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Dhruv Tara – ध्रुव तारा || ध्रुव तारे की कहानी

Author: K.K.SIR | On:4th Jul, 2022| Comments: 0

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Table of Contents

  • ध्रुव तारा – Dhruv Tara
  • ध्रुव तारा क्या है- Dhruv Tara Kya Hai?
  • ध्रुव तारे का अर्थ क्या है – Dhruv Meaning in Hindi
  • ध्रुव तारा हमें स्थिर प्रतीत क्यों होता है
  • ध्रुव तारा किस दिशा में रहता है – Dhruv Tara Direction
  • ध्रुवमंडल के तारे – Pole Star in Hindi
  • ध्रुव तारा हम कैसे देख सकते है ?
  • ध्रुव की कहानी – Dhruv ki Kahani
  • सप्तर्षि मंडल क्या होता है – Big Dipper Kya Hai
  • Conclusion
  • ध्रुव तारा FAQ
  • 1. ध्रुव तारा किस दिशा में दिखाई देता है ?
  • 2. ध्रुव तारे का दूसरा नाम क्या है ?
  • 3. ध्रुव तारे की पहचान कैसे की जाती है ?
  • 4. ध्रुव तारा धरती से कितना दूर है ?
  • 5. ध्रुव तारा कितना बड़ा है ?
  • 6. ध्रुव तारा कब निकलता है ?

आज के आर्टिकल में हम ध्रुव तारे(Dhruv Tara) के बारे में विस्तार से चर्चा करने वाले है ,ध्रुव तारा की कहानी,ध्रुव तारा की पहचान कैसे करें,ध्रुव तारा स्थिर क्यों दिखाई देता है?,ध्रुव तारा कब उगता है,इन सब पर चर्चा करने वाले है।

ध्रुव तारा – Dhruv Tara

ध्रुव तारा

ध्रुव तारा क्या है- Dhruv Tara Kya Hai?

पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के पास एक तारा है, जिसे ’ध्रुवतारा’ कहते हैं।

ध्रुव तारे का अर्थ क्या है – Dhruv Meaning in Hindi

ध्रुव का अर्थ होता है एक ही जगह पर स्थिर रहने वाला।

ध्रुव तारे को अंग्रेजी में पोल स्टार (Pole Star), ’पोलैरिस’ (Polaris), नाॅर्थ स्टार (North star) या लोडस्टार (Lodestar) कहते है। अरबी भाषा में ध्रुव तारे को ’नजूम-अल-शुमाल’ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है – उत्तर का तारा। फारसी भाषा में इस ध्रुव तारे को ’कुतबी सितारा’ कहा जाता है।

हमारी पृथ्वी से दिखाई देने वाला 50 वाँ सबसे चमकीला तारा है। ध्रुव तारे का स्पष्ट परिमाण (Apparent Magnitude) 2.02 है, जिस कारण हम इस तारे को बङी आसानी से नग्न आँखों से भी देख सकते है।

ध्रुव तारा Yellow Supergiant तारा है। ध्रुव तारा लघु सप्तर्षि-मंडल में आता है। ध्रुव तारा सूर्य से 2200 गुना अधिक चमकीला है। ध्रुव तारा एक Red Giant तारा है। सूर्य के द्रव्यमान से इस तारे का द्रव्यमान 5.4 गुना अधिक है। यह तारा सूर्य से 37.5 गुना बङा अर्थात् इसका व्यास 5,22,26, 250 किलोमीटर है। ध्रुव तारे का सतह तापमान 7000 सेमी. है। ध्रुव तारा एक महादानव तारा है। आज से करीब 3000 साल पहले लघु सप्तर्षि मंडल का ’बीटा’ तारा ध्रुव तारा था। ध्रुव तारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से 434 प्रकाश वर्ष दूर एक तारामंडल है।

ध्रुव तारा हमें स्थिर प्रतीत क्यों होता है

: ध्रुव तारा (Dhruv Star) पृथ्वी के गोल की धुरी पर होने के कारण हमें स्थिर प्रतीत होता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर परिक्रमा करती है, इसी कारण हमें भी ऐसा लगता है कि तारे भी हमें पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर घूम रहे है। जब हम ध्रुव तारे को आसमान में देखते है तब ध्रुव तारा तो हमें एक जगह पर स्थिर नजर आता है और इनके आस-पास मौजूद तारे हमें इसकी परिक्रमा करते दिखाई देते है। जिन्हें ’परिध्रुव तारे’ कहते हैं।

ध्रुव तारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव में मौजूद है। लेकिन ध्रुव तारा पृथ्वी की उत्तरी दिशा में सीधा नहीं है, बल्कि यह 10 तिरछा है। सन् 2105 में यह तारा पृथ्वी के उत्तर ध्रुव में पूरी तरह से सीधी रेखा में आ जाएगा। इसके बाद फिर से ध्रुव तारा उत्तरी ध्रुव (Uttari Dhruv) की सीधी रेखा से हटने लगेगा। इसके बाद 26000 साल बाद यह तारा फिर पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की सीधी रेखा में आ जाएगा। यह पृथ्वी की ’चक्कर पद्धति’ (Rotation System) की वजह से थोङा बहुत अपने स्थान से खिसकता है लेकिन वास्तव में ध्रुव तारा कभी भी उत्तरी ध्रुव को छोङकर नहीं जाता है।

ध्रुव तारा किस दिशा में रहता है – Dhruv Tara Direction

लोग रात में दिशा का पता लगाने के लिए ध्रुव तारे को देखते है। ध्रुव तारा उत्तर दिशा में स्थित सबसे चमकीला तारा है।

भारत के उत्तरी गोलार्द्ध से अर्थात् उत्तरी भारत से हम ध्रुव तारे को स्पष्ट रूप से देख सकते है। सप्तर्षि के तारे ध्रुव तारे की परिक्रमा करते है। ध्रुव तारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ठीक ऊपर स्थित या दिखाई देता है। ध्रुव तारा उत्तर दिशा में स्थित होता है। यह अपने स्थान पर स्थिर होता है।

dhruv tare se kis disha ka gyan hota hai
आज से लगभग 12 साल बाद इस ब्रह्मांड के उत्तर में सबसे चमकीला तारा वेगा (VEGA) होगा, जो पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के सबसे नजदीक होगा और तब इसको ही ध्रुव तारा माना जाएगा।

ध्रुवमंडल के तारे – Pole Star in Hindi

वास्तव में ध्रुव तारा (Dhruv Tara) एक तारा नहीं है, बल्कि यह एक तारामंडल अर्थात् तारों का समूह है, जिसमें सात ध्रुव तारे है।

जिसमें से मुख्य तारे निम्न है –

(1) ध्रुव A (Pole A) – सबसे मुख्य तारा है इसका नाम α UMi A । है, जो एक F7 क्लास का Yellow Supergiant Star है। इसका व्यास सूरज के व्यास का 30 गुना है। इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से लगभग 7.5 गुना अधिक है। यह ध्रुवमण्डल का सबसे चमकीला तारा है। चमक के मामले में यह हमारे सूरज से लगभग 2200 गुना चमकीला है।

(2) ध्रुव बी (α UMi B) (अल्फा उर्सा मेनोरिश B) – जो एक F3 class Yellow supergiant का तारा है। इस तारे का द्रव्यमान सूूर्य के द्रव्यमान का लगभग 1.5 गुना है। यह तारा ध्रुव A की 2400 खगोलीय इकाईयों की दूरी पर परिक्रमा करता है।

(3) ध्रुव ए बी (α UMi Ab) – यह तारा सबसे छोटा तारा है। यह तारा ध्रुव A की परिक्रमा 18.5 खगोलीय इकाईयों की दूरी से करता है।

(4) ध्रुव सी (α UMi C) और ध्रुव डी (α UMi D) – यह दोनों तारे ही ध्रुव A से काफी दूरी पर स्थित है।

ध्रुव तारा हम कैसे देख सकते है ?

⇒ ध्रुव तारा केवल वही लोग देख सकते है जो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के ऊपर है। जो व्यक्ति पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध में रहते है उनको ध्रुव तारा नहीं दिखाई देता। क्योंकि इस गोलार्द्ध के नीचे पृथ्वी ढक जाती है अर्थात् पृथ्वी का वक्र यहाँ से उङ जाता है यहीं कारण सऊदी अरब के लोग ध्रुव तारे को नहीं देख पाते। हमारा भारत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में है इसलिए पूरे भारत में किन्हीं से भी हम ध्रुव तारे को देख सकते है।

ध्रुव की कहानी – Dhruv ki Kahani

⇒ ध्रुव तारा की कहानी – Dhruv Tara ki Story in Hindi

बहुत सालों पहले उत्तानपाद नाम का एक राजा था। उनकी सुनीति और सुरुचि नाम की दोनों पत्नियाँ थी। सुनीति का एक पुत्र था जिसका नाम ‘ध्रुव’ था और सुरुचि का एक बेटा था जिसका नाम ’उत्तम’ था। सुनीति बङी रानी थी लेकिन उत्तनपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। एक बार सुनीति का पुत्र ध्रुव अपनी पिता की गोद में बैठा खेल रहा था इतने में सुरुचि वहाँ आ पहुँची। ध्रुव को उत्तनपाद की गोद में खेलते देख सुरुचि को गुस्सा आ गया। सौतन के पुत्र को अपने पति की गोद में वो बर्दाश न कर सकी और उसके मन में ईर्ष्या आ गयी उसने झपटकर बालक ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को राजा की गोद में बैठा दिया।

बालक ध्रुव से बोलीं कि, ”राजा की गोद में वहीं बालक बैठ सकता है जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ हो।”

”तू मेरी कोख से उत्पन्न नहीं हुआ है। इसलिए तुझे राजा की गोद में या सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है।”

5 वर्ष के ध्रुव को अपनी सौतेली माँ के व्यवहार पर क्रोध आया और वो भागते हुए अपनी माँ सुनीति के पास आया तथा उसको सारी बात बताई।

सुनीति बोली, ’’बेटा तेरी सौतेली माँ सुरुचि से अधिक प्रेम के कारण तुम्हारे पिता हम लोगों से दूर हो गये है।”

”तुम भगवान को अपना सहारा बनाओ।”

माता के वचन सुनकर ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वो भगवान की भक्ति करने के लिए पिता के घर को छोङकर चला गया। मार्ग में उसकी भेंट देवर्षि नारद से हुई। देवर्षि नारद ने बालक ध्रुव को समझाया कि वे घर लौट जाए किन्तु ध्रुव नहीं माना। नारद ने उसके दृढ़ संकल्प को देखते हुए मंत्र की दिक्षा ली। इसके बाद देवर्षि राजा उत्तनपाद के पास गये। राजा उत्तनपाद को ध्रुव के चले जाने से बङा पछतावा हुआ।

देवर्षि नारद को वहाँ पाकर उन्होंने उनका सत्कार किया। देवर्षि ने राजा को ढ़ाढ़स बँधाया कि भगवान उनके रक्षक है। भविष्य में वो अपने यश को संपूर्ण पृथ्वी पर फैलायेंगे, उनके प्रभाव से आपकी कीर्ति संसार में फैलेगी। नारदजी के इन शब्दों से राजा उत्तनपाद को कुछ तसल्ली हुई। उधर बालक ध्रुव यमुना के तट पर जा पहुँचे तथा महर्षि नारद से मिले मंत्र से भगवान नारायण की तपस्या शुरू कर दी। तपस्या करते हुए ध्रुव को अनेक प्रकार की समस्याएँ आई, परन्तु वो अपने संकल्प पर अडिग रहे और उनका मनोबल विचलित नहीं हुआ।

उनके तप का तेज तीन लोकों में फलने लगा। ’’ओउम् नमो भगवते वासुदेवाय’’ की ध्वनि बैकुण्ठ में भी गूँज उठी। तब भगवान नारायण भी योग निद्रा से उठ बैठे। ध्रुव को इस तपस्या में तप करते देख नारायण प्रसन्न हो गये तथा उन्हें दर्शन देने के लिए प्रकट हुए।

नारायण बोले, ”हे राजकुमार! तुम्हारी समस्त इच्छाएँ पूर्ण होगी।”

”तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वो लोक प्रदान कर रहा हूँ, जिसके चारों ओर ज्योतिषी चक्र घूमता है तथा जिसके आधार पर सब ग्रह-नक्षत्र घूमते है।”

”प्रलंयकार में भी जिसका कभी नाश नहीं होता। सप्तर्षि भी नक्षत्रों के साथ जिसकी प्रदिक्षा करते है।”

”तुम्हारे नाम पर वो लोक ’ध्रुव लोक’ कहलायेगा।”

”इस लोक में 36 सहस्र वर्ष तक तुम पृथ्वी पर शासन करोंगे।”

”समस्त प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोग कर अंत समय में तुम मेरे लोक को प्राप्त करोगे।”

बालक ध्रुव को ऐसा वरदान देकर नारायण अपने लोक को लौट गये। नारायण के वरदान स्वरूप ध्रुव समय पाकर ’ध्रुव तारा’ बन गया। हम देखते है  कि आज भी आकाश में उत्तर दिशा में ’ध्रुव तारा’ है जिसके चारों ओर गृह-नक्षत्र भ्रमण करते दिखाई देते है।

ध्रुव तारे के एक ओर तो सप्तर्षि मंडल है और इसकी विपरीत दिशा में शर्मिष्ठा नक्षत्र-मंडल है। भारत से सप्तर्षि मंडल के तारों को जब हम ध्रुवतारे के ऊपर देखते हैं, तब शर्मिष्ठा नक्षत्र-मंडल के तारों को हम देख नहीं पाते क्योंकि इस समय नक्षत्र-मंडल क्षितिज के नीचे होता है। लेकिन उत्तरी यूरोप जैसे स्थानों से देखने पर इन दोनों नक्षत्र-मंडलों को एक साथ देख सकते है, क्योंकि ये दोनों मंडल ही ध्रुव तारे की परिक्रमा करते है।

सप्तर्षि मंडल क्या होता है – Big Dipper Kya Hai

पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के आकाश में रात में दिखाई देने वाला सात तारों का समूह (तारामंडल) ’सप्तर्षि तारामंडल’ है। इन तारों के सबसे अंतिम तारे के ठीक ऊपर एक बङा-सा चमकीला तारा दिखाई देता है, वहीं ध्रुव तारा (Dhruv star) है। सप्तर्षि तारामंडल को अंग्रेजी भाषा में अरसा मेजर (Ursa Major) कहा जाता है। सप्तर्षि मंडल का आकार एक बङे भालु की तरह दिखाई पङता है। इसलिए इसे बिग बेयर (Big Bear) तथा ग्रेट बेयर (Great Bear) भी कहा जाता है। ऋग्वेद में इन तारों को ’ऋक्षा’ (रीछ या भालू) कहा गया है।

तारों का प्रारंभिक इतिहास प्रायः सप्तर्षि मंडल से ही शुरू होता है संसार के लगभग सभी प्राचीन समाज सप्तऋषि मंडल से परिचित है। आधुनिक काल में समूचे आकाश को 88 तारामण्डलों में बांटा गया है। उसमें सप्तर्षि मंडल सबसे बङा तीसरा तारामंडल है।

सप्तर्षि तारामंडल में क्रमशः सात ऋषि है।

जिनके नाम इस प्रकार है –

  • अंगिरस
  • अत्रि
  • पुलस्त्य
  • मारीचि
  • वशिष्ठ
  • क्रतु
  • पुलह।

इनमें से ऋग्वेद के केवल दो ऋषियों को ही शामिल किया गया है अत्रि और वशिष्ठ।

शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के अनुसार, गौतम ऋषि, भारद्वाज ऋषि, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि जमदग्नि, वशिष्ठ ऋषि, कश्यप ऋषि और अत्रि ऋषि।

प्राचीन वेद और हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व ऋषि, भारद्वाज ऋषि, ऋषि वामदेव, अत्रि ऋषि और शौनक ऋषि।

इन सात तारों को संसार की अनेक प्राचीन सभ्यताओं और समाजों ने अपने धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया था। आज भी अंधेरी रातों में इन सप्तर्षियों का समूह हमें तारों के रूप में दिखाई देता है। क्योंकि ये सप्तर्षि महान् कार्यों के लिए धरती पर भगवान ब्रह्माजी के अंश के रूप में अवतरित हुए थे। आधुनिक पाश्चात्य ज्योतिष में इन सप्तर्षि के इन तारों को अल्फा (क्रत), बीटा (पुलह), गामा (पुलस्त्य), डेल्टा (अत्रि), इप्साइलोन (अंगिरा), जेटा (वशिष्ठ) और एटा (मरीचि) इन यूनानी अक्षरों से पहचाना जाता है।

Conclusion

आज के आर्टिकल में हम ध्रुव तारे(Dhruv Tara) के बारे में जाना ,हम आशा करतें है कि आपने इस आर्टिकल से कुछ नया सीखा होगा ….धन्यवाद

ध्रुव तारा FAQ

1. ध्रुव तारा किस दिशा में दिखाई देता है ?

उत्तर- उत्तर दिशा में

2. ध्रुव तारे का दूसरा नाम क्या है ?

उत्तर- अल्फा उर्साए माइनोरिस

3. ध्रुव तारे की पहचान कैसे की जाती है ?

उत्तर- उत्तर दिशा में सप्तऋषि मंडल के अंतिम दो तारों को मिलाने वाली रेखा के उत्तरी छोर पर ध्रुव तारा होता है। इसकी खास बात यह है कि आप जैसे-जैसे उत्तरी ध्रुव की तरफ चलेंगे, वैसे-वैसे ये तारा ऊपर उठता जाएगा।

4. ध्रुव तारा धरती से कितना दूर है ?

उत्तर- 434 प्रकाश वर्ष

5. ध्रुव तारा कितना बड़ा है ?

उत्तर- ध्रुव तारा सूर्य के व्यास से 30 गुना बड़ा है।

6. ध्रुव तारा कब निकलता है ?

उत्तर- रात के 10ः11 मिनट पर ध्रुव तारा सभी जगहों पर दिखाई देने लगता है।

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