दहेज प्रथा पर निबंध – कारण, उपाय, अधिनियम 1961 || Dahej Pratha

आज के आर्टिकल में हम दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढेंगे। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan), दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay), दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) के बारे में जानेंगे।

दहेज प्रथा पर निबंध – Dahej Pratha Par Nibandh

Table of Contents

Dahej Pratha

सब मिलकर अभियान चलाएं

दहेज प्रथा को जङ से मिटाएं।।

प्रस्तावना

दहेज शब्द अरबी भाषा ’जहेज’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ होता है – भेंट या सौगात। धर्मशास्त्र में इसे ’दाय’ कहा गया है, जिसका आशय वैवाहिक उपहार है। भारतीय संस्कृत में प्राचीनकाल से अनेक शिष्टाचारों का प्रचलन रहा है। उस काल में विवाह-संस्कार को मंगल-भावनाओं का प्रतीक मानकर प्रेमपूर्वक दायाद, दाय या दहेज का प्रचलन था परन्तु कालान्तर में यह शिष्टाचार रूढ़ियों एवं प्रथाओं के रूप में सामाजिक ढाँचे में फैलने लगा। जो वर्तमान सामाजिक जीवन में एक अभिशाप-सी बन गया है।

दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है, जो एक बहुत तेजी के साथ पूरे समाज में फैलती जा रही है। दहेज का अर्थ है – वह सम्पत्ति जो विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ से वर को दी जाती है। वधू के परिवार द्वारा नकद या वस्तुओं और गहनों के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है।

विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को उपहार के रूप में जो भेंट दी जाती है, उसे ’दहेज’ कहते हैं। यह प्रथा अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही है। आज यह बुराई का रूप धारण कर चुकी है। परंतु मूल रूप में यह बुराई नहीं है। दहेज का अर्थ है – विवाह के समय लङकी के परिवार की तरफ से लङके के परिवार को धन-सम्पत्ति आदि का देना। वास्तव में धन-सम्पत्ति की माँग लङके के परिवार वाले सामने से करते है और लङकी के घर वालों को उनकी माँग के अनुसार धन-सम्पत्ति देनी पङती है।

दहेज भारतीय समाज के लिए अभिशाप है। यह कुप्रथा घुन की तरह समाज को खोखला करती चली जा रही हैं। इसने नारी जीवन तथा सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करके रख दिया है। प्राचीन काल से ही दहेज प्रथा हमारे समाज में प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है।

लेकिन समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई। अब उपहार दूल्हा और उसके माता-पिता रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। शादियों में दिए जाने वाले सभी उपहार ’दहेज’ की श्रेणी में आते हैं। इस प्रथा में लिंग असमानता और सख्त कानूनों की कमी जैसे कई कारणों ने भी इसको जन्म दे दिया है।

दहेज प्रथा एक अभिशाप

प्राचीनकाल में कन्या-विवाह के अवसर पर पिता स्वेच्छा से अपनी सम्पत्ति का कुछ अंश उपहार रूप में देता था। उस समय यही शुभ-कामना रहती थी कि नव-वर-वधू अपना नया घर अच्छी तरह बसा सकें तथा उन्हें कोई असुविधा न रहे। परन्तु परवर्ती काल में कुछ लोग अपना बङप्पन जताने के लिए अधिक दहेज देने लगे।

ऐसी गलत परम्परा चलने से समाज में कन्या को भारस्वरूप माना जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी में दहेज प्रथा के कारण समाज में अनेक गलत परम्पराएँ चलीं, यथा – बहुविवाह, बालविवाह, कन्या को मन्दिर में चढ़ाना या देवदासी बनाना आदि। कुछ जातियों के लोग इसी कारण कन्या-जन्म को अशुभ मानते हैं।

’’सोच बदलो चरित्र बदलो,

दहेज प्रथा को दूर करो’’

दहेज प्रथा का इतिहास

भारत के सबसे बङे पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में माता-पिता द्वारा बेटियों को दहेज देने का उदाहरण मिलता है। इसके अलावा उत्तरवैदिक काल में भी दहेज प्रथा के कुछ उदाहरण मिलते है। लेकिन उस समय दहेज प्रथा का स्वरूप कुछ अलग था।

दहेज प्रथा के कारण

(1) धार्मिक विश्वास –

हिन्दुओं के धार्मिक विश्वास ने दहेज प्रथा को प्रोत्साहन दिया है। हिन्दुओं की धार्मिक मान्यता के अनुसार माता-पिता द्वारा अपनी कन्या को अधिक-से-अधिक सम्पत्ति, आभूषण और उपहार देना विवाह संस्कार से सम्बन्धित एक धार्मिक कृत्य है। यह विश्वास धार्मिक परम्परा से सम्बन्धित है।

(2) शिक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा –

वर्तमान समय में शिक्षा एवं व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का महत्त्व अधिक है इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह शिक्षित एवं प्रतिष्ठित लङके के साथ करना चाहता है। जिसके लिए उसके काफी दहेज देना होता है क्योंकि ऐसे लङकों की समाज में कमी पायी जाती है।

(3) कुलीन विवाह का नियम –

कुलीन विवाह के नियम के कारण एक और कुलीन परिवारों के लङकों की मांग अत्यधिक मद जाती है और जीवन साथ के तनाव का क्षेत्र भी सीमित रह जाता है। इस स्थिति में वर-पक्ष को कन्या-पक्ष से अधिक दहेज प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है।

(4) बाल-विवाह भारत में बाल –

विवाहों का अत्यधिक प्रचलन होने के कारण माता-पिता लङकी की योग्यता को नहीं जा पाते। इस स्थिति में दहेज में दी गयी राशि की लङकी की योग्यता बन जाती है।

(5) दुष्चक्र –

दहेज एक दुष्चक्र है जिन लोगों ने अपनी लङकियों के लिए दहेज दिया है, बाद में वही लोग अपने अवसर आने पर अपने लङकों के लिए दहेज प्राप्त करना चाहते है। इसी प्रकार से लङके के लिए दहेज प्राप्त करके वे अपनी लङकियों के लिए देने के लिए उसे सुरक्षित रखना चाहते हैं।

(6) पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था –

भारतीय समाज हमेशा से ही पुरुष-प्रधान समाज रहा है। इस समाज में सभी परम्पराओं तथा व्यवहारों का निर्धारण पुरुष के पक्ष में ही होता है। दहेज प्रथा के द्वारा स्त्रियों पर पुरुषों के प्रभुत्व को स्थापित करने का प्रयास किया गया है। कई लोगोें ने दहेज प्रथा का विरोध भी किया है लेकिन जब कभी इसका विरोध किया गया था तब उन्हें कालान्तर में अनेक असमर्थताओं का सामना करना पङा था। इसी कारण दहेज प्रथा की वास्तविक सुधार नहीं हो सका।

(7) सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक –

अधिकतर परिवार दहेज प्रथा को इसलिए प्रोत्साहन देते हैं क्योंकि वे यह सोचते है कि अगर हम अपनी लङकी को अधिक दहेज देंगे तो उनकी लङकी को अपने पति के संयुक्त परिवार में अधिक प्रतिष्ठा मिलेगी। कुलीन परिवार तो सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर सार्वजनिक रूप से दहेज की मांग करना अनुचित नहीं समझते।

(8) धन का महत्त्व –

वर्तमान में धन का महत्त्व बढ़ गया है और धन से ही व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का पता चलता है। जिस व्यक्ति को अधिक दहेज प्राप्त होता है, उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। अधिक दहेज देने वाले व्यक्ति को भी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।

(9) माता-पिता का प्रभुत्व –

भारत में आज भी विवाह सम्बन्धों का निर्धारण करना माता-पिता का अथवा परिवार का दायित्व है, इसमें लङके और लङकी को कोई स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती। इस स्थिति में जीवन साथी के व्यक्तिगत गुणों की अपेक्षा उसके परिवार की दहेज की राशि को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

(10) प्रदर्शन एवं झूठी प्रतिष्ठा –

अपनी प्रतिष्ठा एवं शान का प्रदर्शन करने के लिए भी लोग अधिकाधिक दहेज लेते है ओर देते है।

(11) सामाजिक प्रथा –

दहेज का प्रचलन समाज में एक सामाजिक प्रथा के रूप में पाया जाता है। जो व्यक्ति अपनी कन्या के लिए दहेज देता है वह अपने पुत्र के लिए भी दहेज प्राप्त करना चाहता है।

(12) अन्तर्विवाह –

अपनी ही जाति के अंदर विवाह करने के नियम ने भी दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया है, इसके कारण विवाह का क्षेत्र अत्यंत सीमित हो गया है। वर की सीमित संख्या की वजह से वर मूल्य बढ़ता गया है।

(13) विवाह की अनिवार्यता –

विवाह एक अनिवार्य संस्कार है। शारीरिक रूप से कमजोर, असुन्दर व विकलांग कन्याओं के पिता अधिक दहेज देकर वर की तलाश करते है।

(14) संयुक्त परिवारों में स्त्रियों का शोषण –

स्मृति काल तक स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय हो गयी थी। संयुक्त परिवारों में नव वधुओं को सताया जाता था। इसी कारण कन्या पक्ष को ज्यादा धन देने लगे, जिससे परिवार में उसकी कन्या को अधिक सम्मान मिल सके।

दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम

वर्तमान समय में हमारे देश में दहेज-प्रथा अत्यन्त विकृत हो गई है। आजकल वर पक्ष वाले अधिक दहेज माँगते हैं। वे लङके के जन्म से लेकर पूरी पढ़ाई-लिखाई व विवाह का खर्चा माँगते हैं, साथ ही बहुमूल्य आभूषण एवं साज-सामान की माँग करते हैं। मनचाहा दहेज न मिलने से नववधू को तंग किया जाता है, उसे जलाकर मार दिया जाता है।

कई नव-वधुएँ आत्महत्या कर लेती हैं या दहेज के लोभी उसे घर से निकाल लेते हैं। इन बुराइयों के कारण आज दहेज-प्रथा समाज के लिए कलंक है। या तो कन्या को लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, काला-बाजारी आदि का सहारा लेना पङता है। नहीं तो उनकी बेटियाँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती है।

आज हम हर रोज समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि दहेज के लिए युवती रेल के नीचे कट कर मरी, किसी बहु को ससुराल वालों ने जिंदा जलाकर मार डाला, किसी बहन-बेटी ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ली। ये सभी घिनौने परिणाम दहेज रूपी दैत्य के ही हैं।

दहेज प्रथा के बहुत से दुष्परिणाम हैं। जिन लङकियों को अधिक दहेज नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं होता, उन्हें कई प्रकार से तंग किया जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए बाध्य होकर कुछ लङकियाँ आत्महत्या तक कर लेती हैं। दहेज देने के लिए कन्या के पिता को रुपया उधार लेना पङता है या अपनी जमीन व जेवरात, मकान आदि को गिरवीं रखना पङता है या बेचना पङता है। परिणामस्वरूप परिवार ऋणग्रस्त हो जाता है।

कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए परिवार को अपनी आवश्यकताओं में कटौती करनी पङती है। बचत करने के चक्कर में परिवार का जीवन-स्तर गिर जाता है। दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुरूप, अपंग एवं अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पङता है। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पङता है। अपनी मर्जी का दहेज ना मिल पाने के कारण बहुत से लोग तलाक लेकर विवाह तक समाप्त कर देते हैं।

’’दहेज एक प्रथा नहीं व्यापार है

जो बेकसूर बेटी की जान है लेता

लालची लोगों का वो हथियार है’’

दहेज प्रथा, एक बुराई

प्राचीन समय में दहेज एक सभ्य तरीके से केवल बेटी को माता-पिता द्वारा प्रेमपूर्वक और सामथ्र्य के अनुसार उपहार स्वरूप दिया जाता था। भला उपहार देने में कैसी बुराई ? परन्तु आज दहेज प्रथा ने एक राक्षस का स्वरूप ले लिया है जो आए दिन बेटियों के अरमानों का गला घोंट रहा है।

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आज दहेज फैशन लालच और अभिमान को देखते हुए दिया और लिया जा रहा है। जितना योग्य दूल्हा होगा उसके माता-पिता द्वारा उतना ही अधिक दहेज मांगा जाता है। यदि इस प्रकार से चलता ही अधिक दहेज मांगा जाता है। यदि इस प्रकार से चलता रहा तो पढ़ी-लिखी व योग्य लङकियां धन की कमी के कारण एक योग्य जीवनसाथी से वंचित रह जायेगी।

दहेज-प्रथा में अपेक्षित सुधार

दहेज-प्रथा की बुराइयों को देखकर समय-समय पर समाज सुधारकों ने इस ओर ध्यान दिया है। भारत सरकार ने दहेज प्रथा में सुधार लाने के लिए दहेज प्रथा उन्मूलन का कानून बनाकर उसे सख्ती से लागू कर दिया है। अब दहेज देना व लेना कानूनन दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। इस प्रकार दहेज प्रथा में सुधार लाने के लिए भारत सरकार ने जो कदम उठाये हैं, वे प्रशंसनीय है।

परन्तु नवयुवकों एवं नवयुवतियों में जागृति पैदा करने से इस कानून का सरलता से पालन हो सकता है। शिक्षा एवं संचार-प्रचार माध्यमों से जन-जागरण किया जा रहा है।

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय

हालाँकि दहेज की बुराई को रोकने के लिए समाज में अनेक संस्थाएँ बनी हैं। युवकों को प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर भी करवाये गए हैं। परंतु समस्या ज्यों की त्यों है। इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। सरकार ने ’दहेज निषेध’ अधिनियम के अंतर्गत दहेज के दोषी के कङा दंड देने का विधान रखा है। परंतु आवश्यकता है – जन जागृति की।

जब तक युवा दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज-लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी। तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा। हमारे साहित्यकारों और कलाकारों को चाहिए कि वे युवकों के हृदय में दहेज के प्रति तिरस्कार जगाएँ।

स्त्री-शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाये ताकि वे पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनें और अपने प्रति होने वाले अत्याचारों का खुले रूप से विरोध कर सके। लङके व लङकियों को अपना जीवन-साथी स्वयं चुनने की स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर अपने आप दहेज प्रथा समाप्त हो जायेगी। अन्तर्जातीय विवाह की छूट होने पर विवाह का दायरा विस्तृत से भी दहेज-प्रथा समाप्त हो सकेगी।

लङकों को स्वावलम्बी बनाया जाए और उन्हें दहेज ना लेने हेतु प्रेरित किया जाए। दहेज प्रथा की समाप्ति के लिए कठोर कानूनों का निर्माण किया जाए एवं दहेज मांगने वालों को कङी-से-कङी सजा दी जाए। वर्तमान में ’दहेज निरोधक अधिनियम, 1961’ लागू है, परन्तु इसे संशोधित करने की आवश्यकता है।

उपसंहार

हमारे समाज में प्रारम्भिक काल में दहेज का स्वरूप अत्यन्त उदात्त था, परन्तु कालान्तर में रूढ़ियों एवं लोभ-लालच के कारण यह सामाजिक अभिशाप बन गया। यद्यपि ’दहेज-प्रथा उन्मूलन’ कानून बनाकर सरकार ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के प्रयास किये हैं, परन्तु इसे जन-जागरण से ही समाप्त किया जा सकता है।

दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने हेतु सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। हम सभी को मिलकर अपनी सोच बदलनी होगी। लङकों को दहेज ना लेेने हेतु प्रेरित करना होगा और लङकियों को पढ़ा-लिखा कर सशक्त और काबिल बनाना होगा तभी दहेज प्रथा का समूल नाश हो पायेगा।

’’दहेज प्रथा का सब मिलकर करो बहिष्कार,
समाज में आए समानता,
फिर किसी को बेटी ना लगे इक भार।’’

’’दहेज की खातिर लङकी को मत जलाओ
अगर वास्तव में मर्द हो तो कमाकर खिलाओ।।’’

’’कब तक नारी के अरमानों की चिता जलाई जाएगी
कब तक नारी यूं दहेज की बलि चढ़ाई जाएगी।’’

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961

  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 20 मई 1961 को अधिनियमित हुआ था तथा 1 जुलाई 1961 को लागू हुआ था।
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम का उद्देश्य – यह अधिनियम दहेज का देना या लेना प्रतिषिद्ध करने के लिए बनाया गया है।
  • इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961’ है।
  • इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत में है।
  • इस अधिनियम को राष्ट्रपति की स्वीकृति – 20 मई 1961 को मिली थी।
  • दहेज लेना एवं देना ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961’ के अंतर्गत अपराध है।

dahej pratha per nibandh

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धाराएं

  • धारा 1 – दहेज का संक्षिप्त नाम और विस्तार है।
  • धारा 2 – दहेज का अधिनियम की धारा 2 में पारिभाषित किया गया है। इस अधिनियम में दहेज से कोई ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति अभिप्रेत है, जो विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात् विवाह के एक पक्षकार द्वारा विवाह के दूसरे पक्षकार को दिया या लिया जाता है। इसके अंतर्गत विवाह के संबंध में या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दिया गया हो या देने के लिए करार किया गया हो शामिल है, यह दहेज कहलाता है।
  • धारा 3 – दहेज देने या लेने के लिए शास्ति यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् दहेज देगा या लेगा अथवा दहेज देना या लेना दुष्ट प्रेरित करेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि 5 वर्ष से कम ही नहीं होगी और जुर्माने से जो 15000 से या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम तक का इनमें से जो भी अधिक हो, दंडनीय होगा।
  • धारा 4 (क) – विज्ञापन पर निषेध – दहेज के विज्ञापन पर पाबंदी है ऐसा करने पर कारावास से जिसकी अवधि 6 माह से कम नहीं होगी किंतु जो 5 वर्ष तक हो सकती है या जुर्माने से जो 15000 रु. तक होना दण्डनीय अपराध है।
  • धारा 5 – दहेज देने या लेने के लिए करार शून्य होता है।
  • धारा 6 – दहेज पत्नी या उसके उत्तराधिकारियों के फायदे के लिए होना।
  • धारा 7 – अपराधों संज्ञान – दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार अपराधियों का संज्ञान प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट ले सकेंगे।
  • धारा 8 – इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक अपराध अजमानती और अशमनिय होता है।
  • धारा 9 – नियम बनाने की शक्ति – केंद्र सरकार अधिनियम के संबंध में नियम बना सकती है केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया। प्रत्येक नियम यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष 30 दिन की अवधि के लिए रखा जायेगा।

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल में हमने दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढ़ा। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan), दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay), दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961)  के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। हम आशा करते है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी…धन्यवाद

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