आज के आर्टिकल में हम चंपारण सत्याग्रह क्या था, Champaran Satyagraha Kya Tha ,चंपारण सत्याग्रह के कारण ,चंपारण सत्याग्रह के परिणामों और चंपारण सत्याग्रह के पुरे इतिहास (Champaran Satyagraha Movement History) के बारे में विस्तार से पढेंगे ।
चंपारण आन्दोलन(Champaran Satyagraha Movement In Hindi) ,1917
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन क्या है ?
Champaran Satyagraha : ’चंपारण’ बिहार का एक जिला है। चंपारण किसान आन्दोलन(Champaran Kisan Andolan) भी आजादी के लिए व्यापक संघर्ष का हिस्सा था। बिहार के चंपारण में ’तिनगठिया पद्धति’ थी। चम्पारण के किसानों को तिनकठिया पद्धति के अन्तर्गत एक ’समझौते’ (Agreement) के तहत अंग्रेज व्यापारियों ने उनकी 3/20 भूमि पर नील की खेती करने के लिए बाध्य किया था। इस संविदा से आजाद करने के बदले उन्होंने किसान से काफी पैसा ले लिया था। इस पैसे कि वापसी के लिए किसान आन्दोलन कर रहे थे।
1916 में लखनऊ अधिवेशन के दौरान चम्पारण के एक किसान ’राजकुमार शुक्ल’ गाँधी जी से मिले और उन्हें चम्पारण आने के लिए आमंत्रित किया। गाँधीजी चम्पारण पहुँचे और किसानों के पक्ष में आन्दोलन कर दिया अन्ततः यह आन्दोलन सफल हुआ। नील व्यापारी किसानों का 25 प्रतिशत पैसा वापस करने के लिए तैयार हो गए। इसी आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता के लिए एक नई चिंगारी के रूप में कार्य तथा इसी आंदोलन में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाँधी जी को ’महात्मा की उपाधि’ दी थी।
चंपारण सत्याग्रह | |
समय | 19 अप्रैल 1917 |
स्थान | उत्तरी बिहार के चंपारण जिले में |
नेतृत्व | महात्मा गांधी |
कारण | किसानों नील की खेती करने को बाध्य। |
समय | एक वर्ष |
परिणाम | किसानों की अवैध वसूली का 25 प्रतिशत हिस्सा लौटा दिया। |
गाँधीजी को मिली उपाधि | ’महात्मा’ |
किसके द्वारा | रवीन्द्रनाथ टैगोर |
गाँधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया ’चंपारण सत्याग्रह’ पहला सत्याग्रह था।
चम्पारण के किसानों की समस्या/चंपारण आन्दोलन होने के कारण
- उत्तरी बिहार के चंपारण जिले में ’तिनकठिया पद्धति’ प्रचलित थी।
- चम्पारण के किसानों को तिनकठिया पद्धति के अन्तर्गत एक ’समझौते’ (Agreement) के तहत नीलहो (अंग्रेज व्यापारियों) ने उनकी 3/20 भूमि पर नील की खेती करने के लिए बाध्य किया।
- 3/20 भाग (20 कट्ठा = 1 एकङ) पर नील की खेती करना अनिवार्य था।
- इस संविदा के अनुसार नील को खरीदने के लिए जो रेट तय होगा, वो नीलहे तय करेंगे।
- ’तिनगठिया पद्धति’ चंपारण के किसान बङे परेशान थे, वो नील की खेती करना नहीं चाहते थे।
नील की खेती क्या होती है ?
नील एक प्रकार का ऐसा पदार्थ है जो वस्त्रों की रंगाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। नील की ब्रिटेन में बङी मांग थी इसलिए अंग्रेजों ने जबरदस्ती भारत में नील की खेती करवाना शुरू कर दिया। नील की खेती करने के लिए अंग्रेज किसानों को बाध्य करते थे।
किसान नील की खेती क्यों नहीं करना चाहते थे ?
- किसानों को प्रति एक बीघा में 3 कट्ठे पर नील की खेती करनी पङती थी।
- नील की खेती करने से भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
- किसानों को अपनी उपज के मूल्य निर्धारण का अधिकार नहीं था।
- नील मालिकों द्वारा लगाए गए मूल्य पर ही अपने उत्पाद को बेचना पङता था।
- अत्यधिक कम मजदूरी तथा बेगार के रूप में काम करवाया जाता था।
- किसी कारण यदि नील नहीं उपज पाता तो भारी जुर्माने का प्रावधान था।
- साथ ही 19 वीं सदी के अंत तक जर्मनी में रासायनिक रंगों का इस्तेमाल शुरू हो गया था। जब यूरोपीय देशों में कृत्रिम रंग आये गये तो अंग्रेजों को नील महँगा पङने लगा, तो अंग्रेजों ने जबरदस्ती नील की कीमत को कम करना तय कर दिया। जब नील की कीमत कम हो गयी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ’भारतीय नील’ की मांग कम हो गई तथा भारतीय नील की विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं रही। जिसके कारण किसानों की हालत और दयनीय हो गयी।
- लेकिन किसान इस ’अग्रीमेंट’ को छोङकर नहीं जा सकते थे, जो उन्होंने अंग्रेजों के साथ किया था। अगर किसान इस ’अग्रीमेंट’ को छोङकर जायेंगे, तो एक तो इन्हें ऊँची दर पर लगान देना पङता और दूसरी गैर कानूनी कर देना पङता था।
ये उपरोक्त सभी कारण थे जिनकी वजह से किसान की नील की खेती नहीं करना चाहते थे।
उसी समय 1915 में गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे, उनकी प्रसिद्ध भी काफी ज्यादा थी। इसलिए किसान राजकुमार शुक्ल को आशा थी कि किसानों को इस समस्या से गाँधीजी ही निकाल सकते है।
लखनऊ समझौता में राजकुमार शुक्ल की गांधीजी से मुलाकात
🔸 29 दिसंबर, 1916 में कांग्रेस का ’लखनऊ अधिवेशन’ हुआ।
जिसमें बिहार के प्रतिनिधि –
- पं. राजकुमार शुक्ल
- ब्रजकिशोर प्रसाद
- पीर मुहम्मद मुनिश
- रामदयाल प्रसाद साहू
- गोरख प्रसाद
- हरिवंश सहाय ने भाग लिया।
🔹 ’लखनऊ अधिवेशन’ में ही बिहार के कृषक नेता राजकुमार शुक्ल की गांधीजी से मुलाकात हुई।
🔸 राजकुमार शुक्ल ने ’लखनऊ अधिवेशन’ में किसानों की समस्या का समाधान करने के लिए गांधीजी से चम्पारण आने का अनुरोध किया। राजकुमार शुक्ल ने 27 फरवरी 1917 को दुखभरा पत्र पीर मोहम्मद मुनिस से लिखवाकर गांधीजी को भेजा। इस पत्र का प्रभाव गांधीजी पर इतना अधिक पङा कि चंपारण जाने का कार्यक्रम बना लिया।
🔹 गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ’राजकुमार शुक्ल बिहार के हजारों लोगों पर से नील के कलंक को धो देने के लिए कृतसंकल्प थे।’
🔸 लखनऊ के वकील ब्रजकिशोर प्रसाद ने चम्पारण के किसानों की समस्या का प्रस्ताव रखा। यह सहानुभूति प्रस्ताव पास हो गया। तब गाँधीजी ने ब्रजकिशोर को कहा कि ’’बिहार के सेवा जीवन के प्राण है।’’ गाँधीजी ने चंपारण आने की बात मान ली।
गाँधीजी जी की यात्रा प्रारम्भ
🔸 राजकुमार शुक्ल के बार-बार प्रार्थना करने पर गांधीजी ने कहा कि मैं कलकत्ता जा रहा हूँ वहाँ से मुझे ले आना, तब 7 अप्रैल, 1917 में राजकुमार शुक्ल गाँधीजी के कलकत्ता आने से पहले ही स्वयं कलकत्ता पहुँचे गये। बाद में 10 अप्रैल 1917 में गाँधीजी और राजकुमार शुक्ल कलकत्ता से पटना पहुँचे। गांधीजी ने इस समय राजकुमार शुक्ल के संबंध में कहा, ’अनपढ़ निश्चयमान किसान ने मुझे जीत लिया।’
🔹 गांधीजी सबसे पहले मुजफ्फरपुर पहुंचे, जहाँ आचार्य जे. बी. कृपलानी गांधीजी का स्वागत किया और वे उन्हें अपने घर पर ले गए। मुजफ्फरपुर में ही गांधी से राजेंद्र प्रसाद की पहली मुलाकात हुई। यहीं पर उन्होंने राज्य के कई बङे वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से आगे की रणनीति तय की।
🔸 बाद में गांधीजी 11 अप्रैल, 1917 कोे मुजफ्फरपुर में ’बिहार प्लैंटर्स एसोसिएशन’ के मंत्री जे. एम. विल्सन से मिलते है परन्तु विल्सन ने गांधीजी को मदद करने के लिए मना कर देता है।
गाँधीजी का चंपारण आगमन कब हुआ ?
🔹 गांधीजी रामनवमी प्रसाद के साथ 15 अप्रैल, 1917 को चंपारण (मोतिहारी) पहुँचे। वहाँ के किसानों की समस्याओं को सुना। गाँधी जी को लोगों पर हो रहे अत्याचार का अनुभव हुआ। गाँधीजी ने जिलाधिकारी से मिलने का प्रयास किया।
🔸 गाँधीजी के मोतीहारी पहुँचने पर मुजफ्फरपुर के कमिश्नर ने गांधी जी को वापस लौटने का आदेश दिया किंतु गाँधीजी ने इसे मानने से इंकार कर दिया। गांधी जी के आगमन से किसानों में नया उत्साह आया जबकि सरकार की चिंता बढ़ने लगी और तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट W.B. हेकाॅक ने उन पर धारा 144 के तहत मुकदमा दायर कर अंग्रेजी कानून तोङने का आरोप लगाया।
गांधीजी ने आरोपों को स्वीकार कर सविनय अवज्ञा का प्रयोग किया। गांधीजी की लोकप्रियता तथा विशाल जन समर्थन के कारण सरकार अपना मुकदमा वापस ले लिया।
🔹 गाँधीजी ने 19 अप्रैल 1917 में ’चंपारण आन्दोलन’ शुरू कर दिया। जिसमें गांधीजी ने अहिंसक तरीके से जनसभाएं, यात्राएं, स्वावलम्बन, स्वच्छता, जागरूकता आदि तरीके से जनता का समर्थन प्राप्त कर लिया था। गांधीजी अपने सहयोगियों ब्रजकिशोर प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई, नरहरि पारेख, जे. बी कृपलानी तथा बिहार के अनेक बुद्धिजीवियों के साथ सुबह गाँवों में निकल जाते और दिनभर घूम घूम कर किसानों का बयान दर्ज करते।
लगभग आठ सौ किसानों का बयान दर्ज किया गया। जनता ने गांधीजी का भरपूर साथ दिया। चंपारण आंदोलन के तहत प्रमुख नेता ने गाँधीजी का साथ दिया।
चम्पारण आन्दोलन में गाँधीजी के समर्थक नेता |
डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद |
जे. बी. कृपलानी |
अनुग्रह नारायण सिन्हा |
मजहरूल हक |
नरहरि पारिख |
श्री कृष्ण सिंह |
महादेव देसाई |
ब्रजकिशोर प्रसाद |
एन.जी. रंगा ने गाँधीजी के चम्पारण आन्दोलन का विरोध किया था। यह आन्दोलन एक वर्ष तक चला।
🔸 गाँधीजी ने अंग्रेजों (नीलहो) से कहा यह तिनकठिया पद्धति गलत है। आप लोग गलत तरीके से लगान की वसूली कर रहे है। गलत तरीके से जबरदस्ती लोगों को नील की खेती करवा रहे है। हमारा संविधान हर किसान को अनुमति देता है कि वह अपना सामान अपने दाम पर बेचे।
आप हमारी चीज बेचने के लिए हमें बाध्य नहीं कर सकते। इस प्रकार गाँधीजी ने अंग्रेजों को कई तर्क दिये। गाँधीजी एक बङे नेता थे इसलिए अंग्रेजों को गाँधीजी की बात सुनी पङी। गांधीजी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी, लोगों की भीङ भी बढ़ती जा रही थी।
’चंपारण कृषि समिति’ का गठन
- मजबूर होकर सरकार द्वारा पूरे मामले की जाँच के लिए एक कमेटी बनाई गई।
बिहार राज्य के गवर्नर गेट महादेय ने गांधीजी को कुछ नीलहों के प्रतिनिधियों के साथ रांची में बुलवाया। - बिहार के गवर्नर एडवर्ड गेटे ने किसानों की समस्या की जाँच के लिए ’चंपारण कृषि समिति’ का गठन किया।
- इस समिति के अध्यक्ष सर फ्रेंक स्लाई थे।
- जिसमें महात्मा गाँधी को भी सदस्य बनाया गया।
अन्य सदस्यों में –
- एल. सी. अदायी
- राजा हरिहरप्रसाद
- नारायण सिंह
- डी. जे. रीड
- सी. रैनी।
इसी समिति ने 4 अक्टूबर, 1918 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। सरकार के देखरेख के बाद 18 अक्टूबर, 1918 को इसे प्रकाशित कर दिया।
चंपारण आन्दोलन के परिणाम
- तिनकठिया प्रणाली को समाप्त किया गया।
- किसानों को नील की खेती से मुक्त किया गया।
- किसानों से की गयी अवैध वसूली का 25 प्रतिशत हिस्सा लौटाया गया।
- बढ़े हुए लगान का 1/4 हिस्सा छोङ दिया गया।
मूल्यांकन –
- इस तरह नीलहों ने किसान का शोषण करना बन्द कर दिया। किसानों ने राहत की साँस ली। इस आन्दोलन में बिहार के नेता के रूप सबसे बङी भूमिका राजकुमार शुक्ल की थी।
- गांधीजी द्वारा भारत में चलाया गया ’चम्पारण सत्याग्रह’ सफल हुआ।
चंपारण आन्दोलन के दौरान रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाँधी को ’महात्मा’ की उपाधि दी।
चंपारण आंदोलन का महत्त्व ( Facts about champaran movement)
- पहली बार किसान समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया गया।
- भारतीय लोग आंदोलन की एक नवीन प्रणाली से परिचित हुए।
- किसान समस्या के समाधान हेतु राष्ट्रीय नेताओं का सहयोग प्राप्त।
- राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि इस आंदोलन द्वारा राष्ट्र ने अपना पहला पाठ सीखा और सत्याग्रह का पहला आधुनिक उदाहरण प्राप्त किया।
- आम जनता तथा किसानों में गांधीजी के प्रति विश्वास बढ़ा।
- लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा।
- चंपारण में सर्वप्रथम सविनय अवज्ञा तथा सत्याग्रह का सफल प्रयोग हुआ।
- विकट परिस्थितियों में भी संयम और साहस रखने की प्रेरणा मिली।
- किसानों की समस्या के समाधान हेतु कांग्रेस प्रयासरत हुई।
- अन्यायपूर्ण व्यवस्था के प्रतिरोध का अकाट्य शस्त्र सत्याग्रह एवं अहिंसा का सूत्रपात हुआ।
- इस आंदोलन से प्रेरित होकर कालांतर में अनेक किसान आंदोलन हुए जैसे खेङा, अवध आदि।
- इस आंदोलन के दौरान गाँधीजी राष्ट्रीय नेता बनकर उभरे।
- इस आंदोलन के दौरान गांधीजी द्वारा पहली बार भारत में सत्याग्रह का प्रयोग किया गया।
- यहीं पर गाँधीजी ने तय किया कि वे केवल एक ही कपङे में अपना गुजारा करेंगे।
- किसान, राष्ट्रीय आंदोलन से जुङ गए।
- गाँधीजी का पहली बार भारत में बङी राजनीतिक मंच की साझेदारी करना।
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