प्रथम विश्वयुद्ध कब हुआ ? – कारण ,परिणाम || Pratham Vishwa Yudh

आज के आर्टिकल में हम प्रथम विश्वयुद्ध  (Pratham Vishwa Yudh) के बारे में विस्तार से पढेंगे। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण, प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम, प्रथम विश्वयुद्ध क्यों हुआ, प्रथम विश्वयुद्ध कब हुआ, प्रथम विश्वयुद्ध कब और किसके बीच हुआ…

प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) Pratham Vishwa Yudh

Table of Contents

Pratham Vishwa Yudh

पृष्ठभूमि – Pratham Vishwa Yudh

दोस्तो उस समय विश्व की क्या परिस्थितियाँ थी ,जिससे कारण इतना बड़ा विश्वयुद्ध छिड़ा ..आइए विस्तार से पढतें है …..

पूर्वी समस्या

  • 19 वीं सदी में कमजोर हो गए तुर्की साम्राज्य ने जिस समस्या को जन्म दिया उसे पूर्वी समस्या के नाम से जाना जाता है, यह पूर्वी समस्या सदैव से एक अंतर्राष्ट्रीय प्रश्न रहा है।
  • 16 वीं सदी में तुर्कों ने यूरोप के बङे क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित किया इस साम्राज्य का क्षेत्र रूमानिया सर्विया, अल्वानिया, यूनान आदि यूरोपीय क्षेत्रों तक तो था ही साथ ही एशिया और अफ्रीका के क्षेत्रों जैसे ईराक, मिश्र, सीरिया आदि तक भी विस्तारित था।
  • इस तरह ऑटोमन साम्राज्य में बहुभाषा भाषा, धर्म एवं जाति की जनंसख्या निवास करती थी।
  • 19 वीं सदी तक आते-आते ऑटोमन साम्राज्य कमजोर हो गया तो दूसरी तरफ यूरोप में प्रसारित हो रही राष्ट्रवाद की भावना ने इस साम्राज्य के अंतर्गत रहने वाली विविध भाषा भाषी धर्म जाति की जनसंख्या को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया।
  • इसी क्रम में 1829 में यूनान स्वतंत्र हुआ अतः तुर्की साम्राज्य की कमजोरी उजागर हो गई और वह यूरोप का मरीज हो गया।
  • यूरोपीय राष्ट्र ऑटोमन साम्राज्य की कमजोरी से लाभ लेने के लिए प्रयासरत हुए।
रूस
  • रूस चाहता था कि यूरोप का मरीज समाप्त हो जाए अर्थात तुर्की साम्राज्य का विघटन हो जाए और फिर कालासागर पर स्थित बास्फोरस एवं डार्डेनलीज बंदरगाह पर उसका नियंत्रण हो।
  • वस्तुतः रूस का उत्तरी क्षेत्र साईवेरिया बर्फ से ढका होने के कारण नौपरिवहन के अनुकूल नहीं था अतः अपने व्यापारिक लाभ के लिए वह काला सागर पर नियंत्रण करना चाहता था, यह तभी संभव था जब तुर्की साम्राज्य का विघटन हो जाए।
ब्रिटेन
  • ब्रिटेन की इच्छा थी कि तुर्की साम्राज्य का विभाजन न हो और मरीज भी शक्ति संपन्न न बने।
  • दरअसल ब्रिटेन नहीं चाहता था कि रूस कालासागर के क्षेत्र पर नियंत्रण करे और व्यापार के माध्यम से उसके अफ्रीकी एशियाई उपनिवेशों के लिए चुनौती प्रस्तुतः करे इस तरह इंग्लैण्ड रूसी विस्तार का विरोधी था।
ऑस्ट्रिया
  • यह भी काला सागर पर स्थित उन्हीें बंदरगाहों पर नियंत्रण चाहता था अतः रूस एवं आस्ट्रिया के हित आपस में टकराते थे।
फ्रांस
  • फ्रांस चाहता था कि तुर्की साम्राज्य का विघटन हो जाए वस्तुतः वह तुर्की साम्राज्य के प्रदेश मिश्र एवं सीरिया पर नियंत्रण करना चाहता था इसलिए वह इन क्षेत्रों में मौजूद शासकों को तुर्की साम्राज्य के विरुद्ध प्रोत्साहित कर उन्हें अलग होने के लिए प्रेरित करता है।
जर्मनी
  • बिस्मार्क ने स्पष्ट किया कि पूर्वी समस्या में उसकी कोई रुचि नहीं है और तुर्की से आने वाली डाक को वह खोलता ही नहीं है अर्थात तुर्की साम्राज्य की कमजोरी से वह कोई लाभ लेना नहीं चाहता है।
  • दरअसल बिस्मार्क ऐसी घोषणा कर इंग्लैण्ड को अपने विश्वास में लेकर फ्रांस को अलग अलग करना चाहता था।
  • वस्तुतः बिस्मार्क फ्रांस से जर्मनी की सुरक्षा हेतु एक गुट बनाने का प्रयास कर रहा था।
  • रूस ने तुर्की पर हमला कर उसे पराजित किया और 1878 मे उसके साथ ’सेनस्टीफानों’ की संधि की और तुर्की राज्य के विभिन्न क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • रुस की सफलता से इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस जैसे राज्य भयभीत हुए और फिर ऑटोमन साम्राज्य की सुरक्षा एवं अखंडता के लिए अर्थात् पूर्वी समस्या के समाधान के लिए 1878 में बर्लिन में एक सम्मेलन बुलाया।

बर्लिन सम्मेलन

बिस्मार्क की मध्यस्थता से यूरोपीय राज्यों का सम्मेलन बर्लिन में हुआ इसमें रूस द्वारा तुर्की से की गई सेंनस्टीफानों की संधि को रद्द कर दिया गया और निम्नलिखित निर्णय लिए गए –

  • तुर्की साम्राज्य के अधीन सर्बिया, रोमानिया एवं मांटीनीग्रो को स्वतंत्र राज्य घोषित किया गया।
  • इसी तरह तुर्की साम्राज्य के क्षेत्र बोस्निया-हर्जेगोविना पर ऑस्ट्रिया का प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित किया गया।
  • साइप्रस द्वीप पर ब्रिटेन का नियत्रण स्थापित हुआ।
समीक्षा
  • बर्लिन सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की साम्राज्य के विघटन को रोकना था और यूरोप में शांति स्थापित करना था, इसलिए बर्लिन सम्मेलन में उस सेंनस्टीफानों की संधि को रद्द कर दिया गया जो रुस द्वारा तुर्की से की गई थी। इस तरह रुसी विस्तार को रोक दिया गया।
  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री डिजरैली ने कहा कि ’हम बर्लिन से सम्मान शांति लाए हैं’ किंतु यह कथन सत्य साबित नहीं हुआ।
  • वस्तुतः बर्लिन सम्मेलन के निर्णय ऑटोमन साम्राज्य के लिए तो प्रतिकूल साबित हुए ही विश्व के लिए तबाही का कारण भी बने वस्तुतः रुस ने जिन ईसाईयों को स्वतंत्र करा दिया था उन्हें पुनः पराधीन करा दिया गया तो साथ ही तुर्की साम्राज्य का मनमाने तरीके से विभाजन किया गया।
  • बोस्निया, हर्जेगोविना क्षेत्र में रहने वाली जनता की इच्छा का ध्यान न रखते हुए उसे ऑस्ट्रिया के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा गया।
  • फलतः वहाँ रहने वाली सर्व जाति अंसतुष्ट हुई और इससे ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच संघर्ष हुआ जो अंततः प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बना।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण – Pratham Vishwa Yudh ke Karan

Pratham Vishwa Yudh ke Karan

साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा

  • यूरोप के प्रमुख देश इंग्लैण्ड, फ्रांस, रुस का साम्राज्यवादी विस्तार यूरोप और उसके बाहर के क्षेत्रों में हुआ था, अब ये राज्य तुर्की साम्राज्य की कमजोरी से लाभ लेने के लिए आपस में संघर्षरत हुए तो दूसरी तरफ इटली और जर्मनी के रुप में नए यूरोपीय राज्यों के आगमन से औपनिवेशिक विस्तार की दौङ शुरु हुई।
  • इसी क्रम में जर्मन सम्राट विलियम केसर ने कहा कि ’’हमें भी सूर्य के नीचे जगह चाहिए अर्थात् आर्थिक औद्योगि विकास के लिए उपनिवेश प्राप्ति पर बल दिया।
  • इस घोषणा से इंग्लैण्ड को सीधी चुनौती मिली इस तरह साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा ने यूरोपीय राज्यों के आपसी तनावों में वृद्धि की जो विश्वयुद्ध का कारण बना।

परस्पर रक्षा सहयोग

यूरोप के संपूर्ण देशों द्वारा आपसी सहयोग के लिए कई समझौते एवं संधियाँ कर ली गई। विभिन्न देशों के मध्य संधियाँ करने से तात्पर्य यह होता है कि यदि उस देश पर किसी अन्य शत्रु राष्ट्र द्वारा हमला किया जाता है तो उसके साथ जिन देशों द्वारा संधियाँ की गई है उनको उसकी रक्षा एवं सहयोग के लिए आगे आना होगा।

त्रिपक्षीय संधि – वर्ष 1882 की त्रिपक्षीय संधि जर्मनी को ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली से जोङती है।
त्रिपक्षीय सौहार्द – यह ब्रिटेन, फ्रांस और रूस से संबंध था, जो वर्ष 1907 तक समाप्त हो गया।

कूटनीतिक संधियाँ

  • फ्रांस से जर्मनी की सुरक्षा करना बिस्मार्क की प्राथमिकता बन गई, बिस्मार्क ने यूरोपीय राज्यों से गुप्त संधियाँ की ताकि फ्रांस को अलग-अलग रखा जा सके, इस कूटनीतिक संधि प्रणाली ने यूरोप में गुटीय विभाजन को बढ़ावा दिया।
  • फलतः जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया का एक गुट बना तो इसके जबाव में फ्रांस, इंग्लैंड एवं रूस का गुट बना इससे यूरोपीय राज्यों में अविश्वास एवं तनाव बढ़ा जिसने सैन्यवाद को बढ़ावा दिया।

सैन्यवाद

  • यूरोपीय राष्ट्रों ने अनिवार्य सैनिक सेवा लागू कर शस्त्रीकरण पर बल दिया और एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना गठित करने का प्रयास किया।
  • अब राष्ट्रों ने अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान सेना के माध्यम से करना चाहा फलतः राज्य के आपसी संबंधों में तनाव बढ़ा।

उग्र राष्ट्रवाद

  • जर्मनी ने जब फ्रांस के एल्सेस लाॅरेन क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया तो इसे अपने अधीन बनाए रखना जर्मनी के सम्मान का प्रश्न बन गया, तो दूसरी तरफ फ्रांस इस क्षेत्र की पुनः प्राप्ति कर अपने राष्ट्रीय गौरव की स्थापना के लिए प्रयासरत हुआ।
  • फलतः दोनों राज्यों का राष्ट्रवाद उग्र हुआ और वे एक दूसरे के विनाश की बात करने लगे तो जो प्रथम विश्व युद्ध का कारण बना।
    अंतर्राष्ट्रीय संस्था का अभाव –
  • वियना व्यवस्था के पश्चात ऐसी कोई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था नहीं थी जो यूरोप की शक्तियों को नियंत्रित करे और शांति स्थापित करे।
  • वस्तुतः सभी देश अपने को असीमित रुप से सर्वोच्च शक्ति समझने लगे और अराजकता की स्थिति पैदा हुई।
  • 1908 में बोस्निया-हर्जेगोविना क्षेत्र पर ऑस्ट्रिया ने पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया, फलतः जनता उग्र हुई।

तात्कालिक कारण – Pratham Vishwa Yudh ka Tatkalik Karan Kya Tha

  • 28 जून, 1914 में जब ऑस्ट्रिया-हंगरी के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की बोस्मिया में सर्बिया के एक नागरिक द्वारा हत्या कर दी गई थी। अतः ऑस्ट्रिया ने सर्विया को उक्त दोषी मानते हुए उसे दंडित करने की बात कही और ऑस्ट्रिया के साथ उसका युद्ध शुरू हुआ इसी क्रम में प्रथम विश्वयुद्ध का आरंभ हुआ।
  • वस्तुतः सर्विया उग्र नहीं हुआ होता यदि उसे रूस का समर्थन नहीं होता और रूस को इंग्लैंड एवं फ्रांस का समर्थन प्राप्त था तो दूसरी तरफ ऑस्ट्रिया को जर्मनी, इटली एवं तुर्की का समर्थन प्राप्त था और अंततः इंग्लैंड फ्रांस जैसे मित्र राष्ट्रों का गुट युद्ध में विजयी हुआ।

प्रथम विश्वयुद्ध की घटनाएँ – Pratham Vishwa Yudh

प्रथम विश्वयुद्ध 1914 ई. में शुरू हुआ। ऑस्ट्रिया-हंगरी के राजसिंहासन का उत्तराधिकार आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डीनेण्ड था। ऑस्ट्रिया के राजा आर्क ड्यूक फर्डनेण्ड की बोस्निया की राजधानी सिराजेवो में हत्या कर दी गयी। ऑस्ट्रिया ने इस युद्ध के लिए सर्बिया को उत्तरादायी ठहरा दिया। यही प्रथम विश्युद्ध का कारण बना।

ऑस्ट्रिया ने अल्टीमेटम दे दिया लेकिन सर्बिया ने अल्टीमेटम की मांगों को नहीं माना, क्योंकि यह मांग सर्विया की स्वतन्त्रता के विरुद्ध थी। इससे ऑस्ट्रिया नाराज हो गया और ऑस्ट्रिया ने 28 जुलाई, 1914 को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। रूस ने सर्बिया को अपना पूर्ण समर्थन देने का वचन दिया। जर्मनी ने 1 अगस्त को रूस के विरुद्ध तथा 3 अगस्त को फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

जर्मन सैनिक फ्रांस पर अपना दबाव डालना चाहता थे इसलिए वे 4 अगस्त को बेल्जियम में शामिल हो गये। इस समय ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। कई अन्य देश भी युद्ध के मैदान में आ गये। जापान ने जर्मन उपनिवेशों पर अपना अधिकार करने के उद्देश्य से जर्मनी के विरुद्ध युद्ध छेङ दिया। तुर्की और बुल्गारिया जर्मनी की ओर से युद्ध में शामिल हुये थे। त्रिगुट का सदस्य होते हुए भी इटली कुछ समय तक तटस्थ रहा, परन्तु साल 1915 ई में वह भी जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित हो गया। इस प्रकार इन घटनाओं ने प्रथम विश्वयुद्ध को उजागर कर दियां

(1) जर्मनी का फ्रांस और रूस के विरुद्ध संघर्ष

जर्मनी ने यह सोचा था कि वह बेल्जियम के मार्ग से फ्रांस अचानक आक्रमण करेगा और उसे पराजित कर देगा और उसके बाद रूस से भी निपट लेगा। कुछ समय तक तो जर्मनी की योजना सफल होती रही। जर्मन सैनिक पेरिस से केवल 20 किमी दूर ही रह गये थे कि रूस ने जर्मनी और ऑस्ट्रिया पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिये।

इस वजह से कुछ जर्मनी सैनिकों को पूर्वी मोर्च पर भेजना पङा था। इसी वजह से जर्मनी का फ्रांस की ओर से विस्तार रुक गया और युद्ध में लम्बे समय के लिए गतिरोध पैदा हो गया। इस समय यह युद्ध दुनिया के कई अन्य भागों में फैल गया। परिणामस्वरूप पश्चिम एशिया, अफ्रीका और सुदूर पूर्व में लङाइयां आरम्भ हो गयी।

(2) नये युद्ध शस्त्रों का प्रयोग

अब नये प्रकार का युद्ध आरम्भ हुआ। युद्धरत सेनाओं ने खाइयाँ खोदीं जिनकी सहायता से वे एक-दूसरे पर धावा बोलने लगीं। इससे पहले सेनाएँ खुले मैदान में लङती थीं। अनेक प्रकार के नये हथियार प्रयोग में लाये गये। इसी तरह दो हथियार मशीनगन और तरल-अग्नि थे। इस युद्ध में पहली बार गैर-सैनिक जनता को मारने के लिए हवाई जहाजों का प्रयोग किया गया।

अंग्रेजों ने टैंक का प्रयोग आरम्भ किया, बाद मे यह एक प्रमुख हथियार बन गया। जर्मनी ने यू-नौका नामक पनडुब्बियों का बङे पैमाने का प्रयोग किया। इन पनडुब्बियों की सहायता से उसने शत्रु जहाजों के साथ-साथ ब्रिटिश बन्दरगाहों और तटस्थ देशों के जहाजों को भी नष्ट कर दिया। युद्ध में जहरीली गैस का भी प्रयोग किया गया था।

(3) युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका का सम्मिलित होना

संयुक्त राज्य अमेरिका त्रिदेशीय संधि के देशों को हथियार तथा अन्य आवश्यक सामान दे रहा था। अमेरिकी जनता ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के प्रति सहानुभूति रखती थी, परन्तु देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, तो अमेरिका युद्ध से तटस्थ रहा। साल 1915 ई. में जब जर्मनी की यू-नौकाओं ने अमेरिकी जहाजों को डुबो दिया, जिनमें नागरिकों को ले जाने वाले जहाज भी शामिल थे तब अमेरिका को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करनी पङी। 6 अप्रैल, 1917 ई. को वह भी युद्ध में आ गया।

(4) रूस का युद्ध से हटना

1917 ई. में ही युद्ध की स्थिति में एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ कि रूस युद्ध से हट गया। रूसी क्रान्तिकारी आरम्भ से ही लङाई का विरोध करते आ रहे थे। लेनिन के नेतृत्व में उन्होंने युद्ध को क्रान्तिकारी युद्ध में बदलने का निर्णय लिया था। रूसी साम्राज्य की कई बार हार भी हुई थी। इसमें 6 लाख से अधिक रूसी सैनिक मारे गये। अतः रूसी क्रान्ति के अगले ही दिन बोल्शेविक सरकार ने शान्ति-सम्बन्धी अज्ञाप्ति जारी की। मार्च, 1918 ई. में रूस ने जर्मनी के साथ शान्ति सन्धि पर हस्ताक्षर किये।

जर्मनी की सरकार को लगा कि रूसी सरकार युद्ध को जारी रखने की स्थिति में नहीं है। इसलिए जर्मनी ने रूस पर कठोर शर्त रखी, परन्तु ने उन्हें स्वीकार कर लिया। त्रिदेशीय सन्धि में शामिल शक्तियाँ रूसी क्रान्ति और रूस के युद्ध से अलग होने के निर्णय के विरुद्ध थी। वे रूसी क्रान्ति के विरोधी तत्वों को पुनः उभारने का प्रयत्न करने लगी। परिणामस्वरूप रूस में गृहयुद्ध छिङ गया जो तीन वर्षों तक चलता रहा। विदेशी शक्तियों और क्रान्तिकारी सरकार के विरुद्ध हथियार उठाने वाले रूसियों की पराजय हुई और गृह युद्ध समाप्त हो गया।

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम – Pratham Vishwa Yudh ke Parinam

आर्थिक परिणाम

  • प्रथम विश्व युद्ध से उद्योगों में हानि पहुँची वस्तुतः कल कारखानों के क्षतिग्रस्त हो जाने से उत्पादन में कमी आई व्यापार में गिरावट हुई इससे राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई।
  • युद्ध के कारण यूरोपीय देशों का युद्ध खर्चा बढ़ा फलतः वे क्षतिग्रस्त हुए और ऋण को चुकाने के लिए नवीन मुद्रा छापी अतः मुद्रा का प्रसार हुआ इससे मुद्रा के मूल्य में कमी आई।
  • युद्धों के दौरान यूरोपीय राज्यों ने अपनी शक्ति युद्ध कार्यों में लगा दी अतः औद्योगिक उत्पादन एवं परिवहन के साधनों का उपयोग युद्ध क्षेत्र में होने लगा।
  • ऐसे में आपूर्ति तंत्र कमजोर हुआ वस्तुओं की उपलब्धता कम हुई अतः मूल्य वृद्धि की समस्या सामने आई।
  • यूरोप में अमेरिका हस्तक्षेप की शुरूआत हुई, वस्तुतः यूरोप के पुन निर्माण के लिए अमेरिका ने ऋण प्रदान किया।
  • अमेरिका शेयर बाजार में जब गिरावट आई तो अमेरिका पूँजी पर निर्भर यूरोपीय देश भी दुष्प्रभावित हुए।
  • 1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी के संदर्भ में इसे समझा जा सकता है। इस आर्थिक कमजोरी ने यूरोप में फासीवाद एवं नाजीवाद के रूप में तानाशाही शासन की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

सामाजिक परिणाम

  • युद्ध में बढ़ी संख्या में सैनिक एवं नागरिक मारे गए, इनके अंतिम संस्कार की समुचित व्यवस्था न होने के कारण संक्रामक रोगों का प्रसार हुआ फलतः मरने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
  • विभिन्न देश के नागरिकों को अपने घर से ही नहीं राज्य से भी बेघर होना पङा फलतः शरणार्थियों की समस्या सामने आई।
  • विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप समाज में महिलाओं की भूमिका बढ़ी, अब उनके कार्य क्षेत्र का विस्तार हुआ वस्तुतः पुरुष कार्यशील जनसंख्या युद्ध क्षेत्रों में लग गई अतः खेतों, कारखानों, कार्यालयों में कार्य करने के लिए महिलाओं को स्थान मिला ऐसे में उनमें राजनीतिक चेतना पैदा हुई और महिला अधिकारों को लेकर नारीवादी आंदोलन को बढ़ावा मिला इसी क्रम में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ।
  • नस्लवादी भेदभाव की भावना को चोट पहुँची वस्तुतः युद्ध के दौरान क्षेत्र एवं अश्वेत सैनिक मिलकर संघर्ष कर रहे थे अतः वीरता केवल श्वेत लोगों के पास है की अवधारणा खंडित हुई।
  • युद्ध ने विज्ञान एवं अनुसंधान के क्षेत्र में प्रेरक की भूमिका निभाई एक तरफ जहाँ युद्ध के नवीन साधनों जैसे टैंक, रासायनिक गैस आदि का विकास हुआ तो साथ ही लङाकू युद्ध के विमान का विकास हुआ और चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक जीवन रक्षक दवाओं का विकास हुआ।

राजनीतिक परिणाम

  • प्रथम विश्व युद्ध ने जर्मनी, रुस, ऑस्ट्रिया के राजवंशों का अंत कर दिया और लोकतांत्रिक सरकारों के गठन को बढ़ावा मिला वस्तुतः मित्र राष्ट्रों में लोकतंत्र की प्रधानता थी जबकि इनके विरुद्ध संघर्ष कर रहे धुरी राष्ट्रों में राजतंत्र की बहुलता थी।
  • अतः इस युद्ध में लोकतंत्र की रक्षा का नारा दिया गया, जब मित्र राष्ट्र विजयी हुए तो इसे राजंतत्र पर लोकतंत्र की जीत मानी गई। अतः लोकतांत्रिक सरकारों के गठन को बढ़ावा मिला। हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड स्वतंत्र राज्य के रूप में सामने आए।
  • विश्व शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघटन के रुप में राष्ट्र संघ का गठन हुआ।
  • विश्व राजनीति में अब यूरोपीय महत्त्व खोने लगा और अमेरिकी महत्त्व बढ़ने लगा।
  • यूरोप में नव स्थापित प्रजातांत्रिक सरकारें युद्ध की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकीं फलतः लोगों का इस व्यवस्था से विश्वास उठने लगा और इसी क्रम में तानाशाही शासन की स्थापना को प्रोत्साहन मिला।

FAQ – Pratham Vishwa Yudh

1. प्रथम विश्व युद्ध कब शुरू हुआ ?

उत्तर – अगस्त 1914


2. प्रथम विश्व युद्ध का समय क्या था ?

उत्तर – 1914-1918


3. प्रथम विश्व युद्ध किसने जीता ?

उत्तर – प्रथम विश्व युद्ध यूनाइटेड, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, इटली से मिलकर मित्र राष्ट्रों द्वारा जीता गया। उन्होंने इंपीरियल जर्मनी, ऑस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य और तुर्क साम्राज्य से मिलकर केंद्रीय शक्तियों को हराया।


4. प्रथम विश्व युद्ध कैसे शुरू हुआ ?

उत्तर – दी। 28 जून, 1914 में जब ऑस्ट्रिया-हंगरी के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की बोस्मिया में सर्बिया के एक नागरिक द्वारा हत्या कर दी गई। जिसके कारण अगस्त 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई।


5. प्रथम विश्व युद्ध कैसे समाप्त हुआ ?

उत्तर – 11 नवंबर, 1918 को जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के साथ एक युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसी समझौते के बाद प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया।


6. प्रथम विश्व युद्ध का क्या परिणाम हुआ ?

उत्तर – (1) प्रथम विश्व युद्ध से उद्योगों में हानि पहुँची वस्तुतः कल कारखानों के क्षतिग्रस्त हो जाने से उत्पादन में कमी आई व्यापार में गिरावट हुई इससे राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई।
(2) प्रथम विश्व युद्ध ने जर्मनी, रुस, ऑस्ट्रिया के राजवंशों का अंत कर दिया और लोकतांत्रिक सरकारों के गठन को बढ़ावा मिला वस्तुतः मित्र राष्ट्रों में लोकतंत्र की प्रधानता थी जबकि इनके विरुद्ध संघर्ष कर रहे धुरी राष्ट्रों में राजतंत्र की बहुलता थी।


7. प्रथम विश्व युद्ध के कारण क्या थे ?

उत्तर – (1) यूरोप के प्रमुख देश इंग्लैण्ड, फ्रांस, रुस का साम्राज्यवादी विस्तार यूरोप और उसके बाहर के क्षेत्रों में हुआ था, अब ये राज्य तुर्की साम्राज्य की कमजोरी से लाभ लेने के लिए आपस में संघर्षरत हुए तो दूसरी तरफ इटली और जर्मनी के रुप में नए यूरोपीय राज्यों के आगमन से औपनिवेशिक विस्तार शुरु हुआ।
(2) अब राष्ट्रों ने अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान सेना के माध्यम से करना चाहा फलतः राज्य के आपसी संबंधों में तनाव बढ़ा।

शिव चालीसा जरुर पढ़ें

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll to Top