दल का गठन किया जो ’लाल कुर्ती दल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी बीच 1849 में रोम में मेजिनी के नेतृत्व में रोमन गणराज्य की स्थापना हो चुकी थी। गेरीबाल्डी मेजिनी की सहायता के लिए रोम पहुँचा। जब फ्रांस के क्रान्तिकारियों के दमन के लिए अपनी सेना भेजी तो गेरीबाल्डी ने फ्रांसीसी सेना का वीरतापूर्वक मुकाबला किया, परन्तु उसे असफल होकर वहाँ से भागना पङा। वह इटली से भागकर दक्षिणी अमेरिका चला गया। रोम पर पोप ने पुनः अधिकार कर लिया।

(3) गेरीबाल्डी का इटली वापस लौटना –

1854 ई. में गेरीबाल्डी पुनः इटली लौट आया। उसने सार्डीनिया के निकट केपरेरा नामक द्वीप खरीद कर एक स्वतन्त्र कृषक के रूप में कृषि करने लगा। फिर गेरीबाल्डी की 1856 में काबूर से मुलाकात होती है। काबूर के विचारों से प्रभावित होकर उसने इटली के एकीकरण के लिए सार्डीनिया के शासक को अपनी सेवाएँ देना स्वीकार कर लिया। गेरीबाल्डी के जीवन की यह सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी।

(4) सिसली पर अधिकार (1860 ई.) –

1860 में सिसली की जनता ने अपने निरंकुश शासक के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और गेरीबाल्डी से सहायता देने की माँग की। 5 मई, 1860 को गेरीबाल्डी ने एक हजार लाल कुर्ती दल के स्वयंसेवकों को लेकर सिसली की ओर प्रस्थान किया। इस अवसर पर काबूर ने भी गेरीबाल्डी को गुप्त रूप से सहायता पहुँचाई। 11 मई, 1860 को गेरीबाल्डी अपने लाल कुर्ती दल के साथ सिसली पहुँच गया। सिसली की जनता ने गेरीबाल्डी साथ दिया। 15 मई, 1860 को केलेटेफीमी नामक स्थान पर गेरीबाल्डी ने नेपल्स की सेना को बुरी तरह पराजित किया। नेपल्स का शासक गद्दी छोङकर भाग गया। इसके पश्चात् गेरीबाल्डी ने सिसली पर अधिकार कर लिया।

(5) नेपल्स पर अधिकार (1860 ई.) –

19 अगस्त, 1860 को गेरीबाल्डी ने अपने चार हजार स्वयंसेवकों के साथ नेपल्स पर आक्रमण कर दिया और रेगियो नामक नगर पर अधिकार कर लिया। इस विरोध के बाद 6 सितम्बर, 1860 ई. में नेपल्स का शासक फ्रांसिस द्वितीय नेपल्स छोङकर भाग गया और 7 सितम्बर, 1860 को नेपल्स पर गेरीबाल्डी का अधिकार हो गया। गेरीबाल्डी ने अपने आपको नेपल्स का अधिनायक घोषित कर दिया।

(6) पोप के राज्य पर अभियान –

सिसली तथा नेपल्स पर अधिकार करने के बाद गेरीबाल्डी ने रोम पर भी अधिकार करने की योजना बनाई। परन्तु रोम की रक्षा फ्रांसीसी सेनाएँ कर रहीं थीं। अतः रोम पर आक्रमण करने से फ्रांस नाराज हो सकता था और युद्ध में कूद सकता था। अतः काबूर ने फ्रांस की ओर से आश्वासन मिलने के बाद सार्डीनिया के शासक विक्टर इमैन्युल द्वितीय को पोप राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजा। विक्टर इमैन्युल ने 29 सितम्बर, 1860 को आम्ब्रिया तथा मार्चेस पर अधिकार कर लिया।

(7) सार्डीनिया में सिसली तथा नेपल्स के प्रदेश का विलय –

21 अक्टूबर, 1860 को जनमत संग्रह के आधार पर सिसली तथा नेपल्स को सार्डीनिया के राज्य में मिला लिया गया। इसी समय विक्टर इमैन्युल द्वितीय अपनी सेना लेकर नेपल्स की ओर बढ़ा तथा टिआनो नामक स्थान पर उसकी गेरीबाल्डी से भेंट हुई। 7 नवम्बर, 1860 को विक्टर इमैन्युल ने गेरीबाल्डी के साथ नेपल्स में प्रवेश किया।

गेरीबाल्डी ने त्याग और बलिदान का परिचय देते हुए अपने जीते हुए प्रदेश नेपल्स तथा सिसली सम्राट विक्टर इमैन्युल द्वितीय को सौंप दिए। विक्टर इमैन्युल द्वितीय ने प्रसन्न होकर गेरीबाल्डी को पुरस्कार देना चाहा, परन्तु उसने देश-सेवा के लिए कोई भी उपाधि और पुरस्कार लेने से इनकार करते हुए कहा कि, ’’देश-सेवा स्वयं एक पुरस्कार है। मुझे कोई दूसरी चीज नहीं चाहिए, स्वतन्त्र इटली अमर रहे।’

इसके बाद अपने खेतों में बोने के लिए बीजों का एक थैला लेकर गेरीबाल्डी अपने द्वीप केपरेरा लौट गया। इस प्रकार गेरीबाल्डी के प्रयासों से नेपल्स तथा सिसली के प्रदेशों को सार्डीनिया में मिला लिया गया। इटली के एकीकरण में उसने महान् त्याग, निःस्वार्थ सेवा और अपूर्व देशभक्ति का परिचय दिया।

18 फरवरी 1861 ई. तक रोम के आसपास के इलाकों तथा वेनेशिया को छोङकर संपूर्ण इटली में एक ही सत्ता कायम हो गई। 17 मार्च, 1861 को सार्डीनिया-पीडमांट की नई ससंद ने विक्टर इमैन्युल द्वितीय को इटली का सम्राट घोषित कर दिया।
इसके साथ ही इटली के एकीकरण का तीसरा चरण पूरा हो गया।

गेरीबाल्डी का मूल्यांकन –

गेरीबाल्डी ने इटली के स्वतन्त्रता-संग्राम में वीरतापूर्वक भाग लिया था। उसने इटली के एकीकरण के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उसने सैन्य-शक्ति के बल पर सिसली तथा नेपल्स पर अधिकार किया था। त्याग और बलिदान का परिचय देते हुए नेपल्स तथा सिसली दोनों प्रदेश सार्डीनिया के शासक विक्टर इमैन्युल द्वितीय को सौंप दिये। गेरीबाल्डी के प्रयत्नों से सिसली तथा नेपल्स के प्रदेश सार्डीनिया में मिला लिए गए। इस प्रकार इटली के एकीकरण में गेरीबाल्डी ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उसकी गणना इटली के महान् राष्ट्र-निर्माताओं में की जाती है।

इटली के एकीकरण का चतुर्थ एवं अंतिम चरण

(1) वेनेशिया की प्राप्ति (1866 ई.) –

1866 ई. में प्रशा के बिस्मार्क ने सार्डीनिया के शासक विक्टर इमैन्युल द्वितीय से एक समझौता किया, जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि यदि इटली आस्ट्रिया और प्रशा के युद्ध में प्रशा का साथ देगा, तो विजय मिलने पर आस्ट्रिया से वेनेशिया का प्रदेश सार्डीनिया को दिला दिया जायेगा। 1866 ई. में आस्ट्रिया और प्रशा के बीच युद्ध शुरू हो गया। इस अवसर पर इटली ने आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया, परन्तु आस्ट्रिया की सेनाओं ने इटली की सेनाओं को बुरी तरह से पराजित कर दिया। परन्तु सेडोवा के युद्ध में प्रशा ने आस्ट्रिया को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया।

23 अगस्त, 1866 को आस्ट्रिया को प्रशा के साथ सन्धि करनी पङी, जिसे ’प्राग की सन्धि’ कहते हैं। इस सन्धि के अनुसार आस्ट्रिया ने वेनेशिया का प्रदेश इटली को दे दिया। इस प्रकार वेनेशिया को इटली में मिला लिया गया। अब केवल रोम को छोङकर सम्पूर्ण इटली का एकीकरण हो चुका था।

(2) रोम पर अधिकार (1870 ई.) –

1870 ई. में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध छिङ गया। इस अवसर पर फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय ने अपनी सेनाएँ रोम से बुला लीं थी। इटली ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए रोम पर आक्रमण कर दिया। 20 सितम्बर, 1870 को इटली की सेनाओं ने रोम पर अधिकार कर लिया। जनमत संग्रह के आधार पर भारी बहुमत से इटली की सेनाओं ने रोम को इटली में मिला लिया। रोम को संयुक्त इटली की राजधानी बनाया गया

2 जून, 1871 को विक्टर इमैन्युल द्वितीय ने एक विशाल जुलूस के साथ रोम में प्रवेश किया। उसने घोषणा की कि, ’’जिस कार्य के लिए हमने अपने जीवन का बलिदान दिया, वह आज पूरा हो गया। हम रोम आ पहुँचे हैं और रोम में ही रहेंगे।’’

इस प्रकार 1871 ई. में इटली का एकीकरण पूरा हो गया और इटली एक सुसंगठित राज्य बन गया।

इटली के एकीकरण का कार्य पूरा होना इटली के एकीकरण का कार्य कुछ महान् राजनेता के कारण सम्पन्न हो गया। इस प्रकार एक लम्बे संघर्ष के बाद मेजिनी के नैतिक बल, गेरीबाल्डी की तलवार, काबूर की कूटनीति, विक्टर इमैन्युल द्वितीय की सूझ-बूझ तथा हजारों देशभक्तों के बलिदान से इटली के एकीकरण का कार्य पूरा हुआ। इटली एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में यूरोप के रंगमंच पर प्रकट हुआ।

मेरियट ने लिखा है कि, ’’मेजिनी ने इटली की आत्मा, काबूर ने मस्तिष्क, गेरीबाल्डी ने तलवार और विक्टर इमैन्युल ने शरीर बनकर इटली के एकीकरण के कार्य को पूरा किया और उसकी दासता की बेङियों को काट डाला।’’

इतिहासकार जी. पी. गूच के अनुसार, ’’मेजिनी की कलम, काबूर की नीति तथा गेरीबाल्डी की तलवार ने मिलकर इटली का एकीकरण किया।’’

  • मेजिनी को ’इटली की आत्मा’ कहा जाता है।
  • काबूर को ’इटली का मस्तिष्क’ कहा जाता है।
  • गेरीबाल्डी को ’इटली के एकीकरण की तलवार’ कहा जाता है।

आज के आर्टिकल में हमने विश्व इतिहास के अंतर्गत इटली के एकीकरण (Italy ka Ekikaran) को विस्तार से पढ़ा ,हम आशा करतें है कि आपको यह टॉपिक अच्छे से तैयार हो गया होगा ।

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