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Rajasthan Ki Rajdhani – राजस्थान की राजधानी || जयपुर जिला दर्शन

Author: केवल कृष्ण घोड़ेला | On:8th May, 2022| Comments: 0

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आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की राजधानी (Rajasthan Ki Rajdhani) जयपुर के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे। यहाँ के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल और भौगोलिक सरंचना के बारे में जानेंगे।

Rajasthan Ki Rajdhani – राजस्थान की राजधानी

Table of Contents

  • Rajasthan Ki Rajdhani – राजस्थान की राजधानी
    • जयपुर जिले का इतिहास –
    • वर्तमान स्थिति
    • जयपुर के प्रमुख उत्सव – मेले
    • जयपुर के प्रमुख मंदिर
      • शाकंभरी माता का मन्दिर
      • बिङला मंदिर
      • गलता जी मन्दिर
      • देवयानी तीर्थं
      • गणेश मन्दिर
      • शिलादेवी का मंदिर
      • जमुवाय माता का मंदिर
      • शीतला माता का मन्दिर
      • ज्वाला माता का मंदिर
      • नकटी माता का मन्दिर
      • नृसिंह मंदिर
      • जगत शिरोमणि मन्दिर
      • गोविंददेवजी का मन्दिर
      • वामनदेव मंदिर
      • कल्की मंदिर
      • शिलामाता का मंदिर
      • बृहस्पति मंदिर
    • जयपुर के प्रमुख दुर्ग
      • आमेर का किला
      • जयगढ़ दुर्ग
      • नाहरगढ़ दुर्ग
      • चौमू का किला
    • जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल
      • हवामहल
      • चन्द्रपैलेस/सिटी पैलेस
      • जलमहल
      • आमेर का महल
      • शीशमहल
      • मुबारक महल
      • जन्तर-मन्तर वेधशाला
    • जयपुर जिले में वन्यजीव अभ्यारण्य
      • नाहरगढ़ जैविक वन्य जीव उद्यान
      • जमुवारामगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य
      • जयपुर जंतुआलय
      • संजय उद्यान मृगवन
      • अशोक उद्यान
    • जयपुर जिले के उद्यान
    • जयपुर जिले की सभ्यताएँ
    • जयपुर जिले की हस्तशिल्प कला
    • जयपुर के महत्त्वपूर्ण तथ्य

rajasthan ki rajdhani

जयपुर जिला दर्शन

जयपुर जिले की जानकारी
स्थापना18 नवंबर 1727
निर्माणकर्तासवाई जयसिंह द्वितीय
वास्तुकारविद्याधर भट्टाचार्य
क्षेत्रफल11,143 Km2
नगरीय क्षेत्रफल737.59 Km2
ग्रामीण क्षेत्रफल10,405.41 Km2
उपखंड13
तहसील13
उप तहसील5
विधानसभा19
ग्राम पंचायत488
2011 की जनगणना के अनुसार(जयपुर)
जनसंख्या6626178
पुरुष जनसंख्या34,68,507
स्त्री जनसंख्या31,57,671
लिंगानुपात910
जनसंख्या घनत्व595
साक्षरता दर75.5 प्रतिशत
पुरुष साक्षरता86.1 प्रतिशत
महिला साक्षरता64 प्रतिशत

जयपुर जिले का इतिहास –

जयपुर जिले का प्राचीन नाम ’जयनगर’ था। इसकी स्थापना 18 नवंबर 1727 को सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी। महाराजा जयसिंह का शासनकाल 1699 से 1744 ईस्वी (45 सालों) तक माना जाता है। जयपुर नगर का वास्तुकार ’विद्याधर भट्टाचार्य’ (सवाई जयसिंह का प्रसिद्ध शिल्पी) था। जयपुर नगर ’नौ चौकडियों’ के बीच बसा है। यह नगर मुख्य 18 सङकों को आधार मानकर बसाया गया है। यह नगर 900 कोण पर बसा है। यह नगर राजस्थान का प्रथम नगर है, जो व्यवस्थित रूप से बसा है। इस नगर की सङकें समकोण पर काटती है। इसलिए इस नगर की सुन्दरता से प्रेरित होकर इस नगर की तुलना ’पेरिस’ से की जाती है। इसलिए यह नगर ’भारत का पेरिस’ कहलाता है।

आकर्षक की दृष्टि से इस नगर की तुलना ’बुडापेस्ट’ की जाती है। भव्यता की दृष्टि से तुलना ’माॅस्को’ से की जाती है। जयपुर के अन्तिम राजा सवाई मानसिंह द्वितीय के प्रधानमन्त्री ’सर मिर्जा इस्माइल खाँ’ ने इस नगर का सौंदर्यकरण किया है और इस नगर को एक विशिष्ट पहचान दी है। इसलिए सर मिर्जा इस्माइल खान को जयपुर का आधुनिक निर्माता कहा जाता है। जब जयपुर की स्थापना की गई थी, तब आमेर को इसकी राजधानी बनाया गया था। जयपुर ’ढूँढ़ नदी’ के किनारे बसा है। जयपुर पर कच्छवाहा वंश ने शासन किया था।

जयपुर नगर बसने से पहले जयपुर नगर के बीचोंबीच 1725 में ’जयनिवास महल’ बसाया गया। इसका निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था। लेकिन कालान्तर में इसी नगर के चारों ओर सवाई जयसिंह ने 9 वर्गों में, 9 चौकडियों में और 900 कोण के सिद्धान्त पर एक नगर की स्थापना की। जिसका नाम ’जयनगर’ रखा। जयपुर नगर में 18 प्रधान सङकें है। इस नगर की प्रत्येक सङक समकोण पर काटती है।

जयपुर नगर की नींव 18 नवम्बर 1727 को रखी गई थी। जयनगर ही बाद में ’जयपुर’ कहलाया था। जयपुर का निर्माण 7 गांवों को मिलाकर किया गया था तथा इसकी सुरक्षा के लिए 7 द्वार भी बनाये गये थे। जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह थे। जयपुर राज्य की चार राजधानियां रही – पहली राजधानी दौसा, दूसरी मंची, तीसरी आमेर तथा चौथी राजधानी जयपुर बनी थी। जब राजधानी जयपुर बसी नहीं थी, तब जयपुर को सवाई जयसिंह नेे बसाया था।

जयपुर को गुलाबी नगर क्यों कहते है ?

जयपुर को ’गुलाबी नगर’ के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि जब 1876 ई. में प्रिंस ऑफ़ वेल्स भारत आये थे, तब जयपुर के महाराजा ने उसके स्वागत के लिए पूरे जयपुर को ’गुलाबी रंग’ से रंगवाया था। जिससे भारत में जयपुर को एक अलग पहचान मिली तथा गुलाबी रंग से रगवाने के कारण जयपुर को ’गुलाबी नगर’ कहा जाने लगा था। तब से यह नगर ’गुलाबी नगर’ कहलाया।

जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल इन नौ चौकङियों के बीच में ही है। इन चौकङियों में चन्द्रमहल है और चन्द्रमहल के पीछे गोविन्द देव जी का मन्दिर बना हुआ है। यहाँ हवामहल भी बना हुआ है। यहाँ पर मानसरोवर झील में ’जलमहल’ बना हुआ है। जयपुर से कुछ किलोमीटर दूरी पर आमेर गाँव में आमेर दुर्ग बना हुआ है।

जयपुर नगर के सात दरवाजे है।

इन सात दरवाजों के नाम निम्न है –

  1. ध्रुव दरवाजा
  2. घाट दरवाजा
  3. न्यू दरवाजा
  4. सांगानेरी दरवाजा
  5. अजमेरी दरवाजा
  6. चांद पोल
  7. सुरज पोल।

राजस्थान के एकीकरण के चतुर्थ चरण 30 मार्च 1949 में ’जयपुर’ को सम्मिलित किया गया एवं तब से जयपुर की राजस्थान की राजधानी है। जयपुर नगर देश का प्रथम नगर है, जो व्यवस्थित/क्रमबद्ध रूप से बसा है।
जयपुर के परिवहन कोड RJ-14 और RJ-45 है। इस जिले का शुंभकर ’चीतल’ को बनाया गया है।

वर्तमान स्थिति

भौगोलिक दृष्टि से जयपुर जिला ’जयपुर संभाग’ में स्थित है। यह राजस्थान की राजधानी है। 1 नवंबर 1956 को जयपुर को जिले के रूप में दर्जा दिया गया था।

स्थिति

जयपुर जिले की अक्षांशीय स्थिति 26 डिग्री 23 मिनट उत्तरी अक्षांश से 27 डिग्री 51 मिनट उत्तरी अक्षांश तक है।
जयपुर जिले की देशांतरीय स्थिति 74 डिग्री 55 मिनट पूर्वी देशांतर से 76 डिग्री 50 मिनट पूर्वी देशांतर तक है।

सीमा

जयपुर की सीमा हरियाणा राज्य से लगती है तथा अजमेर, सीकर, नागौर, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा, अलवर जिलों से लगती है। यहाँ उपआर्द्र जलवायु तथा कछारी मिट्टी पाई जाती है।

उपनाम –

  • भारत का पेरिस
  • पूर्व का पेरिस
  • गुलाबी नगरी
  • Pink City (पिंक सिटी)
  • दूसरा वृंदावन
  • राजस्थान की दूसरी काशी
  • राजस्थान की राजधानी
  • हेरिटेज सिटी
  • रत्न नगरी
  • पन्ना नगरी
  • रंगश्री का द्वीप
  • वैभव द्वीप
  • सिटी ऑफ़ आइसलैंड।

नदी

जयपुर में बाणगंगा नदी, साबी नदी, ढुँढ़ नदी, द्रव्यवती नदी बहती है।

जयपुर के प्रमुख उत्सव – मेले

  • गणगौर मेला – जयपुर में चैत्र शुक्ल तीज को गणगौर महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
  • हाथी महोत्सव – राजस्थान पर्यटन विभाग के द्वारा फाल्गुन पूर्णिमा को जयपुर में ’हाथी महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है।
  • तीज महोत्सव – राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा श्रावण शुक्ला तृतीया को जयपुर में ’तीज महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
  • बाणगंगा मेला – जयपुर में वैशाख पूर्णिमा को ’बाणगंगा मेला’ भरता है।
  • मकर संक्रांति – 14 जनवरी को जयपुर में मकर संक्रांति (पतंग महोत्सव) का आयोजन किया जाता है।
  • शीतलामाता का मेला – शीतलामाता का मंदिर चैत्र कृष्ण अष्टमी को चाकसू (जयपुर) में भरता है।

जयपुर के प्रमुख मंदिर

शाकंभरी माता का मन्दिर

शाकंभरी माता का मंदिर सांभर (जयपुर) के निकट देवयानी ग्राम में है। यहाँ पर भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को मेला लगता है। शाकंभरी माता सांभर के चैहानों की कुलदेवी है।

बिङला मंदिर

राजस्थान की राजधानी

बिङला मंदिर का निर्माण हिन्दुस्तान चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा किया गया था। इस मंदिर में बी. एम. बिङला संग्रहालय स्थिति है, जो पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही आकर्षक है। यह मंदिर हिन्दू, मुस्लिम एवं ईसाई डिजाइन से बना है। बिङला मंदिर एशिया का प्रथम वातानुकूलित मंदिर है।

गलता जी मन्दिर

rajasthan capital

गलता जी मन्दिर जयपुर नगर में स्थित है। गालव ऋषि की तपोभूमि होने के कारण इस मन्दिर का नाम ’गलता जी मन्दिर’ पङा है। धार्मिक दृष्टि से यह मंदिर ’जयपुर का पुष्कर’ कहलाता है। यह ’जयपुर के बनारस’ नाम से भी प्रसिद्ध है। राजस्थान में अत्यधिक बंदरों की संख्या होने के कारण इसे ’मंकी वैली’ कहा जाता है। इसको राजस्थान की ’मिनी काशी या छोटी काशी’ कहा जाता है। राजस्थान में रामानुज/रामानंद संप्रदाय कीे प्रमुख पीठ गलता जी में स्थापित हुई है, इसलिए गलता जी को ’उत्तर तोताद्री’ कहा जाता है। आमेर के शासक पृथ्वीराज कच्छवाह के शासनकाल में गलता जी में नाथ संप्रदाय का प्रभुत्त्व था और यहाँ के प्रमुख संत चर्तुरनाथ थे। यहाँ पर प्रमुख मेला ’मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा’ को भरता है।

देवयानी तीर्थं

जयपुर का प्रमुख तीर्थंस्थल ’देवयानी’ सांभर (जयपुर) में है। यह एक पौराणिक तीर्थंस्थल है, जिसे ’तीर्थों की नानी’ कहा जाता है। यहाँ देवयानी कुंड है, जिसमें वैशाख पूर्णिमा को एक विशाल स्नान पर्व का आयोजन किया जाता है।

गणेश मन्दिर

गणेश मंदिर ’मोती डुंगरी’ (जयपुर) में है। यहाँ प्रतिवर्ष मेला ’गणेश चतुर्थी’ (भाद्रपद शुक्ल-4) को भरता है।

शिलादेवी का मंदिर

शिलादेवी मंदिर ’आमेर दुर्ग’ में है। शिलादेवी को ’कच्छवाह वंश की अराध्यदेवी’ कहा जाता है। इसका निर्माण अकबर के सेनापति मिर्जा राजा मानसिंह ने करवाया था। इस माता के मंदिर में प्रतिवर्ष मेला एक वर्ष में दो बार लगता है। एक मेला तो ’चैत्र नवरात्र’ में लगाता है और दूसरा मेला ’आश्विन नवरात्र’ में लगता है। शिलादेवी माता को अन्नापूर्णा देवी भी कहा जाता है। इस माता के मंदिर का पुनर्निर्माण सवाई मानसिंह द्वितीय ने करवाया था। इस माता की मूर्ति काले पत्थर पर उत्कीर्ण अष्टभुजा प्रतिमा है।

जमुवाय माता का मंदिर

जयपुर के कच्छवाह वंश की कुलदेवी जमुवाय माता है। जमुवाय माता का मन्दिर जमुवारामगढ़ (जयपुर) है। इसका निर्माण ’दूल्हेराय’ ने किया था। इस माता को ’बुडवाय माता’ भी कहा जाता है। यहाँ वर्ष में दो बार मेला भरता है। पहला मेला चैत्र नवरात्र तथा दूसरा मेला आश्विन नवरात्र को लगता है।

शीतला माता का मन्दिर

शीतला माता का मन्दिर शीलडुंगरी (चाकसू-जयपुर) में है। इस माता का वाहन गधा है और इस माता का पुजारी कुम्हार है। यह खण्डित प्रतिमा वाली देवी है। इस माता के मंदिर का निर्माण जयपुर के सवाई माधोसिंह प्रथम ने करवाया था। इस माता के अनेक उपनाम है – चेचक वाली देवी, महामायी माता, माता मावडी, सेढंल माता, बच्चों क संरक्षिका देवी। इस माता का मेला शीतला अष्टमी/चैत्र कृष्ण अष्टमी को भरता है और इस दिन खेजङी की पूजा की जाती है तथा बास्योङा (ठण्डा भोजन) किया जाता है।

ज्वाला माता का मंदिर

ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर (जयपुर) में है। यह माता खंगारोत वंश की कुलदेवी है।

नकटी माता का मन्दिर

नकटी माता का मन्दिर जयभवानीपुर (जयपुर) में है। यह मंदिर प्रतिहारकालीन महामारु शैली में निर्मित है। नकटी माता को ’दुर्गा माता’ भी कहते है। दुर्गा माता का प्रतीक चिन्ह त्रिशूल एवं तलवार है।

नृसिंह मंदिर

नृसिंह मंदिर आमेर (जयपुर) में है। इसका निर्माण कृष्णदास पयहरी ने करवाया था। पृथ्वीराज कच्छवाह के काल में यह मंदिर निर्मित है।

जगत शिरोमणि मन्दिर

जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह प्रथम की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगत की याद में करवाया था। इस मंदिर को ‘मीरा मंदिर’ कहा जाता है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति है।

गोविंददेवजी का मन्दिर

गोविंद देवजी का मन्दिर जयपुर में है। गोविन्द देवजी कच्छवाह वंश के आराध्यदेवता है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह ने 1735 में करवाया था। बिना खम्भों का यह मंदिर एशिया का सबसे बङा मंदिर है। यहाँ ही गौङीय सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है। सवाई प्रतापसिंह ने गोविन्द देवजी को जयपुर का वास्तविक शासक घोषित कर दिया और स्वयं दीवान कहलाये। यहाँ विश्व में बिना खम्भों वाला सबसे बङा भवन ’सतसंग भवन’ स्थित है।

वामनदेव मंदिर

वामनदेव मंदिर मनोहरपुर (जयपुर) में है। राजस्थान में भगवान वामनदेव का एकमात्र मंदिर है।

कल्की मंदिर

कल्की मंदिर जयपुर में है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह के द्वारा करवाया गया।

शिलामाता का मंदिर

आमेर (जयपुर) में शिलामाता का मंदिर स्थित है। शिलामाता कच्छवाहा राजवंश की आराध्यदेवी है। शिलामाता की मूर्ति को जयपुर के महाराजा मानसिंह प्रथम ने 1604 ईस्वी में जस्सोर नामक स्थान से बंगाल के राजा केदार को हराकर लाए थे। यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर से निर्मित है। यहाँ चैत्र एवं अश्विन के नवरात्रों में मेला लगता है।

बृहस्पति मंदिर

बृहस्पति मंदिर जयपुर जिले में है। राजस्थान का एकमात्र बृहस्पति मंदिर है। यह जैसलमेर के पीत पाषाणों से निर्मित किया गया है।

जयपुर के प्रमुख दुर्ग

आमेर का किला

उपनाम –

  • अम्बावती नगरी
  • अम्बरीशपुर
  • अंबर दुर्ग उपनाम।

आमेर के किले का निर्माण दूल्हेराय द्वारा 1150 ईस्वी में करवाया था। मानसिंह प्रथम ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। आमेर दुर्ग के प्रमुख स्थान – शीशमहल, मावठा झील, शिलादेवी माता मंदिर, केसर क्यारी, सुहाग मंदिर, भूल-भुलैया, दीवाने आम। आमेर दुर्ग को जून 2013 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।

जयगढ़ दुर्ग

  • चिल्ह का टीला
  • संकरमोचन दुर्ग

16 वीं शताब्दी में मानसिंह प्रथम द्वारा जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था। इस दुर्ग को वर्तमान स्वरूप 1726 ईस्वी में सवाई जयसिंह द्वारा दिया गया था। जयगढ़ दुर्ग का निर्माण आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह ने ’चिल्ह का टीला’ नामक स्थान पर करवाया था। राजा जयसिंह के नाम पर ही इस दुर्ग का नाम भी ’जयगढ़ दुर्ग’ पङा था।  जयगढ़ दुर्ग के वास्तुकार ’विद्याधर भट्टाचार्य’ थे। इस दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग है, जिसे ’विजयगढ़ी’ कहा जाता है। यहाँ तोप ढालने का कारखाना है। जयगढ़ दुर्ग में ’जयबाण’ है, जो एशिया की सबसे बङी तोप है। यह शस्त्र-अस्त्र का संग्रहालय है।

नाहरगढ़ दुर्ग

  • जयपुर का मुकुट
  • सुदर्शन सिंह
  • मिठङी का किला
  • टाइगर किला
  • सुदर्शनगढ़ दुर्ग
  • जयपुर ध्वजगढ़
  • सुलक्षण दुर्ग
  • महलों का दुर्ग।

नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण सवाई जयसिंह ने 1734 ई. को करवाया था। नाहरसिंह भोमिया के नाम पर यह ’नाहरगढ’ कहलाया। इस दुर्ग का निर्माण मराठों के आक्रमण से बचने के लिए करवाया गया। 1868 में सवाई रामसिंह ने इस दुर्ग को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया था। यह जयपुर की ओर झाँकता हुआ दुर्ग है। इस दुर्ग को जयपुर की मुकुटमणि कहा जाता है। इस दुर्ग के भीतर सवाई माधोसिंह ने अपनी 9 रानियों के लिए एक-जैसे 9 महल बनवाये। यह महल ’विक्टोरिया शैली’ में है।

चौमू का किला

  • रघुनाथगढ़
  • चौमुहागढ़
  • धराधारगढ़
  • सामंती दुर्ग।

चौमू के किले का निर्माण ठाकुर करणसिंह ने 1599 ईस्वी में करवाया था। यह ढूंढाङ शैली में निर्मित है। इस दुर्ग के निकट सामोद हनुमानजी का मंदिर है।

जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल

हवामहल

हवामहल का निर्माण 1799 ई. को सवाई प्रतापसिंह ने करवाया था। हवामहल को लाल मंदिर कहा जाता है। हवामहल में 953 खिङकियाँ है और 365 झाली-झरोखे है। इसकी खङकियाँ पूर्व दिशा में खुलती है। इसकी आकृति कृष्ण मुकुट के समान है और यह पिरामिडानुकार है।इसका वास्तुकार लालचंद उस्ता था। यहाँ 1983 ई. में ’हवामहल संग्रहालय’ स्थापित हुआ था। हवामहल में राजपूत शैली व मुगल शैली का समन्वय है।

हवामहल की 5 मंजिल है –

  1. शरद मंदिर,
  2. रत्न मंदिर,
  3. विचित्र मंदिर,
  4. प्रकाश मंदिर,
  5. हवा मंदिर।

चन्द्रपैलेस/सिटी पैलेस

राजस्थान की राजधानी क्या है

चन्द्रपैलेस जयपुर में है। इसका निर्माण 1729-32 के मध्य सवाई जयसिंह ने करवाया था। इसका वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था। इसके अन्दर सुख निवास महल, सर्वतो भद्र महल, मुबारक महल, दीवाने-आम, दीवाने-ए-खास, पोथीखाना संग्रहालय,है। यह 5 मंजिला है। सिटी पैलेस के पूर्व के मुख्य द्वार को ’सिरह ड्योढ़ी’ कहते है। सिटी पैलेस का प्रथम तल ’सुखनिवास महल’ कहलाता है। यहाँ पर विश्व के सबसे बङे चांदी के दो पात्र रखे हुए है, जो गिनीज बुक ऑफ़ वल्र्ड रिकाॅर्ड में सम्मिलित किये गये है।

जलमहल

जलमहल मानसागर (मानसरोवर) झील में स्थित है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह के द्वारा करवाया गया। जयपुर जिले की जलापूर्ति करने के लिए सवाई जयसिंह ने गर्भावती नदी पर बांध बनवा कर मानसागर तालाब बनवाया था। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने इसी जलमहल में अश्वमेघ यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणों के विश्राम तथा भोजन की व्यवस्था करवाई थी।

आमेर का महल

आमेर महल का निर्माण राजा मानसिंह ने 1592 ई. में करवाया था। इसका निर्माण ’हिन्दू-मुस्लिम शैली’ में करवाया गया था। यहाँ पर कुछ प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल भी है – शिलामाता का मंदिर, शीशमहल, जगत शिरोमणि मंदिर आदि।

शीशमहल

आमेर के किले में ही मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा शीशमहल का निर्माण करवाया गया था। इसको ’दीवान-ए-खास’ के नाम से जाना जाता है।

मुबारक महल

मुबारक महल का निर्माण सवाई माधोसिंह द्वितीय ने करवाया था। इसका वास्तुकार स्टीवन जैबेक है। मुबारक महल का निर्माण ’अतिथियों के निवास स्थल’ के रूप में करवाया गया।

मुबारक महल तीन शैलियों में निर्मित है –

  1. राजपूत शैली/हिन्दू शैली
  2. मुगल शैली/फारसी शैली/मुस्लिम शैली
  3. यूरोपीय शैली/कम्पनी शैली से निर्मित है।

जन्तर-मन्तर वेधशाला

जयपुर के शासक सवाई जयसिंह ने उज्बेकिस्तान के शासक उलूग बेग की वैधशाला से प्रेरणा लेकर देश में 5 वेधशालाएँ बनाई थी। इन पाँच वैधशालाओं को जंतर-मंतर कहा जाता है। जंतर-मंतर वेधशाला का निर्माण 1728-38 के बीच सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया था। पाँच वैधशालाएँ स्थित हैं – दिल्ली, जयपुर, बनारस, उज्जैन, मथुरा। सबसे बङी वैधशाला जयपुर वैधशाला की है। जयपुर की वैधशाला में रामयंत्र व सम्राटयंत्र है, रामयंत्र का प्रयोग ऊँचाई मापने के लिए किया जाता है तथा सम्राटयंत्र विश्व की सबसे बङी सौर घङी है, जो समय बताती है। जंतर-मंतर वैधशाला को 2010 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है।

जयपुर जिले में वन्यजीव अभ्यारण्य

नाहरगढ़ जैविक वन्य जीव उद्यान

नाहरगढ़ जैविक उद्यान जयपुर में है। 22 सितम्बर, 1980 में इसकी स्थापना हुई थी। राजस्थान का एकमात्र जैविक पार्क यहीं है। यहाँ पर भारत का दूसरा ’बायोलाॅजिकल पार्क’ और देश का तीसरा ’बियर रेस्क्यू सेण्टर’ स्थापित है। यह अभ्यारण्य प्रमुख वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध हैं – चिंकारा, हिरण, जंगली सूअर, काला भालू आदि। यहाँ राजस्थान का पहला ’भालू रेस्क्यू सेन्टर’ है। ’जयपुर चिङियाघर’ को भी नाहरगढ़ में शामिल कर दिया गया है। जयपुर चिङियाघर की स्थापना 1876 में सवाई रामसिंह के द्वारा की गई थी। यहाँ ’घङियाल प्रजनन केन्द्र’ भी है।

जमुवारामगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य

जमुवारामगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना जयपुर में 1982 में हुई थी। यह अभ्यारण्य ’जयपुर के पुराने शिकारगाह’ के लिए विख्यात है। यहाँ पर मुख्य रूप से धोक वन मिलते है। इस अभ्यारण्य में कुछ प्रसिद्ध वन्यजीव भी पाये जाते है- नीलगाय, जंगली बिल्ली, लंगूर।

जयपुर जंतुआलय

जयपुर जंतुआलय की स्थापना महाराजा सवाई रामसिंह द्वारा 1876 ईस्वी में जयपुर के रामनिवास बाग में की गयी थीी। यह भारत एवं राजस्थान का सबसे प्राचीन जंतुआलय है। यहाँ घङियालों व मगरमच्छों का प्रजनन केंद्र भी है।

जयपुर में दो मृगवन है –

संजय उद्यान मृगवन

संजय उद्यान मृगवन जयपुर के शाहपुरा के निकट स्थित है। इसकी स्थापना 1986 में हुई थी। यहाँ वन्य जीव पाए जाते हैं – चीतल, चिंकारा, नीलगाय।

अशोक उद्यान

अशोक उद्यान जयपुर में है। इसकी स्थापना 1986 में हुई थी।

जयपुर जिले के उद्यान

  • रामबाग उद्यान
  • विश्व वृक्ष उद्यान (झालान डूंगरी)
  • सिसोदिया रानी का बाघ
  • कनक वृन्दावन गार्डन
  • नाटाणी का बाग
  • विद्याधर का बाग
  • रामनिवास बाग
  • जयनिवास उद्यान
  • माँजी का बाग

जयपुर जिले की सभ्यताएँ

बैराठ सभ्यता – यह बाणगंगा नदी के मुहाने पर विकसित हुई। इसकी सबसे पहले खोज दयाराम साहनी ने 1936 ई. में की थी। कैप्टन बर्ट ने 1837 में यहाँ पर ’बीजक की पहाङियाँ’ से ’अशोक का भाब्रु शिलालेख’ खोजा था। वर्तमान में इस शिलालेख को ’कोलकाता संग्रहालय’ में सुरक्षित रखा गया है।

जोधपुरा सभ्यता – यह साबी नदी के किनारे पर है।

नलियासर की सभ्यता – यह सभ्यता सांभर में है।

इसके अलावा जयपुर में किराङोत सभ्यता और चिथवाङी सभ्यता भी है।

जयपुर जिले की हस्तशिल्प कला

ब्ल्यू पाॅटरी – इसका विकास राजा रामसिंह के शासनकाल में हुआ है। इसके प्रसिद्ध कलाकार पद्मश्री कृपालसिंह थे तथा इन्हीं के प्रयासों से यह पूरे विश्व में विख्यात हुई थी। मानसिंह प्रथम द्वारा इस प्रिंटिंग को लाहौर से जयपुर तक लाया गया था।

जयपुर की अन्य प्रमुख हस्तकलाएं – जयपुर की सांगोनरी प्रिंट, बगरू प्रिंट, पाॅव रजाई, मुरादाबादी कला, लहरीयो का कार्य, लाख की चूङियां हाथीदाँत का कार्य, बंधेज का कार्य, संगमरमर की मूर्तियाँ, ट्राॅफिया प्रसिद्ध है।

जयपुर के महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • 30 मार्च 1949 में नव निर्मित राजस्थान की राजधानी जयपुर बना। पेयजल की सुविधा के आधार पर पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर जयपुर को राजधानी बनाया गया।
  • जयपुर सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर है।
  • जयपुर को भारत का सुविन्यासित नगर कहा जाता है जो 9 वर्गों के सिद्धान्त पर बसा है।
  • जयपुर में ’गुडिया का संग्रहालय’ है।
  • जयपुर नगर में ’हेडे की परिक्रमा/छः कोसी परिक्रमा’ की जाती है।
  • राजस्थान का प्रथम साइबर थाना जयपुर में खोला गया।
  • भारत के प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री सी.वी. रमन ने जयपुर को ’आइलैण्ड ऑफ़ ग्लोरी’ (वैभव का नगर) की संज्ञा दी।
  • जयपुर देश का 11 वां बङा नगर है।
  • एशिया की सबसे बङी सब्जी मंडी जयपुर में है।
  • राजस्थान का सबसे बङा वन्यजीव म्यूजियम जयपुर में है।
  • जयपुर के पालङी गांव में राजस्थान का प्रथम निजी हवाई अड्डा स्थापित किया गया।
  • सर्वाधिक जनसंख्या व जनसंख्या घनत्व वाला जिला जयपुर है।
  • जयपुर राज्य में उत्तर-पश्चिम में रेलवे का मुख्यालय है।
  • जयपुर में तीर्थंस्थल भी हैं – जामा मस्जिद, लक्ष्मी नारायण मंदिर, पुण्डरीक की हवेली।
  • जयपुर में ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय है, जो राजस्थान का महिलाओं के लिए प्रथम विश्वविद्यालय है।
  • राजस्थान की दूसरी काशी जयपुर को कहा जाता है। जयपुर की काशी ’गलता जी’ को कहा जाता है।
  • जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह द्वितीय ने ’महाराजा लाइब्रेरी’ का निर्माण किया था। वर्तमान में यह राजस्थान की प्रथम हाइटेक पब्लिक लाइब्रेरी बन चुकी है।
  • जयपुर के दूंद में देश का प्रथम ई-सेवा केन्द्र है।
  • सवाई प्रतापसिंह के द्वारा ’तमाशा लोकनृत्य’ का आरम्भ जयपुर में करवाया गया।
  • भित्ति चित्रकला सबसे पहले राजस्थान में आमेर शैली से आई थी।
  • लाख का काम भी जयपुर में किया जाता है।
  • एशिया की पहली सोने की टकसाल जयपुर में है।
  • यहाँ पर देश का पहला वैक्स वार म्यूजियम हैं
  • राजमन्दिर सिनेमा हाॅल भी यहाँ पर है।
  • देश का पहला हाथीगाँव (आमेर) यहाँ पर है।
  • देश की सबसे बङी ’मुहान मण्डी’ भी जयपुर में है।
  • देश का पहला दूध पैकिंग स्टेशन कोटपूतली में है।
  • देश का प्रथम ‘World Trade Park’ जयपुर में है।
  • यहाँ पर ‘SMS Stadium’ भी है।
  • राजस्थान का प्रथम महिला विधि विश्वविद्यालय जयपुर में है।
  • जयपुर में राजस्थान का पहला पक्षी हाॅस्पिटल जौहरी बाजार में है।
  • अचरोल (जयपुर) में इन्दिरा गांधी मंदिर है।
  • राजपूताना विश्व विद्यालय जयपुर में है। जिसकी स्थापना 1947 में हुई थी।
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