Government of India Act 1919-भारत परिषद अधिनियम, 1919

आज की पोस्ट में हम भारत परिषद अधिनियम, 1919(Government of India Act 1919) पर विस्तार से चर्चा करेंगे और इस टॉपिक के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को भी पढेंगे ताकि ये टॉपिक अच्छे से तैयार हो सके |

भारत परिषद अधिनियम, 1919

Table of Contents

भारत शासन अधिनियम, 1919 की पारित होने की परिस्थितियाँ

  • 1909 के सुधारों से कोई भी वर्ग प्रसन्न नहीं हुआ। कांग्रेस की अप्रसन्नता के निम्न बिन्दु थे –
  • मुसलमानों को अपनी संख्या से कहीं अधिक प्रतिनिधित्व देना।
  • मुस्लिम तथा गैर-मुस्लिम चुनाव मंडलों में मताधिकारों तथा उम्मीदवारों की योग्यताओं में भेदभाव बरताना।
  • 1909 के सुधार से राष्ट्रवादी असंतुष्ट थे।
  • उग्रवादियों द्वारा बिल्कुल अस्वीकार करना।
  • नरमपंथियों द्वारा इन्हें अपर्याप्त एवं असंतोषजनक मानना।
  • अल्पसंख्यकों की साम्प्रदायिक भावना को मजबूत करने का प्रयास करना जिससे बहुसंख्यकों में कटुता एवं निराशा पैदा होना।
    1910 के बाद घटी घटनाएं भी उत्तरदायी थी
  • क्रांतिकारी आतंकवाद की सक्रियता बढ़ना।
  • मुसलमानों में ब्रिटिश विरोधी एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास। जैसे – अंसारी, जिन्ना, मौलाना आजाद आदि के दृष्टिकोण के संदर्भ में समझा जा सकता है।
  • कांग्रेस के दोनों घटक एक-दूसरे के नजदीक आ रहे थे।
  • 1911 के बंगाल विभाजन रद्द के कारण मुस्लिम वर्ग सरकार से दूर हो रहा था।
  • 1913 में लीग द्वारा औपनिवेशक स्वराज्य का लक्ष्य घोषित करना।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न राष्ट्रों का आत्म निर्णय का अधिकार देने की बात करना एवं प्रजातंत्र की रक्षा करने की घोषणा करना जो सही नहीं थी।
  • हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित होना इस दिशा में लखनऊ पैक्ट एक सकारात्मक कदम था।
  • तिलक एवं ऐनी बेसेंट द्वारा 1916 में होमरूल आंदोलन शुरू करना।
  • सरकारी नीति-दमन और संवैधानिक सुधार।

Govt of India Act 1919

माॅण्ट-फोर्ड सुधार

1919 के अधिनियम का तात्कालिक कारण 1916 का होमरूल आंदोलन तथा मेसोपोटेमिया कमीशन की रिपोर्ट थी। जिसमें भारतीय सरकार की अकुशलता का स्पष्ट आरोप था। भारत सचिव माण्टेग्यू नवम्बर, 1917 में स्वयं भारत आए तथा नेताओं से बात की। एक समिति गठित की, जिसमें भूपेन्द्रनाथ बसु, चाल्र्स राॅबर्ट तथा सर विलियम ड्यकू थे। इस समिति ने वाइसराय चेम्सफोर्ड के साथ मिलकर माण्टेग्यू महोदय को सुधारों का मसविदा तैयार करने में मदद की।

इसकी सिफारिशों के आधार पर ही भारत शासन अधिनियम 1919 बना। 1919 के अधिनियम का यह भी प्रयत्न था कि किस प्रकार भारत के एक प्रभावशाली वर्ग को कम से कम दस वर्ष के लिए ब्रिटिश राज का समर्थक बना लिया जाय। इस अधिनियम में पहली बार ’उत्तरदायी-शासन’ शब्दों का स्पष्ट प्रयोग किया गया था। जिसने भारत में तनावपूर्ण वातावरण को कुछ समय के लिए शांत बना दिया। प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी शासन तथा ’द्वैध शासन’ की स्थापना की गयी। 1919 के अधिनियम में द्वैध शासन का जनक ’लियोनिस कर्टिस’ था। इसमें लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।
भारत शासन अधिनियम, 1919 में प्रावधान

1. ब्रिटेन में स्थापित भारतीय संस्थाओं में परिवर्तन

भारत परिषद् – इसकी सदस्य संख्या 8 से 12 तक कर दी गई। भारतीय सदस्य दो के स्थान पर तीन कर दिए गए। इसका कार्यकाल 7 वर्ष के स्थान पर 5 वर्ष कर दिया गया। आधे सदस्यों को भारत में 10 वर्ष सेवा का अनुभव अनिवार्य कर दिया गया। 1793 ई. से भारत राज्य सचिव को भारतीय राजस्व से वेतन मिलता था। इस अधिनियम के द्वारा अब वह अंग्रेजी राज्य से मिलना तय किया गया।
भारतीय उच्चायुक्त – इसकी नियुक्ति (5 वर्ष के लिए) भारत सचिव की सहमति से गवर्नर जनरल द्वारा की जाती थी। यह ब्रिटेन में भारतीय छात्रों एवं भारत से संबंधित लेन-देन की देखभाल करता था। प्रथम हाई कमिश्नर की नियुक्ति 1920 में की गई जो एक ब्रिटिश था तथा बाद के सभी हाई कमिश्नर भारतीय ही रहे। हाई कमिश्नर का वेतन भी भारित (भारतीय राज कोष) था।

2. भारत में सुधार

  • केन्द्रीय स्तर पर प्रावधान
  • द्विसदनीय व्यवस्थापिका की स्थापना
  • इस अधिनियम के तहत केन्द्र में द्विसदनीय व्यवस्थापिका स्थापित की गयी। एक सदन राज्य परिषद तथा दूसरे को केन्द्रीय विधान सभा कहा गया।

व्यवस्थापिका

 

राज्य परिषद केन्द्रीय विधान सभा
मताधिकार की योग्यता    मताधिकार की योग्यता   
दस हजार से 20 हजार रुपये तक आयकरदाता हो। 
दो हजार से 5 हजार रुपये तक आयकरदाता हो।
750 से 5000 रूपये तक भूमिकर दाता हो।   50 से 150 रुपये तक भूमिकर दाता हो।
नगरपालिकाओं या जिला बोर्डों के प्रधान व उपप्रधान।   180 रूपये मकान किराये का भुगतान करता हो।
विश्वविद्यालय की सीनेट की सदस्य।    
विशेष उपाधिधारी।     
कार्यकाल – 5 वर्ष (उच्च सदन)
 कार्यकाल – 3 वर्ष (निम्न सदन)

 राज्य परिषद जिसे उच्च सदन कहा गया जिसमें सदस्यों की संख्या 60 निश्चित की गयी। जिसमें 34 निर्वाचित तथा शेष 26 गवर्नर जनरल द्वारा मनोनीत होते थे। राज्य-परिषद का प्रतिवर्ष नवीनीकरण होता था परन्तु ये सदस्य 5 वर्ष के लिए बनते थे। स्त्रियों को सदस्यता के उपयुक्त नहीं समझा गया। वायसराय को इस सदन को बुलाने, स्थगित तथा भंग करने का अधिकार था।
निम्न सदन को केन्द्रीय विधान सभा का नाम दिया गया। इसमें सदस्यों की संख्या 145 निर्धारित की गयी। 105 निर्वाचित तथा 41 सदस्यों मनोनीत होते थे। मनोनीतों में 26 शासकीय तथा 15 अशासकीय थे। सभा का कार्यकाल त्रिवर्षीय था, वायसराय इसके कार्यकाल को बढ़ा भी सकता था।

अन्य

इस अधिनियम द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली लागू की गयी और मताधिकार 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया। प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति द्वारा निर्वाचन सीमित मताधिकार एवं साम्प्रदायिक तथा विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों के माध्यम से होता था। सदस्यों की संख्या का वितरण प्रान्तों के महत्वों के आधार पर न की जनसंख्या के आधार पर किया गया। साम्प्रदायिक व विशिष्ट वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व रखा गया। पृथक निर्वाचक के सिद्धान्त का विस्तार किया गया। 1919 के अधिनियम के द्वारा पंजाब में सिखों को, कुछ प्रान्तों में यूरोपियनों, एंग्लो-इंडियनों को तथा भारतीय ईसाईयों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया।

1919 अधिनियम के तहत केन्द्रीय विधान मण्डल एवं गवर्नर जनरल के कार्य एवं शक्तियाँ

द्विसदनीय केन्द्रीय विधानमण्डल को पर्याप्त शक्तियां दी गयी थी, यह समस्त भारत के लिए कानून बना सकती थी। सदस्यों को प्रस्ताव तथा स्थगन प्रस्ताव लाने की अनुमति थी। प्रश्न तथा पूरक प्रश्नों पर कोई रोक नहीं थी। सदस्यों को बोलने का अधिकार तथा स्वतंत्रता थी। गवर्नर जनरल क्राउन की अनुमति से कोई भी बिल पारित कर सकता था। वह अध्यादेश जारी कर सकता था जिसकी वैधता 6 माह की होती थी।

केन्द्रीय विधान मण्डल की शक्तियां

  • सम्पूर्ण भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार।
  • प्रचलित कानूनों को बदलने अथवा रद्द करने का अधिकार।
  • विधान मण्डल बजट पारित करने एवं उस पर बहस कर सकता था।
  • कानून निर्माण की सीमाएं
  • ब्रिटिश संसद के किसी कानून के विरुद्ध कानून बनाने का अधिकार नहीं।
  • 1919 के कानून का संशोधन नहीं।
  • कानून बनाने से पहले गवर्नर जनरल की स्वीकृति आवश्यक।
  • गवर्नर जनरल स्वीकृति देने से इन्कार कर सकता था।
  • कुछ विधेयक गवर्नर जनरल की पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किये जा सकते थे।
  • किसी भी विधेयक को गवर्नर जनरल स्वविवेक से कानून का रूप दे सकता था।

वित्तीय एवं बजट सम्बन्धी अधिकारों की सीमाएं –

बजट के केवल 20 प्रतिशत भाग पर ही मतदान का अधिकार। बजट में की गई कटौती या अस्वीकृति को गवर्नर जनरल रद्द कर सकता था या बजट को मूल रूप में पारित कर सकता था। विधान मण्डल को कुछ वित्तीय मदों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं।

विधान मण्डल के सदस्यों के अधिकार

  • सदस्य, प्रस्ताव अथवा स्थगन प्रस्ताव रख सकते थे।
  • किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर तुरंत विचार कर सकते थे।
  • प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते थे।
  • अल्पकालिक प्रश्न भी पूछे जा सकते थे।
  • सदस्यों को बोलने का तथा स्वतंत्रता का अधिकार था।

गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी

1919 के सुधार ने केन्द्र में उत्तरदायी सरकार लाने का कोई प्रयत्न नहीं किया। कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या पर कोई सीमा नहीं। केन्द्रीय परिषद में भारतीयों को अधिक प्रभावशाली भूमिका दी गयी। वाइसराय के 8 सदस्यों में से 3 भारतीय नियुक्त किये गये और उन्हें-विधि, शिक्षा, उद्योग आदि विभाग सौंपे गये।

गवर्नर जनरल के अधिकार एवं शक्तियां

गवर्नर जनरल के अधिकारों में कोई कमी नहीं की गई। कार्यकारिणी की समस्त शक्तियां उसके हाथ में थी एवं विधान मण्डल पर उसका पूर्ण नियंत्रण था।

इसकी शक्तियों के बारे में यह टिप्पणी की गई-’’इंग्लैण्ड का सम्राट राज्य करता है पर शासन नहीं, अमेरिका का राष्ट्रपति शासन करता है लेकिन राज्य नहीं, फ्रांस का राष्ट्रपति न ही शासन करता है और न ही राज्य -परन्तु भारत का गवर्नर जनरल राज्य भी करता है और शासन भी।’’

भारत-शासन अधिनियम 1919 के तहत द्वैध शासन

अगस्त 1917 की घोषणा को कार्यरूप देने के लिए 1919 के अधिनियम में प्रान्तीय सरकार को चुना गया। गवर्नर के अधीन इसे 9 प्रान्तों में लागू किया गया।

इस नये अधिनियम के अनुसार सभी विषयों को केन्द्र तथा प्रांतों में बांट दिया गया। केन्द्रीय सूची में वर्णित विषयों पर सपरिषद गवर्नर जनरल का अधिकार था। जैसे – विदेशी मामले, रक्षा, डाक-तार, सार्वजनिक ऋण आदि।

प्रान्तीय सूची

प्रान्तीय सूची के विषय थे – स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, चिकित्सा, भूमिकर, जल संभरण, अकाल सहायता, कृषि व्यवस्था आदि।
इस विधेयक के तहत प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गयी। प्रान्तीय विषयों (51 विषय) को दो भागों में बांटा गया था – आरक्षित (29 विषय) तथा हस्तान्तरित विषय (22 विषय)।

द्वेध शासन

 

 आरक्षित  हस्तांतरित 
शांति व्यवस्था एवं देश की राजनीतिक स्थिरता से संबंधित विषय। विकास कार्यों से संबंधित, गलती होने  पर सरकार को अधिक हानि नहीं से संबंधित विषय।
 जैसे – भूमिकर, अकाल-राहत, शांति व्यवस्था, पुलिस, बिक्रीकर, सिंचाई, विद्युत आदि। जैसे – स्थानीय स्वशासन, जनस्वास्थ्य एवं चिकित्सा, सफाई, शिक्षा, उद्योग, कृषि इत्यादि।
 उत्तरदायित्व – गवर्नर जनरल के माध्यम से भारत सचिव के प्रति। उत्तरदायित्व – मंत्री विधानसभा के प्रति।

 

उपरोक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि प्रान्तीय शासन विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया जिसमें विषय विवाद या वित्त संबंधी प्रश्नों पर गवर्नर का निर्णय अंतिम व मान्य था। इसे द्वैध शासन कहा गया।

आरक्षित विषयों पर प्रशासन गवर्नर अपने उन पार्षदों की सहायता से करता था जिन्हें वह मनोनीत करता था तथा हस्तान्तरित विषयों का प्रशासन निर्वाचित सदस्यों के द्वारा करता था। प्रान्तीय परिषदों से कम से कम 70 प्रतिशत सदस्य निर्वाचित तथा शेष मनोनीत होते थे। शासकीय सदस्यों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होती थी। 8 प्रांतों में 1 अप्रैल, 1921 से द्वैध शासन लागू किया गया। 1932 में उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत में भी इसे लागू कर दिया गया। प्रांतों की द्वैध शासन व्यवस्था 1937 तक चलती रही। किंतु बंगाल में 1924 से 1927 तक तथा मध्य प्रांत में 1924 से 1926 तक यह व्यवस्था कार्य नहीं कर सकी।

भारत शासन अधिनियम, 1919 के तहत प्रान्तीय व्यवस्था

प्रान्तीय विधान मण्डल

✅ 1919 ई. के भारत शासन अधिनियम के तहत राज्यों में प्रान्तीय विधान मण्डल स्थापित किए गए। इनका कार्यकाल 3 वर्षीय रखा गया। निर्वाचित सदस्यों का (प्रत्यक्ष निर्वाचन) सदन में बहुमत रखा गया। मनोनीत सदस्य (सरकारी तथा गैरसरकारी) भी रखे गए।
☑️ साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया। मुसलमानों के साथ-साथ सिक्ख, भारतीय ईसाई, एंग्लों इण्डियन, मद्रासी गैर ब्राह्मण आदि को सम्प्रदाय के आधार पर स्थान दिए गए।
✅ भूस्वामी, वाणिज्य व्यापार मण्डल, खदान मालिक, विश्व विद्यालय के सदस्य आदि के लिए विशेष चुनाव क्षेत्रों का आवंटन किया गया।
☑️ मताधिकार के लिए सामान्यतः सम्पत्ति संबंधी योग्यताएं रखी गई।

विधान मण्डल के कार्य-

✅ प्रान्तीय विषय पर कानून बनाना।
☑️पारित विधेयक पर गवर्नर जनरल की अनुमति आवश्यक।
✅ विधान सभा द्वारा न पारित विधेयक को गवर्नर पारित कर सकता था।
☑️ गवर्नर किसी भी विधेयक पर चर्चा रोक सकता था।
✅ विधान मण्डल द्वारा प्रस्तुत बजट के किसी भी भाग को गवर्नर द्वारा प्रमाणित करना पङता था।
☑️ विधानमण्डलों के अधिकार एवं कार्यक्षेत्र में वृद्धि लेकिन पूर्ण नियंत्रण का अभाव।
✅ उत्तरदायी सरकार की बजाय उत्तर देने वाली सरकार की स्थापना की गई।

1919 के अधिनियम की समीक्षा

✅ उत्तरदायी शासन की दिशा में वास्तविक एवं ठोस कदम था (एस.एन.बनर्जी)
☑️ सुधार अपर्याप्त, असंतोषजनक तथा निराशाजनक थे (कांग्रेस)
✅ सुधार आधे-अधूरे थे। (तिलक)
☑️ यह एक ’दासता का अधिकार पत्र’ था (जवाहर लाल नेहरू)

नकारात्मक पक्ष

✅ गवर्नर जनरल एवं गवर्नर के अधिकार, शक्तियां पूर्ववत बनी रही विधान मण्डलों के ऊपर प्रभावी नियंत्रण बरकरार।
☑️ साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया अब मुसलमानों के अलावा अन्य समुदायों एवं वर्गों को सम्मिलित किया गया।
✅ जनतांत्रिक तत्वों को कमजोर करने का दृष्टिकोण निहित था। निर्वाचित सदस्यों की संख्या जनसंख्या की बजाय राज्य के महत्व पर आधारित रखी गई जो अजनतांत्रिक थी।
☑️ मताधिकार अत्यन्त सीमित-प्रान्तीय स्तर पर 2ः आबादी को मताधिकार दिया गया तथा महिलाओं को मताधिकार से वंचित (अजनतांत्रिक) रखा गया।

महत्त्वपूर्ण प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौनसी एक भारतीय शासन अधिनियम, 1919 की विशेषता नहीं थी ?
(अ) प्रत्यक्ष निर्वाचन
(ब) केन्द्रीय एवं प्रान्तीय विधानमंडलों की विधान-निर्माण की शक्ति
(स) केन्द्र में द्वि-सदनात्मक विधायिका
(द) केन्द्र में द्वैध शासन✔️

2. भारत सरकार अधिनियम 1919 के संबंध में निम्न में से कौन सी विशेषता सही नहीं है?
(अ) इसने शासन की एक दोहरी योजना पेश की, जिसे सामान्यतः डायरेकी कहा जाता है।
(ब) यह देश में द्विपक्षीय और प्रत्यक्ष चुनाव की बात करता है।
(स) यह अलग मतदाता प्रदान करके सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त का समर्थन नहीं करता✔️
(द) इसमें लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान रखा गया

3. औपनिवेशिक भारत में कौनसा सांविधानिक अधिनियम ’माॅण्टेग्यू घोषणा’ की परिणति था?
(अ) भारतीय परिषद अधिनियम, 1892        (ब) भारतीय परिषद अधिनियम, 1909
(स) भारतीय परिषद अधिनियम, 1919✔️    (द) भारतीय परिषद अधिनियम, 1935

4. किस भारतीय अधिनियम के अन्तर्गत भारत में द्वैत शासन की स्थापना की गई थी?
(अ) भारतीय अधिनियम, 1919✔️   (ब) भारतीय अधिनियम, 1861
(स) भारतीय अधिनियम, 1858        (द) भारतीय अधिनियम, 1870

Government of India Act 1919

5. माॅण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम कहलाता है?
(अ) भारत परिषद अधिनियम, 1909     (ब) भारत परिषद अधिनियम, 1919✔️
(स) भारत परिषद अधिनियम, 1892     (द) भारत परिषद अधिनियम, 1935

6. ईसाईयों के लिए किस अधिनियम के अंतर्गत पृथक निर्वाचन का प्रावधान किया?
(अ) 1909           (ब) 1919✔️
(स) 1935           (द) 1947

7. भारत सरकार के किस अधिनियम को माॅण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है?
(अ) 1935 का अधिनियम    (ब) 1919 का अधिनियम✔️
(स) 1909 का अधिनियम    (द) 1858 का अधिनियम

8. 1919 के अधिनियम के अंतर्गत प्रान्तीय प्रशासन में जो महान परिवर्तन आया वह है –
(अ) प्रान्तों में कांग्रेस सरकार की स्थापना (ब) प्रान्तों में द्वैध शासन की स्थापना✔️
(स) प्रान्तों में स्वायत्त शासन की स्थापना (द) प्रान्तों के गवर्नर अधिकार विहीन हो गये

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भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ

42 वां संविधान संशोधन 

44 वां संविधान संशोधन 

मूल कर्तव्य 

भारतीय संविधान की विशेषताएं 

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