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भारतीय संविधान के संशोधन – Important Amendments in Indian Constitution

Author: K.K.SIR | On:15th May, 2020| Comments: 0

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Table of Contents

  • भारतीय संविधान के संशोधन(important amendments in indian constitution)
  • संविधान संशोधन 1 -10 तक 
  •  प्रथम संविधान संशोधन (first constitutional amendment)1951
  • चतुर्थ संविधान संशोधन (1955),4th amendment of indian constitution
  • भारतीय संविधान के संशोधन 11 -20 तक 
  • भारतीय संविधान के संशोधन 21 -30 तक 
  • Article 368 of indian constitution
  • संविधान संशोधन 31 -40 तक (Amendments in Indian Constitution)
  • भारतीय संविधान के संशोधन 41 -50 तक (Constitutional Amendments in India)
  • भारतीय संविधान के संशोधन 51 -60 तक (List of Amendments)
  • संविधान संशोधन 61 -70 तक (constitutional amendments)
  • भारतीय संविधान के संशोधन 71 -80 तक (Constitutional Amendments List)
  • संविधान संशोधन 81 -90 तक (Amendments in Indian Constitution)
  • संविधान संशोधन 91 -100 तक 
  •  संविधान का 97 वाँ संशोधन (2011),97th constitutional amendment –
  •  100 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2015) ,100th amendment of indian constitution
  • संविधान संशोधन 101

दोस्तो आज की ये पोस्ट आज तक भारतीय संविधान के संशोधन(amendments in indian constitution) के संदर्भ में दी गयी है मुझे आशा है कि इस टॉपिक को अच्छे से तैयार कर पाएंगे

भारतीय संविधान के संशोधन(important amendments in indian constitution)

total amendments in indian constitution

 

भारतीय संविधान(indian constitution) का निर्माण एक सतत् प्रक्रिया है क्योंकि संविधान संशोधन संविधान का अभिन्न अंग हैं। संविधान के भाग-20 (अनु.-368) में संसद को संविधान में संशोधन की शक्ति दी गयी है।

संसद द्वारा अब तक किये गये संशोधनों का संक्षिप्त विवरण अधोलिखित है।

संविधान संशोधन 1 -10 तक 

 प्रथम संविधान संशोधन (first constitutional amendment)1951

इस संशोधन को रोमेश थापर बनाम स्टेट आफ मद्रास (1951) एस. सी. के मामलों में उच्चतम न्यायालय के विनिश्चय से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए पारित किया गया था।

⇒ इसके द्वारा स्वतंत्रता, समानता एवं सम्पत्ति से सम्बन्धित मूल अधिकारों को लागू किए जाने सम्बन्धी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया। वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर इसमें उचित प्रतिबन्ध की व्यवस्था की गई

⇒ इसके लिए अनु. 19 के खण्ड (2) में निर्बन्धन के तीन नये आधार ’लोक-व्यवस्था’ ’विदेशी राज्य से मैत्री सम्बन्ध’ और ’अपराध करने के लिए उत्प्रेरित करना’ जोङे गये।

⇒ भूमि विधियों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से इस संशोधन द्वारा संविधान के अन्तर्गत 9 वीं अनुसूची को जोङा गया है। इसमें उल्लिखित कानूनों की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अन्तर्गत परीक्षा नहीं की जा सकती है। इसके लिए अनु.-31 (अ) और 31 (ब) जोङा गया हैं।

 द्वितीय संविधान संशोधन (1952)- इसके द्वारा 1951 की जनगणना के आधार पर संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व को पुनः निर्धारित किया गया।

 तृतीय संविधान संशोधन (1954)- इस संशोधन के द्वारा समवर्ती सूची की 33 वीं प्रविष्टि में संशोधन किया गया और इसमें खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा और कच्चा कपास आदि विषयों को रखा गया।

चतुर्थ संविधान संशोधन (1955),4th amendment of indian constitution

 इस संशोधन को बेला बनर्जी, के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न कठिनाई को दूर करने के लिए पास किया गया था, इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत सम्पत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के सम्बन्ध में परीक्षा नहीं कर सकती।

पाँचवा संविधान संशोधन (1955)- इसके द्वारा अनुच्छेद-3 में संशोधन कर राज्य पुनर्गठन से संबंधित विधेयकों पर राज्यों द्वारा अनुसमर्थन करने की अवधि नियत करने की शक्ति राष्ट्रपति को दी गयी।

यदि निर्धारित अवधि के भीतर राज्य अपनी राय व्यक्त नहीं करते तो विधेयक को संसद द्वारा पारित मान लिये जाने का प्रावधान किया गया।

 छठाँ संविधान संशोधन (1956)- इस संशोधन द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची के संघ सूची में प्रविष्टि-92 (क) जोङकर केन्द्र सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय क्रय-विक्रय पर कर लगाने की शक्ति प्रदान की गयी।

 सातवाँ संविधान संशोधन (1955)- यह संशोधन राज्यपुनर्गठन अधिनियम, 1955 को कार्यान्वित करने के लिए पारित किया गया। इसके द्वारा राज्यों का पुनर्गठन 14 राज्यों तथा 6 संघ शासित क्षेत्रों में किया गया।

साथ ही, इनके अनुरूप केन्द्र एवं राज्य की विधानपालिकाओं में सीटों को पुनव्र्यवस्थित किया गया।

⇒ अनु.-230, 231 में संशोधन करके उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को संघ राज्य क्षेत्रों पर बढ़ा दिया गया और दो से अधिक राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय का उपबन्ध किया गया।

 आठवाँ संविधान संशोधन (1960)- इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर विधानमण्डलों में अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों और एंग्लो-इण्डियन के लिए स्थानों के आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष तक अर्थात् 1970 तक कर दिया गया।

 नौवाँ संविधान संशोधन (1960)- यह संशोधन उच्चतम न्यायालय द्वारा बेरूबारी के मामले में दिये परामर्श को लागू करने के लिए पारित किया गया था।

उक्त मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया था कि भारत-भूमि को किसी विदेशी राज्य के अभ्यर्पण के लिए संविधान में संशोधन करना आवश्यक है; अतः प्रथम अनुसूची में आवश्यक परिवर्तन करके बेरूबारी, खुलना आदि क्षेत्रों को पाकिस्तान को दे दिया गया।

 दसवाँ संविधान संशोधन (1961)- इसके द्वारा भूतपूर्व पुर्तगाली क्षेत्रों दादर एवं नागर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया।

Constitution Amendment

भारतीय संविधान के संशोधन 11 -20 तक 

 ग्यारहवाँ संविधान संशोधन (1961)- इस संशोधन द्वारा संविधान के अनु. 71 में खण्ड 4 जोङकर यह उपबन्धित किया गया कि निर्वाचक मंडल में रिक्तता के आधार पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती।

इस संशोधन को डाॅ. खरे के मामले के पश्चात् पारित किया गया था।

 बारहवाँ संविधान संशोधन (1962)- इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन और दीव को भारत में संघ शासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया।

 तेरहवाँ संविधान संशोधन (1962)- इसके द्वारा संविधान में 371 ए जोङा गया तथा नागालैण्ड के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान कर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया।

 चौदहवाँ संविधान संशोधन (1963)- इसके द्वारा केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में पांडिचेरी को संविधान के प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया तथा अनु. 239क जोङकर संघ शासित प्रदेशों में विधान मण्डल और मंत्रिपरिषद बनाने का संसद को अधिकार दिया गया।

 पन्द्रहवाँ संविधान संशोधन (1963)- इस संशोधन को न्यायाधीश मित्तर के मामले से उत्पन्न समस्या के निराकरण के लिए पारित किया गया था।

इसके द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा एक नया अनु. 224 क जोङकर उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय में नियुक्ति से सम्बन्धित प्रावधान किये गए।

इसके द्वारा अनु. 226 में एक नया खण्ड (1-क) जोङा गया इसके अधीन उच्च न्यायालय किसी सरकार, प्राधिकारी या व्यक्ति के विरुद्ध निदेश या रिट जारी कर सकता है, भले ही ऐसे व्यक्ति उसके क्षेत्राधिकार में न हों।

 सोलहवाँ संविधान संशोधन (1963)- इसके द्वारा अनु. 19 खण्ड 2, 3, 4 में भारत की प्रभुता और अखण्डता के हित में शब्दों को जोङकर राज्य को अनु. 19 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार को सीमित करने की शक्ति प्रदान की गयी

तथा साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अन्त में ’भारत की प्रभुत्ता एवं अखण्डता को बनाए रखूँगा’ शब्दों को जोङा गया।

 सत्रहवाँ संविधान संशोधन (1964)- इसके तहत अनु. 31 (क) और 9 वीं अनुसूची में संशोधन किया गया। इसका उद्देश्य केरल और मद्रास राज्य द्वारा पारित भूमि सुधार अधिनियमों को सांविधानिक संरक्षण प्रदान करना था।

 अठारवाँ संविधान संशोधन (1966)- इसके द्वारा अनु.-3 में स्पष्टीकरण जोङकर यह स्पष्ट किया गया कि ’राज्य’ शब्द के अन्तर्गत संघ राज्य क्षेत्र भी आते है। अतः संसद किसी ’राज्य या संघ राज्य क्षेत्र’ का गठन कर सकती है।

तत्पश्चात पंजाब का भाषायी आधार पर पुनर्गठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिन्दी भाषा क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया। पर्वतीय क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश का तथा चण्डीगढ़ को केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया।

 उन्नीसवाँ संविधान संशोधन (1966) – इसके तहत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन करते हुए निर्वाचन सम्बन्धी न्यायाधिकरण नियुक्त करने की शक्ति का अन्त कर दिया गया तथा संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों के चुनाव सम्बन्धी विवादों के निपटाने की शक्ति उच्च न्यायालय को दे दिया गया।

जिसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की जा सकेगी।

 बीसवाँ संविधान संशोधन (1966) – इस अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया अनु. 233 (क) जोङकर अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान किया गया था।

all amendments in indian constitution pdf

भारतीय संविधान के संशोधन 21 -30 तक 

 इक्कीसवाँ संविधान संशोधन (1967) – इसके तहत् सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अन्तर्गत पन्द्रहवीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।

 बाईसवाँ संविधान संशोधन (1969 ई.) – इसके तहत् असम से अलग करके एक नया राज्य मेघालय बनाया गया।

 तेईसवाँ संविधान संशोधन (1969) – इसके अन्तर्गत विधानपालिकाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।

 चौबीसवाँ संविधान संशोधन (1971) – यह संशोधन गोलकनाथ के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए पारित किया गया था।

Article 368 of indian constitution

इस संशोधन द्वारा अनु. 13 और अनु. 368 में संशोधन किया गया।
अनु. 368 द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया कि इसमें संविधान संशोधन करने की प्रक्रिया और शक्ति दोनों शामिल हैं तथा अनु. 13 की कोई बात संविधान विधि को लागू नहीं होगी।

⇒ अनु. 13 में एक नया खण्ड (4) जोङकर यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि अनु. 13 के अर्थान्तर्गत अनु. 368 के अधीन पारित सांविधानिक संशोधन ’विधि’ नहीं है। केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के (24 वें) संशोधन अधिनियम को विधिमान्य घोषित किया।

 पचीसवाँ संविधान संशोधन (1971) – इसे बैकों के राष्ट्रीयकरण के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय से उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए पारित किया गया था।

⇒ अनु. 31 (2) में ’प्रतिकर’ के स्थान पर धनराशि शब्द रखा गया।

⇒ एक नया अनु. 31 (ग) जोङकर प्रावधानित किया गया कि अनु. 39 के खण्ड (ख) और (ग) में वर्णित निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की विधिमान्यता को इस आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जायेगी कि वे अनु. 14, 19 में प्रदत्त मूल अधिकारों से असंगत हैं या उन्हें कर करती या छीनती हैं।

⇒ केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने इस संशोधन कुछ भाग को अवैध घोषित कर दिया था।

 छब्बीसवाँ संविधान संशोधन (1971) – इसे माधव राव सिंधिया बनाम भारत संघ (प्रीवी पर्स मामले) में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय की कठिनाइयों को दूर करने के लिए पारित किया गया था।

इस मामले में न्यायालय ने भूतपूर्व राजाओं के विशेषाधिकारों को समाप्त करने वाले राष्ट्रपति के अध्यादेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

⇒ इस संशोधन द्वारा संविधान से अनु. 291 और 362 को निकाल दिया गया जो इन विषयों से सम्बन्धित थे और एक नया अनु. 363 (क) जोङकर भूतपूर्व राजाओं के प्रिवीपर्स तथा विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।

 सत्ताईसवां संविधान संशोधन (1971) – इसके अन्तर्गत मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को संघशासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया। इसके लिए दो नये अनु. 239 (ख) और 371 (ग) जोङे गये।

 28 वाँ संविधान संशोधन (1972) – इस संशोधन द्वारा भारतीय सिविल सर्विस (ICS) अधिकारियों को प्राप्त विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। इससे लिए अनु. 312(a) को संविधान में जोङ लिया गया तथा अनु. 314 को निरसित कर दिया गया।

 29 वाँ संविधान संशोधन (1972) – इसके तहत् केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1969 तथा केरल भू सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके।

 30 वाँ संविधान संशोधन (1972) – इसके द्वारा संविधान के अनु. 133 में संशोधन किया गया।⇒ सर्वोच्च न्यायालय में दीवानी विवादों की अपील के लिए 20,000 रुपए से अधिक मूल्य की सीमा समाप्त कर दिया गया।

⇒ संशोधित अनु. के अनुसार अब दीवानी-मामलों में उच्च न्यायालय के किसी निर्णय, अन्तिम आदेशों के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील करने के लिए मामले में कोई ’सार्वजनिक महत्त्व का सारवान् प्रश्न’ अन्तर्ग्रस्त होना आवश्यक है।

संविधान संशोधन 31 -40 तक (Amendments in Indian Constitution)

31 वाँ संविधान संशोधन (1974) – इसके तहत संविधान के अनु. 81 में संशोधन कर लोकसभा के सदस्यों की संख्या को 525 से बढ़ाकर 545 कर दिया गया है।

 32 वाँ संविधान संशोधन (1974) – इसके द्वारा अनु. 371 में संशोधन किया गया और अनु. 371dतथा 371e को जोङा गया।

अनु. 371d आन्ध्रप्रदेश के लिए विशेष प्रावधान करता है जबकि अनु. 371e संसद को केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए नियम बनाने का अधिकार प्रदान करता है।

 33 वाँ संविधान संशोधन (1974) – यह संशोधन गुजरात में हुई घटनाओं के परिणाम स्वरूप किया गया था। वहाँ विधानसभा के सदस्यों को बलपूर्वक तथा डरा-धमका कर विधानसभा से इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया था। इसके द्वारा अनु. 101 और 191 में संशोधन किया गया है।
⇒ इसके तहत संसद एवं विधानसभा सदस्यों द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार प्रदान किया गया कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करें।

 34 वाँ संविधान संशोधन (1974) – इस संशोधन द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित भूमि सुधार अधिनियमों को सम्मिलित किया गया।

 35 वाँ संविधान संशोधन (1974) – इसके तहत सिक्किम का संरक्षित राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे ’सह-राज्य’ के रूप में भारत में शामिल किया गया।

 36 वाँ संविधान संशोधन (1975) – इसके द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करते हुए भारत के 22 वें राज्य के रूप में संविधान की प्रथम अनुसूची में स्थान दिया गया तथा अनु. 371च को जोङकर इसके लिए विशेष प्रावधान किया गया।

 37 वाँ संविधान संशोधन (1975) – इस संशोधन द्वारा अनु. 239 (क) और 240 में संशोधन किया गया और अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद् की स्थापना के लिए उपबन्ध किया गया है।

 38 वाँ संविधान संशोधन (1975) – इस संशोधन मुख्य उद्देश्य अनु. 352 के अधीन आपात् स्थिति की घोषणा करने में राष्ट्रपति के ’समाधान’ के प्रश्न को अवाद-योग्य बनाना था।
⇒ इसके द्वारा अनु. 352 में दो नये खण्ड (4) और (5) अनु. 356 खण्ड (5) और अनु. 359 में खण्ड (क) और अनु. 360 में खण्ड (5) जोङा गया है।
⇒ इस संशोधन द्वारा अनु. 123 और 213 तथा 239 (ख) में संशोधन कर राष्ट्रपति, राज्यपाल और उपराज्यपालों द्वारा अध्यादेश जारी करने के मामले में उनके समाधान के प्रश्न को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था।

 39 वाँ संविधान संशोधन (1975) – इस संशोधन द्वारा यह उपबन्ध किया गया है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के निर्वाचन सम्बन्धी विवादों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

ऐसे विवादों की सुनवाई संसद की विधि द्वारा स्थापित एक जन-समिति द्वारा किये जाने का प्रावधान किया गया है। ज्ञातव्य है कि अनु. 71 के तहत राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय को अधिकारिता थी।

44 वें संविधान संशोधन द्वारा यह प्रावधान पूर्ववत कर दिया गया।

 40 वाँ संविधान संशोधन (1976) – इसके द्वारा अनु. 297 में संशोधन कर संसद को समय-समय पर विधान बनाकर भारत के राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड, महाद्वीपीय मग्नतट, समुद्र के नीचे की सब भूमियों और आर्थिक क्षेत्र की सीमाओं को निर्धारित करने की शक्ति प्रदान किया गया।

इसके पूर्व राज्य क्षेत्रीय सागर-खण्ड आदि की सीमाओं का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा जारी उद्घोषणा द्वारा किया जाता था।

भारतीय संविधान के संशोधन 41 -50 तक (Constitutional Amendments in India)

 41 वाँ संविधान संशोधन (1976) – इस संशोधन द्वारा संविधान की पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित जनजातियों के विकास की दृष्टि से संशोधन किया गया है।

इसके द्वारा लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया है।

 42 वाँ संविधान संशोधन (1976) – तीसरे आपात काल के दौरान प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी की सरकार द्वारा किया गया यह संशोधन अब तक पारित सभी संशोधनों में सबसे व्यापक था।

इसके द्वारा संविधान में 2 नये अध्याय (4-क), (14-क) और 9 नये अनु. को जोङा गया तथा 52 अनु. में संशोधन किया गया था। इसकी व्यापकता के कारण ही इस संशोधन को लघु संविधान की संज्ञा दी जाती है। प्रमुख परिवर्तन अधोलिखित हैं-

⇒ संविधान की प्रस्तावना में ’समाजवादी पंथनिरपेक्षता और अखण्डता’ शब्दों को जोङा गया।

⇒ अनु. 31ग में संशोधन कर सभी नीति निदेशक तत्त्वों को मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता प्रदान किया गया तथा राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों का विस्तार करते हुए निम्न तीन निदेशक तत्त्वों को संविधान में शामिल किया गया है

(। ) समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता (अनु.39 क)

(।। ) उद्योगों के प्रबन्ध में कर्मकारों का भाग लेना (अनु. 43-क)

(।।। ) पर्यावरण की रक्षा और सुधार तथा वन और वन्य जीवों की सुरक्षा (अनु. 48-क)

 

⇒ संविधान में भाग-4 क व अनु. 51क जोङकर 10 मौलिक कर्तव्यों का समावेश किया गया। ध्यातव्य है कि वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 है।

⇒ अनु. 74 में संशोधन कर यह स्पष्ट कर दिया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य होगा।

⇒ इस संशोधन द्वारा अनु. 368 में दो नया खण्ड (4) और खण्ड (5) जोङा गया। खण्ड (4) यह उपबन्धित करता था कि संसद द्वारा किए संविधान संशोधनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी

तथा खण्ड (5) संदेह के निवारण के लिए यह घोषित करता था कि इस अनु. के अन्तर्गत संविधान के उपबन्धों को जोङने परिवर्तित करने या निरसित करने के लिए संसद की विधायी शक्ति पर कोई परिसीमन नहीं होगा।

⇒ इस संशोधन द्वारा वन, सम्पदा, शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार नियोजन, बाट तथा माप, जानवर तथा पक्षियों को सुरक्षा आदि विषयों को समवर्ती सूची के अन्तर्गत कर दिया गया।

⇒ लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि को पाँच से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया।

⇒ सभी विधानसभाओं एवं लोकसभा की सीटों की संख्या को 2001 तक के स्थिर कर दिया गया।

⇒ आपात उपबन्ध के सम्बन्ध में निम्न दो मुख्य परिवर्तन किया गया –

(। ) राष्ट्रपति पूरे देश के साथ-साथ अब देश के किसी एक भाग में भी अनु. 352 के तहत आपात की घोषणा कर सकेगा।

(।। ) अनु. 356 के तहत राज्यों में आपात घोषणा के पश्चात संसद द्वारा अनुमोदन के बाद छः महीने लागू रह सकती थी, अब यह एक वर्ष तक लागू रह सकती है।

⇒ इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में एक नया भाग 14-क जोङा गया। इससे दो अनु. (223 क और 223 ख) हैं। इसके तहत सिविल सर्वेन्ट्स के लिए न्यायाधिकरणों की स्थापना की व्यवस्था किया गया है।

⇒ केन्द्र को यह अधिकार दिया गया कि वह राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकते हैं।’’

⇒ संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह यह निर्णय कर सकती है कि कौन सा पद लाभ का पद है।

⇒ यह प्रावधान किया गया कि संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के लिए गणपूर्ति आवश्यक नहीं है।

 

 तैंतालीसवाँ संविधान संशोधन (1977) – इसके द्वारा 42 वें संविधान संशोधन की कुछ धाराओं को निरस्त किया गया।

 44 वाँ संविधान संशोधन (44th Amendment-1978) – यह संशोधन भी अत्यन्त व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण हैं इसे जनतादल की सरकार ने 42 वें संविधान संशोधन द्वारा किये गये अवांछनीय परिवर्तनों को समाप्त करने के लिए पारित किया था।

44th Amendment

इसके द्वारा किये गये प्रमुख संशोधन निम्नलिखित है –

⇒ अनु. 352 में राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा का आधार ’आन्तरिक अशान्ति’ के स्थान पर ’सशस्त्र विद्रोह’ को रखा गया। अतः अब राष्ट्रपति आपात की उद्घोषणा ’आन्तरिक अशान्ति’ के आधार पर नहीं की जा सकती बल्कि ’सशस्त्र विद्रोह’ के आधार पर की जाती हैं।

⇒ यह भी उपबन्धित किया गया कि राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की उद्घोषण तभी करेगा, जब उसे मंत्रिमण्डल द्वारा इसकी लिखित सूचना दी जाए।

⇒ सम्पत्ति के मूलाधिकार को समाप्त करके इसे अनु. 300 क, के तहत विधिक अधिकार का दर्जा प्रदान किया गया। इसके लिए अनु. 31 तथा अनु. 19 (1) (च) को निरसित किया गया।

⇒ अनु. 74 में पुनः संशोधन कर राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह मंत्रिमण्डल की सलाह, को एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है किन्तु पुनः दी गई सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।

⇒ लोकसभा तथा राज्य विधान सभााओं की अवधि पुनः 5 वर्ष कर दी गयी।

⇒ उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद को हल करने की अधिकारिता पुनः प्रदान कर दी गई।

 45 वाँ संविधान संशोधन (1978) – इसके द्वारा लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा एंग्लो इण्डियन के लिए सीटों का आरक्षण पुनः 10 वर्ष (1990 तक) के लिए बढ़ा दिया गया।

 46 वाँ संविधान संशोधन (1982) – इसके द्वारा कर चोरी रोकने के लिए, कुछ वस्तुओं के सम्बन्ध में बिक्रीकर की समान दरें और वसूली की एक समान व्यवस्था को अपनाया गया।

 47 वाँ संविधान संशोधन (1982) – इसके द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों को जोङा गया।

 48 वाँ संविधान संशोधन (1984) – इसके द्वारा संविधान के अनु. 356 (5) में परिवर्तन करके यह प्रावधान किया गया कि पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि को दो वर्ष तक बढ़ाया गया जा सकता है।

 49 वाँ संविधान संशोधन (1984) – इसके द्वारा अनु. 244 में संशोधन छठीं अनुसूची के प्रावधानों को त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों पर लागू किया गया तथा त्रिपुरा में स्वायत्तशासी जिला परिषद की स्थापना का प्रावधान किया गया।

 50 वाँ संविधान संशोधन (1984) – इसके द्वारा अनु. 33 को पुनः स्थापित करके सुरक्षा बलों के मूलधिकारों को प्रतिबन्धित किया गया।

भारतीय संविधान के संशोधन 51 -60 तक (List of Amendments)

 51 वाँ संविधान संशोधन (1984) – इस संशोधन द्वारा अनु. 330 (1) और 332 (1) में संशोधन किया गया है, नागालैण्ड और मेघालय के स्वतंत्र राज्य बनने के कारण इस संशोधन की आवश्यकता पङी।

इस संशोधन द्वारा मेघालय, नागालैण्ड अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसूचित जनजातियों को लोकसभा में आरक्षण प्रदान किया गया तथा नागालैण्ड और मेघालय की विधासभाओं में जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था गी गयी।

 52 वाँ संविधान संशोधन (1985) – इसके द्वारा संविधान में 10 वीं अनुसूची को जोङकर दल बदल रोकने लिए प्रावधान किया गया था।

 53 वाँ संविधान संशोधन (1985) – इस संशोधन द्वारा संघ क्षेत्र मिजोरम को भारत के 23 वें राज्य का दर्जा प्रदान किया गया तथा उसे विशेष राज्य दर्जा देने के लिए अनु. 371छ जोङा गया।

 54 वाँ संविधान संशोधन (1986) – अनुसूची-2 (भाग घ) में संशोधन कर सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि किया गया।

 55 वाँ संविधान संशोधन (1986) – इसके द्वारा अरुणांचल प्रदेश को भारत के 24 वें राज्य का दर्जा प्रदान किया गया तथा अनु. 371ज को जोङकर उसके लिए विशेष व्यवस्था की गयी।

 56 वाँ संविधान संशोधन (1987) – इसके द्वारा गोवा को दमन व दीव से अलग कर राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया तथा दमन और दीव को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया, साथ ही अनु. 371 झ अन्तः स्थापित कर गोवा के लिए 30 सदस्यीय विधान सभा का प्रावधान किया गया।

 57 वाँ संविधान संशोधन (1987) – इसके द्वारा अनु. 332 में संशोधन कर मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश की विधान सभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गयी।

 58 वाँ संविधान संशोधन (1987) – इसके द्वारा संविधान में अनु. 394-क जोङकर ’संविधान के हिन्दी में प्राधिकृत’ पाठ को प्रकाशित करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया।

 59 वाँ संविधान संशोधन (1988) – इसके द्वारा पंजाब के में निम्नलिखित प्रावधान किया गया था –

⇒ पंजाब में राष्ट्रपति शासन तीन वर्ष तक के लिए लागू किया जा सकता है।

⇔ केन्द्र पंजाब में आन्तरिक अशान्ति के आधार पर आपात की घोषणा कर सकता है।’’

⇒ अनु. 21 द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा जीवन के अधिकार को राष्ट्रपति केवल पंजाब में निलम्बित कर सकता है।

 60 वाँ संविधान संशोधन (1989) – इसके द्वारा अनु. 276 (2) में संशोधन कर राज्य या स्थानीय निकाय द्वारा लगाये जाने वाले व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष कर दिया गया।

संविधान संशोधन 61 -70 तक (constitutional amendments)

 61 वाँ संविधान संशोधन (1989) – इसके द्वारा अनु. 326 में संशोधन करके लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में मतदान की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष कर दिया गया।

62 वाँ संविधान संशोधन (1989) – इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर लोकसभा एवं विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों के लिए आरक्षण और 10 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।

 63 वाँ संविधान संशोधन (1990) – इसके द्वारा 59 वें संविधान संशोधन की व्यवस्था को निरसित कर दिया गया।

 64 वाँ संविधान संशोधन (1990) – इसके द्वारा अनु. 356 (4) में तीसरा ’परन्तुक’ जोङकर पंजाब के सम्बन्ध में आपात काल की अधिकतम अवधि ’तीन वर्ष’ की जगह ’तीन वर्ष 6 माह’ के लिए बढ़ाया गया।

 65 वाँ संविधान संशोधन (1990) – इसके द्वारा अनु. 338 में संशोधन कर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी के स्थान पर एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान किया गया।

 66 वाँ संविधान संशोधन (1990) – इसके द्वारा विभिन्न राज्यों द्वारा बनाये गये, भूमि सुधार अधिनियमों को नौंवीं अनुसूची में प्रविष्टि संख्या 202 के पश्चात 203 से 257 तक जोङा गया।

 67 वाँ संविधान संशोधन (1990) – इसके द्वारा अनु. 356 के तीसरे परन्तुक में संशोधन करके पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि 4 वर्ष तक बढ़ा दी गयी।

 68 वाँ संविधान संशोधन (1991) – इसके द्वारा अनु. 356 के तीसरे परन्तुक में पुनः संशोधन करके पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अवधि 5 वर्ष तक बढ़ा दी गयी, क्योंकि वहाँ चुनाव कराना सम्भव नहीं था।

 69 वाँ संविधान संशोधन (1991) – इस अधिनियम द्वारा संविधान में दो नये अनुच्छेद, अनु. 239 क क तथा 239 क ख जोङे गये हैं, जिनके द्वारा संघ क्षेत्र दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया गया हैं,

तथा उसका नाम ’राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ रखा गया और उसके लिए 70 सदस्यीय विधान सभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद का उपबन्ध किया गया।

70 वाँ संविधान संशोधन (1992) – इसके द्वारा दिल्ली तथा पाण्डिचेरी संघ राज्य क्षेत्रों के विधानसभा सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल करने का प्रावधान किया गया। इसके लिए अनु. 54 में एक स्पष्टीकरण जोङा गया।

भारतीय संविधान के संशोधन 71 -80 तक (Constitutional Amendments List)

 71 वाँ संविधान संशोधन (1992) – इसके तहत संविधान की आठवीं अनुसूची में तीन और भाषाओं कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को सम्मिलित किया गया। इनको मिलाकर आठवीं अनुसूची में अब भाषाओं की संख्या 18 हो गई।

 72 वाँ संविधान संशोधन (1992) – इसके द्वारा त्रिपुरा विधान सभा में स्थानों की संख्या बढ़ाकर 60 कर दी गयी तथा उसी अनुपात में अनूसूचित जनजातियों के लिए स्थानों को आरक्षित कर दिया गया।

 73 वाँ संविधान संशोधन (1993) – इसके द्वारा संविधान में अनुसूची-11, भाग-9 तथा अनु. 243 के पश्चात अनु. 243 a-243o, को जोङकर भारत में ’पंचायती राज’ की स्थापना का उपबन्ध किया गया।

 74 वाँ संविधान संशोधन (1993) – इसके द्वारा संविधान में अनुसूची-12, भाग-9क (अनु. 243p- 243zg) जोङकर नगरपालिका, नगर निगम तथा नगरपरिषदों से सम्बन्धित प्रावधान किया गया है।

 75 वाँ संविधान संशोधन (1993) – इस संशोधन द्वारा अनु. 223 (ख) में संशोधन कर मकान मालिक व किराएदारों के विवादों को शीघ्र निपटाने के लिए न्यायाधिकरणों की स्थापना करने का प्रावधान किया गया है।

 76 वाँ संविधान संशोधन (1994) – इसके द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछङे वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया।

 77 वाँ संविधान संशोधन (1995) – इसके द्वारा अनु. 16 में एक नया खण्ड (4 क) जोङा गया है जो यह उपबन्धित करता है कि अनु. 16 की कोई बात राज्य के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्याधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है

प्रोन्नति में आरक्षण के लिए कोई उपलब्ध करने से निवारित (वर्जित) नहीं करेगी। ध्यातव्य है कि मण्डल आयोग के मामले में उच्चतम न्यायालय ने धारित किया था कि सरकारी नौकरियों में, प्रोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।

इस निर्णय के प्रभाव को दूर करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया था।

 78 वाँ संविधान संशोधन (1999) – इसके द्वारा नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है। इसके पश्चात 9 वीं अनुसूची में कुल अधिनियमों की संख्या 284 हो गयी।

 79 वाँ संविधान संशोधन (1999) – इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए लोकसभा व राज्य विधान सभाओं में आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष के लिए और बढ़ा दिया गया है। अब यह व्यवस्था संविधान लागू होने की तिथि से 60 वर्ष अर्थात् 2010 तक बनी रहेगी।

 80 वाँ संविधान संशोधन (2000) – यह संशोधन 10 वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर किया गया है या इसके द्वारा संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व विभाजन सम्बन्धी प्रावधानों (अनु. 268-272) में परिवर्तन किया गया।

संविधान संशोधन 81 -90 तक (Amendments in Indian Constitution)

 81 वाँ संविधान संशोधन (2000) – इस संशोधन द्वारा अनु. 16 खण्ड (4 क) के बाद खण्ड (4 ख) स्थापित कर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछङे वर्गों के लिए 50% आरक्षण की सीमा को, उन रिक्तियों के सम्बन्ध में जो उक्त वर्गों के लिए आरक्षित थी और एक वर्ष में भरी नहीं जा सकी हैं, समाप्त कर दिया गया।

ध्यातव्य है कि यह संशोधन इन्द्रासाहनी बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के प्रभाव को समाप्त करने के लिए पारित किया गया था।

 82 वाँ संविधान संशोधन (2000) – इस संविधान संशोधन द्वारा राज्यों को संघ या राज्यों की सरकारी नौकरियों में भर्ती हेतु अनुसूचित जातियों एवं जनजायितों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांकों में छूट प्रदान करने अथवा प्रोन्नति में मूल्यांकन मानदण्ड घटाने की, अनु. 335 के तहत अनुमति प्रदान की गई है।’’

 83 वाँ संविधान संशोधन (2000) – इस संशोधन के द्वारा अनु. 243ङ के तहत अरुणांचल प्रदेश को पंचायतीराज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्राविधान न करने की छूट प्रदान की गई।

ध्यातव्य है कि अरुणाचल प्रदेश में कोई अनुसूचित जाति न होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गई है।

 84 वाँ संविधान संशोधन (2001) – इसके द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर लगे प्रतिबन्ध को हटाते हुए 1991 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की अनुमति दी गयी

तथा लोकसभा व विधानसभाओं की सीटों की संख्या 2026 के बाद होने वाली प्रथम जनगणना के आंकङे प्रकाशित होने तक परिवर्तित न करने का प्रावधान किया गया।

 85 वाँ संविधान संशोधन (2001) – इसके तहत अनु. 16 के खण्ड (4क) में संशोधन करके शब्दावली ’किसी वर्ग की प्रोन्नति के मामले में’ के स्थान पर शब्दावली ’किसी वर्ग के प्रोन्नति के मामले में भूतलक्षी ज्येष्ठता’ रखी गई है।

इसका तात्पर्य यह है कि इन वर्गों की प्रोन्नति भूतलक्षी (17 जून 1995) प्रभाव से दी जायेगी।

 86 वाँ संविधान संशोधन (2002) – इसके द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने सम्बन्धी प्रावधान किया गया है।

इसके लिए अनु. 21क संविधान में जोङा गया है तथा अनु. 45 तथा अनु. 51क में भी संशोधन किया गया है। अनु. 51क के तहत संशोधन द्वारा 11 वाँ कर्तव्य जोङा गया है।

 87 वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दिया गया।

 88 वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा अनु. 268क, को जोङकर सेवाओं पर कर का प्रावधान किया गया।

 89 वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा अनु. 338 क को जोङकर अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक् राष्ट्रीय आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।

 90 वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बोडोलैण्ड के गठन के पश्चात भी यथावत रखने का प्रावधान किया गया।

संविधान संशोधन 91 -100 तक 

 91 वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा 10 वीं अनुसूची में संशोधन कर दल-बदल व्यवस्था को और कङा किया गया है। अब केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता है इसके द्वारा अनु. 75 तथा 164 में संशोधन कर मंत्रिपरिषद का आकार भी नियत किया गया।

अब केन्द्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या लोक सभा तथा विधान सभा की कुल सदस्य संख्या का 15% से अधिक नहीं होगी। किन्तु जहाँ सदन की सदस्य संख्या 40 या उससे कम है, वहाँ अधिकतम 12 होगी।

 92 वाँ संविधान संशोधन (2003) – इसके द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में संशोधन कर चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी , मैथिली और संथाली को शामिल किया गया है। इस प्रकार आठवीं अनुसूची में वर्तमान में कुल 22 भाषायें हैं।

 93 वाँ संविधान संशोधन (2005) – इसके द्वारा सामाजिक व शैक्षिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश सम्बन्धी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

अनु. -15 में एक नया अनु. 15 (5) को जोङते हुए स्पष्ट किया गया है कि इस अनु. की या अनु. 19 (1) (छ) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछङे हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए कोई प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगी, किन्तु अनु. 30 (1) के अन्तर्गत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान इस प्रावधानों के दायरे में नहीं जाएंगे।

 94 वाँ संविधान संशोधन (2006) – छत्तीसगढ़ और झारखण्ड राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप बिहार और मध्य प्रदेश का सम्पूर्ण अनुसूचित क्षेत्र झारखण्ड में चला गया है।

अतः इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनु. 164 के खण्ड (1) में बिहार राज्य के स्थान पर ’छत्तीसगढ़ और झारखण्ड’ शब्दों को रखा गया है। ध्यातव्य है कि इन राज्यों में जनजातियों के कल्याण हेतु एक मंत्री का प्रावधान अनु. 164 (1) के परन्तुक में किया गया है।

 95 वाँ संविधान संशोधन (2009) – इसके द्वारा अनु. 334 में संशोधन कर लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों, जनजातियों के लिए चुनावी सीटों के आरक्षण तथा आंग्ल भारतीय सदस्यों के मनोनयन की व्यवस्था को 26 जनवरी, 2010 से आगामी दस वर्ष अर्थात् 26 जनवरी 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

 96 वाँ संविधान संशोधन (2011) – इसके द्वारा आठवीं अनुसूची में संशोधन कर 15 वीं प्रविष्टि की भाषा का नाम ’उङिया’ के स्थान पर ओङिया प्रतिस्थापित किया गया है।

 संविधान का 97 वाँ संशोधन (2011),97th constitutional amendment –

यह संशोधन सहकारी समितियों के स्वैच्छिक विनिर्माण, स्वायत्त संचालन, लोकतान्त्रिक नियंत्रण तथा व्यवसायिक प्रबंधन के लिए राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व के रूप में अनु. 43 ख अंतःस्थापित करता है।

संशोधन द्वारा एक नया भाग-9 ख भी अंतःस्थापित किया गया है जिसें (अनु. 243ZH-अनु. 243-ZT तक) कुल 13 अनु. है। यह संशोधन सहकारी समितियों को संवैधानिक स्तर प्रदान करता है।

 98 वाँ संशोधन – इस संशोधन (2 जनवरी 2013) के द्वारा अनुच्छेद 371 (जे) को जोङकर कर्नाटक के राज्यपाल की शक्तियों में विस्तार कर कर्नाटक-आंध्र प्रदेश के क्षेत्र के विकास का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।

 संविधान का 99 वाँ संशोधन (2014) – इस संशोधन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानान्तरण के लिए 1993 से चली आ रही काॅलेजियम प्रणाली के स्थान पर नए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का प्रावधान किया गया था।

इसके द्वारा संविधान में तीन नए अनुच्छेद 124A ,124B तथा 124C का समावेश किया गया था, साथ ही संविधान के अनुच्छेद 127, 128, 217, 222, 224, 224A और 231 में संशोधन किया गया था।

किन्तु 14 अक्टूबर, 2015 को न्यायमूर्ति जे. एम. केहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4ः1 के बहुमत से ’राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ अधिनियम और 99 वें संविधान संशोधन को रद्द कर काॅलेजियम प्रणाली को पुनः बहाल कर दिया।

 100 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2015) ,100th amendment of indian constitution

इस संशोधन अधिनियम द्वारा भारत और बांग्लादेश के मध्य 1974 में हस्ताक्षरित ’भू-सीमा समझौता’ और तत्सम्बन्धी प्रोटोकाॅल का अनुमोदन किया गया है।

इस संशोधन के अनुसार भारत के बांग्लादेश में स्थित 111 एनक्लेव बांग्लादेश को प्राप्त हुए हैं तथा बांग्लादेश के भारत में स्थित 51 एनक्लेव भारत में शामिल किए गए हैं।

इन एनक्लेवों को 31 जुलाई, 2015 की मध्य रात्रि से हस्तांरित मान लिया गया है तथा सीमांकन का कार्य दोनों देशों के सर्वेक्षण विभागों द्वारा 30 जून, 2016 तक पूर्ण कर लिया जाएगा। भूक्षेत्र के आधार पर भारत की जहां 17,160.63 एकङ भूमि बांग्लादेश को हस्तांरति हुई है, वहीं बांग्लादेश की 7,110.02 एकङ भूमि भारत को हस्तांरित हुई है।

उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम के माध्यम से भारत के प. बंगाल, असम , त्रिपुरा एवं मेघालय राज्यों के क्षेत्रों से संबंधित संविधान की प्रथम अनुसूची के उपबन्धों में संशोधन में संशोधन किया गया है

संविधान संशोधन 101

 101 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2016) – इस संविधान संशोधन अधिनियम का सम्बन्ध GSTसे है। 8 सितम्बर, 2016 को संविधान (122 वाँ संशोधन) विधेयक, 2014 राष्ट्रपति के हस्ताक्षरोपरांत संविधान (101 वां संशोधन) अधिनियम, 2016 के रूप में अधिनियमित हुआ।

राज्य सभा द्वारा 3 अगस्त, 2016 को तथा लोक सभा द्वारा 8 अगस्त, 2016 को यह संशोधन विधेयक पारित किया गया था।
यह विधेयक संघ एवं राज्य दोनों से संबंधित है अतः इसे अधिनियमित होने से पूर्व कम से कम आधे राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता थी।

वर्तमान में 8 राज्यों (जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल) को छोङकर अब तक 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा इसे अनुसमर्थित किया जा चुका है।

इनमें असम GST को अनुसमर्थन देने वाला पहला राज्य रहा। इस अधिनियम के द्वारा संविधान के भाग 11 (अनुच्छेद 248, 249 एवं 250), भाग 12 (अनुच्छेद 268, 269, 270, 271 तथा 286), भाग 19 (अनुच्छेद 266), भाग 20 (अनुच्छेद 368) तथा छठीं सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है

तथा तीन नए अनुच्छेद (अनुच्छेद 246A, 269A तथा 279A) जोङे गए जबकि अनुच्छेद 268A को समाप्त कर दिया गया है।

⏩ सुकन्या योजना क्या है    ⏩  चितौड़गढ़ दुर्ग की जानकारी 

⏩ 44 वां संविधान संशोधन    ⏩ 42 वां संविधान संशोधन 

⏩ सिन्धु सभ्यता      ⏩ वायुमंडल की परतें 

⏩ मारवाड़ का इतिहास      ⏩ राजस्थान के प्रमुख त्योंहार 

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