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महासागरीय धाराएँ – Ocean currents

Author: K.K.SIR | On:7th Oct, 2022| Comments: 1

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Table of Contents

  • महासागरीय धाराएँ(Ocean currents)
  • सागरीय धाराओं के चलने के लिए उत्तरदायी कारक:
  • महासागरीय धाराएँ – Ocean currents
  • प्रतिधारा
  • अंध महासागर की धाराएँ
  • उत्तरी अंध महासागर की धाराएं
  • (1) उत्तरी अंध महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म जल धारा –
  • (2) फ्लोरिडा की गर्म धारा –
  • (3) फ्लोरिडा धारा –
  • (4) गल्फ स्ट्रीम –
  • (5) अण्टार्कटिक प्रवाह –
  • (6) लेब्रोडोर की ठण्डी धारा –
  • (7) पूर्वी ग्रीनलैंड की ठण्डी धारा –
  • (8) केनारी की धारा –
  • दक्षिणी अंध महासागर की धाराएँ –
  • (1) दक्षिणी अंध महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म जलधारा –
  • (2) ब्राजील की गर्म धारा –
  • (2) फाॅकलैण्ड की ठण्डी धारा –
  • (3) बेंगुला धारा (ठण्डी) –
  • प्रशान्त महासागर की धाराएँ
  • उत्तरी प्रशान्त महासागर की धाराएँ –
  • (1) उत्तरी प्रशान्त महासागर भूमध्यरेखीय गर्मधारा –
  • (2) क्यूरोशिवो की गर्म धारा –
  • (3) सुशिमा धारा –
  • (4) पछुआ पवन प्रवाह –
  • दक्षिणी प्रशान्त महासागर धाराएँ –
  • (1) दक्षिणी भूमध्यरेखीय/विषुवत् रेखीय धारा –
  • (2) पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा –
  • (3) पछुवा पवन प्रवाह –
  • हिंद महासागर की धाराएँ
  • उत्तरी हिन्द महासागर की धाराएँ –
  • दक्षिणी हिन्द महासागर की धाराएँ
  • (1) उत्तरी पूर्वी मानसून धारा –
  • (2) विपरीत धारा –
  • (3) द.प. मानसून धारा –
  • (4) विषुवत रेखीय धारा –
  • (5) मोजम्बिक तथा अगुलहास धारा –
  • (6) पछुआ पवन प्रवाह –

दोस्तो आज की पोस्ट में हम महासागरीय धाराओं(Ocean currents) के बारे मे जानेंगे।

महासागरीय धाराएँ(Ocean currents)

महासागरीय धाराएँ

महासागरीय जल के एक निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की गति को धाराएँ कहते है। महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति कई कारकों के सम्मिलित प्रभाव से होती है। इनमें से कुछ कारक महासागरीय जल की विशेषता से सम्बन्धित है तो कुछ कारक पृथ्वी की परिभ्रमण क्रिया तथा इसके गुरुत्वाकर्षण बल से सम्बन्धित है तथा कुछ बाह्य कारक है।

महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते है।

सागरों में विशाल जलराधि की निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की क्षैतिज गति को महासागरीय धाराएँ कहते हैं।

धाराओं में जल की गति 2 से 10 किमी. प्रति घंटे होती है।

महासागरीय धारायें दो प्रकार के बलों के द्वारा प्रभावित होती है।

1. प्राथमिक बल – जल की गति को प्रारंभ करता है।
2. द्वितीयक बल – धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करता है।

सागरों में सागरीय सतह के जल के एक बङी मात्रा में निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की गति को धाराएं कहते हैं। तापमान के आधार पर इन्हें ठंडी व गर्म धाराओं में वर्गीकृत किया जाता है।

धाराओं की गति, आकार एवं प्रवाह दिशा के आधार पर धाराएं तीन प्रकार की होती है

1. प्रवाह – जब सागरीय सतह का जल प्रचलित पवन के प्रभाव में आगे बढ़ता है तो उसे प्रवाह कहते है।

इसकी गति एवं सीमा निश्चित नहीं होती। परंतु प्रवाह सदैव मंद गति वाली सागरीय गति है। जैसे -उत्तरी प्रशांत प्रवाह, दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह आदि।

2. धारा – जब सागर का जल एक निश्चित दिशा में , निश्चित सीमा में  तीव्र गति से अग्रसर होता है। तो इसे धारा कहते है। इसकी गति प्रवाह से अधिक होती है।

जैसे – क्यूरोशिवो की धारा, हम्बोल्ट धारा आदि।

3. विशाल धारा – जब सागरीय सतह की विशाल जल राशि एक निश्चित दिशा में तेज गति से अग्रसर होती है। तो इसे विशाल धारा कहते हैं। इसको गति प्रवाह एवं धारा से अधिक होती है। जैसे – गल्फ स्ट्रीम।

सागरीय धाराओं के चलने के लिए उत्तरदायी कारक:

  • स्थायी/ग्रहीय/सनातनी हवाओं से।
  • सागरीय तापमानों में अंतर से।
  • सागरीय लवणता में अंतर से।
  • पृथ्वी की परिभ्रमण गति से।
  • तटीय भूमि के स्वरूप से।

महासागरीय धाराएँ – Ocean currents

⇒ भूमध्य रेखा से धु्रवों की तरफ जाने वाली जलधाराएं गर्म होती है।
⇒ ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर आने वाली जलधाराएं ठण्डी होती है।

⇒ महाद्वीपों के पूर्वी किनाारों पर गर्म जल की धाराएं बहती है। जबकि पश्चिमी किनारों पर ठण्डे जल की धाराएं बहती है।

⇒अपवाद – दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी किनारे पर हम्बोल्ट या पीरू की ठण्डी धारा बहती है परंतु 4-5 साल बाद यही धारा गर्म होकर नीचे की ओर मुङ जाती है इसे एलनीनों कहते हैं।

⇒ सारगैसों सागर – उत्तरी अंध महासागर में गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा तथा लेब्रोडोर और ग्रीन लैंड की ठण्डी धाराओं के मिलने से एक गुनगुने जल का सागर बनता है जिसे सारगैसो सागर कहते हैं।

⇒ सारगैसो एक घास का नाम है जिसके नाम पर सारगैसो सागर का नामकरण किया गया है।

⇒ सारगैसो में घना कोहरा पैदा होता है और यहां पर सारगैसो घास पर प्लैंकटन नामक सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं जो मछलियों का प्रमुख भोजन है।

इसीलिये यहां पर संसार में सबसे ज्यादा मछलियां पाई जाती हैं और इसे ग्रांड बैंक के नाम से जाना जाता है।
⇒ उत्तरी अंध महासागर में ही इंग्लैण्ड के पास एक अन्य बैंक डाॅगर/डागर बैंक कहलाता है।

⇒ उत्तरी अंध महासागर में सारगैसो सागर से थोङे से दक्षिण में बरमुङा त्रिकोण स्थित है। जिसके ऊपर से गुजरने वाले जलयान व वायुयान गायब हो जाते है।

इसलिए इसे रहस्यमयी द्वीप के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य कारण यहां चट्टानों में पाया जाने वाला चुम्बकत्व है।

प्रतिधारा

उत्तरी अंध महासागरीय और दक्षिणी अंध महासागरीय धाराओं के बीच में सामने एक प्रति धारा चलती है जिसे प्रति धारा कहते हैं यह गर्म धारा है।

अंध महासागर की धाराएँ

उत्तरी अंध महासागर की धाराएं

  1. उत्तरी अंध महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म जल धारा
  2. फ्लोरिडा की गर्म धारा
  3. गल्फस्ट्रीम गर्म धारा (विश्व की सबसे तेज गति से बहनी वाली धारा) (यूरोप का गर्म कम्बल)
  4. पछुआ पवन प्रवाह गर्म
  5. नार्वे की धारा गर्म
  6. लेबे्रडोर की ठण्डी धारा
  7. ग्रीनलैंड की ठण्डी धारा
  8. कैनारी की ठण्डी धारा

(1) उत्तरी अंध महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म जल धारा –

यह धारा भूमध्य रेखा के समान्तर बहती है। यह धारा अफ्रीकी तट से पश्चिमी द्वीप समूह एवं कैरेबियन सागर की ओर जाती है। इसकी दिशा पूर्व से पश्चिम होती है। यह धारा 0-100N के बीच उत्पन्न होती है। कनारी धारा व उ.पू. व्यापारिक पवनें इसको प्रबलता देती है। पश्चिमी अफ्रीका के तट के समीप इसे गिनी धारा कहा जाता है। कैरिबियन सागर में पश्चिमी द्वीप समूह के बीच यह धारा दो धाराओं में बँट जाती है जिसमें से एक उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ बहकर गल्फस्ट्रीम में मिल जाती है और दूसरी दक्षिण में मैक्सिको की खाङी में पहुँच जाती है।

(2) फ्लोरिडा की गर्म धारा –

यह उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा का आगे वाला भाग हे जो मिसीसिपी नदी द्वारा प्रदत्त अतिरिक्त जल को लेकर युकाटन जल संधि द्वारा मैक्सिको की खाङी में घुसती है। इसी कारण खाङी का जल स्तर अटलांटिक महासागर के जलस्तर की अपेक्षा कुछ ऊँचा हो जाता है। अतः खाङी से जल की धारा, फ्लोरिडा की मुहाने से होकर बाहर खुले महासागर में निकलती है, जहाँ अंटाईल्स की धारा इससे मिल जाती है। फ्लोरिडा अंतरीप से इसे सम्मिलित धारा कहा जाता है, जो एक गर्म धारा है।

(3) फ्लोरिडा धारा –

यह धारा कैरेबियन सागर से यूकाटन चैनल से होकर मैक्सिको की खाङी में प्रवेश करके फ्लोरिडा जल डमरूमध्य से बाहर निकल जाती है। फ्लोरिडा जल डमरू मध्य से बाहर निकलते ही इसमें एण्टीलीज धारा का जल मिल जाता है। यहाँ इसको प्रबल मिल जाती है और यह फ्लोरिडा धारा के नाम से हेटरस अन्तरीप (300N) तक आती है।

(4) गल्फ स्ट्रीम –

फ्लोरिडा धारा का विस्तार हेटरस अन्तरीप से ग्राण्ड बैंक तक है। इसकी खोज पाॅस डी लिओन द्वारा सन् 1513 ईस्वी में की गई। यह उष्ण जल धारा 200 उत्तरी अक्षांश के पास मैक्सिको की खाङी से उत्पन्न होकर उत्तर-पूर्व की ओर 700 उत्तरी अक्षांश तक पश्चिमी यूरोप के पश्चिमी तट तक प्रवाहित होती है। इस धारा को उत्तर में उत्तरी अटलांटिक प्रवाह भी कहा जाता है।

(5) अण्टार्कटिक प्रवाह –

दक्षिणी पूर्व महासागर में पछुआ पवनों के कारण पश्चिमी से पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाले प्रवाह को अण्टार्कटिक प्रवाह कहते हैं। यह ठण्डी जल धारा है जो तीव्र वेग से बहती है।

(6) लेब्रोडोर की ठण्डी धारा –

यह ठण्डी जलधारा है। यह आर्कटिक महासागर से अटलांटिक महासागर में ग्रीनलैण्ड के पश्चिमी तट पर बेफिन की खाङी से निकलकर लैब्रोडोर के पठार से सहारे बहती है। लैब्रोडोर धारा कनाडा के पूर्वी तट पर बहती हुई गर्म गल्फस्ट्रीम में मिलती है। यहाँ तापमान भिन्न होता है इसलिए यहाँ दो धाराओं का संगम होता है, जिस वजह से न्यूफाउंडलैंड के समीप विख्यात कोहरे का निर्माण होता है। यह संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण मत्स्य आखेट क्षेत्र है।

(7) पूर्वी ग्रीनलैंड की ठण्डी धारा –

यह ग्रीनलैण्ड के पूर्वी तट के सहारे उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बहती है। आइसलैण्ड के पास इरमिंगर व नाॅर्वे गर्म धाराओं के मिलन से कोहरा उत्पन्न होता है। यहाँ मत्स्यन क्षेत्र भी है।

(8) केनारी की धारा –

यह ठंडी जल धारा है। यह उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट के सहारे केपवर्ड के पास होकर दक्षिण की ओर बहती है। यह उत्तरी अटलांटिक प्रवाह की उपधारा है। यह पश्चिमी यूरोपियन तट से टकराकर दक्षिण की ओर उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा से मिल जाती है। अंत में यह उत्तरी विषुवतीय धारा में विलीन हो जाती है और यह उत्तरी अटलांटिक में धाराओं के चक्र को पूरा करती है।

दक्षिणी अंध महासागर की धाराएँ –

(1) दक्षिणी अंध महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म जलधारा –

इस धारा की उत्पत्ति दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों से होती है जो भूमध्य रेखा के समानान्तर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।

(2) ब्राजील की गर्म धारा –

दक्षिणी अटलांटिक महासागर में दक्षिणी विषुवतीय रेखा की एक शाखा साओराक अंतरीप से दक्षिणी की ओर दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट से लगती हुई बहती है, जिसे ब्राजील धारा कहते हैं। 350 अक्षांश पर ब्राजील धारा की गति में परिवर्तन आ जाता है और परिभ्रमण गति और पछुआ पवनों के प्रभाव से यह धारा पूर्व की ओर मुङ जाती है।

(2) फाॅकलैण्ड की ठण्डी धारा –

हाई अन्तरीप की धारा फाकलैण्ड द्वीप से टकराकर दो दिशाओं में बँट जाती है। इसकी एक ठंडी जल धारा दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी-पूर्वी तट पर दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, जिसे फाॅकलैण्ड धारा कहते हैं।

(3) बेंगुला धारा (ठण्डी) –

गुड होप अंतरीप के निकट दक्षिणी अटलांटिक धारा की एक शाखा दक्षिणी अफ्रीका के पश्चिमी तट पर उत्तर की ओर बहती है। यह ठंडी जलधारा दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी-पूर्वी तट पर दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, जिसे फाॅकलैण्ड धारा कहते हैं।

प्रशान्त महासागर की धाराएँ

उत्तरी प्रशान्त महासागर की धाराएँ –

  • उत्तरी प्रशान्त महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म जल की धारा
  • क्यूरोशिवों की गर्म धारा (जापान की कालीध्नीली धारा)
  • सुशिमा जलधारा (गर्म)
  • पछुआ पवन प्रवाह (गर्म धारा)
  • अलास्का की गर्म धारा
  • कमचटका की ठण्डी धारा
  • ओखोटस्क की ठण्डी धारा
  • ओयोशिवो/क्यूराइल की ठण्डी धारा
  • कैलिफोर्निया की ठण्डी धारा।

प्रशान्त महासागरीय प्रति विषुवत रेखीय गर्म धारा

  • उत्तरी प्रशांत महासागरीय और दक्षिणी प्रशांत महासागरीय धाराओं के बीच में सामने एक प्रति धारा चलती है जिसे प्रति विषुवत रेखीय गर्म धारा कहते हैं।
  • दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी किनारे पर हम्बोल्ट या पीरू के तट पर एक ठण्डे जल की धारा बहती है जो हम्बोल्ट/ पीरू धारा के नाम से जानी जाती है।
  • 3-4 साल के बाद 25 दिसम्बर के आसपास हम्बोल्ट या पीरू की धारा गर्म होकर नीचे की ओर मुङ जाती है। यह एल-नीनों कहलाती है जो गर्म जल की धारा होती है।
  • चूंकि यह स्थिति क्रिसमस के दिन के निकट (22-25 दिसम्बर के बीच) उत्पन्न होती है इसलिये इसे शिशु ईसा धारा या चाइल्ड क्रिस्ट कहलाती है।
  • एलनीनो आने पर हम्बोल्ट-पीरू के तट पर अतिवृष्टि होती है जबकि भारत के तट पर सूखा पङता है।
  • उत्तरी भारत में श्रीगंगानगर में शीतकाल में होने वाली वर्षा मावठ के लिये भूमध्य सागरीय चक्रवात जिम्मेवार होते हैं।

(1) उत्तरी प्रशान्त महासागर भूमध्यरेखीय गर्मधारा –

उत्तरी प्रशांत महासागर में उत्तरी-पूर्वी वाणिज्य पवन के कारण उत्तर विषुवतीय धारा उत्पन्न होती है, यह धारा मेक्सिको तट से प्रारम्भ होकर पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती हुई 7500 सागरीय मील की दूरी तय करने के बाद फिलीपाइन तट तक पहुँचती है। यह विश्व की सबसे लम्बी जलधारा है। महासागर की कैलिफोर्निया धारा तथा द.पू. मानसून हवाओं के योग से इस धारा का आविर्भाव होता है।
दक्षिणी शाखा पूर्व की ओर मुङकर प्रतिविषुवत् रेखीय धारा का निर्माण करती है। उत्तरी विषुवत रेखीय धारा एक अविच्छिन्न शृंखला के रूप में प्रवाहित होती है।

(2) क्यूरोशिवो की गर्म धारा –

यह एक गर्म जलधारा है, जो उत्तरी प्रशांत विषुवतीय रेखीय धारा के फिलीपीन्स द्वीप पर पहुँचने के बाद पाइवान तथा जापान के पूर्वी तट के साथ उत्तरी दिशा में प्रवाहित होने लगती है।

(3) सुशिमा धारा –

300 उत्तरी अक्षांश के पास क्यूरोशिवो से एक शाखा अलग होकर जापान सागर में चली जाती है।

(4) पछुआ पवन प्रवाह –

अटलांटिक महासागर के समान ही प्रशान्त महासागर में भी पछुआ हवा के प्रभाव 400से 450 द. अक्षांश के पास एक प्रबल धारा पश्चिम से पूर्व दिशा में तस्मानिया तथा द. अमेरिका तट के मध्य प्रवाहित होती है।

दक्षिणी प्रशान्त महासागर धाराएँ –

  • दक्षिणी प्रशान्त महासागरीय भूमध्यरेखीय गर्म धारा।
  • पूर्वी आस्ट्रेलिया की गर्म धारा
  • पछुआ पवन प्रवाह (ठण्डी धारा)
  • हम्बोल्ट/पीरू की ठण्डी धारा

(1) दक्षिणी भूमध्यरेखीय/विषुवत् रेखीय धारा –

दक्षिण विषुवतीय जलधारा दक्षिण-पूर्वी वाणिज्यिक पवन के कारण पूर्व से पश्चिम की ओर उत्पन्न होती है। जब तक वे एशिया व आस्ट्रेलिया नहीं पहुँच जाती, तब तक उसका मार्ग द्वीपों से बार-बार अवरूद्ध होता है। न्यू गायना पास इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं – उत्तरी शाखा एवं दक्षिणी शाखा।

(2) पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा –

यह एक गर्म जलधारा है। द. विषुवत् रेखीय धारा की ओर आस्ट्रेलिया के तट के पास पहुँच कर विभाजित हो जाती है तो उसकी दक्षिणी शाखा आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के सहारे दक्षिण दिशा में बहने लगती है, जिस कारण न्यूजीलैण्ड इस धारा द्वारा घिर जाता है। यह एक स्थायी एवं गर्म धारा है।

(3) पछुवा पवन प्रवाह –

अटलांटिक महासागर के समान ही प्रशान्त महासागर में भी पछुवा हवा के प्रभाव 400 से 450 दक्षिणी अक्षांश के पास एक प्रबल धारा पश्चिम से पूर्व दिशा में तस्मानिया तथा दक्षिण अमेरिका तट के मध्य प्रवाहित होती है।

हिंद महासागर की धाराएँ

उत्तरी हिन्द महासागर की धाराएँ –

  • ग्रीष्मकालीन प्रवाह – ग्रीष्मकाल में उत्तरी हिन्द महासागर में दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर हवाओं के प्रभाव से में महासागरीय धारा भी दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर बहने लगती है। यह गर्म धारा है।
  • शीतकालीन प्रवाह – शीतकाल में भारत में उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर हवाएं चलती है।

जिनके कारण उत्तरी हिन्द महासागर की धारा भी शीतकाल में उत्तर पूर्व से दक्षिण की ओर चलने लगती है। यह भी गर्म धारा है।

दक्षिणी हिन्द महासागर की धाराएँ

  • दक्षिणी हिन्द महासागरीय भूमध्य रेखीय गर्मधारा
  • मोजाम्बिक गर्म धारा
  • मेडागास्कर/मालागासी की गर्म धारा
  • अगुलहास की गर्म धारा
  • पछुआ पवन प्रवाह (ठण्डी धारा)
  • पश्चिमी आस्ट्रेलिया की ठण्डी धारा।

(1) उत्तरी पूर्वी मानसून धारा –

शरद काल (उत्तरी गोलार्द्ध) में उत्तर-पूर्व मानसून पवनें स्थल से जल की ओर चलती हैं, जिस कारण उत्तरी हिंद महासागर में अण्डमान तथा सोमाली के बीच पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने वाली उतर-पूर्व मानसून धारा का जन्म होता है।

(2) विपरीत धारा –

उत्तर-पूर्व मानसून के समय ही एक विपरीत धारा का निर्माण होता है, जो 20 से 80 द. अक्षांशों के मध्य जंजीबार तथा सुमात्रा के बीच प्रवाहित होती है।

(3) द.प. मानसून धारा –

ग्रीष्मकाल में मानसूनी हवाओं की दिशाएँ उल्टी होकर द.प. हो जाती हैं, जिस कारण उत्तरी हिंद महासागर की धारा क्रम भी उल्टा हो जाता है। उत्तरी-पूर्वी मानसून धारा लुप्त हो जाती है और उसकी जगह पर द.प. मानसून धारा का जन्म होता है।

(4) विषुवत रेखीय धारा –

द. हिंद महासागर में मानसूनी हवाओं के मौसमी परिवर्तन का प्रभाव धाराओं पर अत्यन्त कम होता है।

(5) मोजम्बिक तथा अगुलहास धारा –

द. विषुवत रेखीय धारा की एक शाखा मोजम्बिक चैनल से होकर द. की ओर प्रवाहित होती है। इसे मोजाम्बिक धारा कहते हैं।

(6) पछुआ पवन प्रवाह –

अन्य महासागरों के समान हिंद महासागर में भी द. अक्षांश के पास पछुवा हवा के प्रभाव में पश्चिम से पूर्व दिशा में धारा चलती है, जिसे पछुआ पवन प्रवाह कहा जाता है।

(7) दक्षिण विषुवत रेखीय गर्म जलधारा

(8) मैडागास्कर की गर्म जलधारा

(9) पश्चिमी आस्ट्रेलिया की जलधारा

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Comments

  1. Dinesh Kumar says

    November 9, 2022 at 8:34 PM

    Good & thanks

    Reply

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